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Thursday, 7 November, 2024
होमदेशअमित शाह, अजीत डोभाल ने साफ़ संकेतों के बावजूद अनुच्छेद 370 पर सबको कैसे चौंकाया

अमित शाह, अजीत डोभाल ने साफ़ संकेतों के बावजूद अनुच्छेद 370 पर सबको कैसे चौंकाया

जम्मू कश्मीर में अधिकारियों का कहना है कि आपातकालीन योजनाओं का खाका तैयार करने के लिए बैठकें की गई थीं, पर इसकी वजह को लेकर कोई स्पष्टता नही थी.

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श्रीनगर: एनडीए सरकार ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से पहले पाकिस्तान की संभावित खुराफातों से निपटने के लिए तैयारियां कर रखी थी. इनमें सेना, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) और केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) को किसी ‘कठिन निर्णय’ की संभावना के बारे में दो सप्ताह पहले ही अलर्ट करने का कदम शामिल था.

जम्मू कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के सलाहकार के. विजय कुमार ने एकीकृत कमान की बैठक से निकलते हुए अपने प्रतिनिधियों से पूछा था, ‘(सीमा पर) कैसे हालात हैं? यदि कोई बड़ी घटना होती है, तो क्या हम तैयार हैं?’ यह जुलाई के तीसरे हफ्ते की बात है.

कुमार का कहना था, ‘हमें कश्मीर पर किसी सख्त फैसले के लिए तैयार रहना चाहिए.’ विचार-विमर्श की उक्त प्रक्रिया से जुड़े एक सुरक्षा अधिकारी ने अपना नाम नहीं बताने की शर्त पर दिप्रिंट को ये जानकारी दी.

गृहमंत्री अमित शाह ने घाटी की 26-27 जून की अपनी यात्रा के दौरान भी इस बारे में काफी संकेत छोड़े थे. अर्द्धसैनिक बलों के शीर्ष अधिकारियों के साथ अपनी बैठक में शाह ने उन्हें ‘सतर्क’ रहने को कहा था और बताया था कि राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में सरकार कोई ‘कठिन निर्णय’ लेने से भी नहीं हिचकेगी.

अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बारे में राज्यसभा में 5 अगस्त की शाह की घोषणा से ठीक पहले के घटनाक्रम को सिलसिलेवार रूप देने के लिए दिप्रिंट ने सुरक्षा व्यवस्था से जुड़े पांच अधिकारियों और जम्मू कश्मीर के दो नौकरशाहों से बात की. हालांकि इनमें से किसी भी अधिकारी को असल योजना का आभास नहीं था.

‘कुछ बड़ा’ होने जा रहा था

जुलाई के तीसरे सप्ताह में, जब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल ने घाटी का दौरा किया, तो उन्होंने वहां ज़मीनी हालात के बारे में व्यापक विचार-विमर्श किया था, पर उन्होंने कोई संकेत नहीं छोड़ा था. एनएसए ने अमरनाथ गुफा की भी यात्रा की थी, जिससे सुरक्षा बलों को लगा कि वह उस समय जारी अमरनाथ यात्रा के सुरक्षा प्रबंधों का जायज़ा ले रहे हैं.

हालांकि शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों को ऐसा आभास हो रहा था कि यात्रा की समाप्ति के बाद कुछ होगा, शायद स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त के बाद. लेकिन जुलाई के अंतिम सप्ताह में बीएसएफ की ‘अच्छी खासी तैनाती’ और फिर सीआरपीएफ के अतिरिक्त बलों की तैनाती के बाद उन्हें लगने लगा कि ‘कुछ बड़ा’ होने जा रहा था.

अर्द्धसैनिक बलों से संबद्ध एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्वीकार करते हुए कहा, ‘हालांकि हमें लगा अनुच्छेद 35ए पर कुछ हो सकता है. अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने का कोई आभास नहीं हुआ.’

जम्मू कश्मीर पुलिस, प्रशासन को भी हवा नहीं लगी

जम्मू कश्मीर पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों को कोई ख़बर नहीं थी. क्योंकि उन्हें दिल्ली से यही संकेत मिल रहा था कि अतिरिक्त सुरक्षा बल शायद चुनाव की तैयारियों के लिए या फिर किसी संभावित आतंकी हमले की खुफिया सूचना मिलने के कारण भेजे जा रहे हैं.

जम्मू कश्मीर प्रशासन के अधिकारियों का कहना है कि आपातकालीन योजनाओं का खाका तैयार करने के लिए बैठकें की गई थीं, पर इस कवायद की वजह को लेकर कोई स्पष्टता नही थी.

नाम नहीं बताने की शर्त पर राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘आधिकारिक तौर पर हमें यही बताया गया था कि ये सब बाढ़ को लेकर की जा रही तैयारियों के सिलसिले में हो रहा है लेकिन एजेंडा कुछ और होने की बात हम महसूस कर पा रहे थे.’

उल्लेखनीय है कि तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य को 2014 में भीषण बाढ़ का सामना करना पड़ा था. हर साल गर्मियों में, जम्मू कश्मीर प्रशासन प्राकृतिक आपदाओं की तैयारियों का जायज़ा लेने के लिए अधिकारियों की बैठकें आयोजित करता है. जुलाई के आखिरी और अगस्त के पहले सप्ताह में होने वाली इन बैठकों में आमतौर पर हवाई बचाव अभियान, राशन और गैस के भंडारण तथा जम्मू और श्रीनगर के बीच वैकल्पिक मार्ग जैसे मुद्दों पर विचार-विमर्श हुआ करता था.

इन आपातकालीन उपायों की वजह के रूप में विपरीत मौसमी परिस्थितियों का ज़िक्र किया गया था. अधिकारीगण मज़ाक में कहते हैं कि अनुच्छेद 370 हटाने से उत्पन्न परिस्थितियों से निपटने में केंद्र के आपातकालीन उपायों की ‘सफलता’ को 2016 में नोटबंदी के बाद ऐसे उपाय लागू करने में सरकार की विफलता से जोड़ कर देखा जाना चाहिए.

स्पष्ट है कि शाह-डोभाल-कुमार की तिकड़ी अनुच्छेद 370 निरस्त करने के फैसले से सबको चौंकाने में सफल रही, हालांकि इस बारे में पर्याप्त संकेत मौजूद थे.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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