नई दिल्ली: एक्ट्रेस और मॉडल शेफाली जरीवाला की अचानक मौत, जो कथित तौर पर बिना डॉक्टर की निगरानी में किए गए एंटी-एजिंग ट्रीटमेंट्स के कारण हुई, ने एक बार फिर देश में ऐसी थेरेपी और सप्लीमेंट्स पर नियमन की कमी को लेकर बहस छेड़ दी है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 42 वर्षीय जरीवाला को मिर्गी की पुरानी बीमारी थी, वह उपवास पर थीं और 27 जून को उन्होंने ग्लूटाथायोन और विटामिन सी के एंटी-एजिंग इंजेक्शन लिए थे — उसी दिन उनकी मौत हो गई. रिपोर्ट्स के अनुसार, इसी के चलते उनके ब्लड प्रेशर में खतरनाक गिरावट आई, जिससे उन्हें कार्डियक अरेस्ट हुआ और उनकी अचानक मौत हो गई.
हालांकि, जरीवाला की मौत के असली कारणों का पता पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आने के बाद ही चलेगा. लेकिन यह घटना खासतौर पर ग्लूटाथायोन ट्रीटमेंट्स के बेलगाम इस्तेमाल को लेकर गंभीर सवाल खड़े करती है, जिसे उन्होंने कथित तौर पर इंजेक्शन के रूप में लिया था और उसी के बाद उनकी तबीयत बिगड़ी.
इस बात के बहुत कम वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि यह मॉलीक्यूल, जिसे लीवर सिरोसिस या कीमोथेरेपी के बाद की टॉक्सिसिटी के इलाज के लिए मंजूरी मिली है, स्कीन को गोरा बनाता है या किसी को युवा दिखाता है. इसके बावजूद ग्लूटाथायोन का ऑफ-लेबल इस्तेमाल, खासतौर पर इंजेक्शन के रूप में, सेलेब्रिटीज़ और “ग्लास स्किन” चाहने वालों में काफी लोकप्रिय हो गया है.
वरिष्ठ डर्मेटोलॉजिस्ट्स का कहना है कि ज़्यादातर एंटी-एजिंग स्किन ट्रीटमेंट्स बिना पुख्ता वैज्ञानिक प्रमाणों के दावे करते हैं, और यही इस ट्रेंड को सबसे खतरनाक बनाता है. लेकिन इसके बावजूद निर्माता, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और कुछ कॉस्मेटोलॉजिस्ट — एक ऐसा शब्द जिसे डॉक्टरों के नियामक भी मान्यता नहीं देते — इन्हें आक्रामक रूप से प्रमोट करते हैं.
एंटी-एजिंग ट्रीटमेंट्स में कई तरह के पदार्थ शामिल हो सकते हैं, जैसे ऐंटीऑक्सीडेंट सप्लीमेंट्स, ग्रोथ हार्मोन बूस्टर्स, टेस्टोस्टेरोन थेरेपी, कोएंज़ाइम NAD+ इनफ्यूज़न और अन्य मेटाबोलिक एन्हांसर्स.
इसके अलावा, कई उत्पाद जो उम्र को रोकने वाले गुणों के साथ मार्केट किए जाते हैं, सप्लीमेंट्स या न्यूट्रास्यूटिकल्स के रूप में बेचे जाते हैं — यानी ऐसे उत्पाद जो बुनियादी पोषण से परे स्वास्थ्य लाभ देने का दावा करते हैं. ये दवाओं की तरह ड्रग नियमों के तहत नहीं आते. बल्कि इन्हें खाद्य सुरक्षा और मानक (हेल्थ सप्लीमेंट्स, न्यूट्रास्यूटिकल्स, विशेष आहार उपयोग के खाद्य पदार्थ, विशेष चिकित्सा प्रयोजन के खाद्य पदार्थ और प्रीबायोटिक व प्रोबायोटिक खाद्य पदार्थ) विनियम, 2022 के तहत नियंत्रित किया जाता है, जो स्वास्थ्य के समर्थन का दावा करते हैं.
कोलकाता की कॉस्मेटिक प्लास्टिक और हेयर ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. महनाज़ जहान बेगम कहती हैं, “इनमें से कुछ थेरेपी उभरते हुए वैज्ञानिक शोध पर आधारित हैं, लेकिन कई अभी भी खराब तरीके से नियंत्रित हैं, खासकर तब जब इन्हें क्लीनिक के बाहर अपनाया जाए या बिना किसी व्यापक स्वास्थ्य मूल्यांकन के लिखा जाए.”
डॉ. चित्रा वी. आनंद, डर्मेटोलॉजिस्ट और कोसमोडर्मा व स्किनक्यू डर्मेटोलॉजिस्ट की संस्थापक, सहमति जताती हैं. उन्होंने कहा, “सेल्फ-प्रेस्क्राइब किए गए एंटी-एजिंग ट्रेंड्स में खतरनाक बढ़ोतरी हुई है — अनियंत्रित हार्मोन और पेप्टाइड्स से लेकर अधिक मात्रा में सप्लीमेंट्स और इन्ट्रावेनस ड्रिप्स तक. सिर्फ इंजेक्शन का गलत इस्तेमाल ही नहीं, लोग ग्लूटाथायोन और कोलेजन जैसे उत्पादों का भी लापरवाही से उपयोग कर रहे हैं, बिना उनके दीर्घकालिक प्रभावों को समझे.”
विशेषज्ञ बताते हैं कि देश में न्यूट्रास्यूटिकल के लिए मंजूरी लेना किसी दवा के लाइसेंस की तुलना में कहीं आसान है.
ऐसे उत्पाद, जिनकी एक सिंगल सेशन की कीमत हजारों रुपये हो सकती है, अधिकतर फार्मेसी स्टोर्स और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध हैं, और इस वजह से लोग इन्हें खुद से दवा के रूप में लेने लगे हैं.
इस रिपोर्ट में, दिप्रिंट मौजूदा समय में लोकप्रिय एंटी-एजिंग ट्रीटमेंट्स, थेरेपी और प्रक्रियाओं की चर्चा करता है और यह समझने की कोशिश करता है कि इन्हें प्रमोट करते समय किए गए दावों के पीछे कितने प्रमाण मौजूद हैं.
ग्लूटाथायोन
ग्लूटाथायोन, जो शरीर में प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला एक ऐंटीऑक्सिडेंट है, टिश्यू की मरम्मत, प्रोटीन संश्लेषण और इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभाता है. यह तीन अमीनो एसिड्स — सिस्टीन, ग्लाइसिन और ग्लूटामिक एसिड — से बना एक ट्राईपेप्टाइड होता है, और हमारे कोशिकाओं के अंदर प्राथमिक ऐंटीऑक्सिडेंट के रूप में काम करता है, जो उन्हें फ्री रेडिकल्स से बचाता है.
कैंसर के मरीजों में कीमोथेरेपी के बाद विषाक्तता (टॉक्सिसिटी) को कम करने के लिए इसका दशकों से उपयोग किया जा रहा है. लेकिन पिछले पंद्रह वर्षों में यह स्किनकेयर और ब्यूटी इंडस्ट्री का चमकता सितारा बन गया है, खासतौर पर जब इसके एंटी-मेलानोजेनिक प्रभाव यानी मेलानिन उत्पादन को ब्लॉक करने की क्षमता पर ध्यान गया. मेलानिन ही बाल, आंख और त्वचा के रंग के लिए जिम्मेदार होता है.
ग्लूटाथायोन थेरेपी में अब विटामिन सी, थायोक्टिक एसिड, अल्फा-लिपोइक एसिड, एस्कॉर्बिक एसिड, कोजिक एसिड, प्रो-विटामिन बी3 और बी5, विटामिन E, हायल्यूरोनिक एसिड, कोलेजन और जिंक समेत अन्य खनिज शामिल होते हैं, जिन्हें स्कीन के लिए फायदेमंद माना जाता है.
इसके प्रभाव को अधिकतम करने के लिए ग्लूटाथायोन ट्रीटमेंट आमतौर पर हफ्ते में एक या दो बार इंट्रावेनस ड्रिप के रूप में दिया जाता है. यह अब बोटॉक्स ट्रीटमेंट से भी अधिक लोकप्रिय हो गया है, जो कभी उम्र के लक्षणों को कम करने के लिए पसंदीदा विकल्प हुआ करता था.
कई डर्मेटोलॉजिस्ट्स ग्लूटाथायोन ट्रीटमेंट को “भीतर से दमकती त्वचा” पाने के लिए पेश करते हैं, जबकि कुछ अन्य इसका उपयोग “अत्यधिक प्रचारित और जोखिम भरा” मानते हैं.
दिल्ली के सरकारी आरएमएल अस्पताल के डर्मेटोलॉजी विभाग प्रमुख डॉ. कबीर सरदाना बताते हैं, “फिलीपींस में कुछ महिलाओं पर हुए एक छोटे से अध्ययन के बाद स्किन वाइटनिंग के लिए ग्लूटाथायोन का उपयोग तेजी से लोकप्रिय हो गया, जिसमें यह पाया गया कि उनके मेलानिन का रंग भूरा से लाल हो गया — सफेद नहीं.”
डॉ. सरदाना के अनुसार, अब तक ऐसा कोई अच्छा क्लिनिकल ट्रायल नहीं हुआ है जो यह साबित करता हो कि यह कंपाउंड असरदार है या गहरे रंग की त्वचा को गोरा बना सकता है, फिर भी “ग्लोइंग स्किन” की चाह रखने वालों में इसका इस्तेमाल लगातार जारी है.
ग्लूटाथायोन इंजेक्शन के कई गंभीर साइड इफेक्ट्स की लंबी सूची भी है, जिनमें स्किन रैश और स्टीवंस-जॉनसन सिंड्रोम शामिल हैं — यह एक दुर्लभ लेकिन गंभीर त्वचा और म्यूकस मेम्ब्रेन की बीमारी है, जो आमतौर पर एलर्जिक रिएक्शन से होती है.
हालांकि, ज़्यादातर रिपोर्ट किए गए जटिलताएं मामूली और अस्थायी होती हैं, जैसे सूजन, चोट लगना या एलर्जिक रिएक्शन. गंभीर जोखिम, जैसे वस्कुलर ओक्लूज़न, बेहद दुर्लभ होते हैं और आमतौर पर गलत तकनीक या अप्रशिक्षित स्टाफ के कारण होते हैं, न कि इंजेक्शन के पदार्थ या दवा की वजह से.
कुछ मामलों में, यह कंपाउंड एनाफिलैक्सिस को भी ट्रिगर कर सकता है — यह सबसे गंभीर एलर्जिक रिएक्शन है, जो जानलेवा भी हो सकता है.
कुछ अन्य क्लिनिशियन बताते हैं कि यह कंपाउंड आम तौर पर तब सुरक्षित होता है जब इसे योग्य मेडिकल प्रैक्टिशनर्स द्वारा सुझाए गए डोज में इस्तेमाल किया जाए, लेकिन अनाधिकृत चिकित्सकों द्वारा इसके दुरुपयोग से गंभीर स्वास्थ्य जोखिम हो सकते हैं.
गुरुग्राम के पारस हेल्थ में प्लास्टिक डर्मेटोलॉजी और कॉस्मेटिक सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ. मनदीप सिंह कहते हैं, “नियामक दिशा-निर्देशों के अनुसार, इसकी सुरक्षित डोज़ आमतौर पर 600 मिग्रा से 1.2 ग्राम प्रति दिन के बीच होती है. दुर्भाग्यवश, तेज़ या अधिक स्पष्ट परिणाम पाने की चाह में कुछ लोग इसकी अधिक मात्रा ले लेते हैं, जिससे यह ज़हरीला और संभावित रूप से खतरनाक बन सकता है.”
प्लेटलेट-रिच प्लाज्मा इंजेक्शन
इस प्रक्रिया में किसी व्यक्ति के अपने खून का उपयोग करके उसी व्यक्ति के शरीर में उपचार और टिशू रीजनरेशन को बढ़ावा दिया जाता है. इसका उद्देश्य कोलेजन उत्पादन को बढ़ाना, त्वचा की बनावट को सुधारना और संभवतः झुर्रियों व उम्र के अन्य लक्षणों को कम करना होता है.
इसमें खून निकाला जाता है, उसमें से प्लेटलेट्स (जो ग्रोथ फैक्टर्स से भरपूर होते हैं) को अलग किया जाता है, और फिर उस सघन प्लेटलेट-रिच प्लाज्मा को लक्षित क्षेत्र में इंजेक्ट किया जाता है.
हालांकि, डॉ. सरदाना चेतावनी देते हैं कि यह भी — ग्लूटाथायोन की तरह — एंटी-एजिंग ट्रीटमेंट के लिए अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) ने मंजूरी नहीं दी और ‘डबल-ब्लाइंड’ स्टडीज़ में इसके ऐसे लाभ सिद्ध नहीं हुए हैं.
एनएडी प्लस इंजेक्शन
एनएडी (निकोटिनेमाइड एडेनिन डाइन्यूक्लियोटाइड) एक कोएंज़ाइम है जो शरीर की कोशिकाओं में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है और ऊर्जा उत्पादन सहित कई प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. हालांकि, डॉक्टरों का कहना है कि हमारे शरीर में एनएडी का भंडार युवावस्था में ही कम होना शुरू हो जाता है और उम्र बढ़ने के साथ यह गिरावट जारी रहती है.
‘एनएडी प्लस’ एक यौगिक है जिसमें एक विशेष मॉलीक्यूल होता है, जिसे उम्र बढ़ने के संकेतों को धीमा करने के लिए लोकप्रिय उपचार के रूप में उभरता देखा गया है. इसमें त्वचा की रंगत, झुर्रियां और याददाश्त से जुड़ी समस्याएं शामिल हैं. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पशुओं पर किए गए अध्ययनों में पाया गया कि यह उम्र बढ़ने की प्राकृतिक प्रक्रिया को धीमा कर सकता है.
ऐसा माना जाता है कि एनएडी सप्लीमेंटेशन शरीर में एनएडी के भंडार को फिर से भर सकता है. हालांकि, 2023 की एक साहित्य समीक्षा (लिटरेचर रिव्यू) में शोधकर्ताओं ने पाया कि मानव अध्ययनों में इसके प्रभाव सीमित पाए गए हैं, क्योंकि उनमें सैंपल साइज़ छोटे थे.
फ्रैक्शनल एनर्जी डिवाइसेज़
इनमें लेज़र और रेडियोफ्रीक्वेंसी (आरएफ) टेक्नोलॉजी शामिल हैं, जिनका व्यापक रूप से एस्थेटिशियंस (त्वचा देखभाल विशेषज्ञों) द्वारा एंटी-एजिंग ट्रीटमेंट्स में उपयोग किया जाता है, ताकि त्वचा की बनावट को बेहतर बनाया जा सके, झुर्रियां कम की जा सकें और त्वचा को टाइट किया जा सके.
ये डिवाइसेज़ छोटे माइक्रो-नीडल्स या नॉन-सर्जिकल उपकरण के ज़रिए नियंत्रित गर्मी की ऊर्जा त्वचा में पहुंचाते हैं, जिससे कोलेजन के उत्पादन को बढ़ावा देकर शरीर की प्राकृतिक हीलिंग प्रक्रिया को सक्रिय किया जाता है.
डॉ. सरदाना कहते हैं कि इससे त्वचा को फिर से जवान बनाने और दाग-धब्बों का इलाज करने में मदद मिलती है, और इसके प्रभावशीलता को साबित करने के लिए मजबूत प्रमाण मौजूद हैं.
वरिष्ठ त्वचा रोग विशेषज्ञ कहते हैं, “हमारे पास आरएमएल में हिस्टोलॉजिकल डेटा है जो दिखाता है कि यह काम करता है. यह एकमात्र हस्तक्षेप है जिसके प्रभाव को साबित करने के लिए मजबूत सबूत मौजूद हैं, लेकिन इसका उपयोग करने के लिए विकारों की बुनियादी और उन्नत जानकारी होना ज़रूरी है.”
हालांकि, डॉ. आनंद कहती हैं कि असली नुकसान उपचार नहीं, बल्कि उसका गलत इस्तेमाल है.
वह सलाह देती हैं, “युवावस्था को बनाए रखने के लिए स्वास्थ्य को जोखिम में डालना कभी भी उचित नहीं है. हमेशा डॉक्टर द्वारा निर्देशित देखभाल लें, सोशल मीडिया के शॉर्टकट्स से बचें.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: मंजूरी, प्रदर्शन और लाल फीताशाही: गुजरात में दलितों को बौद्ध धर्म अपनाने के लिए क्या झेलना पड़ता है