मुंबई: गोवा में अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए राजनीतिक आरक्षण से जुड़े अहम बिल को लेकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने अपना रूख और कड़ा कर लिया है. पार्टी ने कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि वह लोकसभा में इस बिल पर चर्चा नहीं होने दे रही और जानबूझकर इसे अटका रही है.
‘द रीडजस्टमेंट ऑफ रिप्रजेंटेशन ऑफ शेड्यूल्ड ट्राइब्स इन असेंबली कंस्टीट्यूएंसीज़ ऑफ द स्टेट ऑफ गोवा बिल, 2024’ नाम का यह विधेयक पहली बार गोवा विधानसभा में एसटी समुदाय को राजनीतिक आरक्षण देने की कोशिश है. यह राज्य की सभी राजनीतिक पार्टियों के एजेंडे में शामिल रहा है.
चूंकि, बीजेपी गोवा की सत्ता में है, इसलिए इस बिल को पास कराना पार्टी के लिए 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले रणनीतिक रूप से अहम माना जा रहा है — खासतौर पर उन चार विधानसभा क्षेत्रों में जहां एसटी आबादी ज्यादा है.
यह बिल गुरुवार और शुक्रवार को लोकसभा में चर्चा के लिए सूचीबद्ध था, लेकिन बिहार में मतदाता सूची के विशेष संशोधन (SIR) को लेकर विपक्ष के हंगामे के चलते चर्चा नहीं हो पाई.
कांग्रेस पर बिल में बाधा डालने का आरोप लगाते हुए गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने गुरुवार को एक्स पर लिखा, “कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन ने एक बार फिर गोवा की अनुसूचित जनजातियों के साथ विश्वासघात किया है. उन्होंने महत्वपूर्ण बिल को रोक दिया.”
सावंत ने बताया कि यह बिल पहली बार 2024 के मानसून सत्र में लोकसभा में पेश किया गया था, लेकिन विपक्ष के हंगामे के कारण अब तक उस पर चर्चा नहीं हो सकी है.
सावंत ने लिखा, “इस बार भी वही दोहराया गया है. अगर 2027 के विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जनजातियों को आरक्षण नहीं मिला, तो इसके लिए कांग्रेस जिम्मेदार होगी.”
बीजेपी के आरोपों पर जवाब देते हुए गोवा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस विधायक यूरी अलेमाओ ने कहा कि पार्टी ने इस बिल का विरोध नहीं किया है, बल्कि बिहार से जुड़े एक अन्य मुद्दे में लोकसभा में व्यस्त थी.
अलेमाओ ने कहा, “हम अनुसूचित जनजाति समुदाय के साथ हैं. सरकार इस बिल को फिर से पेश करे.”
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बिल का राजनीतिक महत्व
गोवा के राजनीतिक विश्लेषक क्लेओफैटो कौटिन्हो ने दिप्रिंट से कहा कि यह बिल पास होने के बाद राज्य की राजनीति में कुछ बड़े नेताओं की स्थिति पर असर डाल सकता है. कौटिन्हो ने कहा, “गोवा की राजनीति नेता-केंद्रित है. अगर यह बिल पास होता है तो कुछ सीटें अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए आरक्षित हो जाएंगी, जिससे वहां के कुछ स्थापित नेताओं की स्थिति खतरे में पड़ सकती है. हालांकि, एसटी समुदाय लंबे समय से इस बिल की मांग कर रहा है और अगर सरकार इस पर कुछ नहीं करती तो नाराज़गी काफी बड़ी हो सकती है.”
उन्होंने आगे कहा, “अगर एसटी समुदाय को लगता है कि बीजेपी ने इस बिल को पास कराने के लिए कुछ नहीं किया और वे 2027 के चुनाव में पार्टी का बहिष्कार करने का फैसला लेते हैं, तो बीजेपी को नुकसान होगा. इसलिए यह सब बयानबाज़ी इस मुद्दे पर सही छवि बनाने की कोशिश है.”
राज्य के नेताओं का अनुमान है कि यह बिल गोवा की चार विधानसभा सीटों—सांगुएम, क्वेपेम, प्रिओल और नुवेम—को प्रभावित करेगा, जहां एसटी आबादी सबसे ज़्यादा है.
