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Tuesday, 4 March, 2025
होमदेशCRPF ने अपने वरिष्ठ अधिकारी पर 10 करोड़ रुपये के हवाला और भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर संज्ञान लिया

CRPF ने अपने वरिष्ठ अधिकारी पर 10 करोड़ रुपये के हवाला और भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर संज्ञान लिया

सीआरपीएफ के महानिदेशक जीपी सिंह ने पुष्टि की है कि तेलंगाना कैडर के 1996 बैच के आईपीएस अधिकारी के खिलाफ शिकायत को ‘सीवीसी दिशानिर्देशों के तहत प्रक्रियाओं के अनुसार निपटाया जा रहा है.’

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नई दिल्ली: केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) ने अपने एक वरिष्ठ भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी पर 10 करोड़ रुपये हवाला चैनलों के जरिए शेल कंपनी का उपयोग करके शिफ्ट करने के आरोपों का संज्ञान लिया है.

सीआरपीएफ के महानिदेशक जीपी सिंह ने दिप्रिंट को पुष्टि की कि शिकायत को “सीवीसी (केंद्रीय सतर्कता आयोग) के दिशानिर्देशों के तहत स्थापित प्रक्रियाओं के अनुसार संभाला जा रहा है.”

यह अधिकारी, जो 1996 बैच के तेलंगाना कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं, वर्तमान में इंस्पेक्टर जनरल (आईजी) रैंक पर कार्यरत हैं. इससे पहले, उन्होंने बल के लिए ‘अत्यंत महत्वपूर्ण जम्मू-कश्मीर क्षेत्र’ में सेवाएं दी हैं.

शिकायत, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है, एक चार्टर्ड अकाउंटेंट द्वारा दायर की गई है, जिसने दावा किया है कि उसने पहले अधिकारी के आयकर रिटर्न को प्रबंधित किया था.

सीआरपीएफ प्रमुख ने दिप्रिंट से कहा, “एक शिकायत मिली है. इसे प्रक्रियाओं, विशेष रूप से सीवीसी दिशानिर्देशों के अनुसार संभाला जा रहा है. आगे की जानकारी समय-समय पर एकत्र की जा सकती है.”

आयोग को यह अधिकार है कि वह किसी भी लोक सेवक के खिलाफ शिकायत मिलने पर स्वयं जांच शुरू कर सकता है, या संबंधित संगठन के मुख्य सतर्कता अधिकारी, सीबीआई, या भारत सरकार की किसी अन्य भ्रष्टाचार-रोधी जांच एजेंसी के माध्यम से जांच करवा सकता है. हालांकि, सीवीसी दिशानिर्देशों के अनुसार, गुमनाम/छद्म नाम से की गई शिकायतों पर कार्रवाई नहीं की जाती.

शिकायत में अधिकारी पर यह आरोप लगाया गया है कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर में अपने कार्यकाल के दौरान एक केंद्रीकृत खरीद प्रक्रिया के माध्यम से कुछ आपूर्तिकर्ताओं को प्राथमिकता देकर उनसे कमीशन लिया. शिकायतकर्ता ने यह भी आरोप लगाया है कि अधिकारी ने सिंगापुर स्थित एक फर्म के माध्यम से 10 करोड़ रुपये की हवाला लेनदेन की, जो कि एक शेल कंपनी में निवेश किया गया था. यह शेल कंपनी अप्रत्यक्ष रूप से अधिकारी द्वारा उनके रिश्तेदारों के माध्यम से नियंत्रित की जाती थी.

शिकायतकर्ता ने डिवाइस अर्थ नाम की कंपनी के जांचे गए सालाना वित्तीय रिकॉर्ड के स्नैपशॉट लगाए हैं, ताकि यह साबित किया जा सके कि 10 करोड़ रुपये को संस्थागत फंडिंग के रूप में छिपाकर निवेश किया गया था, जिसका एक बड़ा हिस्सा बाद में अधिकारी और उनके रिश्तेदारों द्वारा व्यक्तिगत उपयोग के लिए निकाल लिया गया.

दिप्रिंट ने संबंधित अधिकारी से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने सवालों का जवाब देने से इनकार कर दिया और इसके बजाय शिकायत और जांच के आदेश की प्रति मांगी.

हवाला और म्युचुअल फंड से फर्जी कंपनियों को वित्त पोषण

इस 14-पन्नों की शिकायत में, जिसकी समीक्षा दिप्रिंट ने की है, अधिकारी पर मुख्य रूप से श्रीनगर सेक्टर मुख्यालय के तहत सभी इकाइयों के लिए एक केंद्रीकृत राशन खरीद प्रणाली लागू करने का आरोप लगाया गया है. शिकायतकर्ता का दावा है कि इस प्रक्रिया में चुनिंदा आपूर्तिकर्ताओं को नकद कमीशन के बदले फायदा पहुंचाया गया.

