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Friday, 21 February, 2025
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नैतिकता, लिव-इन और ‘राजस्थान के अशोक खेमका’: IPS अधिकारी के डिमोशन का अनोखा मामला

2019 में चौधरी को इसी आधार पर सेवा से बर्खास्त किया गया था, लेकिन कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया. उन्हें राजस्थान का ‘अशोक खेमका’ माना जाता है.

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नई दिल्ली: राजस्थान सरकार ने भारतीय पुलिस सेवा के एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी को दी गई एक दुर्लभ सज़ा में 2009 बैच के अधिकारी पंकज चौधरी को पर्सनल मिसकंडक्ट के आधार पर तीन साल के लिए डिमोट कर दिया है क्योंकि उन्होंने अपनी पहली शादी खत्म नहीं होने के बावजूद दूसरी शादी की थी.

2019 में चौधरी को इसी आधार पर सेवा से बर्खास्त किया गया था, जिसके बाद वे दो साल की अवधि के लिए पुलिस सेवा से बाहर रहे.

इस दौरान, चौधरी ने उन्हें बर्खास्त करने के राजस्थान सरकार के फैसले को अलग-अलग कोर्ट में चुनौती दी और केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट), दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से अनुकूल आदेश प्राप्त किए.

फिर भी, पिछले साल दिसंबर में राजस्थान सरकार के कार्मिक विभाग ने चौधरी के बारे में “पारिवारिक विवादों की जांच” के बाद उन्हें डिमोट करने की सिफारिश की. इस सिफारिश को इस साल फरवरी में अधिसूचित किया गया था. इसके अनुसार, चौधरी का वेतनमान लेवल 11 से घटाकर 10 कर दिया जाएगा — जो आईपीएस अधिकारियों के लिए एंट्री लेवल का वेतनमान है.

चौधरी का विवादों से पुराना नाता रहा है. राजस्थान में कुछ सिविल सेवक उन्हें राज्य के अपने ‘अशोक खेमका’ (हरियाणा कैडर के आईएएस अधिकारी, जिनका विभिन्न सरकारों के साथ टकराव के कारण 50 से अधिक बार तबादला किया गया है) के रूप में संदर्भित करते हैं. उनका कहना है कि वे राज्य सरकार के न्यायालय की अवमानना ​​के आदेश को चुनौती देंगे.

जयपुर में पुलिस मुख्यालय में वर्तमान में पुलिस अधीक्षक, सामुदायिक पुलिसिंग के रूप में तैनात चौधरी ने दिप्रिंट से कहा, “वो मुझे इसलिए निशाना बना रहे हैं क्योंकि मैं शक्तिशाली लोगों को, चाहे वे वरिष्ठ हों या राजनेता, मना कर देता हूं. यह पहली बार नहीं है जब मुझे निशाना बनाया जा रहा है, लेकिन यह पहली बार है कि वह खुलेआम कोर्ट की अवमानना ​​कर रहे हैं.”

दिप्रिंट यहां आपको चौधरी के खिलाफ मामला, क्या अलग-अलग विवाहित जीवन में लिव-इन रिलेशनशिप अखिल भारतीय सेवाओं (एआईएस) के अधिकारियों के लिए अनैतिकता है और चौधरी को ‘राजस्थान का अशोक खेमका’ क्यों माना जाता है, इस बारे में बता रहा है.

वैवाहिक परेशानियां

जबकि चौधरी का अपने कार्यकाल के दौरान राजस्थान की विभिन्न सरकारों के साथ कई बार टकराव हुआ था, लेकिन 2016 में ही उन्हें अपनी शादी के कारण पहली बार दिक्कत का सामना करना पड़ा.

अप्रैल 2016 में अखिल भारतीय सेवा (अनुशासनात्मक और अपील) नियम, 1969 के तहत उन्हें एक महिला के साथ रहने और उनसे एक बेटा होने के लिए चार्ज मेमो जारी किया गया था, जबकि वे दूसरी महिला से विवाहित थे.

उनके खिलाफ आरोप यह था कि उन्होंने सिविल कोर्ट में तलाक की अर्ज़ी दायर की थी और कोर्ट द्वारा तलाक मंजूर किए जाने से पहले ही उन्होंने दूसरी महिला से शादी कर ली. आरोप था कि यह अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1968 के नियम 3(1) के तहत कदाचार के बराबर है.

एआईएस (आचरण) नियम के नियम 3(1) में कहा गया है, “सेवा का हर सदस्य हर वक्त पूर्ण निष्ठा और कर्तव्य के प्रति समर्पण बनाए रखेगा और ऐसा कुछ भी नहीं करेगा जो सेवा के सदस्य के लिए अनुचित हो.”

उन्हें 2018 में ही तलाक मिल गया था.

मार्च 2019 में, उन्हें इसी आधार पर सेवा से बर्खास्त किया गया था.

