नई दिल्ली: उत्तराखंड में सरकारी नौकरी की परीक्षा का पेपर लीक होने के बाद पिछले पांच दिनों से हज़ारों एस्पिरेंट्स लगातार विरोध कर रहे हैं. देहरादून समेत कई जगह प्रदर्शन हो रहे हैं और गुरुवार को हल्द्वानी में कुछ छात्रों ने भूख हड़ताल भी शुरू कर दी.
रविवार (21 सितंबर) को सुबह 11 बजे उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) की ग्रेजुएशन लेवल की भर्ती परीक्षा शुरू हुई थी, जो दोपहर 1 बजे तक चलनी थी, लेकिन उत्तराखंड बेरोज़गार संघ के सदस्य बॉबी पंवार ने आरोप लगाया कि परीक्षा शुरू होने से आधा घंटा पहले ही पेपर लीक हो गया था. संघ के अध्यक्ष राम कंडवाल ने दावा किया कि पेपर हरिद्वार के एक सेंटर से लीक हुआ.
कुछ एस्पिरेंट्स ने आरोप लगाया कि देहरादून के ग्राफिक एरा यूनिवर्सिटी और विकास नगर के कुछ केंद्रों पर परीक्षा आधा घंटा पहले यानी 10:30 बजे ही शुरू करा दी गई. कई कक्षाओं में CCTV कैमरों को गत्ते से ढक दिया गया था.
परीक्षा खत्म होने के तुरंत बाद ही 21 सितंबर को देहरादून के परेड ग्राउंड से विरोध की शुरुआत हुई. अब यह आंदोलन उत्तरकाशी, शिव नगर, विकास नगर, गोपेश्वर, श्रीनगर, काशीपुर, पिथौरागढ़, चमोली, कर्णप्रयाग और हल्द्वानी तक फैल गया है. हल्द्वानी में गुरुवार से छात्र भूख हड़ताल पर बैठ गए.
उत्तराखंड में पेपर लीक की समस्या नई नहीं है. 2017-18 से ही यह मामला सुर्खियों में रहा. 2021 में पटवारी और लेखपाल परीक्षाएं प्रभावित हुईं. 2022 में UKSSSC ग्रेजुएशन लेवल परीक्षा का पेपर लीक हुआ. 2023 में गुस्सा इतना बढ़ा कि सड़कों पर प्रदर्शन शुरू हुए और धामी सरकार को सख्त नकल विरोधी कानून लाना पड़ा.
रानीखेत के 28 साल के विनोद कंडवाल, जो हल्द्वानी में आंदोलन में शामिल हुए हैं, उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “हमने साफ कर दिया है कि यहां कोई नेता भाषण नहीं देगा, सिर्फ छात्र ही बोलेंगे.”
उन्होंने कहा कि वे पिछले चार साल से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और रविवार की परीक्षा में भी शामिल हुए थे. उन्होंने कहा, “मैं मुख्य रूप से पीसीएस (Provincial Civil Service) की तैयारी करता हूं, लेकिन हालात ऐसे हैं कि हर परीक्षा देनी पड़ती है. हमारे पास नौकरी नहीं है, यही सच्चाई है.”
विनोद ने कहा कि वे 2021 की परीक्षा में भी बैठे थे. उन्होंने कहा, “उत्तराखंड में एस्पिरेंट्स के लिए मेहनत मायने नहीं रखती. इनके तथाकथित सख्त कानून सिर्फ दिखावे के लिए हैं. कार्रवाई असली दोषियों पर कभी नहीं होती, सिर्फ हम जैसे छात्रों को निशाना बनाया जाता है. यहां तक कि जब हम सबूत देते हैं, तो भी उसी को हमारे खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है.”
प्रदर्शनकारियों ने तीन मांगें रखी हैं—यह परीक्षा रद्द की जाए और एक महीने में दोबारा कराई जाए, पेपर लीक मामले की जांच सीबीआई को सौंपी जाए और UKSSSC के ज़िम्मेदार अधिकारियों को इस्तीफा देना चाहिए.
इस मामले में देहरादून के रायपुर थाना प्रभारी गिरीश नेगी की शिकायत और आयोग की ओर से दर्ज कराई गई तहरीर पर रविवार को ही एफआईआर दर्ज की गई. इसमें 2023 का सख़्त उत्तराखंड प्रतियोगी परीक्षा (अनुचित साधनों पर रोक और निवारण) अधिनियम लगाया गया.

