लालकिले की प्राचीर से 15 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से कहा है कि 2022 तक उन्हें देश के कम से कम 15 गंतव्य स्थलों की सैर जरूर करनी चाहिए. इससे घरेलू पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा. विदेशी सैलानी भी भारत के सफर को प्रोत्साहित होंगे. यह एक ऐसी इंडस्ट्री है जो अक्सर शुद्ध मुनाफा कमा कर देती है और इसमें रोजगार का सृजन भी खूब होता है. दुनिया के बहुत से देशों की अर्थव्यवस्था टूरिज्म के भरोसे चल रही है. मोदी जी ने यही सब देखकर और सोचकर कहा है कि टूरिज्म को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.
पर्यटन उद्योग दुनिया भर में फल-फूल रहा है. 2018 के आंकड़े कहते हैं कि पर्यटन उद्योग से प्रत्यक्ष तौर पर 8.8 खरब डॉलर की कमाई हुई जो कि विश्व अर्थव्यवस्था का 2 प्रतिशत से अधिक है. वर्ल्ड ट्रैवल एंड टूरिज्म काउंसिल का कहना है कि दुनिया की 10 प्रतिशत यानी 31 करोड़ नौकरियां टूरिज्म सेक्टर में हैं. भारत में भी इस सेक्टर की दशा अच्छी है. 2028 तक देश में इस क्षेत्र के 6.9 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ने की उम्मीद है.
तकनीकी तरक्की ने घुमक्कड़ी को बनाया है आसान
पर्यटन के जोर पकड़ने के कई कारण हैं. एक कारण तकनीकी तरक्की है. टेक्नोलॉजी ने लोगों के लिए घुमक्कड़ी को आसान बनाया है. लोग ऑनलाइन बुकिंग कर लेते हैं. इंटरनेट के जरिए गंतव्य स्थलों के बारे में जान लेते हैं. गूगल मैप से अनजान जगहों पर ट्रैवलिंग आसान हुई है. टैक्सियां भी ऑनलाइन बुक हो जाती हैं. तरह-तरह के ट्रांसलेशन ऐप्स से परदेस में लोगों से संवाद किया जा सकता है. व्यक्तिगत तौर से भी घूमना-फिरना मुश्किल नहीं रहा. लोग लंबा और स्वस्थ जीवन जीते हैं. आय स्तर बढ़ने के साथ-साथ परिवार छोटे होते जा रहे हैं. ऐसे में घुमक्कड़ी पर निकलने के लिए ज्यादा सोचना नहीं पड़ता.
बढ़ता पर्यटन और पर्यावरण का संकट
यही खतरे की घंटी भी है. चूंकि पर्यटन के बढ़ने के अपने जोखिम हैं. प्रकृति लगातार इस बात की तरफ इशारा कर रही है. जून 2013 में उत्तराखंड की बाढ़ और भूस्खलन प्रकृति के प्रकोप का संकेत था. बस्तियां, पुल और सड़कें उफनती नदियों और टूटते पहाड़ों के वेग में बह गई थीं.
हालांकि वहां की त्रासद घटनाएं प्राकृतिक थीं लेकिन जान-माल का नुकसान मानव निर्मित था. वहां पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए फ्लडवे पर सड़कों का जाल बिछाया गया. होटलों का निर्माण किया गया. अगर नदी के स्वाभाविक, प्राकृतिक पथ पर निर्माण किया जाएगा तो बाढ़ इस अतिक्रमण को हटाने का काम करेगी ही. उत्तराखंड में यही हुआ. विशेषज्ञ यूं भी साफ कहते हैं कि बढ़ते पर्यटन और भूस्खलन के बीच सीधा संबंध होता है.
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जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा है, पर्यटन को बढ़ावा देने से इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार होगा. लेकिन पिछले कई सालों के उदाहरणों से साबित हुआ है कि पर्यटन ने इंफ्रास्ट्रक्चर पर अतिरिक्त दबाव बनाया है. पिछले कुछ वर्षों में शहरीकरण और आय के बढ़ने से भारत में मोटर वाहनों की संख्या लगातार बढ़ी है. 2005 और 2013 के बीच भारत में पंजीकृत मोटर वाहनों की संख्या में 123% की वृद्धि हुई.
इसी अवधि के दौरान सड़क नेटवर्क में 44 प्रतिशत की ही बढ़ोतरी हुई. तो, मोटर कारें आपके पास हैं, सड़कें बन रही हैं इसलिए गाड़ियां लेकर निकल पड़ना लोगों की आदत में शुमार हो गया है. इससे सड़कों पर ट्रैफिक का बोझ बढ़ा है. साधनों की तुलना में आधारभूत संरचना सुनियोजित तरीके से तैयार नहीं की गई है. मैदानी इलाकों में सड़कें बनाने के लिए घने जंगलों को काटा जा रहा है. इससे पारिस्थितिकी का संतुलन भी बिगड़ रहा है.
अब एवरेस्ट पर भी भीड़-भाड़
यूं यह दुनिया भर का हाल है. विश्व के अनेक देश पर्यटन उद्योग की प्रगति का नकारात्मक असर देख रहे हैं. पिछले दिनों खबर आई थी कि दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट पर इस सीजन में इतने लोग चढ़ गए कि वहां जाम ही लग गया. उस जाम के कारण दुर्घटना हुई और 11 लोग मारे गए. यह काफी दिलचस्प है कि एवरेस्ट की बमुश्किल टेबल टेनिस की दो टेबल बराबर की जगह पर 15 से 20 पर्वतारोहियों को खड़ा होना पड़ रहा है.
हाल ही में नेपाल सरकार ने वहां से 11 टन कचरा हटाया है. कुछ ऐसी ही भीड़-भाड़ जापान के माउंट फूजी, वेनिस की ग्रांड कैनाल और न्यूयार्क के टाइम्स स्क्वेयर में भी है. इसीलिए कई देशों में टूरिज्म पर अधिक से अधिक टैक्स लगाने की बात की जा रही है. न्यूजीलैंड ने टूरिज्म टैक्स की पेशकश की है. वेनिस शहर में दिन भर की ट्रिप के लिए अतिरिक्त शुल्क चुकाना पड़ सकता है. जापान और एम्सटर्डम टूरिज्म के प्रमोशन कैंपेन को कम कर रहे हैं. कई यूरोपीय देश होटल और ओवरनाइट एकॉमोडेशन पर टैक्स लगाने के बारे में सोच रहे हैं.
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जाहिर सी बात है, पर्यटन एक फायदेमंद व्यवसाय है. लेकिन इस व्यवसाय से ज्यादा से ज्यादा माल कमाने के फेर में प्रकृति का ज्यादा दोहन किया जा रहा है. इससे कुदरत और मानव के बीच का संतुलन डांवाडोल हो रहा है. इसीलिए राष्ट्रवादी हड़बड़ी में किसी भी आह्वान से पहले यह सोचा जाना चाहिए कि समय के हिसाब से सही क्या है. भरे पेट के लिए कुछ और सपने या बुनियादी संरचनाओ में सुधार. जब जिंदगी में तसल्ली होगी, घुमक्कड़ी में भी मजा आएगा. और इस मजे के लिए सदैव कुदरत के सीने पर सवार होने की जरूरत नहीं.
पर्यटन अच्छा है. शर्त सिर्फ इतनी है कि उसे पर्यावरण अनुकूल होना चाहिए.
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं .यह लेखक का निजी विचार है.)