नई दिल्ली: भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा क्षेत्र से जुड़ी महिलाओं को भारी वेतन असमानता का सामना करना पड़ता है—वे पुरुषों की तुलना में आधे से भी कम कमाती हैं. यह असमानता शहरी क्षेत्रों में भी बनी हुई है, जहां महिलाएं पुरुषों की तुलना में केवल 84 प्रतिशत कमाई करती हैं. यह जानकारी नीति आयोग की रिपोर्ट इंडियाज सर्विसेज सेक्टर: इनसाइट्स फ्रॉम एम्प्लॉयमेंट ट्रेंड्स एंड स्टेट लेवल डायनेमिक्स में दी गई है, जिसे मंगलवार को जारी किया गया.
रिपोर्ट के अनुसार, अधिकांश उप-क्षेत्रों में वेतन असमानता बनी हुई है. इसका कारण है पेशागत अलगाव, उच्च वेतन वाली नौकरियों तक सीमित पहुंच और कौशल की कमी.
रिपोर्ट में कहा गया है, “महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना जरूरी है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है. जब तक वेतन समानता और महिलाओं को उच्च मूल्य वाले कार्यों में शामिल करने की दिशा में कदम नहीं उठाए जाते, तब तक सेवा क्षेत्र श्रम बाजार में असमानता को और बढ़ा सकता है.”
रिपोर्ट को मंगलवार को नीति आयोग के सीईओ बी.वी.आर. सुब्रह्मण्यम ने सदस्य अरविंद विरमानी और मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंथा नागेश्वरन की मौजूदगी में जारी किया.
रोजगार सृजन में सेवा क्षेत्र के महत्व को रेखांकित करते हुए सुब्रह्मण्यम ने कहा, “अभी के समय में रोजगार के लिहाज से यह सबसे गतिशील क्षेत्र है. अगर भारत को विकसित देश बनना है, जो हमारे प्रधानमंत्री का लक्ष्य है, तो सेवाओं को विकास में बराबर या उससे भी बड़ा योगदान देना होगा.”
नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सेवा क्षेत्र लगभग 18.8 करोड़ लोगों को रोजगार देता है, जो कुल कार्यबल का 30 प्रतिशत है. कृषि क्षेत्र में 29.2 करोड़ लोग काम करते हैं.
रिपोर्ट में बताया गया है कि पारंपरिक सेवाएं जैसे व्यापार और मरम्मत, परिवहन, शिक्षा, यात्रा और पेशेवर सेवाएं कुल रोजगार का 80 प्रतिशत (15.5 करोड़) हिस्सा हैं. वहीं केवल 13 प्रतिशत (2.5 करोड़) लोग आधुनिक सेवाओं में काम करते हैं, जिनमें तकनीक, स्वास्थ्य सेवा और वित्तीय क्षेत्र शामिल हैं.
रिपोर्ट कहती है, “ये आधुनिक उप-क्षेत्र भारत के सबसे गतिशील क्षेत्रों में हैं, जिनकी पहचान उच्च उत्पादकता, बेहतर वेतन और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं से मजबूत जुड़ाव के रूप में होती है. फिर भी, ये मिलकर भी 2.5 करोड़ से कम लोगों को रोजगार देते हैं, जो केवल व्यापार क्षेत्र से भी कम है.”
इन आधुनिक सेवाओं में रोजगार लचीलापन (एम्प्लॉयमेंट इलास्टिसिटी) अधिक है, यानी उत्पादन बढ़ने के साथ रोजगार भी उसी अनुपात में या उससे तेजी से बढ़ता है.
उच्च रोजगार लचीलापन वाले क्षेत्रों में कंप्यूटर और सूचना सेवाएं (0.79), स्वास्थ्य (0.74) और वित्तीय सेवाएं (0.74) शामिल हैं. जबकि परिवहन (0.53) और व्यापार व मरम्मत (0.39) जैसे क्षेत्रों में लचीलापन कम है, ये बड़े पैमाने पर श्रमिकों को रोजगार तो देते हैं लेकिन उत्पादकता कम रहती है.
रिपोर्ट में कहा गया है, “भारत का सेवा क्षेत्र अभी भी कम मूल्य वाली पारंपरिक गतिविधियों से प्रभावित है, जबकि उच्च मूल्य वाली सेवाएं तेजी से बढ़ रही हैं, परंतु अभी तक वे इतने बड़े पैमाने पर नहीं पहुंची हैं कि श्रम बाजार को बदल सकें.”
