काठमांडू: नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई पिछले हफ्ते बाल-बाल बचे, जब हिंसक प्रदर्शनों के दौरान उनके घर में आग लगा दी गई, लेकिन वे इसके लिए युवाओं को दोष नहीं देते, बल्कि उनसे सहमत नज़र आते हैं.
उन्होंने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, “मैं उनकी नाराज़गी समझता हूं. ज़िंदगीभर राजनीति में सक्रिय रहने के नाते मुझे पहले से बेचैनी महसूस हो रही थी. गुस्सा असली था और आखिरकार फूट पड़ा.”
8 और 9 सितंबर को नेपाल ने अपने आधुनिक इतिहास के सबसे हिंसक राजनीतिक विद्रोहों में से एक देखा. भ्रष्टाचार और संस्थानों पर एलिट के कब्ज़े के खिलाफ युवाओं के नेतृत्व में शुरू हुआ प्रदर्शन जल्द ही सड़कों पर हिंसा, देश दमन और अंततः सरकार के गिरने तक पहुंच गया.
71 साल के पूर्व प्रधानमंत्री का कहना है कि यह उथल-पुथल एक चेतावनी भी है और एक संभावना भी. उन्होंने कहा, “यह दशकों में नेपाल की सबसे बुरी राजनीतिक उथल-पुथल है, लेकिन यह होना ही था. दबाव सालों से बढ़ रहा था.”
युवा को नाकाम करने वाली राजनीतिक व्यवस्था
नेपाल को राजशाही से लोकतंत्र की ओर ले जाने वाले बाबूराम भट्टराई देश की राजनीतिक जमात पर बेबाकी से हमला करते हैं. उन्होंने कहा, “देउबा, ओली, प्रचंड—ये पुराना गार्ड पूरी तरह फेल रहा. तीनों ने बारी-बारी से सत्ता संभाली, लेकिन किसी ने कुछ नहीं दिया. इन्होंने सत्ता के घेरे बनाए और पूरे राज्य पर कब्ज़ा कर लिया.”
भट्टराई ने अपने पुराने साथियों—क्रांतिकारी ताकतों—को भी नहीं बख्शा. उन्होंने कहा, “वे वही बन गए जिसके खिलाफ कभी लड़े थे. यही असली त्रासदी है.”
फिर भी उनका मानना है कि हालिया राजनीतिक उथल-पुथल ज़रूरी सुधारों का रास्ता खोल सकती है. पूर्व पीएम ने कहा, “राजनीतिक पार्टियों का पुनर्गठन और पुनर्संरचना होगी. वक्त है कि दूसरी और तीसरी पीढ़ी के नेता कमान संभालें और पुरानी संरचनाओं में सुधार लाएं.”
उनके मुताबिक असली बदलाव तभी आएगा जब युवा नेता मौजूदा और उभरती पार्टियों दोनों में आगे बढ़ेंगे. “अगर युवा नेतृत्व में आए, तो एक नई राजनीतिक ध्रुवीकरण पैदा हो सकती है, जो हमारी राजनीति को फिर से जीवित करेगी.”
2015 में नया संविधान अपनाने के बाद के 10 सालों में नेपाल लगातार राजनीतिक अस्थिरता में रहा है. कोई भी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी, और गठबंधन जितनी जल्दी बने, उतनी ही जल्दी टूट भी गए.

भट्टराई, जिन्होंने 29 अगस्त 2011 से 14 मार्च 2013 तक देश का नेतृत्व किया, उन्होंने कहा, “लोगों से मौलिक लोकतांत्रिक अधिकारों का वादा किया गया था, लेकिन उन्हें मिला—ठहराव, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद. लाखों युवाओं को रोज़गार और शिक्षा के लिए देश छोड़ना पड़ा, उनकी इच्छा से नहीं, बल्कि मजबूरी में.”
बदलता राजनीतिक परिदृश्य
विद्रोह वाले दिन भट्टराई अपने घर पर थे. वे युवा आंदोलन को शांतिपूर्ण बनाए रखने के लिए सलाह देने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन अफरातफरी उनके घर तक पहुंच गई—उनके घर को आग लगा दी गई. उन्होंने कहा, “मैंने आंदोलन का समर्थन किया था. मुझे उनके विरोध के अधिकार पर भरोसा था, लेकिन दूसरे दिन हालात बदल गए. कुछ घुसपैठिए, उकसाने वाले, शायद बाहरी ताक़तों के समर्थन से, बीच में आ गए थे.”
