नई दिल्ली: नवगठित दिल्ली सरकार पूर्ववर्ती आम आदमी पार्टी (आप) सरकार द्वारा उपराज्यपाल (एलजी) और केंद्र सरकार के खिलाफ दायर याचिकाओं की समीक्षा करने की योजना बना रही है, दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.
पूर्व आप सरकार ने केंद्र और उपराज्यपाल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कम से कम आधा दर्जन मुकदमे दायर किए थे.
इनमें वह याचिका भी शामिल है, जिसमें उस कानून को चुनौती दी गई थी, जिसने दिल्ली की नौकरशाही पर प्रभावी रूप से उपराज्यपाल को नियंत्रण दे दिया. इसके अलावा, दो अलग-अलग राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के आदेशों को चुनौती देने वाली याचिकाएं भी शामिल हैं, जिनमें यमुना प्रदूषण से निपटने और ठोस कचरे के निपटान की निगरानी के लिए उपराज्यपाल को समितियों का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. इसी तरह, दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग (DERC) के अध्यक्ष की नियुक्ति से संबंधित एक याचिका भी लंबित है.
हालांकि, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के 27 साल बाद दिल्ली की सत्ता में लौटने के बाद, इन कानूनी विवादों के समाप्त होने की संभावना है.
“(आप) ने कुछ चीजें केवल राजनीति के लिए की थीं, इसलिए उनकी निश्चित रूप से मामले-दर-मामले समीक्षा होगी और ये मुकदमे अपनी स्वाभाविक परिणति तक पहुंचेंगे,” नवगठित सरकार के एक उच्च पदस्थ सूत्र ने दिप्रिंट को बताया.
दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच कानूनी टकराव आप के राष्ट्रीय राजधानी में पहले कार्यकाल के दौरान ही शुरू हो गया था.
संविधान के तहत केंद्र शासित प्रदेश के रूप में दिल्ली की विशेष स्थिति को देखते हुए उपराज्यपाल की प्रशासनिक शक्तियों पर सवाल 2015 में दिल्ली हाई कोर्ट पहुंचे थे. इनमें दिल्ली सरकार और केंद्र द्वारा दायर याचिकाएं शामिल थीं. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और तब से कई अन्य विवाद भी इसी तरह अदालती प्रक्रिया से गुजरे हैं.
दिल्ली नौकरशाही
इन लंबित कानूनी चुनौतियों में सबसे महत्वपूर्ण दिल्ली सरकार की वह याचिका है, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2023 को चुनौती दी गई है. इस कानून के तहत राष्ट्रीय राजधानी में नौकरशाहों के तबादले और नियुक्ति को संभालने के लिए एक नई वैधानिक प्राधिकरण (स्टेटूटरी अथॉरिटी) बनाई गई थी.
इस कानून को लागू करने से मई 2023 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसले को पलट दिया गया. सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने अरविंद केजरीवाल सरकार को विभिन्न सेवाओं के अधिकारियों पर कार्यकारी और विधायी अधिकार सौंपने का निर्णय दिया था, जिनमें वे अधिकारी भी शामिल थे जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली में तैनात किया गया था. इसके तहत अधिकारियों के तबादले-नियुक्ति, सेवा नियमों को तय करने, शासन से जुड़ी नीतियों को लागू करने और विधानसभा में कानून पारित करने का अधिकार दिल्ली सरकार को दिया गया था.
हालांकि, इस फैसले के कुछ ही दिनों बाद केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया और फिर अगस्त 2023 में इस अध्यादेश को स्थायी रूप देने के लिए एक कानून पारित कर दिया.
इस नए कानून के तहत गठित प्राधिकरण का नेतृत्व दिल्ली के निर्वाचित मुख्यमंत्री करेंगे, जिनके साथ मुख्य सचिव और गृह विभाग के प्रधान सचिव भी इस निकाय में शामिल होंगे. यह प्राधिकरण अधिकारियों के तबादले और नियुक्तियों से संबंधित सिफारिशें करेगा तथा अनुशासनात्मक मामलों को उपराज्यपाल के पास भेजेगा.
आप ने इस अध्यादेश को तुरंत सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, और जून 2023 में इस पर याचिका दायर की. जुलाई 2023 में, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को संविधान पीठ को भेज दिया.
दिल्ली सरकार ने जुलाई 2023 में सुप्रीम कोर्ट से अपनी याचिका पर जल्द सुनवाई की मांग की, यह तर्क देते हुए कि यह कानून राज्य प्रशासन को जमीनी स्तर पर बाधित कर रहा है. हालांकि, यह याचिका अब भी लंबित है.
डीईआरसी चेयरपर्सन, वकीलों पर कानूनी लड़ाई!
2023 के अध्यादेश से उपजा एक और विवाद दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग (DERC) के अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर आप सरकार और उपराज्यपाल के बीच टकराव था. यह पद विशेष रूप से विवादास्पद बन गया क्योंकि आप ने आरोप लगाया कि इस पर नियंत्रण रखकर बीजेपी दिल्ली की बिजली सब्सिडी योजना—जो आप की प्रमुख योजनाओं में से एक है—को खत्म करना चाहती है.
जनवरी 2023 में शबिहुल हसनैन के रिटायर्ड होने के बाद यह पद खाली हो गया. दिल्ली सरकार ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश, जस्टिस राजीव कुमार श्रीवास्तव का नाम प्रस्तावित किया, लेकिन एलजी वीके सक्सेना ने फाइल लौटा दी.
कुछ महीनों के भीतर, आप सरकार ने इस नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. इस बीच, केंद्र सरकार ने 2023 का अध्यादेश भी लागू कर दिया, जिसमें अन्य प्रावधानों के साथ स्वायत्त आयोगों और बोर्डों के प्रमुखों की नियुक्ति का अधिकार राष्ट्रपति को दिया गया—जो आमतौर पर उपराज्यपाल को सौंपा जाता था.