एफआईआर में धारा 11(1), 11(2) और 12(2) लगाई गई हैं. इनमें नकल कराने, संस्थागत स्तर पर धांधली (जैसे प्रिंटिंग प्रेस या कोचिंग सेंटर से मिलीभगत) और दोषी पाए जाने पर भारी सज़ा के प्रावधान हैं. इसमें 10 करोड़ रुपये तक जुर्माना और गंभीर मामलों में उम्रकैद तक की सज़ा हो सकती है.
एफआईआर की कॉपी दिप्रिंट ने देखी है. इसमें पांच आरोपियों के नाम हैं—सुमन, खालिद मलिक, उनकी बहनें हिना और साबिया और एक अज्ञात व्यक्ति.
शुरुआती जांच
एफआईआर में दर्ज विवरण के अनुसार, UKSSSC की शिकायत के बाद देहरादून के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने 21 सितंबर को एक विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित किया.
एसआईटी की शुरुआती जांच में पाया गया कि रविवार सुबह 11 बजे तक नकल या पेपर लीक की कोई रिपोर्ट सामने नहीं आई थी, लेकिन दोपहर करीब 1:30 बजे सोशल मीडिया पर “भ्रामक” पोस्ट फैलने लगीं, जिनमें पेपर लीक होने का दावा किया गया.
जांच में सामने आया कि अमरोदा डिग्री कॉलेज, प्रतापनगर की असिस्टेंट प्रोफेसर सुमन को सुबह 7:55 बजे खालिद मलिक नामक व्यक्ति से व्हाट्सऐप मैसेज मिला, जिसमें लिखा था—“बहन का एग्जाम है, मदद करनी है.”
सुबह 8:02 बजे सुमन ने “OK” लिखकर जवाब दिया.
बाद में सुबह 11:34 बजे सुमन को खालिद की बहनें साबिया और हिना ने व्हाट्सऐप कॉल किया. उसी के तुरंत बाद 11:35 बजे उसके मोबाइल पर ग्रेजुएशन लेवल परीक्षा के तीन पन्ने आए, जिनमें 12 सवाल थे.
एफआईआर के मुताबिक, सुमन ने हाथ से इनके उत्तर लिखे और 11:45 बजे वापस भेज दिए.
केस की डिटेल में लिखा है, “जवाब भेजने के बाद उसे शक हुआ कि क्या सचमुच आज परीक्षा है. उसने अपनी बहन सीमा से पूछा. सीमा ने उसे बॉबी पंवार से पुष्टि करने की सलाह दी और उनका नंबर दिया.”
लेकिन किसी अधिकारी को जानकारी देने के बजाय सुमन ने दोपहर 12:21 बजे पंवार से संपर्क किया और 12:28 बजे सवालों की तीन पन्नों की कॉपी व हाथ से लिखे जवाब उन्हें फॉरवर्ड कर दिए. इसके बाद हुई कॉल्स में पंवार ने सुमन को किसी अधिकारी को न बताने के लिए कहा.
12:32 बजे उसने दोबारा पंवार को फोन किया, पंवार ने फिर यही कहा कि किसी को मत बताना. एफआईआर में दर्ज है कि 12:42 और 12:43 पर भी कॉल हुईं.
जांच रिपोर्ट के अनुसार, “दोपहर 1:30 बजे तक पंवार ने यह सब सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया, जिससे सनसनी फैले और परीक्षा की साख खराब हो.”
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि सवालों के साथ जवाब फॉरवर्ड करना सुमन की संदिग्ध मंशा दिखाता है. एफआईआर में रायपुर थाने के प्रभारी गिरीश नेगी का हवाला देते हुए लिखा है कि अगर पंवार समय रहते किसी अधिकृत विभाग को सूचना देता तो तुरंत कार्रवाई हो सकती थी.
परीक्षा से पहले गिरफ्तारी
परीक्षा से दो दिन पहले, देहरादून पुलिस ने पूर्व भाजपा नेता हकम सिंह और पंकज गौर को गिरफ्तार किया. आरोप है कि वे एस्पिरेंट्स से 12–15 लाख रुपये लेकर नौकरी दिलाने का वादा कर रहे थे.
राम ने कहा, “हमें पता चला कि ये लोग एस्पिरेंट्स से पैसे लेकर 15 लाख रुपये में चयन की गारंटी दे रहे हैं. हमने एक छात्र को तैयार किया जिसने व्हाट्सऐप पर उनसे बात की, जो रिकॉर्डिंग मिली, उसे 19 सितंबर को एसटीएफ को सौंप दिया.”

