नई दिल्ली: मणिपुर में कुकी-जो उग्रवादी समूहों के बीच आपसी मतभेद उभरकर सामने आए हैं. ये वही समूह हैं जिन्होंने 2008 में केंद्र सरकार के साथ ऑपरेशन स्थगन (SoO) समझौता किया था. इनमें अब दो बड़े मुद्दों को लेकर मतभेद पैदा हो गए हैं— समझौते में शामिल वह शर्त, जिसमें कहा गया है कि SoO समूह मणिपुर की भौगोलिक एकता को नुकसान पहुंचाने वाली कोई गतिविधि नहीं करेंगे और दूसरा, इन समूहों के कैंपों की संख्या 14 से घटाकर 10 करने की बात पर.
दिप्रिंट को जानकारी मिली है कि इन्हीं दो मुद्दों पर असहमति के चलते SoO समझौता आगे बढ़ाने की बातचीत अटक सकती है.
यह त्रिपक्षीय समझौता 22 अगस्त 2008 को केंद्र सरकार, मणिपुर सरकार, कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन (KNO) और यूनाइटेड पीपल्स फ्रंट (UPF) के बीच हुआ था. KNO और UPF मिलकर कुल 25 उग्रवादी संगठनों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनमें कुकी-जो, जोमी और हमार समुदाय के लोग शामिल हैं.
इस समझौते का मकसद राज्य में सक्रिय उग्रवादी समूहों के साथ राजनीतिक बातचीत शुरू करना और उनके द्वारा अलग राज्य की मांग को लेकर चल रही हिंसा को समाप्त करना था.
यह समझौता हर साल नवीनीकृत किया जाता है, लेकिन मई 2023 में मणिपुर में गैर-आदिवासी मेइती और आदिवासी ईसाई कुकी समुदायों के बीच हुए जातीय संघर्ष के बाद, यह समझौता फरवरी 2024 में समाप्त हो गया और इसके बाद इसे नहीं बढ़ाया गया.
SoO समझौते के तहत, जो उग्रवादी समूह हिंसा छोड़कर सामने आए, उन्हें विशेष कैंपों (SoO कैंप) में रखा गया. इन्हें अपने हथियार एक लॉक कमरे में जमा करने होते हैं, सेना और सुरक्षा बल नियमित रूप से कैंपों की जांच करते हैं, कैडर कैंप से बाहर नहीं जा सकते, न ही हथियार ले जा सकते हैं.
इन्हें पुनर्वास के तहत हर महीने 5,000 रुपये की सहायता राशि दी जाती है. समझौते की एक और मुख्य शर्त यह भी है कि जब तक SoO लागू है, तब तक केंद्र या राज्य की सुरक्षा एजेंसियां और उग्रवादी समूहों के कैडर एक-दूसरे के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेंगे. इसके साथ ही, समझौता करने वाले उग्रवादी समूह राज्य की एकता को नुकसान पहुंचाने वाला कोई काम नहीं करेंगे. अब यही अंतिम शर्त केंद्र सरकार और SoO समूहों के बीच मुख्य विवाद का कारण बन गई है.
दिप्रिंट को तीन सूत्रों ने बताया कि गृह मंत्रालय, मणिपुर सरकार और SoO समूहों के बीच 2008 में तय किए गए SoO के नियमों को लेकर मतभेद पैदा हो गए हैं. अब इन मूल नियमों की फिर से समीक्षा और बातचीत की जा रही है, ताकि SoO समझौते को आगे बढ़ाया जा सके.
केंद्र ने 4 जुलाई और 7 जुलाई को SoO समूहों के साथ दो बैठकें कीं, जिनमें इन विवादित मुद्दों पर चर्चा हुई.
एक SoO प्रतिनिधि ने बताया: “2008 में जब हमने यह समझौता किया था, तब हमारी मांग केवल मणिपुर के भीतर एक क्षेत्रीय परिषद (टेरिटोरियल काउंसिल) की थी, लेकिन मई 2023 के बाद ज़मीनी हालात पूरी तरह बदल गए हैं. अब हमारी सर्वसम्मत मांग है कि हमें संविधान के अनुच्छेद 239A के तहत विधानसभा वाले केंद्रशासित प्रदेश (यूटी) का दर्जा मिले. पुडुचेरी इसी मॉडल पर चलता है, जहां ज़मीन से जुड़े मामलों को स्थानीय प्रशासन संभाल सकता है.”
उन्होंने आगे कहा, “हम केंद्र सरकार के साथ सहयोग कर रहे हैं, क्योंकि हम एक राजनीतिक समाधान चाहते हैं, लेकिन अब हम विधानसभा वाले केंद्रशासित प्रदेश की मांग से पीछे नहीं हटेंगे.”
हालांकि, सरकारी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि केंद्र सरकार इस मांग को स्वीकार करने की संभावना नहीं रखती.