एक्स पर उन्होंने इन्हें “भेड़ की खाल में भेड़िए” बताया.
उन्होंने कहा, “मेरे घर में आग लगाई गई, लेकिन मुझे नहीं लगता कि ये असली प्रदर्शनकारी थे. ये वे लोग थे जो बदलाव से डरते हैं, जो लोकतांत्रिक नेपाल नहीं चाहते.”
विद्रोह के बाद एक अंतरिम सरकार ने कामकाज संभाला है. छह महीने में चुनाव कराने का वादा किया गया है. बहुत से लोग इसे महत्वाकांक्षी और अवास्तविक मानते हैं, लेकिन भट्टराई इसे ढांचे में बड़े बदलाव का दुर्लभ मौका मानते हैं.
उन्होंने कहा, “काफी समय बाद नेपाल के युवाओं ने जिन्हें अक्सर गैर-राजनीतिक और सिर्फ अपने तक सीमित माना जाता था, ये दिखाया है कि वे सच्चाई और न्याय के लिए लड़ने को तैयार हैं. यह उम्मीद जगाता है.”
भट्टराई ने कहा, “राजनीतिक दलों का पुनर्गठन और पुनर्संरचना होगी. वक्त है कि दूसरी और तीसरी पीढ़ी के नेता आगे बढ़ें और पुरानी संरचनाओं को सुधारें.”
वे चुपचाप पर्दे के पीछे काम कर रहे हैं—युवा नेताओं को सलाह देना, उन्हें संगठित होने में मदद करना और उस चीज़ को बढ़ावा देना जिसे वे “वैकल्पिक राजनीतिक ताकत” कहते हैं.
लेकिन वे चेतावनी भी देते हैं कि अगर संस्थागत सुधार नहीं हुए तो यह मौका भी असली बदलाव लाए बिना निकल जाएगा. उन्होंने कहा, “हमें संविधान में संशोधन करना होगा. मौजूदा संसदीय व्यवस्था बिखरी हुई है. यह स्थिर बहुमत नहीं बनने देती. मेरा मानना है कि सीधे निर्वाचित राष्ट्रपति प्रणाली और पूरी तरह आनुपातिक संसद नेपाल की विविधता और राजनीतिक ज़रूरतों को बेहतर ढंग से पूरा करेगी.”
क्या पुराना फिर से बनाया जा सकता है?
जब उनसे पूछा गया कि क्या छह महीने में चुनाव कराना व्यावहारिक है, तो भट्टराई ज़्यादा आशावान नहीं दिखे. उन्होंने कहा, “करने को बहुत कुछ है. पहले शांति बहाल करनी होगी. सरकारी इमारतों को नुकसान पहुंचा है, लेकिन अगर दूसरी और तीसरी पंक्ति का राजनीतिक नेतृत्व आगे आता है, अपने पुराने नेताओं को चुनौती देता है, तो शायद हम एक विश्वसनीय चुनाव देख सकें.”
उनके मुताबिक, यह वक्त है कि नेपाल की परंपरागत पार्टियां नेपाली कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों के अलग-अलग गुट नींव से खुद को दोबारा संगठित करें. “अगर युवा हर पार्टी में नेतृत्व संभालें, तो नेपाल नए वैचारिक गठजोड़, नई ध्रुवीकरण की राजनीति और शायद ज़्यादा स्थिर भविष्य देख सकता है.”
उन्होंने कहा, “अगर वही पुराने चेहरे सिर्फ नए नारे लेकर लौटेंगे, तो जनता उन्हें फिर ठुकरा देगी. हमें नए नेतृत्व और नई सोच की ज़रूरत है.”
नेपाल को आगे बढ़ाने के लिए पीढ़ीगत बदलाव ज़रूरी है. उन्होंने कहा, “पुराने राजनीतिक नेताओं की उपयोगिता अब खत्म हो चुकी है. अब नए नेतृत्व का आना ज़रूरी है—सिर्फ ऊर्जा के साथ नहीं, बल्कि दृष्टि के साथ.”
इसमें आर्थिक सुधार भी शामिल हैं. भट्टराई के मुताबिक राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक योजना साथ-साथ चलनी चाहिए. वे राष्ट्रपति के अधीन एक राष्ट्रीय आर्थिक विकास प्राधिकरण बनाने का प्रस्ताव रखते हैं, जो लंबे समय के बदलाव को दिशा देगा.