हालांकि, जब चौधरी ने कैट में अपनी बर्खास्तगी को चुनौती दी, तो न्यायाधिकरण ने कहा, “एक दशक की बेदाग सेवा के साथ आईपीएस अधिकारी को बर्खास्तगी की सज़ा देना असहनीय है.”

लेकिन न्यायाधिकरण ने यह भी कहा कि सरकार की कार्रवाई के लिए “कुछ कानूनी और तथ्यात्मक आधार” थे, जो “सेवा से बर्खास्तगी के अलावा” सज़ा की गारंटी देते हैं.

इसी आधार पर राज्य सरकार ने अब चौधरी को डिमोट किया है. हालांकि, दिसंबर 2020 के कैट के आदेश में कहा गया है कि यह तीन महीने के भीतर किया जाना चाहिए.

आदेश का पालन करने के बजाय, राज्य सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट में आदेश को चुनौती दी.

IPS अधिकारी के लिए अनैतिकता क्या है?

दिल्ली हाई कोर्ट, जिसने कैट के आदेश को बरकरार रखा, उसने अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों के लिए ईमानदारी और नैतिकता के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तर्क दिए.

19 मार्च 2021 को दिए गए आदेश में, दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि “पिछली आधी सदी में जब अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम बनाए गए थे, तब से नैतिक मानक बदल रहे हैं”.

इसने आगे कहा कि नियमों को “कानून की तरह ही एक जीवंत माना जाना चाहिए, जिसका उद्देश्य और अर्थ सामाजिक व्यवहार में बदलाव के साथ बदलता है”.

कोर्ट ने कहा, इसके अलावा, 1968 में जो अनैतिक माना जाता था, ज़रूरी नहीं कि उसे अब अनैतिक माना जाए.

कोर्ट ने आगे कहा, “नैतिकता की अवधारणा, परिभाषा और मानक भी बदल रहे हैं…हालांकि, लगभग 20 साल पहले तक विवाहित रहते हुए किसी दूसरी महिला के साथ रहना पूरी तरह से वर्जित था, लेकिन आज के समय में इसे अलग तरह से देखा जाता है.”

अंत में, अदालत ने यह भी माना कि तलाक होने में “असामान्य रूप से लंबा समय” लगता है और इस मामले में, चौधरी के सामने “या तो अपने जीवन के सबसे अच्छे समय में जीवनसाथी और बच्चे का साथ खोने और/या किसी वयस्क के साथ संबंध और बच्चे रखने का विकल्प था, जो मामले की पूरी जानकारी रखता हो और इसके लिए तैयार हो”.

दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली राज्य सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) को मई 2021 में शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया था.

चौधरी ने दिप्रिंट से कहा, “उन्होंने सभी विकल्प समाप्त कर दिए हैं और अब मुझे डिमोट कर दिया है, भले ही अदालत ने स्पष्ट रूप से मेरे पक्ष में फैसला सुनाया हो.”

विवादों से पुराना नाता

चौधरी का करियर सरकार के साथ टकराव से भरा रहा है, चाहे सत्ता में कोई भी रहा हो.

2013 में जब कांग्रेस सत्ता में थी, चौधरी को कथित तौर पर गाजी फकीर के आपराधिक रिकॉर्ड खोलने के लिए जैसलमेर एसपी के पद से हटा दिया गया था.

कांग्रेस नेता शालेह मोहम्मद के पिता फकीर पर सीमा पार तस्करी रैकेट चलाने और पाकिस्तान की आईएसआई के एजेंट के रूप में काम करने के अलावा अन्य आरोप थे.

उस वक्त, उनके तबादले के विरोध में जैसलमेर के कई हिस्सों में बंद रखा गया था, जिसमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भी शामिल थी, जिसने कांग्रेस सरकार पर अधिकारी को परेशान करने का आरोप लगाया था.

हालांकि, एक साल बाद, भाजपा के सत्ता में आने के बाद उन्हें इसी तरह की कार्रवाई का सामना करना पड़ा. 2014 में, नैनवा में दंगा करने के आरोपी विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के 11 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने के बाद भाजपा सरकार ने कथित तौर पर उन्हें बूंदी जिले के एसपी के पद से हटा दिया था.

वसुंधरा राजे सरकार ने दबाव के बावजूद कथित तौर पर दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं को रिहा करने से इनकार करने के लिए उन्हें आरोप पत्र भी सौंपा था.

पिछले साल सितंबर में चौधरी ने एक खुला पत्र लिखकर राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की गिरफ्तारी की मांग की थी, जिन पर उन्होंने सीएम के रूप में अपने पिछले दो कार्यकालों के दौरान उनके प्रति प्रतिशोध और “रहस्यमय द्वेष” रखने का आरोप लगाया था, ताकि “पेपर लीक की सच्चाई सामने आ सके”.

चौधरी की पत्नी मुकुल, जो पहले कांग्रेस में थीं, सितंबर 2023 से भाजपा में हैं. दरअसल, उनकी मां शशि दत्ता ने 1990 के दशक में भैरों सिंह शेखावत सरकार के तहत कानून मंत्री के रूप में काम किया था.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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