मणिपुर सरकार के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “केंद्र और SoO समूहों के बीच उस विवादित शर्त को लेकर बातचीत अटक गई है. SoO समूह चाहते हैं कि उस लाइन को बदला जाए, जिससे उनकी नई मांग का उल्लेख हो. इस विवाद को सुलझाने के लिए पर्दे के पीछे बातचीत चल रही है, ताकि आगे की बातचीत हो सके.”
पिछले महीने केंद्र सरकार ने SoO समूहों के साथ दोबारा बातचीत शुरू की थी, ताकि इस समझौते को फिर से लागू किया जा सके. इसे मणिपुर में शांति और सामान्य स्थिति बहाल करने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है.
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कैंपों को घटाने पर भी टकराव
SoO समूहों के साथ हो रही बातचीत उस वक्त अटक गई जब गृह मंत्रालय (MHA) ने मांग रखी कि अब 14 की जगह सिर्फ 10 कैंप रहेंगे और कुछ कैंपों को वैली (मैतेई-बहुल इलाकों) के किनारों से हटाकर दूसरी जगह शिफ्ट किया जाए.
दिप्रिंट को जानकारी देने वाले तीन सूत्रों ने बताया कि यह मांग SoO समूहों में शामिल ZRA (जोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी) को स्वीकार नहीं है. वर्तमान में 14 SoO कैंप हैं, जिनमें: 7 कैंप KNO (कुकी-जो समुदाय के 16 समूहों का प्रतिनिधित्व करता है) के पास हैं और 7 कैंप UPF (8 समूहों का प्रतिनिधित्व करता है, जिनमें 3 जोमी समुदाय से हैं) के पास हैं.
एक सूत्र ने बताया: “KNO ने अपने 7 में से 4 कैंप बंद करके उन्हें 2 में मिला देने पर सहमति जताई है, जिससे उनके पास कुल 5 कैंप रह जाएंगे, लेकिन UPF के घटक, जिनके पास भी 7 कैंप हैं, उन्होंने अपने कैंप कम करने से मना कर दिया है.”
UPF के 7 कैंपों में से 3 जोमी समुदाय के हैं, जिनमें ZRA, Zou Defence Volunteer और Zomi Revolutionary Front के सदस्य रहते हैं. बाकी 4 कैंप अन्य समूहों के हैं, जिन्होंने इनमें से 1 कैंप बंद करने पर सहमति दे दी है, लेकिन ZRA, जिसे एक कैंप बंद करने को कहा गया, ने इस पर साफ इनकार कर दिया है.
एक SoO प्रतिनिधि ने बताया: “बाकी सभी SoO समूहों ने ZRA को समझाने की कोशिश की कि वे अपना एक कैंप बंद कर दें, जिससे UPF के कैंप 5 रह जाएं, जैसा कि MHA ने शर्त रखी है, लेकिन वे नहीं माने. अब जब तक यह मुद्दा हल नहीं होता, बातचीत में देरी होगी.”
Ketheos Zomi, जो ZRA का प्रतिनिधित्व करते हैं और त्रिपक्षीय बातचीत में UPF (Zomi) टीम के प्रमुख हैं, ने दिप्रिंट से कहा: “4 जुलाई और 7 जुलाई की बैठकों में हमसे कहा गया कि हम अपने 3 कैंप मिलाकर एक बना लें, लेकिन हम इसे स्वीकार नहीं कर सकते. हम पिछले 17 साल से इन्हीं कैंपों में रह रहे हैं. हम एक भी कैंप बंद नहीं करेंगे. यह हमारे लिए नॉन-नेगोशिएबल है. यह फैसला Zomi Civil Society Organisation द्वारा लिया गया है.”
हालांकि, Ketheos ने यह भी कहा कि कैंप बंद करने के अलावा, जोमी समुदाय कभी भारत सरकार के खिलाफ नहीं रहा.
उन्होंने कहा, “हम सरकार की नीति और रोडमैप के प्रति प्रतिबद्ध हैं. हमारा उद्देश्य राजनीतिक बातचीत के ज़रिए शांति बहाल करना है. कैंप बंद करने का मुद्दा राजनीतिक बातचीत से अलग है. हमने सरकार के वार्ताकार ए.के. मिश्रा से पूछा कि क्या कोई और विकल्प है, लेकिन हमें यही कहा गया कि पहले कैंप बंद करो.”
दिप्रिंट ने ए.के. मिश्रा से व्हाट्सऐप के ज़रिए संपर्क किया है. उनसे जवाब मिलने पर रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
SoO समूहों को पहाड़ी क्षेत्रों के जनप्रतिनिधियों और सिविल सोसाइटी का समर्थन प्राप्त है और वे आदिवासी समुदाय की ओर से चल रही समझौता बढ़ाने की बातचीत में हिस्सा ले रहे हैं.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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