इसके अलावा, शिकायत में आरोप लगाया गया है कि अधिकारी ने सबसे पहले बेंगलुरु स्थित कंपनी डिवाइस अर्थ को 9 लाख रुपये का बिना ब्याज का ऋण दिया. यह कंपनी अधिकारी की बहनों और बहनोई द्वारा नियंत्रित बताई गई है.

शिकायतकर्ता के अनुसार, एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी केवल अपने निदेशकों और उनके रिश्तेदारों से ही कर्ज या जमा राशि स्वीकार कर सकती है, किसी अन्य व्यक्ति से नहीं. उसने आरोप लगाया कि डिवाइस अर्थ असल में एक शेल कंपनी है, जिसका कोई वास्तविक व्यावसायिक संचालन नहीं है.

कंपनी के वित्तीय दस्तावेजों के मुताबिक, इसका पंजीकरण 9 मार्च 2018 को हुआ था, और इसके तीनों निदेशक अधिकारी के रिश्तेदार हैं. शिकायतकर्ता ने दावा किया कि अधिकारी इस शेल कंपनी को अपने करीबी परिजनों के माध्यम से नियंत्रित कर रहे हैं. आरोपों के अनुसार, अधिकारी ने दिसंबर 2018 में इस कंपनी की स्थापना की, तीन रिश्तेदारों को निदेशक बनाया और 99,96,300 रुपये की पूंजी इसमें निवेश की.

इसके अलावा, कंपनी को सिंगापुर स्थित फर्म ब्लू अश्वा कैपिटल से पहली संस्थागत फंडिंग मिली. शिकायतकर्ता का आरोप है कि यह भी एक शेल कंपनी है, जिसका उपयोग अवैध धन को पुनः भारतीय कंपनियों में निवेश के रूप में लाने के लिए किया गया.

शिकायत के मुताबिक, दिसंबर 2020 में अधिकारी ने हवाला के जरिए यह पैसा ब्लू अश्वा कैपिटल को भेजा. बाद में, यह रकम ब्लू अश्वा संपदा फंड नाम की एक दूसरी कंपनी के जरिए बहुत ज्यादा कीमत पर वापस भेजी गई.

इसके बाद, डिवाइस अर्थ ने ब्लू अश्वा कैपिटल से फंड मिलने के बाद परेश नानूभाई त्रिवेदी को नामित निदेशक बना दिया. शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया है कि त्रिवेदी पहले भी कई अन्य फर्जी कंपनियों के निदेशक रह चुके हैं.

शिकायतकर्ता ने कंपनी के वित्तीय दस्तावेजों के स्नैपशॉट लगाते हुए दावा किया कि फंडिंग मिलने से पहले दो साल तक कंपनी घाटे में चल रही थी. लेकिन जनवरी 2021 में फंड प्राप्त होते ही मार्च 2021 तक कंपनी का अधिशेष करीब 8 करोड़ रुपये हो गया.

ब्लू अश्वा कैपिटल ने 21,819 वरीयता शेयरों को 4,462.30 रुपये प्रति शेयर की दर से और 100 इक्विटी शेयरों को उसी कीमत पर खरीदा, जिससे कंपनी को लगभग 10 करोड़ रुपये की फंडिंग मिली.

शिकायत के अनुसार, डिवाइस अर्थ ने सिंगापुर की फर्म से मिले लगभग 9.78 करोड़ रुपये में से 8.50 करोड़ रुपये म्यूचुअल फंड में लगा दिए, बजाय इसके कि इसे विस्तार, विकास और उत्पाद निर्माण पर खर्च किया जाता, जैसा कि फंडिंग का उद्देश्य बताया गया था.

इसके बाद कंपनी ने म्यूचुअल फंड का एक बड़ा हिस्सा बेचकर लगभग 17.86 लाख रुपये का मुनाफा कमाया. लेकिन शिकायत के अनुसार, इस राशि को कंपनी के ऑडिट किए गए वित्तीय विवरणों में नहीं जोड़ा गया, बल्कि अधिकारी और उनके परिवार के सदस्यों ने इसे व्यक्तिगत उद्देश्यों के लिए उपयोग किया.

शिकायत में कहा गया है, “जैसा कि उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है, पूरी 10 करोड़ रुपये की फंडिंग को कंपनी के निदेशकों और उनके परिजनों ने इस्तेमाल किया, जो कि एक पारिवारिक कंपनी है.”

शिकायत में आगे कहा गया कि डिवाइस अर्थ प्राइवेट लिमिटेड हर साल परिचालन हानि दर्ज कर रही थी. नाममात्र के निदेशक परेश नानूभाई त्रिवेदी को केवल फर्जी निदेशक दिखाया गया ताकि नियामक जांच से बचा जा सके. उन्होंने कंपनी के किसी भी कागजात पर साइन नहीं किए और उन्हें अब तक कोई वेतन भी नहीं दिया गया, जो कि कंपनी के वित्तीय विवरणों से भी स्पष्ट होता है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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