गुरुग्राम: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को मौलिक अधिकार के रूप में सर्वोपरि माना है. अदालत ने एक भागे हुए कपल के खिलाफ कार्रवाई की मांग वाली याचिका खारिज कर दी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि लड़की ने अपनी उम्र छुपाकर सुरक्षा याचिका दायर की थी.
अदालत ने धारा 340 सीआरपीसी (झूठे और मनगढ़ंत सबूत देने) के तहत कार्रवाई की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। आरोप था कि एक व्यक्ति ने 2017 में सुरक्षा याचिका दायर करते समय झूठा हलफनामा और जाली दस्तावेज़ दाखिल किए.
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि प्रतिवादी संख्या 4 ने याचिकाकर्ता की नाबालिग बेटी से शादी करने के बाद सुरक्षा की मांग करते हुए लड़की की उम्र को बालिग बताकर गलत जानकारी दी.
1 जुलाई को जस्टिस अनुप छितकड़ा द्वा रा दिए गए इस फैसले में कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सर्वोपरि महत्व प्राप्त है, भले ही याचिका में उम्र को लेकर गलतबयानी की गई हो.
इस मामले में लड़की के पिता (याचिकाकर्ता) ने प्रतिवादी संख्या 4 के खिलाफ धारा 340 सीआरपीसी के तहत कार्रवाई की मांग की थी. आरोप था कि 2017 की सुरक्षा याचिका में प्रतिवादी ने गलत हलफनामा और जाली दस्तावेज़ दिए.
कपल ने अपने रिश्ते का पारिवारिक विरोध होने के चलते खतरे की आशंका जताते हुए सुरक्षा याचिका दायर की थी.
सुनवाई के दौरान यह सामने आया कि याचिका में लड़की के बालिग होने का प्रमाण देने के लिए आधार कार्ड प्रस्तुत किया गया था.
हालांकि अदालत ने याचिकाकर्ता की उम्र को लेकर आपत्ति को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि उस समय की मूल याचिका का मकसद था—प्रतिवादी और लड़की की जान की रक्षा करना.
जस्टिस छितकड़ा ने आदेश में कहा कि लड़की की वास्तविक जन्मतिथि साक्ष्य का विषय है, और विशेषकर अस्पताल के बाहर हुए जन्मों में सही रिकॉर्ड रखना अक्सर मुश्किल होता है.
अदालत ने यह भी माना कि भागे हुए जोड़ों को अक्सर गलत कानूनी सलाह दी जाती है, जिससे ऐसी याचिकाएं दायर की जाती हैं.
सबसे अहम बात यह रही कि अदालत ने माना कि प्रतिवादी ने अपने जीवन की सुरक्षा मांगी थी, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मूल अधिकार है.
कोर्ट ने कहा, “मान लीजिए कि प्रतिवादी ने कुछ गलत जानकारी दी हो, लेकिन जिस राहत की मांग की गई थी, वह इतनी ज़रूरी, बुनियादी और पवित्र थी कि इस अदालत को उचित नहीं लगता कि केवल शादी के लिए किसी जाली दस्तावेज़ के इस्तेमाल के चलते उसके खिलाफ कार्रवाई की जाए, खासकर जब वह विवाह अदालत में चुनौती के रूप में पेश ही नहीं किया गया.”
जस्टिस छितकड़ा ने कहा, “आत्म-संरक्षण मानव का सबसे बुनियादी स्वभाव है. लोग अपनी जान और अपने परिवार, दोस्तों, साथियों और यहां तक कि अजनबियों की जान बचाने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं. जीवन की रक्षा भारत के संविधान का मूल है, और अगर यह सुरक्षा नहीं दी जाती, तो पूरी व्यवस्था चरमरा सकती है.”
याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने सभी लंबित आवेदनों का निपटारा कर दिया. यह फैसला एक बार फिर इस बात को दोहराता है कि न्यायपालिका मौलिक अधिकारों, विशेषकर जीवन के अधिकार, को संविधान की नींव मानती है.
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