मुंबई/नई दिल्ली : 20 जुलाई 2016 के करीब मुंबई स्थित डॉक्टर एस नटराजन अपने पूर्व आईएएस अधिकारी दोस्त डी शिवनंदन से बात कर रहे थे. शिवनंदन मुंबई पुलिस कमिश्नर और महाराष्ट्र पुलिस के डायरेक्टर जनरल के पद पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं.
शिवनंदन ने डॉक्टर नटराजन से ऐसे ही बातचीत में कहा कि उन्हें कुछ समय के लिए कश्मीर जाना चाहिए और पैलेट से घायल मरीज़ों का इलाज करना चाहिए.
शायद ये बातचीत उस खेल की शुरुआत थी जो किस्मत खेलने वाली थी. कुछ दिनों बाद पटना में हो रही एक मीटिंग के बीच डॉक्टर नटराजन के फोन पर एक मैसेज आया. उनके कई व्हाट्सएप ग्रुप्स में से एक में मैसेज था कि बॉर्डर वर्ल्ड फाउंडेशन कश्मीर के लिए एक नेत्र विशेषज्ञ की तलाश में है. उन्होंने तुरंत इस संदेश का जवाब दिया और मुंबई स्थित आदित्य ज्योति हॉस्पिटल के प्रमुख डॉक्टर नटराजन दो दिनों के भीतर कश्मीर के लिए रवाना हो गए.
ये वो समय था जब 8 जुलाई 2016 को हुए हिजबुल मुजाहिद्दीन के कमांडर बुरहान वानी को सुरक्षा बलों ने मार गिराया था और इसके बाद शुरू हुई हिंसा से घाटी धधक रही थी.
डॉक्टर नटराजन याद करते हुए कहते हैं, ‘जब मैं पहुंचा तो वहां मुर्दा शांति फैली हुई थी. फिर अचनाक से कहीं से पत्थरबाज़ी होती और पुलिस को गोली चलानी पड़ती.’ डॉक्टर नटराजन ऑल इंडिया ऑप्थेल्मोलॉजिकल सोसाइटी के अध्यक्ष भी हैं और उन्होंने अपनी पहली कश्मीर यात्रा के दौरान ही श्रीनगर के श्री महाराजा हरि सिंह (एसएमएचएस) अस्पताल में तीन दिनों में 47 मरीज़ों का ऑपरेशन किया. उन्होंने कहा कि अगले पांच महीनों में हुए चार कश्मीर दौरों में उन्होंने 200 ऐसे मरीज़ों का इलाज किया जिनकी आंखें पैलेट से घालय हुई थीं.
पेलेट के घायल
इसे कम घातक हथियार बताते हुए जम्मू-कश्मीर पुलिस ने राज्य में पहली बार पैलेट गन का इस्तेमाल 2010 में किया था. एक कारतूस में सैंकड़ों पैलेट होते हैं और ऐसी गोली को जब दागा जाता है तो जहां से गोली चलाई जाती है वहां से ये पैलेट चारों ओर फैल जाते हैं. पेलेट से त्वाच के मुलायम हिस्से को गंभीर चोट लगने की आशंका तो रहती ही है, जैसे कि आंखें शरीर के सबसे कमज़ोर हिस्सों में शामिल हैं, इन्हें सबसे ज़्यादा नुकसान होने का डर होता है.
डॉक्टर नटराजन ने दिप्रिंट से कहा, ‘किसी आंख में पेलेट से लगी चोट को आप ऐसे समझ सकते हैं जैसे किसी टमाटर में पेलेट घुस गया हो. ये ऊतकों को चीरता हुआ रेटिना के परतों में घुस जाता है.’
डॉक्टर नटराजन ने कहा, ‘चीज़ों के दिखाई देने में रेटिना की सबसे अहम भूमिका होती है और अगर इसे नुकसान पहुंचता है तो दिखाई देना तुरंत बंद हो जाता है. कई बार कॉर्निया और लेंस में भी चोटें होती हैं. सर्जरी के बाद मरीज़ को दिखना शुरू होगा या नहीं वो इस बात पर निर्भर करता है कि चोट किस प्रकार की है और कैसे लगी है.’
