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Friday, 31 October, 2025
होमदेश‘बिहार में महागठबंधन की जीत मोदी के अंत की शुरुआत होगी’—भाकपा (माले) के दीपांकर भट्टाचार्य

‘बिहार में महागठबंधन की जीत मोदी के अंत की शुरुआत होगी’—भाकपा (माले) के दीपांकर भट्टाचार्य

दिप्रिंट से बातचीत में भट्टाचार्य ने संकेत दिए कि अगर विपक्षी गठबंधन जीतता है तो राज्य में एक से अधिक डिप्टी सीएम हो सकते हैं. बिहार में पहले चरण का मतदान 6 नवंबर को होगा.

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सीवान: अगर विपक्षी गठबंधन चुनाव जीतता है, तो यह “मोदी के अंत की शुरुआत” होगी — ऐसा कहना है भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य का. उन्होंने कहा कि यह बिहार विधानसभा चुनाव बेहद अहम है और इसका असर राष्ट्रीय राजनीति तक जाएगा. पहले चरण का मतदान कुछ ही दिनों में होना है.

भट्टाचार्य की पार्टी ने 2020 के विधानसभा चुनाव में बड़ा चौंकाने वाला प्रदर्शन किया था — 19 सीटों में से 12 सीटें जीतकर. उस समय भाकपा (माले) बिहार की राजनीति में एक मजबूत ताकत बनकर उभरी थी और कई इलाकों में कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन किया था. कांग्रेस ने 243 सदस्यीय विधानसभा की 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से उसे सिर्फ 19 सीटें मिलीं.

इस बार के चुनाव को लेकर भट्टाचार्य ने दिप्रिंट से कहा, “हम उम्मीद करते हैं कि इस बार गठबंधन ज्यादा संतुलित रहेगा.”

उन्होंने कहा, “पिछली बार हमारे पास पांच दल थे. इस बार यह गठबंधन बड़ा है—दो नई पार्टियां, वीआईपी और आईआईपी, इसमें शामिल हुई हैं. इन दोनों का उत्तर बिहार के कई जिलों में अच्छा प्रभाव है…पिछली बार हम उत्तर बिहार में कमजोर रहे थे, इसलिए इस बार यह गठबंधन ज्यादा मजबूत और संतुलित रहेगा, ऐसी उम्मीद है.”

भाकपा (माले) ने शुरू में 30 सीटों पर चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी, लेकिन बाद में “बड़ी राजनीतिक एकता के हित में” 20 सीटों पर समझौता कर लिया. भट्टाचार्य ने कहा, “हमने 20 सीटों पर सहमति बनाई है. यह बहुत ही एकजुट और स्पष्ट गठबंधन है. अब हमें सिर्फ लड़ाई पर ध्यान देना है.”

महागठबंधन — यानी विपक्षी गठबंधन में शुरू से राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) और भाकपा (माले) लिबरेशन शामिल थे. इस बार इसमें विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) और इंडियन इंक्लूसिव पार्टी (आईआईपी) भी जुड़ी हैं.

राजद द्वारा सीवान के दिवंगत बाहुबली शहाबुद्दीन के बेटे उसामा शहाब को टिकट देने के फैसले पर उठे विवाद पर भट्टाचार्य ने कहा कि दोनों की तुलना करना ठीक नहीं है. उसामा को रघुनाथपुर सीट से उम्मीदवार बनाया गया है, जिस पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित कई एनडीए नेताओं ने आपत्ति जताई है.

भट्टाचार्य ने कहा, “मुझे नहीं लगता कि उसामा को शहाबुद्दीन के साथ जोड़ा जाना चाहिए…शहाबुद्दीन का आपराधिक रिकॉर्ड था और चंद्रशेखर की हत्या के बाद हमने उनके खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. वे जेल गए और अब नहीं रहे. मुझे लगता है कि चंद्रशेखर और बिहार के सभी आतंक पीड़ितों को आखिरकार न्याय मिला.”

भट्टाचार्य का इशारा 1997 में सीवान में भाकपा (माले) के कार्यकर्ता और जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर की हत्या की ओर था. उस समय वाम दलों ने शहाबुद्दीन पर हत्या में शामिल होने का आरोप लगाया था, लेकिन चार्जशीट में उनका नाम नहीं था. 2012 में चार लोगों को इस हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था.

भट्टाचार्य ने कहा, “अब एक नया व्यक्ति है — उसामा. मुझे नहीं लगता कि सबको एक ही पैमाने पर मापना ठीक होगा. उसामा का मूल्यांकन उनके अपने काम और व्यक्तित्व के आधार पर होना चाहिए.”

जब उनसे पूछा गया कि बिहार में वाम दलों का प्रभाव पहले से अधिक दिख रहा है, तो भट्टाचार्य ने कहा कि भाकपा (माले) “आंदोलन-आधारित पार्टी” है.