उन्होंने कहा, “हमें वैज्ञानिक ज़मीनी सुधार करने होंगे. हमारी खेती अब भी गुज़ारे लायक है. हमारी इंडस्ट्री ढह चुकी है. नेपाल को भारत और चीन के बीच एक जीवंत आर्थिक पुल बनना चाहिए. यही हमारी भौगोलिक स्थिति है, यही हमारा मौका है.”
वे एक ऐसे आर्थिक मॉडल की परिकल्पना करते हैं जो आत्मनिर्भर भी हो और बाहर की दुनिया की ओर देखने वाला भी, जिसमें पर्यटन, सूचना प्रौद्योगिकी, जलविद्युत और ग्रामीण ढांचे में निवेश हो.
राजतंत्र
हाल के महीनों में नेपाल में छोटे लेकिन मुखर राजतंत्र समर्थक प्रदर्शन हुए हैं, जिनसे यह अटकलें तेज़ हुईं कि क्या राजशाही की वापसी हो सकती है, लेकिन भट्टराई इस संभावना को पूरी तरह खारिज करते हैं.
उन्होंने दृढ़ता से कहा, “ग्यानेंद्र और राजशाही को नेपाल में 2–3% से ज़्यादा समर्थन भी नहीं है. यह बस बनाई गई नॉस्टैल्जिया है. हम एक गणराज्य हैं. राजतंत्र वाला अध्याय खत्म हो चुका है.”
भट्टराई ने कहा, “हमें संविधान में संशोधन करना होगा. मौजूदा संसदीय व्यवस्था बिखरी हुई है. यह स्थिर बहुमत नहीं बनने देती. मेरा मानना है कि सीधे चुने गए राष्ट्रपति और पूरी तरह आनुपातिक संसद की व्यवस्था नेपाल की विविधता और राजनीतिक ज़रूरतों के लिए बेहतर होगी.”
वे पड़ोसी देशों, खासकर भारत की चिंताओं पर भी बात करते हैं. उन्होंने कहा, “कुछ लोग नेपाल को गलत तरीके से भारत-विरोधी दिखाते हैं. यह बिल्कुल सच नहीं है. नेपाल हमेशा से एक दोस्ताना पड़ोसी रहा है. हमारा दो-तिहाई व्यापार भारत से है. हमारे रिश्ते गहरे हैं, लेकिन हमें ऐसी नीतिगत रूपरेखा चाहिए जो आपसी हितों को पहचानती हो, शक-संदेह को नहीं.”
आर्थिक या भू-राजनीति से भी बढ़कर, भट्टराई बार-बार एक मूल विश्वास पर लौटते हैं—नेपाल का भविष्य इस पर टिका है कि वह अपनी विविधता को कितनी अच्छी तरह संभालता है.
वे ‘आदिवासी’ शब्द से सहमत नहीं हैं. उनके लिए नेपाल विविध समुदायों से बना है.
नेपाल के 2015 के संविधान के निर्माताओं में से एक रहे भट्टराई का कहना है कि अब राज्य को समावेशिता के वादे को निभाना होगा. उन्होंने कहा, “हम राष्ट्रीयताओं का देश हैं—तिब्बती भाषी समूह, मधेसी और थारू, मेरे जैसे खास-आर्य. कोई भी समूह बहुमत में नहीं है; सब अल्पसंख्यक हैं. हमारा संविधान उसी संतुलन को दर्शाता है. अब उसे आत्मा के साथ लागू करना होगा.”
भारत और चीन के बीच संतुलन
भट्टराई पर्यवेक्षकों, खासकर भारत में, से अपील करते हैं कि मौजूदा अशांति को अतीत में लौटने के रूप में न देखें, बल्कि इसे संक्रमणकालीन लोकतंत्र की बढ़ती तकलीफों के हिस्से के रूप में समझें. उन्होंने कहा, “राजतंत्र की वापसी का कोई गंभीर खतरा नहीं है. नॉस्टैल्जिया बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जा रहा है. असली मुद्दा न तो राजतंत्र है, न गणतंत्र—असल मुद्दा अर्थव्यवस्था है.”
आज भी 60 प्रतिशत से ज़्यादा आबादी जीविका कृषि पर निर्भर है और युवाओं का पलायन रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है. देश एक विकास अवरोध का सामना कर रहा है. उन्होंने कहा, “हमारे युवा मजबूर होकर जा रहे हैं, सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि खाड़ी देशों, मलेशिया और अब तो यूरोप तक. यह टिकाऊ मॉडल नहीं है.”
