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बुधवार, 2 जुलाई, 2025
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केंद्र में जाने के बाद भी, ज़रूरतमंदों के लिए MP में ‘मामा’ बने हुए हैं शिवराज सिंह चौहान

पूर्व सीएम के करीबी सहयोगी ने राज्य में हस्तक्षेप के आरोपों को खारिज किया है. उनका कहना है कि अब तक सभी मामले और घटनाएं केवल उनकी लोकसभा सीट विदिशा से जुड़े रहे हैं.

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नई दिल्ली: मध्यप्रदेश के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंत्री परिषद में शामिल हुए एक साल हो गया है, लेकिन ‘मामा’ के नाम से मशहूर चौहान अब भी ज़मीनी समस्याओं पर नज़र बनाए हुए हैं. जब भी ज़रूरत पड़ती है, वे तुरंत सक्रिय हो जाते हैं.

23 जून को उन्होंने सीहोर और देवास जिलों में आदिवासियों के प्रदर्शन का समर्थन किया. इन इलाकों में खेओनी अभयारण्य के कडेगांव विधानसभा क्षेत्र में प्रस्तावित सरदार वल्लभभाई वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी के लिए वन विभाग ने आदिवासी समुदाय के लगभग 50 परिवारों के घरों को तोड़ दिया था.

सीहोर कलेक्टोरेट में जिला विकास समन्वय और निगरानी समिति (DISHA) की बैठक के दौरान चौहान ने कार्यक्रम बीच में ही छोड़ दिया और प्रदर्शन कर रहे आदिवासियों के साथ जा मिले. उन्होंने उनका ज्ञापन स्वीकार किया और समर्थन का आश्वासन दिया. इसके बाद चौहान प्रदर्शनकारियों के साथ मुख्यमंत्री मोहन यादव से मिलने भी पहुंचे.

इस बैठक के बाद मुख्यमंत्री यादव ने सीहोर फॉरेस्ट डिवीजन में सैंक्चुअरी से जुड़ी योजना पर फिलहाल रोक लगा दी और सीहोर के डीएफओ का तबादला कर दिया.

इस मौके पर चौहान ने वन विभाग के अधिकारियों को चेताया कि बिना सही प्रक्रिया और सूचना के इस तरह की कार्रवाई न करें. बीजेपी के एक पदाधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, “उन्होंने साफ तौर पर कहा कि आदिवासी राज्य की एक बड़ी आबादी हैं और उनकी बात सुनी जानी चाहिए.”

यह पहली बार नहीं है जब पूर्व मुख्यमंत्री ने राज्य सरकार के मामलों में हस्तक्षेप किया हो. उनकी पदयात्राएं, किसानों और आदिवासियों से मुलाकातें और मध्यप्रदेश को ध्यान में रखते हुए की गई घोषणाएं राज्य की राजनीतिक हलचलों का हिस्सा बनी हुई हैं.

राज्य बीजेपी के कुछ नेताओं का कहना है कि चूंकि प्रदेश में सरकार का संचालन ज़्यादातर अधिकारियों के ज़रिए हो रहा है, इसलिए चौहान को बीच में आना पड़ रहा है. बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “वह (शिवराज) अनुभवी नेता हैं. उन्होंने पहले भी कुछ ज़रूरी मुद्दे उठाए थे, लेकिन उस पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया गया. इस बार उन्होंने वन विभाग के मामले से यह दिखा दिया कि जब ज़रूरत हो तो वो काम करवाना जानते हैं. यह जनहित में दबाव बनाने का तरीका था.”

हालांकि, पार्टी के कुछ अन्य नेताओं ने राज्य के मामलों में उनके हस्तक्षेप पर सवाल उठाए हैं.

चौहान के एक करीबी सहयोगी ने इस तरह के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि अब तक जो भी मामले सामने आए हैं, वे केवल उनकी लोकसभा सीट विदिशा से जुड़े रहे हैं.

उन्होंने कहा, “आदिवासियों के घर तोड़े जाने का मामला उनके संसदीय क्षेत्र से जुड़ा था. जब स्थानीय लोगों ने उनसे संपर्क किया, तो उन्होंने मुख्यमंत्री से बात की. उस समय कांग्रेस भी इस मुद्दे को उछालने का मौका तलाश रही थी, ऐसे में चौहान का समय पर दखल सरकार के लिए मददगार साबित हुआ.”


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सेंट्रल लीडरशिप को संदेश?

2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की बड़ी जीत के पीछे शिवराज सिंह चौहान की रणनीति और मेहनत थी, लेकिन इसके बावजूद पार्टी नेतृत्व ने उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बनाया. वे 2005 से 2018 और फिर 2020 से 2023 तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे.

अब भले ही वे केंद्रीय मंत्री के रूप में काम कर रहे हैं, लेकिन एक वरिष्ठ भाजपा नेता के अनुसार, चौहान आज भी प्रदेश की ‘नब्ज़’ को समझते हैं. उदाहरण के तौर पर अगर उन्होंने आदिवासी समुदाय से जुड़ी हालिया घटना में समय रहते हस्तक्षेप न किया होता, तो यह मुद्दा और भड़क सकता था और विपक्ष इसे बड़ा राजनीतिक हथियार बना लेता.

मई में चौहान ने अपने पुराने गढ़ सीहोर, विदिशा और इंदौर में पदयात्राएं कीं, जहां उन्होंने स्थानीय लोगों और ग्रामीणों से संवाद किया. इससे पहले अप्रैल में वे अपने क्षेत्र बुधनी पहुंचे थे, जहां आग लगने की घटना में कई लोग बेघर हो गए थे. वहां उन्होंने प्रभावित लोगों से मुलाकात की और उनकी समस्याएं सुनीं.