दिप्रिंट ने इस मामले पर सीनियर सब इंस्पेक्टर अजय सिंह से कई बार कॉल के जरिए संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया. जैसे ही उनकी ओर से जवाब आएगा इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
कंडवाल ने पेपर लीक से छात्रों पर पड़ रहे असर को भी बताया, “यहां युवा कुचले जा रहे हैं. ये छोटे कर्मचारियों, किसानों के बच्चे हैं…हर बार पेपर लीक होता है और उनके सपने टूट जाते हैं. सरकारी नौकरी की उम्मीदें एक ही दिन में खत्म हो जाती हैं.”
उम्मीदवारों का टूटता मनोबल
2014 के एक एक्ट के तहत UKSSSC राज्य स्तर की भर्ती परीक्षाएं आयोजित करता है. इसमें ग्रुप-सी और अन्य अधीनस्थ पदों के लिए भर्तियां होती हैं—जैसे ग्राम विकास अधिकारी, पटवारी, लेखपाल, जूनियर असिस्टेंट, वन रक्षक व अन्य.
आमतौर पर न्यूनतम आयु सीमा 18–21 साल और अधिकतम 42 वर्ष होती है. आरक्षित वर्गों को राज्य के नियमों के अनुसार छूट मिलती है. आयोग हर साल सैकड़ों पदों की घोषणा करता है, लेकिन एस्पिरेंट्स की संख्या हज़ारों में होती है. यही कारण है कि सरकारी नौकरियों को लेकर राज्य में बेहद कड़ी प्रतिस्पर्धा है.
फिर भी, पेपर लीक से छात्र-छात्राओं का मनोबल टूट रहा है.

रोहन नौटियाल (28), उत्तरकाशी के रहने वाले और देहरादून में तैयारी कर रहे एक छात्र ने दिप्रिंट से कहा, “परीक्षा से एक दिन पहले ही हमारे व्हाट्सऐप ग्रुप में खबर आ गई थी कि पेपर लीक हो गया है. मेरा मन टूट चुका था, फिर भी उम्मीद में परीक्षा देने गया, लेकिन जैसे ही बाहर आया, पता चला कि सचमुच पेपर लीक था—मैं बुरी तरह हताश हो गया.”
वहीं दीपक (31), चमोली के, जो लगभग सात साल से सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं, ने कहा, “ये हर साल की कहानी बन चुकी है. आखिर कब तक चलेगा ये सब? यहां तक कि सख्त नकल विरोधी कानून भी इसे रोक नहीं पाया.”
नौटियाल और दीपक दोनों ने 2021 और 2023 में पटवारी और फॉरेंसिक विभाग की परीक्षाएं भी दी थीं. उनके पेपर भी लीक हो गए थे.
सरकार का पक्ष
बुधवार को एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि 2022 से अब तक परीक्षा में नकल से जुड़े मामलों में 100 से ज़्यादा लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. उनका दावा था कि राज्य में सख्त कानून लाने के बाद नकल गिरोह और कोचिंग सेंटर मिलकर देवभूमि में तथाकथित “नकल जिहाद” चला रहे हैं.
धामी ने यह भी कहा कि पिछले चार साल में 25,000 से अधिक युवाओं ने भर्ती परीक्षाओं के ज़रिए योग्यता के आधार पर सरकारी नौकरी हासिल की है.
उन्होंने कहा, “कोचिंग माफिया और नकल माफिया मिलकर राज्य में नकल जिहाद चलाते हैं…ताकि अराजकता फैलाई जा सके. मैं उन माफियाओं और जिहादियों को चेतावनी देता हूं कि हम तब तक चैन से नहीं बैठेंगे जब तक माफिया का सफाया नहीं हो जाता.”
'पेपर चोर-गद्दी छोड़'
आज पूरे उत्तराखंड में ये नारा गूंज रहा है।
उत्तराखंड के लोग गुस्से में हैं, क्योंकि BJP सरकार 15-15 लाख रुपए लेकर अपने चहेतों को नौकरी बांट रही है, पेपर लीक करवा रही है।
उत्तराखंड के युवा BJP सरकार को बर्खास्त करने की मांग कर रहे हैं।
ये मांग जायज है। pic.twitter.com/6IIBuVasg8
— Congress (@INCIndia) September 24, 2025
रविवार को हुई पेपर लीक पर UKSSSC का कहना है कि सिर्फ तीन पन्ने लीक हुए थे और यह घटना हरिद्वार के एक केंद्र तक सीमित थी, पूरे राज्य में नहीं, लेकिन छात्र तर्क दे रहे हैं कि छोटे से छोटा लीक भी रिज़ल्ट पर गहरा असर डालता है.
