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Thursday, 2 October, 2025
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UNGA नेपाल का चूका हुआ मौका था, घरेलू संकट में विदेश नीति को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते

प्रधानमंत्री सुशिला कार्की या किसी उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल को UNGA में न भेजने का फैसला दिखाता है कि नेपाल में अक्सर विदेश नीति पर सबसे कम फोकस किया जाता है.

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संयुक्त राष्ट्र महासभा का 80वां सत्र नेपाल के लिए छूटा हुआ मौका था.

काठमांडू अपने नए नियुक्त अंतरिम प्रधानमंत्री, सुशीला कार्की, को इस बहस में भेज सकता था. अगर उन्हें नहीं, तो एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल भेजा जा सकता था, जो कई कारणों से महत्वपूर्ण होता.

यह नेपाल की अंतरराष्ट्रीय पहचान को सुरक्षित रखता और यह सुनिश्चित करता कि उसकी आवाज़ वैश्विक मंच पर बनी रहे. इससे विदेशी निवेश, विकास सहायता और रणनीतिक साझेदारियों जैसी कूटनीतिक और आर्थिक संभावनाओं को भी हासिल करने में मदद मिल सकती थी.

इसके अलावा, यह राजनीतिक स्थिरता और निरंतरता को दिखाता और वैश्विक साझेदारों को यह संकेत देता कि आंतरिक नेतृत्व में बदलाव के बावजूद नेपाल एक भरोसेमंद और सक्रिय सहभागी बना हुआ है.

प्रधानमंत्री की UNGA में उपस्थिति महत्वपूर्ण थी

नेपाल के पहलीं महिला प्रधानमंत्री की नियुक्ति के बाद, उनके द्वारा अगले छह महीनों में नेपाल के लिए दी जाने वाली दिशा-निर्देशों को सुनना वैश्विक समुदाय पर अलग असर डाल सकता था. अक्सर, कूटनीति में नेतृत्व फर्क डालता है और जब नेतृत्व में प्रभावशाली बदलाव होता है, तो इसे संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दिखाया जाना चाहिए.

लेकिन नेपाल के विचार देश के संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधि, लोक बहादुर थापा, ने प्रस्तुत किए, जिन्होंने नेपाल में जेन ज़ी आंदोलन के बाद हालिया राजनीतिक घटनाओं को सहानुभूतिपूर्ण ढंग से उजागर किया.

थापा ने कहा, “इस महीने की शुरुआत में, विशेष रूप से नेपाली युवाओं ने सड़कों पर उतरकर बदलाव के लिए स्पष्ट और प्रभावशाली आवाज़ उठाई. उनका आह्वान संकीर्ण हितों के लिए नहीं था, बल्कि अच्छे शासन के स्तंभों—पारदर्शिता, जवाबदेही और जनता की आवश्यकताओं के प्रति उत्तरदायित्व—पर आधारित एक पुनर्जागरण के लिए था.”

जेन ज़ी युवाओं की मांगों को और उजागर करते हुए थापा ने कहा, “उन्होंने सार्वजनिक सेवा में भ्रष्टाचार को खत्म करने, समान समाज, सभी के लिए न्याय और युवाओं के लिए सम्मानजनक नौकरी के अवसर की मांग की. यह इस पीढ़ी की आकांक्षाओं की जोरदार याद दिलाने वाली बात थी कि वे एक न्यायसंगत, निष्पक्ष और समृद्ध नेपाल चाहते हैं.”

आगे की राह के बारे में बोलते हुए, उन्होंने सावधानीपूर्वक कहा कि शांति, विश्वास और पारदर्शिता को बहाल करने में कुछ समय लगेगा. नेपाल आज कहां खड़ा है, यह दिखाने का संयुक्त राष्ट्र से बेहतर अवसर नहीं हो सकता था.


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राजतांत्रिक व्यवस्था को भी वैश्विक मंच की ज़रूरत मालूम

नेपाल ऐतिहासिक रूप से संयुक्त राष्ट्र में सक्रिय आवाज़ों में से एक रहा है और नेतृत्व अक्सर महत्वपूर्ण भाषण देता रहा है. पंचायती युग (1960-1990) के दौरान, राजा महेंद्र ने 1967 में 22वें UNGA में एक महत्वपूर्ण भाषण में नेपाल जैसे छोटे देशों के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में लंबा-चौड़ा कहा.

उन्होंने कहा, “एक छोटे राष्ट्र का शांति में हित है: हमारे जैसे छोटे विकासशील राष्ट्र, जो विकास के लिए अपने सभी मानव और भौतिक संसाधनों को जुटाने के लिए बाध्य हैं, शांति में महत्वपूर्ण हित रखते हैं.”

