बेंगलुरु: 2023 में भारत की आईटी राजधानी में नागरिक लापरवाही (सिविक नेगलिजेंस) के कारण कम से कम 20 लोगों की जान गई, जिससे बेंगलुरु लगातार चौथे साल भी सबसे असुरक्षित सार्वजनिक बुनियादी ढांचे वाले भारतीय शहरों की सूची में शामिल हो गया. बेंगलुरु के बाद मध्य प्रदेश का इंदौर है, जहां सिविक नेगलिजेंस की वजह से 2 मौतें हुईं. इसके बाद गाजियाबाद में एक मौत दर्ज की गई. हालांकि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े 2023 की मौतों से जुड़े हैं, लेकिन यहां जमीनी हालात में कोई सुधार नहीं हुआ है.
NCRB के आंकड़ों से पता चलता है कि 2022 में बेंगलुरु में सिविक नेगलिजेंस से 21 मौतें हुईं. 2021 में 31 और 2019 में 49 मौतें हुईं.
NCRB की रिपोर्ट में 2023 में हुई 20 मौतों की परिस्थितियों का जिक्र नहीं है. लेकिन अगर आप निवासियों, विपक्षी नेताओं या सिविल सोसाइटी से पूछें तो वे गड्ढों से भरी सड़कों को बेंगलुरु के शहरी ढांचे के पतन का सबसे बड़ा उदाहरण बताएंगे.
इस हफ्ते की शुरुआत में शहर के उत्तरी हिस्से में एक 20 वर्षीय छात्रा ट्रक की चपेट में आ गई. वह कॉलेज जा रही थी जब ट्रक ने उसकी दोपहिया गाड़ी को टक्कर मारी. कुछ चश्मदीदों का कहना है कि हादसे के वक्त वह गड्ढे से बचने की कोशिश कर रही थी.
नागरिक निकम्मेपन की वजह से मौतों पर सवालों का जवाब देते हुए उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार, जो बेंगलुरु विकास विभाग भी संभालते हैं, ने बुधवार को एक बयान में कहा, “हमारी टीम ‘नम्मा बेंगलुरु’ के लिए दिन-रात काम कर रही है. हमने अपने सभी कमिश्नरों से कहा है कि वे मैदान में रहें, लोगों की सुनें और तुरंत तथा असरदार कार्रवाई करें.”
हालांकि मई 2023 में कांग्रेस राज्य में सत्ता में लौटी, लेकिन बेंगलुरु की मौजूदा हालत दशकों की अनदेखी, भ्रष्टाचार और खराब योजना का नतीजा है. इसकी वजह से सार्वजनिक ढांचे की खराब गुणवत्ता, खाली जगहों और प्राकृतिक नहरों पर कब्जा, हल्की बारिश में भी बाढ़ और दूसरी चुनौतियां पैदा हुईं, जिन्होंने शहर की पहचान आईटी, एविएशन, स्टार्टअप्स और बायोटेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों के वैश्विक केंद्र के तौर पर धुंधली कर दी.
मई में सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने आधिकारिक तौर पर ग्रेटर बेंगलुरु अथॉरिटी (GBA) बनाई, जिसने बृहत बेंगलुरु महानगर पालिके (BBMP) की जगह ली. GBA पांच नगर निगमों के जरिए काम करेगा. हर नगर निगम को दो ज़ोन में बांटा जाएगा. विचार यह था कि 84.99 लाख की आबादी वाले शहर को छोटे-छोटे निगमों में बांटा जाए ताकि शासन बेहतर हो सके.
मंगलवार को जारी अधिसूचना के तहत वार्डों की संख्या भी 198 से बढ़ाकर 368 कर दी गई है. हर वार्ड में औसतन करीब 40,000 की आबादी होगी. नगर परिषद के चुनाव पिछली बार पांच साल पहले सितंबर 2020 में हुए थे. तब से प्रशासन से जुड़ा सारा काम राज्य सरकार या अधिकारियों के हाथों में है.