आप सरकार और एलजी के बीच महीनों तक गतिरोध बना रहा. आखिरकार, सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2023 में दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस जयंती नाथ को DERC के कार्यवाहक अध्यक्ष (pro tem chairperson) के रूप में नामित किया.
हालांकि, अक्टूबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह याचिका तब तक लंबित रहेगी, जब तक दिल्ली सरकार की सेवाओं पर नियंत्रण से जुड़े 2023 के कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला नहीं आ जाता. इसलिए, यह याचिका अब भी लंबित है. अक्टूबर 2023 में ही, सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि जस्टिस नाथ अध्यक्ष के रूप में काम करना जारी रखें, भले ही वह 65 वर्ष की अधिकतम आयु सीमा पार कर चुके हों.
इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट में एक और लंबित याचिका केंद्र के उस फैसले को चुनौती देती है, जिसमें सरकारी वकीलों की नियुक्ति का अधिकार एलजी को सौंप दिया गया था.
दिल्ली सरकार ने मार्च 2023 में एक और याचिका दायर की, जिसमें एलजी के उस फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें स्कूल टीचर्स को ट्रेनिंग के लिए फिनलैंड भेजने की अनुमति दी गई थी, लेकिन कुछ शर्तों के साथ. इस याचिका पर अप्रैल 2023 में कोर्ट ने नोटिस जारी किया, लेकिन यह याचिका भी अब तक लंबित है.
मई 2022 में, दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने एक याचिका दायर की थी, जिसमें केंद्र सरकार द्वारा 2021 में किए गए किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के संशोधनों को चुनौती दी गई थी.
इस संशोधन के तहत बच्चों के खिलाफ किए गए कुछ विशेष श्रेणी के अपराधों को गैर-संज्ञेय (non-cognizable) बना दिया गया था. यह याचिका उपराज्यपाल से संबंधित नहीं थी, लेकिन यह संसद द्वारा पारित संशोधन के खिलाफ दायर की गई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने तब दिल्ली बाल अधिकार आयोग और केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के बीच बैठक करने का सुझाव दिया, ताकि “इन कार्यवाहियों में उठाई गई शिकायतों” पर चर्चा की जा सके. हालांकि, इसके बाद यह मामला अब तक कोर्ट में नहीं उठा है.
एनजीटी विवाद
पूर्ववर्ती दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के आदेशों को चुनौती देते हुए दो अपीलें भी दायर की थीं.
जनवरी 2023 में, NGT ने यमुना नदी की सफाई की निगरानी के लिए उपराज्यपाल (L-G) की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया.
मई 2023 में, आप सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और इस समिति के अध्यक्ष के रूप में उपराज्यपाल की नियुक्ति को चुनौती दी. जुलाई 2023 में, सुप्रीम कोर्ट ने NGT के आदेश पर रोक लगा दी, लेकिन केवल उस हद तक जहां उसने उपराज्यपाल को समिति का सदस्य और अध्यक्ष नियुक्त किया था.
फरवरी 2023 में पारित एक अन्य आदेश में, NGT ने दिल्ली में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन को संभालने के लिए ठोस अपशिष्ट निगरानी समिति (Solid Waste Monitoring Committee) का प्रमुख उपराज्यपाल को नियुक्त किया. इस समिति में दिल्ली सरकार, नगर निगम, दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रतिनिधि सहित अन्य सभी संबंधित प्राधिकरण शामिल थे.
ये दोनों अपीलें सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं.
डीजेबी फंड
दिल्ली जल बोर्ड (DJB) के फंड भी दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच टकराव का हिस्सा रहे हैं.
AAP सरकार ने पिछले साल की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, कथित तौर पर दिल्ली जल बोर्ड के लिए 3,000 करोड़ रुपये जारी करने की मांग करते हुए. सरकार का आरोप था कि वित्त विभाग इसे अवैध रूप से रोक रहा है, जबकि राज्य विधानसभा ने बजट पारित कर इस राशि को दिल्लीवासियों के लिए जल आपूर्ति बनाए रखने और सुधारने के लिए आवंटित किया था. इस याचिका में उपराज्यपाल (L-G) को भी प्रतिवादी बनाया गया था.
दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने कोर्ट को बताया कि अगर फंड 31 मार्च 2024 से पहले जारी नहीं किया गया, तो वह लैप्स हो जाएगा. इस पर पीठ ने सिंघवी से कहा कि अगर वह 31 मार्च के बाद भी याचिका पर सुनवाई करती है और दिल्ली सरकार के पक्ष में आदेश देती है, तो फंड जारी किया जाएगा.
1 अप्रैल 2024 को पारित एक आदेश में कहा गया कि दिल्ली जल बोर्ड को वित्त वर्ष 2023-24 के लिए कुल 4,578.15 करोड़ रुपए प्राप्त हुए—जिसमें 31 मार्च 2024 को, वित्तीय वर्ष के अंतिम दिन, 760 करोड़ रुपए जारी किए गए. हालांकि, दिल्ली सरकार ने दावा किया कि अभी भी 1,927 करोड़ रुपए लंबित हैं, जबकि उपराज्यपाल के वकील ने अदालत को बताया कि शेष राशि जारी न होने से एलजी का कोई लेना-देना नहीं है.
अगली सुनवाई की तारीख 5 अप्रैल को, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के वित्त विभाग को निर्देश दिया कि वह दिल्ली जल बोर्ड को बकाया राशि की पुष्टि करे और भुगतान निपटाए. हालांकि, यह याचिका अभी भी सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर “लंबित” दिख रही है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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