महेंद्र नेपाल के विदेशी संबंधों में विविधता लाने और काठमांडू को दिल्ली पर अधिक निर्भरता से हटाकर बीजिंग की ओर मोड़ने के प्रबल समर्थक थे. उनके नेतृत्व में ही नेपाल ने 1955 में चीन के साथ कूटनीतिक संबंध औपचारिक रूप से स्थापित किए और उन्होंने लगभग दो दशक लंबे अपने शासनकाल में विदेश नीति में विविधता को आगे बढ़ाया.

जबकि यह राजतंत्र का युग था, जिसे एक स्थिर राजनीतिक संस्था माना जाता था, राजनीतिक आंदोलन अभी भी बिना पार्टी और गैर-लोकतांत्रिक पंचायती व्यवस्था के खिलाफ आकार ले रहे थे.

फिर भी, आंतरिक चुनौतियों के बावजूद, नेतृत्व ने अंतरराष्ट्रीय मान्यता हासिल करने, विदेशी समर्थन आकर्षित करने और नेपाल को अंतरराष्ट्रीय समुदाय में एक जिम्मेदार और स्थिर अभिनेता के रूप में प्रस्तुत करने में वैश्विक मंच के महत्व को समझा.

यह भी स्वीकार किया गया कि “हालांकि, शांति में हमारा ऐसा गहरा हित है, इसे अकेले बनाए रखने का हमारे पास कोई साधन नहीं है.” यह भावना आज भी सही है, यही कारण है कि नए नेतृत्व का प्रतिनिधित्व फर्क डाल सकता था.

नेपाल के लिए समर्पित विदेश मंत्री का वक्त

अंतरिम प्रधानमंत्री या एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल UNGA मंच का लाभ उठाकर जेन ज़ी विरोधों के दौरान क्षतिग्रस्त सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण के लिए वैश्विक समर्थन मांग सकते थे.

दूसरी ओर, दुनिया में कहीं भी सोशल मीडिया बंद होने से कोई सरकार नहीं गिराई गई है और सितंबर की शुरुआत में हुए घटनाक्रमों पर वैश्विक ध्यान काफी था. प्रधानमंत्री कार्की की उपस्थिति उस मौके का फायदा उठा सकती थीं, यह बताने के लिए कि यह घटनाएं कैसे हुईं और वैश्विक समुदाय किस तरह मदद कर सकता है.

UNGA का गंभीर उपयोग यह सुनिश्चित कर सकता था कि नेपाल की आवाज़ सुनी जाए, खासकर यह देखते हुए कि यह दुनिया भर में यूएन शांति मिशनों में कर्मियों का एक बड़ा योगदानकर्ता है.

इसमें कोई शक नहीं कि अवसर यही था कि सही ढंग से नेपाल के योगदान को उजागर किया जाए, अंतरराष्ट्रीय सहायता के लिए वकालत की जाए और वैश्विक मंच पर उसकी कूटनीतिक दृश्यता को मजबूत किया जाए.

अब, विदेशों में नेपाली मिशन जेन ज़ी विरोधों के दौरान क्षतिग्रस्त बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण के लिए फंड जुटाने लगे हैं. कनाडा के ओटावा में नेपाली दूतावास ने एक्स पर सार्वजनिक नोटिस जारी किया है, जिसमें विदेशों में रहने वाले नेपाली, विदेशी और नेपाली मूल के लोगों से योगदान देने के लिए कहा गया है और नेपाल की तत्काल ज़रूरतों को उजागर किया गया है.

नेपाल में जेन ज़ी आंदोलन ने सिर्फ राजनीतिक बदलाव के लिए सोशल मीडिया बंद जैसी तात्कालिक वजहों को ही नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार, प्रशासनिक विफलता, राजनीतिक अस्थिरता और सार्वजनिक संस्थानों में पारदर्शिता की कमी जैसी अंतर्निहित वजहों को भी उजागर किया है.

UNGA में उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल न भेजने का फैसला दिखाता है कि नेपाल में अक्सर विदेश नीति को सबसे कम ध्यान मिलता है, चाहे वह अपने दो पड़ोसियों के साथ सौदा करना हो या संघर्ष क्षेत्रों से अपने लोगों को सुरक्षित रूप से ले जाने के लिए बुनियादी ढांचा बनाना हो. उदाहरण के लिए कई नेपाली कथित तौर पर रूस की सेना में अवैध रूप से शामिल होकर यूक्रेन में लड़ने गए.

वर्तमान में, अंतरिम प्रधानमंत्री कार्की के पास विदेश मामलों का प्रभार भी है, लेकिन घरेलू चुनौतियों को देखते हुए, नेपाल को एक समर्पित विदेश मंत्री की ज़रूरत हो सकती है, जो निवेश के माध्यम से घर में अवसर पैदा करने में मदद करे और देश की विदेश में रहने वाली जनता के हितों की सुरक्षा करे.

(ऋषि गुप्ता ग्लोबल अफेयर्स पर कॉमेंटेटर हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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