शहरी योजनाकार अश्विन महेश ने X पर एक पोस्ट में लिखा: “दशकों से शहरी शासन की समस्या यही है कि राज्य लोग और शासन के बीच दूरी रखना चाहता है. और हर बार ऐसा होता है तो हमें 10-15 साल की कमजोर गवर्नेंस झेलनी पड़ती है, जब तक कोई सुधार की बात नहीं करता. लेकिन अब तक हम एक भी बार सही तरीके से सुधार नहीं कर पाए हैं.”
Each ward will have 40,000 people – two and a half times more than Mysuru or Hubballi-Dharwad, and that is itself higher than other cities and towns. The problem with urban governance for decades is that the state wants to keep people at a distance. And each time that happens, we…
— Ashwin Mahesh (@ashwinmahesh) October 1, 2025
बेंगलुरु, कई अन्य भारतीय शहरों की तरह, अपनी खराब सड़कों और सार्वजनिक ढांचा कार्यों की वजह से हुए ट्रैफिक जाम का मज़ाक बन चुका है. उदाहरण के लिए, कोरमंगला और इनर रिंग रोड के बीच 2.38 किलोमीटर लंबे फ्लाईओवर का निर्माण 2017 में शुरू हुआ था. यह पांच मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल देख चुका है और अब भी पूरा होने से बहुत दूर है.
we'd like to show you what sora can do, please reply with captions for videos you'd like to see and we'll start making some!
— Sam Altman (@sama) February 15, 2024
पिछले साल फरवरी में जब ओपन एआई प्रमुख सैम ऑल्टमैन ने एआई से बनाए जा सकने वाले अलग-अलग तरह के वीडियो पर सुझाव मांगे, तो एक यूज़र ने एक्स पर लिखा: “पूरी तरह से तैयार इजिपुरा फ्लाईओवर और उस पर चलती गाड़ियां.”
— Kiran Mazumdar-Shaw (@kiranshaw) September 27, 2025
बेंगलुरु स्थित बायोकॉन प्रमुख किरण मज़ूमदार शॉ ने पिछले हफ्ते एक कार स्टिकर की तस्वीर पोस्ट की जिस पर लिखा था: “नशे में नहीं हूं, गड्ढों से बच रहा हूं.”
पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश और तेलंगाना हर बार बेंगलुरु के उद्यमियों को लाल कालीन बिछाकर बुलाते हैं जब वे खराब सड़कों, ट्रैफिक या अन्य समस्याओं की शिकायत करते हैं. जबकि शहर के एक सीईओ द्वारा उठाई गई वास्तविक चिंताओं को उपमुख्यमंत्री शिवकुमार ने “ब्लैकमेल” कहना मददगार नहीं रहा, लेकिन इससे सरकार ने सभी गड्ढों को भरने का काम जरूर शुरू कर दिया. यह एक सालाना कवायद है जिस पर सरकार के खजाने से सैकड़ों करोड़ खर्च होते हैं.
2013 से 2023 के बीच, बेंगलुरु की नगर निकाय ने 43,600 करोड़ रुपये खर्च किए, जिसमें से करीब 25,000 करोड़ रुपये सड़क से जुड़े कामों जैसे ‘सुधार’, ‘रीसर्फेसिंग’, ‘रिलेइंग’ या ‘डामरीकरण’ के लिए तय किए गए थे. इनमें से लगभग 200 करोड़ रुपये गड्ढे भरने पर खर्च हुए.
मंगलवार को शिवकुमार ने कहा कि बेंगलुरु में 13,000 गड्ढे भरे गए हैं. “अधिकारियों को सरकार के निर्देश पर गड्ढे भरने का काम दिया गया है. हमने अधिकारियों को मुख्य सड़कों के विकास के लिए 1,100 करोड़ रुपये की योजना बनाने का निर्देश भी दिया है.”
उपमुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि वे बेंगलुरु के सार्वजनिक ढांचे की समस्याओं का स्थायी समाधान निकालने पर काम कर रहे हैं.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: ‘सिर काट दो’—BJP के सीटी रवि ने सांप्रदायिक तनाव वाले मड्डूर में दिया भड़काऊ भाषण