प्रिओल से बीजेपी विधायक गोविंद गावडे ने दिप्रिंट से कहा, “कोई भी बड़ी पार्टी इस बिल के खिलाफ नहीं है. सभी को इसकी ज़रूरत और महत्व का अंदाज़ा है, लेकिन अगर बीजेपी इसे पास करवा लेती है, तो 2027 के चुनाव में उसे इसका फायदा ज़रूर मिलेगा.”
पार्टी नेताओं ने यह भी कहा कि यह बिल बीजेपी को इन चार सीटों पर अपनी पकड़ मजबूत करने में मदद करेगा.
क्वेपेम सीट 2007 से कांग्रेस के पास रही है. 2019 में वहां के विधायक चंद्रकांत कावलेकर कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आ गए थे. 2022 में उन्होंने बीजेपी टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन कांग्रेस के एल्टोन डी’कोस्टा से हार गए.
नुवेम सीट भी पिछले दो चुनावों से कांग्रेस के पास रही है. 2022 में कांग्रेस के अलेक्सो सिक्वेरा ने यह सीट जीती, लेकिन उसी साल सितंबर में वे सात अन्य कांग्रेस विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए.
प्रिओल सीट 2007 और 2012 में महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) के पास थी। 2017 में गोविंद गावडे ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में यह सीट जीती और मनोहर पर्रिकर की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार को समर्थन दिया. 2022 में उन्होंने बीजेपी के टिकट पर जीत दर्ज की। हालांकि, जून में राज्य सरकार में कथित भ्रष्टाचार पर बोलने के बाद उन्हें मंत्री पद से हटा दिया गया, जिससे उनकी बीजेपी सरकार से तनातनी रही.
सांगुएम सीट शुरू से ही बीजेपी का गढ़ रही है और वहां के मौजूदा विधायक सुभाष फाल देसाई प्रमोद सावंत सरकार में मंत्री हैं.
अनुसूचित जनजातियों की आबादी में बड़ा इज़ाफा
गोवा में अनुसूचित जनजातियों (एसटी) को पंचायत, ज़िला परिषद और शहरी स्थानीय निकायों के चुनावों में आरक्षण मिला हुआ है, लेकिन विधानसभा चुनावों में अब तक उन्हें कोई राजनीतिक आरक्षण नहीं मिला है.
बिल के मुताबिक, 2001 की जनगणना में गोवा में एसटी की आबादी केवल 566 थी, जबकि राज्य की कुल आबादी लगभग 13 लाख थी. इसी जनगणना के आंकड़ों के आधार पर 2002 में परिसीमन प्रक्रिया शुरू हुई और चूंकि, उस समय एसटी आबादी बहुत कम थी, इसलिए विधानसभा में उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिल सका.
लेकिन 2011 की जनगणना में यह संख्या बढ़कर 1.49 लाख हो गई, जो उस समय की कुल आबादी 14.58 लाख का लगभग 10.21 प्रतिशत थी.
इस बढ़ोतरी की वजह 2003 में तीन नई जनजातियों—कुंभी, गावड़ी और वेलीप—को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल किया जाना था.
इसके मुकाबले अनुसूचित जातियों (एससी) की आबादी 2011 की जनगणना में 25,449 थी और उन्हें एक आरक्षित विधानसभा सीट—पर्नेम—मिली हुई है.
बिल में कहा गया है, “राज्य में एक असामान्य स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिसमें अनुसूचित जनजातियों की आबादी अनुसूचित जातियों से काफी अधिक है, फिर भी उनके लिए विधानसभा में कोई सीट आरक्षित नहीं है…”
जुलाई 2023 में, गोवा विधानसभा ने एक प्राइवेट मेंबर प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें विधानसभा चुनावों में एसटी के लिए राजनीतिक आरक्षण की सिफारिश की गई थी.
इसके बाद से विधानसभा में अलग-अलग दलों के विधायकों ने इस बिल की स्थिति पर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए कॉलिंग अटेंशन नोटिस दिए हैं. साथ ही एसटी समुदाय के सदस्य समय-समय पर विरोध प्रदर्शन भी करते रहे हैं.
मार्च 2023 में केंद्र सरकार की कैबिनेट ने इस बिल को मंजूरी दी थी, जिसे लोकसभा के मानसून सत्र में पेश भी किया गया, लेकिन यह पारित नहीं हो सका.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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