नौटियाल ने कहा, “वे कह रहे हैं कि सिर्फ तीन पन्ने थे, लेकिन यहां 0.5 या 1 नंबर भी मायने रखता है. इस वजह से हम पिछड़ जाते हैं.”
त्रिभुवन चौहान, उत्तराखंड संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष, ने इस घटना को “सिर्फ लीक नहीं बल्कि चोरी” बताया. उन्होंने कहा, “आप युवाओं से अवसर और रोज़गार छीन रहे हैं.”
21 सितंबर को जमा की गई एसआईटी की शुरुआती रिपोर्ट आगे की कार्रवाई के लिए भेज दी गई है.
पहली बार नहीं
2021 में पटवारी और लेखपाल भर्ती परीक्षाओं में भी पेपर लीक की खबरें सामने आई थीं. छात्रों ने आरोप लगाया था कि बिचौलिये खुलेआम पेपर बेच रहे थे. कई गिरफ्तारियां भी हुईं.
2022 तक मामला और बड़ा हो गया जब यूकेएसएसएससी ग्रेजुएट-लेवल भर्ती परीक्षा का पेपर लीक हुआ, जिससे एक लाख से ज्यादा एस्पिरेंट्स प्रभावित हुए. जांच में सामने आया कि इसमें अधिकारियों और स्थानीय दबंगों का संगठित गठजोड़ शामिल था. हाकम सिंह को कई पेपर लीक का मास्टरमाइंड बताया गया.
उनकी बार-बार गिरफ्तारी, जिसमें 2021 के यूकेएसएसएससी पेपर लीक का मामला भी शामिल है, इस बात की ओर इशारा करती है कि समस्या कितनी गहरी हो चुकी थी.
कंडवाल ने कहा कि जेल से बाहर आने के बाद पुलिस ने हाकम सिंह पर निगरानी नहीं रखी, इसलिए संगठन को ही उन पर नज़र रखनी पड़ी.
2022 के आखिर और 2023 की शुरुआत में गुस्से से भरे बेरोज़गार युवाओं और छात्र संगठनों ने देहरादून समेत कई शहरों में बड़े स्तर पर प्रदर्शन किए. उनकी मुख्य मांग सिर्फ भ्रष्ट परीक्षाओं को रद्द करना नहीं थी, बल्कि भविष्य की भर्ती परीक्षाओं को सुरक्षित बनाने के लिए पुख्ता व्यवस्था करना भी था.
विरोध की बढ़ती तीव्रता के चलते धामी सरकार को कदम उठाना पड़ा और उसने 2023 में उत्तराखंड प्रतिस्पर्धी परीक्षा (भर्ती में अनुचित साधनों की रोकथाम हेतु उपाय) अध्यादेश लाया. राज्यपाल ने 10 फरवरी 2023 को इस पर मुहर लगाई और बाद में यह राज्य का एंटी-चीटिंग कानून बन गया.
इस कानून में देश के सबसे सख्त प्रावधान शामिल किए गए, पेपर लीक करने या बेचने वालों के लिए आजीवन कारावास और 10 करोड़ रुपये तक का जुर्माना; नकल करते पकड़े गए एस्पिरेंट्स के लिए तीन साल की जेल और कम से कम 5 लाख रुपये का जुर्माना और परीक्षा धांधली में शामिल संस्थानों या प्रिंटिंग प्रेस पर कड़ी कार्रवाई.
महत्वपूर्ण बात यह थी कि इस कानून के तहत अपराध को संज्ञेय, गैर-जमानती और गैर-समझौतायोग्य बनाया गया, जिससे सरकार ने यह संदेश देने की कोशिश की कि वह इस संगठित समस्या पर सख्ती से लगाम लगाएगी.
लेकिन अब छात्र, एस्पिरेंट्स और आंदोलन का नेतृत्व कर रहे संगठन कह रहे हैं कि यह कानून असरदार साबित नहीं हुआ. कंडवाल ने दिप्रिंट से कहा, “इस कानून को बने तीन साल हो गए, लेकिन एक भी मामला माफिया पर दर्ज नहीं हुआ. उल्टा छात्रों को ही फेक न्यूज़ फैलाने के आरोप में फंसा दिया जाता है.”
इसी निराशा को जताते हुए नौटियाल ने कहा, “हम हर साल अपने माता-पिता से विनती करते हैं कि हमें सरकारी नौकरी की तैयारी के लिए एक और मौका दें और फिर जब यह सब होता है तो हिम्मत टूट जाती है. सरकार कम से कम नकल माफिया को पकड़ लेती.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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