उन्होंने ये भी बताया कि अगर पैलेट से आंखों के बीचों-बीच से गंभीर चोट लगी है तो दोबारा सामान्य तरह से दिखाई देना असंभव है. अगर किसी के आंखों के किनारे में चोट लगी है और रेटिना सुरक्षित है तथा ऑप्टिकल नर्व काम कर रही है तो चोट से आंखों को उबारा जा सकता है.
‘ज़्यादातर घायलों की उम्र 20-29 साल के बीच’
डॉक्टर नटराजन ने बताया कि उन्होंने एसएमएचएस अस्पताल में बाकी डॉक्टरों के साथ मिलकर जून से नवंबर 2016 तक घाटी में पैलेट से घायल कुल 777 मामलों को देखा.
777 मरीज़ों में 51.1 प्रतिशत मरीज़ 20-29 साल के बीच थे जबकि 36.6 प्रतिशत 10-19 साल के बीच के. डॉक्टर नटराजन ने उस वक्त में पांच से 12 साल की उम्र के बच्चों और किशोरों की आंखों का भी इलाज किया था.
डॉक्टर नटराजन अभी तक उन मरीजों के संपर्क में हैं जिनका उन्होंने तब इलाज किया था और इनमें से कुछ ने तो हालिया समय में उनसे फिर से अपनी आंखों का इलाज कराया है.
डॉक्टर नटराजन ने कहा, ’12 साल की एक बच्ची इंशा के चेहरे पर 300 पेलेट के ज़ख़्म थे. कश्मीर में पहले उसके मैनिंजाइटिस का इलाज हुआ जिसके बाद हमने मुंबई में उसकी आंखों का इलाज किया. उसे गंभीर चोटें आई थीं.’
‘ये दर्दनाक है कि कई बार वो भी शिकार हो जाते हैं जो प्रदर्शन का हिस्सा नहीं होते’
डॉक्टर नटराजन को इलाज के बाद मरीज़ों के जिस दर्द का अनुभव हुआ उसके बाद उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी और तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह को एक चिट्ठी लिखी. इसमें उन्होंने बताया कि कैसे कई लोग बिना किसी दोष के पैलेट का शिकार हो रहे हैं.
डॉक्टर नटराजन ने लिखा, ‘हालांकि, हमारे सुरक्षाबल पूरी कोशिश करते हैं कि व्यापक क्षति न हो, यह संभव नहीं है कि ऐसा नुकसान नहीं होगा. सबसे ज़्यादा दुख की बात ये है कि कई ऐसे लोग हैं जो अशांति फैलान में शामिल भी नहीं होते लेकिन उन्हें बिनी उनकी ग़लती के पैलेट का शिकार होना पड़ता है.’
उन्होंने कई उपाय सुझाए और बताया कि क्या कदम उठाए जाने चाहिए. इसके तहत उन्होंने कहा कि अनुभवी वेट्रो रेटिना सर्जनों को एक तय समय के अंतराल पर राज्य के दौरे पर भेजा जाना चाहिए, इलाज से जुड़े ज़्यादा उपकरण भेजे जाने चाहिए, इनमें मॉडर्न माइक्रोस्कोप, मॉनिटर और रिकॉर्डिंग सिस्टम जैसे उपकरण एसएमएचएस हॉस्पिटल को दिए जाने चाहिए और कश्मीर में ऑक्यूलर ट्राउमा इंस्टीट्यूट खोला जाना चाहिए.
हालांकि, नटराजन को इस ख़त का कोई जवाब नहीं मिला.
डॉक्टर नटराजन ने दिप्रिंट से कहा, ‘कश्मीर के डॉक्टर जो मुझे बताते हैं उससे तो यही लगता है कि पैलेट से होने वाली चोटें कम हुई हैं और मरीज़ों की संख्या घटी है. लेकिन अगर फिर से कभी मेरी सेवा की ज़रूरत पड़ती है तो मैं वहां जाकर लोगों का इलाज़ और उनकी सेवा करने को तैयार हूं.’