वे संतुलित विकास मॉडल की बात करते हैं, जिसमें आत्मनिर्भरता के साथ क्षेत्रीय एकीकरण भी हो. उन्होंने कहा, “हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करना चाहिए, हमारी नदियां, हमारा पर्यटन, हमारी मानव पूंजी. हमारे पास आईटी क्षेत्र में अपार क्षमता है और सही निवेश से हमारी कृषि को आधुनिक व आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है.”
भट्टराई का कहना है कि नेपाल की विदेश नीति में भी संतुलन और स्वतंत्रता की भावना झलकनी चाहिए. उन्होंने कहा, “हमारा ऐतिहासिक दृष्टिकोण यही रहा है कि पड़ोसियों और वैश्विक शक्तियों दोनों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखें. यह परंपरा जारी रहनी चाहिए. हां, कुछ नेताओं ने राजनीतिक फायदे के लिए एक दिशा में ज़रूरत से ज़्यादा झुकाव दिखाया. यह अब बंद होना चाहिए.”
उनका मानना है कि नेपाल अब दक्षिण एशिया में एक अहम आर्थिक भूमिका निभा सकता है, भारत और चीन की अर्थव्यवस्थाओं के बीच सेतु बनकर. पूर्व पीएम ने कहा, “हमारे पास अनोखी भौगोलिक और रणनीतिक स्थिति है. हमारी अर्थव्यवस्था को भारत और चीन दोनों से जोड़ना होगा. हमारे पास पक्ष चुनने की गुंजाइश नहीं है, हमें जोड़ने वाली ताकत बनना होगा.”
पूर्व प्रधानमंत्री स्पष्ट करते हैं कि नेपाल की आर्थिक निर्भरता भारत पर कितनी है. उन्होंने कहा, “हमारा दो-तिहाई व्यापार भारत से है. सिर्फ लगभग 15 प्रतिशत चीन से, आंकड़े खुद बोलते हैं.”
उन्होंने कहा, “हमारे उद्योग ढह चुके हैं. नेपाल को भारत और चीन के बीच एक जीवंत आर्थिक पुल बनना चाहिए. यही हमारी भौगोलिक सच्चाई है, यही हमारा मौका है.”
वे मानते हैं कि भारत को नेपाल को शक की नज़र से नहीं, बल्कि साझेदारी की नज़र से देखना चाहिए. भट्टरा ने कहा, “कृपया नेपाली जनता की दोस्ती पर संदेह न करें. हम हमेशा से भारत के करीबी रहे हैं—सांस्कृतिक रूप से, आर्थिक रूप से, ऐतिहासिक रूप से.”
वे दोनों देशों के बीच एक रणनीतिक संवाद का प्रस्ताव रखते हैं ताकि औद्योगिक और आर्थिक सहयोग की संभावनाएं तलाश की जा सकें, खासकर सीमावर्ती इलाकों में. उन्होंने कहा, “आइए साथ बैठें, अहम सेक्टर पहचानें जहां नेपाल उत्पादन और निर्यात कर सकता है और ऐसे हब बनाएं जो दोनों देशों को फायदा पहुंचाएं.”
अराजकता, आगज़नी, आर्थिक संकट और कमजोर सरकार के बावजूद, भट्टराई सबसे बढ़कर एक सतर्क आशावादी बने रहते हैं.
उन्होंने कहा, “यह एक टर्निंग पॉइंट है. अगर हम इसे सही तरह से करें, तो नेपाल के लोकतंत्र में एक नया दौर शुरू हो सकता है, लेकिन अगर हम फिर वही पुरानी आदतों में फंस गए या दूसरों को हमें बांटने दिया, तो यह अवसर खो देंगे.”
अपनी बेटी के घर की लाइब्रेरी में बैठे हुए, जो उनके जले हुए घर से कुछ ही ब्लॉक दूर है, वे चारों ओर नज़र डालते हैं और अपना सबसे बड़ा अफसोस बताते हैं—भीड़ ने उनकी 2,000 किताबें जला दीं, जिन्हें उन्होंने सालों से मेहनत से इकट्ठा और संजोया था.
लेकिन फिर वे कहते हैं, “घर फिर से बनाया जा सकता है. अब हमें देश को फिर से बनाना है.”
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