नई दिल्ली: कांग्रेस 2019 के अंत में होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा-शिवसेना के खिलाफ गठबंधन के लिए समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ बातचीत कर रही है. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.
हालांकि, कांग्रेस सपा के लिए कुछ सीटों को छोड़ने के लिए तैयार है, यह चर्चा इसलिए फंस सकती है क्योंकि समाजवादी पार्टी कांग्रेस से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने की मांग कर सकती है.
कांग्रेस और सपा दोनों ही पार्टियों ने 2017 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ा था, जहां पर भाजपा ने इन्हें चारों खाने चित्त कर दिया था. लेकिन समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में अपने चिर प्रतिद्वंदी बसपा से गठबंधन कर लिया था और बुआ- भतीजे की जोड़ी ने कांग्रेस को उसके ही हाल पर छोड़ दिया था.
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में पिछले साल नवंबर-दिसंबर में हुए चुनाव में सपा ने अलग चुनाव लड़ा था.
कभी कांग्रेस के गढ़ के रूप में जाना जाने वाला महाराष्ट्र 2014 के बाद कांग्रेस का गढ़ नहीं रहा. 2014 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 82 सीटें मिली (2009 में शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ सीट-साझाकरण समझौते के हिस्से के रूप में लड़ी गई 170 सीटों में से) कांग्रेस पार्टी 2009 के विधानसभा चुनाव में 42 सीट पर आ गई थी. इस चुनाव में कांग्रेस ने कुल 288 में से 287 सीटों पर चुनाव लड़ा था.
2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को केवल 2 सीटें मिली थी और यह संख्या 2019 के लोकसभा चुनाव में गिरकर एक पर ही सिमट गई. 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 17 और एनसीपी ने 8 सीटें जीतीं थी.
हालांकि, भाजपा-शिवसेना गठबंधन के नेतृत्व वाले राज्य में सपा हाशिये पर है.
कांग्रेस अपने जन्मस्थान पर तमाम चुनावी दलबदल के बीच चुनावी समर में प्रवेश कर रही है. मंगलवार को कांग्रेस के वफादार कृपाशंकर सिंह ने पार्टी छोड़ दी है. इस ख़राब स्थिति की प्रमुख वजह स्थानीय नेताओं का अलग थलग पड़ा होना है.क्योंकि पार्टी का मुंबई विंग गुटबाजी का शिकार है.
भाजपा विरोधी वोट को मजबूत करना
कांग्रेस द्वारा महाराष्ट्र में सपा की नाम मात्र की उपस्थिति के बावजूद उसके साथ गठबंधन का विचार अनिवार्य रूप से भाजपा-शिवसेना विरोधी वोटों को मजबूत ही करना है.
पूर्व मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पृथ्वीराज चव्हाण ने मंगलवार को कहा, ‘कांग्रेस और एनसीपी लगभग 123-125 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी और छोटे सहयोगियों के लिए 41 सीटें छोड़ेंगी.’
मंगलवार को नई दिल्ली में ज्योतिरादित्य सिंधिया ( पैनल के अध्यक्ष) द्वारा नियुक्त महाराष्ट्र स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में सपा के साथ गठबंधन के फैसले पर चर्चा की गई. बैठक में भाग लेने वाले सूत्रों के अनुसार, पार्टी ने महाराष्ट्र में भिवंडी पूर्व और मानखुर्द शिवाजी नगर विधानसभा क्षेत्रों के लिए सपा को देने का फैसला किया है.
वर्तमान में महाराष्ट्र विधानसभा में एकमात्र सपा विधायक हैं, अबू आसिम आज़मी द्वारा प्रतिनिधित्व किया जाता है. जबकि भिवंडी पूर्व शिवसेना की सीट है.
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘हम एक संभावित गठबंधन पर चर्चा कर रहे हैं और हम मानते हैं कि हम बेहतर उम्मीदवारों को मैदान में उतार सकते हैं, पार्टी भिवंडी पूर्व और मानखुर्द सीटों को सपा के लिए छोड़ देगी.’
उन्होंने कहा, ‘सपा का महाराष्ट्र में कोई आधार नहीं है, लेकिन हम अभी भी भाजपा-शिवसेना को हराने के लिए तैयार हैं.’ पार्टी में एक नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘महाराष्ट्र को चार अन्य सीटों के अलावा सपा ने मुंबई में बाइकुला विधानसभा क्षेत्र भी मांगा था.’
राज्य इकाई सीटों को छोड़ने के बारे में संदेहपूर्ण स्थिति में है. कांग्रेस ने अभी तक भिवंडी पूर्व और मानखुर्द शिवाजी नगर पर अपना फैसला सपा को नहीं बताया है.
सूत्रों ने बताया कि महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रमुख बालासाहेब थोराट, जो गठबंधन की बातचीत कर रहे हैं, बाइकुला को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं और इसके बजाय उन्होंने सपा को विदर्भ में चुनावी क्षेत्र की पेशकश की है.
2014 में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने बाइकुला सीट पर दर्ज की थी, जिसमें कांग्रेस केवल 3,000 वोटों के अंतर से दूसरे रनर-अप के रूप में उभरी थी.
‘कांग्रेस बातचीत के लिए तैयार नहीं’
हालांकि, सपा ने कहा कि अभी कुछ भी फाइनल नहीं है. पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष अबू आज़मी ने कहा, ‘कांग्रेस बिलकुल भी बातचीत करने को तैयार नहीं है.अगर वे बाइकुला में एक दोस्ताना लड़ाई के लिए सहमत हैं और हमें दो सीटें दे रहे हैं, तो हम उनके साथ सहयोगी बनने के लिए तैयार हैं.’
आज़मी ने कहा कि कांग्रेस केवल उन सीटों की सपा को पेशकश कर रही है, जिनमें जीतने का कोई मौका नहीं है.
अबू आज़मी ने कहा, ‘मैंने खुले तौर पर बातचीत की है और अपनी मांगों को स्पष्ट किया है.’
उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस हमारे साथ गठबंधन करके हमारा पक्ष नहीं ले रही है. यदि वे नहीं करते हैं तो वे केवल वोट को विभाजित करेंगे.’
लोकसभा चुनाव से पहले महागठबंधन के हिस्से के रूप में कांग्रेस और सपा उत्तर प्रदेश में सहयोगी थे. हालांकि, दोनों का गठबंधन ख़त्म हो गया सपा और कांग्रेस ने कई सीटों पर एक दूसरे के खिलाफ कमजोर उम्मीदवारों को उतारा जहां उन्हें लगा कि दोनों में से कोई एक जीत जायेगा. हालांकि, इस रणनीति से दोनों पक्षों को कम फायदा हुआ.
कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में जहां 80 में से एक सीट जीती, वहीं सपा ने पांच सीटों पर जीत हासिल की.
हालांकि, उत्तर प्रदेश में 12 सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए दोनों दलों के बीच कोई भी बातचीत नहीं हुई है.
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