भाजपा के एक पदाधिकारी ने बताया, “जब ग्रामीणों ने पानी की भारी किल्लत और अनियमित आपूर्ति की शिकायत की, तो चौहान ने वरिष्ठ अधिकारियों को फटकार लगाई और साफ कहा कि पानी देना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन हर घर तक पानी पहुंचाना अफसरों का कर्तव्य है.”

उन्होंने आगे कहा, “चौहान ने उस दिन काफी गुस्सा जताया था. उन्होंने कहा कि नर्मदा नदी से पानी पहुंच रहा है, तो वह हर घर तक क्यों नहीं पहुंचता? उन्होंने अधिकारियों से 7 दिन के भीतर रिपोर्ट सौंपने को कहा. इसके बाद इलाके की स्थिति में सुधार हुआ.”

मार्च 2025 में जब राज्य के वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा बजट पेश कर रहे थे, तभी चौहान अचानक विधानसभा की विज़िटर्स गैलरी में पहुंचे. यह देख मुख्यमंत्री मोहन यादव ने भाषण बीच में रोक दिया और अपने पूर्ववर्ती का स्वागत किया.

यह सब घटनाएं क्या केंद्रीय नेतृत्व को यह संदेश नहीं देतीं कि शिवराज सिंह चौहान अब भी मध्यप्रदेश की राजनीति में प्रासंगिक और प्रभावशाली बने हुए हैं?

यह सिर्फ एक मामला नहीं है जब शिवराज सिंह चौहान ने अधिकारियों को चेताया. 23 जून को सीहोर में हुई डीआईएसएचए (Disha) बैठक के दौरान भी उन्होंने अफसरों को जमकर फटकार लगाई.

एक भाजपा पदाधिकारी ने बताया, “अपने गृह ज़िले सीहोर की बैठक में चौहान ने नर्मदा नदी में हो रहे अवैध खनन पर तुरंत रोक लगाने के निर्देश दिए. बैठक में मौजूद कई नेताओं के अनुसार, वे उस दिन काफी नाराज़ थे और अधिकारियों को साफ शब्दों में चेतावनी दी कि वे अपनी कार्यशैली सुधारें.”

अप्रैल में इंदौर दौरे के समय भी जब एक महिला ने लाड़ली बहना योजना का लाभ न मिलने की शिकायत की, तो चौहान ने तुरंत साथ चल रहे राज्य के नेताओं को निर्देश दिया कि इस मामले को प्राथमिकता के साथ सुलझाया जाए. पूर्व मुख्यमंत्री की राज्य मंत्री कैलाश विजयवर्गीय से मुलाकात भी इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है.

एक अन्य भाजपा पदाधिकारी ने कहा, “प्रदेश में हर दिन कोई न कोई मुद्दा विपक्ष उठा रहा है. अगर मुख्यमंत्री मोहन यादव ने आदिवासियों की बात समय पर सुन ली होती और समाधान कर दिया होता, तो शायद शिवराज सिंह चौहान को खुद हस्तक्षेप करने की ज़रूरत नहीं पड़ती.”

हालांकि, दिल्ली स्थित एक वरिष्ठ भाजपा नेता का कहना है कि शिवराज सिंह चौहान की प्रदेश में सक्रियता इस बात का संकेत भी हो सकती है कि वे भविष्य के किसी राजनीतिक रोल के लिए खुद को तैयार रख रहे हैं.

उन्होंने कहा, “शिवराज की राज्य में दिलचस्पी यह दिखाने का तरीका भी है कि वे अभी भी एक लोकप्रिय और ज़मीनी नेता हैं. यह केंद्र नेतृत्व को एक सधा हुआ संदेश है.”

एक अन्य राष्ट्रीय नेता ने टिप्पणी की, “मुख्यमंत्री मोहन यादव का काम खराब नहीं है, लेकिन वह चौहान की शैली को ही दोहराने की कोशिश कर रहे हैं. उन्हें अपनी खुद की पहचान बनानी चाहिए और कुछ नई योजनाएं या नीतियां लेकर आना चाहिए जो उनके विज़न को दर्शाएं.”

भाजपा के एक पदाधिकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री मोहन यादव को और समय दिया जाना चाहिए और वरिष्ठ नेताओं या मंत्रियों के इस तरह के हस्तक्षेप से गलत संदेश जाता है.

हालांकि, शिवराज सिंह चौहान के करीबी सहयोगी ने उनके बचाव में कहा कि जो भी पदयात्राएं उन्होंने की हैं, वे विकसित भारत योजना का हिस्सा थीं. उन्होंने कहा, “इस योजना के तहत उद्देश्य यह है कि उज्जवला, आवास योजना, किसान जैसे विभिन्न हितधारकों से संवाद किया जाए. यात्रा के दौरान मंत्री को अलग-अलग स्थानों पर रुककर स्थानीय लोगों से मिलना होता है और मोदी सरकार की योजनाओं को प्रचारित करना होता है.”

उन्होंने आगे कहा, “जो लोग कह रहे हैं कि शिवराज जी राज्य सरकार के मामलों में दखल दे रहे हैं, वे गलत हैं. राज्य की जनता आज भी उन्हें अपने नेता के रूप में देखती है, इसलिए लोग स्वाभाविक रूप से उनके पास अपनी समस्याएं लेकर आते हैं.”

सहयोगी ने यह भी बताया कि जून में आयोजित एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान चौहान ने स्पष्ट रूप से कहा था कि “मोहन यादव ही प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं.”

उन्होंने कहा, “जब उन्होंने खुद यह कह दिया है, तो इसमें और कुछ कहने की ज़रूरत नहीं रह जाती. वे एक लोकप्रिय नेता हैं और जनता से उनका जुड़ाव पूरी तरह स्वाभाविक है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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