उन्होंने कहा, “हमारी चुनावी मौजूदगी सीमित हो सकती है, लेकिन हमारा असली असर चुनावी आंकड़ों से कहीं आगे है. हमारी पार्टी लोगों के संघर्षों से जुड़ी है और बिहार एक ऐसा राज्य है जहां लोग जानते हैं कि बिना संघर्ष के कोई अधिकार नहीं मिलता.”

‘किशोर की राजनीति दोहरी और विरोधाभासी’

वामपंथी नेता ने बिहार चुनाव में प्रशांत किशोर की पार्टी ‘जन सुराज’ के असर पर चर्चा करते हुए कहा कि पहले लोगों में इसे लेकर “काफी जिज्ञासा” थी, लेकिन अब यह दिलचस्पी “दिन-ब-दिन घट रही है.”

पॉलिटिकल एनालिस्ट प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी, जो पिछले साल ही शुरू हुई थी, खुद को एनडीए और महागठबंधन—दोनों के “विकल्प” के रूप में पेश कर रही है.

भट्टाचार्य का मानना है कि जो लोग किशोर में “दिलचस्पी” दिखा रहे थे, वे “ज़मीनी हकीकत से सबसे ज्यादा दूर” हैं.

उन्होंने कहा कि किशोर ने शुरू में आरजेडी नेताओं पर उनकी “शिक्षा की कमी” को लेकर निशाना साधा था, लेकिन जल्द ही उन्होंने अपना हमला नीतीश कुमार सरकार की ओर मोड़ लिया.

भट्टाचार्य ने कहा, “पिछले 10 दिनों में वह (किशोर) कहने लगे हैं कि बिहार में लड़ाई एनडीए और उनकी पार्टी के बीच है. वह ऐसा दावा कर सकते हैं, लेकिन अगर उनके उम्मीदवारों पर दबाव डालकर उन्हें मैदान से हटाया जा रहा है, तो वे सभी एनडीए का समर्थन क्यों कर रहे हैं? उनकी राजनीति पाखंडी और विरोधाभासी है.”

सीपीआई (एमएल) नेता ने यह भी कहा कि किशोर की पार्टी “संसाधनों से भरपूर” लगती है. उन्होंने कहा, “इनमें से कुछ उम्मीदवार असंतुष्ट राजनीतिक नेता हो सकते हैं. वे कुछ वोट खींच सकते हैं, लेकिन जहां तक प्रशांत किशोर को एक ब्रांड या नई पार्टी के रूप में देखा जाए, मुझे उनके पक्ष में कुछ खास होता नहीं दिख रहा.”

‘घोषणापत्र जनता की ज़रूरतों की पहचान करता है’

महागठबंधन के चुनावी घोषणापत्र पर उठे सवालों—जैसे कि हर परिवार से एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने के वादे—पर भट्टाचार्य ने कहा कि यह “फ्रीबीज़” नहीं हैं.

उन्होंने कहा, “जब बड़े-बड़े कर्ज़ माफ किए जाते हैं या कॉरपोरेट टैक्स में छूट दी जाती है, तब कोई सवाल नहीं उठाता. कोई इस पर बात नहीं करता कि असली फ्रीबीज़ तो वही हैं, जो लोगों को मिल रहा है, वह मुफ्त नहीं है…यह तो उनकी ज़रूरतों की आंशिक और छोटी सी पहचान भर है.”

एक से ज़्यादा डिप्टी सीएम?

एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी द्वारा उठाए गए सवाल—कि गठबंधन ने किसी मुस्लिम उपमुख्यमंत्री का नाम क्यों नहीं घोषित किया—पर जवाब देते हुए भट्टाचार्य ने संकेत दिया कि एक से ज़्यादा डिप्टी सीएम बनाने की संभावना अभी भी बनी हुई है.

उन्होंने कहा, “यह अभी घोषित नहीं हुआ है, लेकिन विचाराधीन है. मुझे यकीन है कि उस दिन एक से ज़्यादा उपमुख्यमंत्री होंगे.” फिलहाल वीआईपी के मुकेश सहनी महागठबंधन के उपमुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं.

भट्टाचार्य ने इसके जवाब में कहा कि भाजपा ने तो 101 उम्मीदवारों की सूची में एक भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया.

उन्होंने कहा, “बस भाजपा की सूची देख लीजिए और उसे बिहार की जातिगत जनगणना से मिलाइए. मुसलमान बिहार की आबादी का 15% से ज्यादा हैं. फिर वे पूरी सूची से गायब क्यों हैं?”

एक ‘कठिन’ चुनाव

सीपीआई (एमएल) नेता ने मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया का हवाला देते हुए कहा कि सभी जानते हैं, यह “आसान चुनाव नहीं होने वाला” है.

उन्होंने कहा, “राज्य सरकार हर हाल में सत्ता हथियाना चाहती है…इसलिए हम जानते हैं कि यह बहुत कठिन चुनाव है. पूरा देश बिहार की ओर देख रहा है. अगर हम बिहार जीत सके, तो यह मोदी के अंत की शुरुआत होगी.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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