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Thursday, 2 October, 2025
होमरिपोर्टराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शताब्दी वर्ष: 100 साल की सेवा और समर्पण की यात्रा ने दी राष्ट्र निर्माण की प्रेरणा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शताब्दी वर्ष: 100 साल की सेवा और समर्पण की यात्रा ने दी राष्ट्र निर्माण की प्रेरणा

संघ ने व्यक्तित्व निर्माण, समाज निर्माण और राष्ट्र निर्माण के लिए शाखा से द्वार तक, खेत से नगर तक कार्य किया. संघ कार्य केवल संगठनात्मक विस्तार नहीं बल्कि एक साधना है. शताब्दी वर्ष में संघ ने समाज और राष्ट्रजीवन के विभिन्न आयामों को छुआ.

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भोपाल: व्यक्ति, समाज और राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य के साथ 1925 में स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) आज अपनी शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर चुका है. 100 वर्षों में संघ ने त्याग, तपस्या, निःस्वार्थ सेवा और अनुशासन का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया है. आद्य सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और प्रत्येक स्वयंसेवक के समर्पण के कारण आज संघ का ध्वज पूरे विश्व में लहरा रहा है.

संघ की स्थापना ऐसे समय हुई जब भारत और भारतीय समाज संकटग्रस्त थे. विदेशी शक्तियों और आंतरिक अस्थिरताओं के कारण देश की संस्कृति, सामाजिक समरसता और आत्मगौरव खतरे में था. इसी बीच डॉ. हेडगेवार ने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहते हुए यह अनुभव किया कि भारत तभी पुनः गौरवशाली बन सकता है जब प्रत्येक भारतीय के हृदय में स्वत्व और राष्ट्रभाव जागृत होगा. इस उद्देश्य को लेकर 1925 में विजयादशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव रखी गई.

संघ की 100 वर्ष की यात्रा में दो प्रमुख बातें उल्लेखनीय हैं. पहला, संघ की ध्येय निष्ठा—संघ ने अपने उद्देश्य पर अडिग रहते हुए निरंतर विस्तार किया. दूसरा, संघ पर होने वाले आक्रमण—वैचारिक, राजनीतिक हमलों और स्वयंसेवकों पर प्राणघातक हमलों के बावजूद संघ कभी रुका नहीं. स्वतंत्रता के बाद तीन बार संघ पर प्रतिबंध लगा, आपातकाल में स्वयंसेवकों ने संघर्ष झेला, 1992 में अयोध्या घटना के बाद भी संघ सक्रिय रहा.

मध्यप्रदेश की गौरव नगरी उज्जैन संघ कार्य के विस्तार में महत्वपूर्ण रही. 1930-40 के दशक में यहां संघ कार्य अंकुरित हुआ और हैदराबाद आंदोलन, जूनागढ़, दादरा नगर हवेली और गोवा मुक्ति आंदोलनों में उज्जैन के स्वयंसेवकों ने सक्रिय भूमिका निभाई. इनके बलिदान ने स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्र सेवा में उज्जवल योगदान दिया.

संघ ने व्यक्तित्व निर्माण, समाज निर्माण और राष्ट्र निर्माण के लिए शाखा से द्वार तक, खेत से नगर तक कार्य किया. संघ कार्य केवल संगठनात्मक विस्तार नहीं बल्कि एक साधना है. शताब्दी वर्ष में संघ ने समाज और राष्ट्रजीवन के विभिन्न आयामों को छुआ.

सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने समाज में पंच परिवर्तन का आह्वान किया—स्व का बोध (स्वदेशी), नागरिक कर्तव्य, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक समरसता और कुटुम्ब प्रबोधन. इन पर काम करके नागरिक समाज में अनुशासन, देशभक्ति, सामूहिक सौहार्द और परिवार में संस्कार को बढ़ावा दे सकते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संघ की शताब्दी पर विशेष डाक टिकट और स्मृति सिक्के जारी किए. 100 रुपये के सिक्के पर भारत माता और स्वयंसेवकों का समर्पित रूप दिखाया गया है. संघ की यह शताब्दी यात्रा राष्ट्र सेवा की प्रेरक यात्रा है, जो हमें राष्ट्र निर्माण में सहभागी बनने की दिशा देती है.

आज विजयादशमी के अवसर पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव प्रदेशवासियों से आग्रह करते हैं कि वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राष्ट्र चेतना से प्रेरित होकर राष्ट्र निर्माण में भाग लें और अपने प्रदेश एवं राष्ट्र को विश्व पटल पर गौरवान्वित करने में सक्रिय योगदान दें.

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