पटना: बिहार सरकार के कला, संस्कृति एवं युवा विभाग द्वारा शुक्रवार को बिहार संग्रहालय, पटना में “भारत के शैलचित्र एवं पुरातत्व” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इसमें देशभर के प्रख्यात इतिहासकारों, पुरातत्वविदों, विद्वानों और शोधार्थियों ने हिस्सा लिया. संगोष्ठी का उद्देश्य भारतीय शैलचित्रों के जरिए देश की सांस्कृतिक विरासत और प्राचीन सभ्यता को समझना और नई पीढ़ी से जोड़ना रहा.
कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन और स्वागत भाषण से हुई. पुरातत्व एवं संग्रहालय निदेशालय की निदेशक रचना पाटिल ने संगोष्ठी की भूमिका, महत्व और उद्देश्य पर प्रकाश डाला.
प्रो. वी. एच. सोनावाने, पूर्व विभागाध्यक्ष, बड़ोदरा विश्वविद्यालय ने “Glimpse of Indian Rock Art” विषय पर कहा, “भारतीय सभ्यता एक जीवंत सभ्यता है, जिसे हज़ारों वर्षों से चट्टानों पर बने चित्रों ने संभाल कर रखा है.”
प्रो. बंशी लाल मल्ला, पूर्व विभागाध्यक्ष, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ने “Genesis of Indian Art” विषय पर कहा, “भारतीय दर्शन का आधार पंचमहाभूत हैं. यहां कला और धर्म का रिश्ता बहुत गहरा और प्राचीन है.”
डॉ. एस. बी. ओटा, पूर्व संयुक्त महानिदेशक, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने कहा, “लद्दाख के शैलचित्र भारत की सबसे प्राचीन चित्र परंपरा का उदाहरण हैं. ये चित्र हमारे सबसे पुराने समाज की रचनात्मकता का प्रमाण हैं.”
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की डॉ. ऋचा नेगी ने “Rock Art and Ethnoarchaeology” विषय पर कहा, “लोककथाएं, लोकगीत और शैलचित्र हमारी ऐतिहासिक चेतना की जीवंत मिसाल हैं.”
संगोष्ठी में बड़ी संख्या में छात्र, शोधार्थी और सांस्कृतिक क्षेत्र से जुड़े लोग शामिल हुए. संवाद सत्रों में युवाओं की सक्रिय भागीदारी ने यह साबित किया कि भारत की सांस्कृतिक जड़ों को जानने की जिज्ञासा नई पीढ़ी में भी गहराई से मौजूद है.
कार्यक्रम का समापन कला, संस्कृति एवं युवा विभाग की विशेष कार्य पदाधिकारी कहकशां के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ.