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Monday, 25 November, 2024
होमदेशहॉकी का वो जादूगर जिसने हिटलर की नाज़ी सेना में शामिल होने का न्योता ठुकरा दिया था

हॉकी का वो जादूगर जिसने हिटलर की नाज़ी सेना में शामिल होने का न्योता ठुकरा दिया था

ध्यानचंद की विरासत केवल हॉकी मैदीन तक ही सीमित नहीं थी. उनके जन्मदिन को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के तौर पर मनाया जाता है. उनके जीवन और कैरियर की कुछ यादें.

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विश्व के कई देशों में वहां का राष्ट्रीय खेल दिवस उसके इतिहास को ध्यान में रखकर मनाया जाता है. लेकिन भारत में खेल दिवस हॉकी के महान खिलाड़ी ध्यानचंद के जन्मदिन के दिन मनाया जाता है. ध्यानचंद के सम्मान में हर साल उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय खेल दिवस के तौर पर मनाया जाता है.

हॉकी का जादूगर

ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर कहा जाता था. खेल के दौरान बॉल पर ध्यानचंद का कंट्रोल कमाल का था. जिसकी वजह से कई बार उनकी हॉकी स्टिक को तोड़ दिया गया. लोग मानते थे कि उनकी स्टिक में चुंबक लगा होता था. ध्यानचंद ने 185 मैचों में 570 गोल किए थे. उनके नेतृत्व में भारत ने 1928,1932 और 1936 का ओलंपिक जीता था.

उनके जन्मदिन के दिन देशभर में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. इसी दिन राष्ट्रपति खेल से जुड़े लोगों को राजीव गांधी खेल रत्न. अर्जुन और द्रोणाचार्य अवार्ड देते हैं.

अपनी आत्मकथा गोल में ध्यानचंद ने लिखा है कि उनका जन्म उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद में 1905 में हुआ था. 17 साल की उम्र में उन्होंने भारतीय सेना ज्वाइन की थी और सेना की तरफ से ही खेलना शुरू किया था.

अपने हुनर के दम पर वो 20 साल के उम्र में ही भारतीय सेना की तरफ से खेलने के लिए चयनित हो गए थे. 1926 में न्यूजीलैंड के दौरे पर ध्यानचंद भी टीम के सदस्य थे जिसमें भारत ने 21 में से 18 मैच जीते थे. खेल में अच्छे प्रदर्शन के दम पर भारत लौटने के बाद उन्हें लांस नायक बना दिया गया था.

एम्सटर्डम ओलंपिक खेलों में भारतीय हॉकी टीम पहली बार खेलने उतरी थी. ध्यानचंद के नेतृत्व में भारत ने गोल्ड मेडल जीता और उन्होंने अकेले ही 14 गोल किए.

1932 के ओलंपिक खेलों में भारत ने सेमिफाइनल में यूएसए को 24-1 से हराया और फाइनल मुकाबले में जापान को 11-1 से हराया था. ध्यानचंद ने पूरी श्रृखंला में 12 गोल किए थे और उनके भाई रूप सिंह ने 13 गोल किए थे. इस जीत के बाद दोनों भाइयों का जोड़ी काफी प्रसिद्ध हो गई.

जब ध्यानचंद की हिटलर से मुलाकात हुई

1932 ओलंपिक के 4 साल बाद 1936 के ओलंपिक खेलों में भारत अपने पहले वार्म-अप मैच में 4-1 से हार गया. जिसके बाद भारत और एंगलो-इंडियन खिलाड़ियों में तनाव पैदा हो गया.

इस मैच के बाद ध्यानचंद ने टीम को कुछ बदलाव किए. जिसके बाद भारत ने लगातार कई मैच जीते. सेमिफाइनल में भारत ने फ्रांस को 10-0 से हराया. इसी के साथ भारत फाइनल में पहुंच गया जिसमें उसका मुकाबला जर्मनी की टीम से होना था.

इस मैच में जर्मनी के आला अधिकारी भी पहुंचे हुए थे. नाजी पार्टी के प्रमुख हिटलर के साथ उनके कई मंत्री भी मैच देकने आए थे. हरमन गोइरिंग और जोसेफ गोएब्लस भी मैच देखने आए हुए थे. मैच के हाफ टाइम तक भारत ने मैच में बढ़त बना रखी थी. ध्यानचंद ने इस मैच में 7 गोल किए जिसमें लगातार उन्होंने 3 गोल भी किए थे. जर्मनी की टीम पूरे मैच में सिर्फ एक ही गोल कर पाई थी. हार के साथ ही हिटलर स्टेडियम छोड़कर चले गए. लेकिन कुछ समय के बाद हिटलर जीतने वाली टीम को मेडल देने आए. अगले दिन हिटलर ने ध्यानचंद को जर्मन आर्मी में शामिल होने का न्योता दिया लेकिन हॉकी के जादूगर ने यह न्योता ठुकरा दिया.

विनम्र व्यक्ति थे ध्यानचंद

ध्यानचंद के खेल को देखते हुए महान क्रिकेट खिलाड़ी ब्रैडमैन ने कहा था, ‘जिस तरह से मैं रन बनाता हूं उसी तरह वो गोल करते हैं.’

1947 में पूर्वी अफ्रीका में होने वाले हॉकी टूर्नामेंट ध्यानचंद का आखिरी टूर्नामेंट था. 43 वर्षीय ध्यानचंद ने इस टूर्नामेंट को 22 मैचों में 61 गोल किए थे. उसके अगले साल ही ध्यानचंद ने हॉकी से सन्यास ले लिया. सन्यास लेने के बाद ध्यानचंद ने हॉकी की कोचिंग देनी शुरू कर दी. उनके खेल का ही दबदबा था कि उनके सम्मान में यूके और नीदरलैंड ने मूर्ति स्थापित की गई.

हॉकी के एक और महान खिलाड़ी जफर इकबाल ने दिप्रिंट को बताया, ध्यानचंद कमाल के व्यक्ति थे. वो काफी सहज थे. मैं उनसे दो बार मिला था. 1978 में इंडियन एयरलाइंस कॉलोनी में वो अपने बेटे के साथ रहते थे. ध्यानचंद जमीन से जुड़े व्यक्ति थे. उन्होंने बताया, ‘मैं उनके साथ एक बार झांसी गया था. हम लोगों ने ट्रेन के तीसरे दर्जे में सफर किए थे जिसमें आधे से ज्यादा सफर हमने खड़े होकर किया. 3 दिसंबर 1979 को दिल्ली में ध्यानचंद का निधन हो गया.

इकबाल कहते हैं, ‘देश ने उनकी मृत्यु के बाद भी उन्हें वो सम्मान नहीं दिया जो उन्हें मिलना चाहिए. उन्होंने बताया ध्यानचंद की मृत्यु के बाद दिल्ली के शिवाजी स्टेडियम में एक मैच रखा गया जिसमें केवल 11,638 रुपए ही जमा हो पाए जो उनके परुवार को दे दिए गए थे.’

ध्यानचंद के बेटे अशोक खुद ओलंपियन हैं. वो महसूस करते हैं कि देश की किसी भी राजनीतिक पार्टी ने उनके पिता के योगदान का सम्मान नहीं किया.

1956 में ध्यानचंद सेना से रिटायर हो गए थे. उसी साल ध्यानचंद को देश का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान पद्मभूषण मिला था.

2013 में भारत रत्न से जुड़े नियमों को बदल दिया गया. जिसमें खेल को भी जोड़ा गया. कई लोगों ने ध्यानचंद को मरणोपरांत भारत रत्न देने की अपील की है. लेकिन अभी तक उन्हें यह सम्मान नहीं मिला है. सचिन तेंदुलकर अकेले ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्हें भारत रत्न मिला है. सचिन को भारत रत्न मिलने के बाद काफी विवाद भी हुआ था. यह कहा गया कि क्रिकेट के अलावा किसी दूसरे खेल को भारत में बढ़ावा नहीं दिया जाता है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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