नीति आयोग ने सिफारिश की है कि सरकार को कौशल विकास, डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और सेवा क्लस्टर विकास के माध्यम से पारंपरिक क्षेत्रों से आधुनिक उप-क्षेत्रों में श्रमिकों के परिवर्तन को तेज करने के लिए नीति समर्थन देना चाहिए.
रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने पिछले छह वर्षों में सेवा क्षेत्र में लगभग 4 करोड़ नई नौकरियां जोड़ी हैं, जिससे 2023-24 में कुल रोजगार 18.8 करोड़ (कुल कार्यबल का 30 प्रतिशत) हो गया है. फिर भी भारत सेवा क्षेत्र में वैश्विक औसत 50 प्रतिशत से पीछे है.
विश्व बैंक के आंकड़ों के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि 1992 से 2022 के बीच वैश्विक स्तर पर सेवा क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों की हिस्सेदारी 35.5 प्रतिशत से बढ़कर 49.8 प्रतिशत हो गई. जबकि भारत में यह बदलाव धीमा रहा है—1992 में सेवा क्षेत्र का रोजगार में हिस्सा 22.1 प्रतिशत था, जो 2022 में बढ़कर 31 प्रतिशत हुआ.
सेवा क्षेत्र में अंतराल और असमानताएं
केंद्रीय थिंक टैंक की रिपोर्ट ने भारत के सेवा क्षेत्र में स्थान, लिंग और रोजगार के प्रकार से जुड़ी खामियों को उजागर किया है.
सेवा क्षेत्र शहरी क्षेत्रों में 60.8 प्रतिशत नौकरियों का हिस्सा है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह सिर्फ 18.9 प्रतिशत है. ग्रामीण रोजगार में सेवाओं का हिस्सा 2017-18 में 19.9 प्रतिशत से घटकर 2023-24 में 18.9 प्रतिशत रह गया.
रिपोर्ट में कहा गया है, “ग्रामीण सेवाएं मुख्य रूप से व्यापार, परिवहन और शिक्षा तक सीमित हैं, जबकि शहरी सेवाओं में वित्त, सूचना प्रौद्योगिकी और स्वास्थ्य जैसी अधिक विविध और उच्च-मूल्य वाली गतिविधियां शामिल हैं.”
रिपोर्ट ने सेवा क्षेत्र में पुरुष और महिला कार्यबल के बीच 14.8 प्रतिशत अंकों का अंतर भी बताया है.
रिपोर्ट के अनुसार, “2017–18 से 2023–24 के बीच, सेवाओं में पुरुषों की भागीदारी 32.8 प्रतिशत से बढ़कर 34.9 प्रतिशत हो गई, जबकि महिलाओं की भागीदारी 25.2 प्रतिशत से घटकर 20.1 प्रतिशत रह गई.”
रिपोर्ट के अनुसार, सेवा क्षेत्र में लिंग अंतर मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित है, जहां महिला कार्यबल (76.9 प्रतिशत) का अधिकांश हिस्सा कृषि क्षेत्र में लगा हुआ है. ग्रामीण पुरुषों में लगभग 24 प्रतिशत सेवा क्षेत्र में कार्यरत हैं, जबकि महिलाओं में यह संख्या केवल 10.5 प्रतिशत है.
हालांकि शहरी क्षेत्रों में पुरुष (61 प्रतिशत) और महिलाएं (60 प्रतिशत) दोनों की सेवाओं में समान भागीदारी है.
बी. वी. आर. सुब्रमण्यम के अनुसार, सेवा क्षेत्र में रोजगार से जुड़ी खाइयों को पाटना जरूरी है, जो अलग-अलग मानकों पर भिन्न हैं. उन्होंने कहा कि राज्य सरकारें राज्य-स्तरीय रणनीतियां बनाकर इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं.
सुब्रमण्यम ने कहा, “हमें शिक्षा, कौशल विकास और बुनियादी ढांचे से जुड़ी राज्य-स्तरीय रणनीतियों की जरूरत है, जो सेवा क्षेत्र के लिए आवश्यक हैं.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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