चूड़ाचांदपुर (मणिपुर): मणिपुर में पिछले हफ्ते लगाए गए राष्ट्रपति शासन ने प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने और कानून-व्यवस्था बनाए रखने में अधिकारियों को ताकत दी है, लेकिन राज्य में जातीय विभाजन के दोनों पक्षों में अनिश्चितता बढ़ गई है, जिसमें मैतेई और कुकी नागरिक समाज संगठन (सीएसओ) अलग-अलग रुख अपना रहे हैं.
मैतेई सीएसओ के एक छत्र समूह, मणिपुर अखंडता पर समन्वय समिति (सीओसीओएमआई) ने इसे “राज्य को और अधिक अशांति में धकेलने” के लिए “जानबूझकर लिया गया कदम” करार दिया है, जबकि कुकी-जो सीएसओ की शीर्ष संस्था कुकी-जो परिषद और ज़ोमी सीएसओ का प्रतिनिधित्व करने वाली ज़ोमी परिषद ने इस कदम का स्वागत किया है, लेकिन एक अलग प्रशासन की अपनी मांग को बनाए रखा है.
कुकी-जो और ज़ोमी जनजातियों का प्रतिनिधित्व करने वाले दस विधायकों ने भी अपने अगले कदम पर एक दिन पहले गुवाहाटी में एक बैठक के बाद रविवार को एक कूटनीतिक बयान जारी किया.
विधानसभा को निलंबित करने के केंद्र के फैसले को “स्वीकार” करते हुए, उन्होंने उम्मीद जताई कि भारत सरकार बातचीत के जरिए समाधान के तहत शांति और न्याय के लिए एक व्यापक “राजनीतिक रोडमैप” तैयार करेगी.
बयान के शब्दों ने आदिवासी समुदाय के बीच भ्रम पैदा कर दिया है, कई लोगों ने इसे राज्य में आदिवासी-आबादी वाले पहाड़ों के लिए एक अलग प्रशासन की उनकी मांग से “एक तरह से पीछे हटना” कहा है. 22 महीने पहले जातीय संघर्ष शुरू होने के बाद से विधायक बहुत मुखर रहे हैं कि वह एक अलग प्रशासन के अलावा किसी और चीज़ के लिए समझौता नहीं करेंगे.
कुकी-ज़ो के एक नेता ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, “यह बहुत ही रहस्यमय है…अपने बयान में एक अलग प्रशासन न बताकर, ऐसा लगता है कि विधायक केंद्र को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं.”
इस बीच, भारतीय जनता पार्टी की राज्य इकाई के भीतर अंदरूनी कलह, जहां एन. बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद आम सहमति से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार पर फैसला करने के लिए अभी भी बैक-चैनल बातचीत चल रही है, इसने भी पहेली को और बढ़ा दिया है.
राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “जो कुछ हो रहा है, उसे लेकर पूरी तरह अनिश्चितता और भ्रम की स्थिति है. आम धारणा यह है कि सामान्य स्थिति बहाल होने के बजाय स्थिति और जटिल होती जा रही है.”
अधिकारी ने कहा कि राज्य में कानून-व्यवस्था बहाल करने के लिए उचित कार्रवाई करने के लिए सुरक्षा एजेंसियों को कम से कम छह महीने का समय चाहिए.
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अधिकारी ने कहा, “उन्होंने अभी-अभी तलाशी अभियान शुरू किया है, लूटे गए हथियार बरामद किए हैं और आपराधिक गतिविधियों में लिप्त अंडरग्राउमड समूहों के कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया है, लेकिन अगर वैकल्पिक मुख्यमंत्री चुने जाने की स्थिति में राष्ट्रपति शासन पहले ही हटा दिया जाता है, तो अभियान खतरे में पड़ सकता है.”
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घाटी और पहाड़ियों में CSOs के विचार
इम्फाल घाटी, जहां मैतेई रहते हैं और आदिवासी बहुल पहाड़ियों में नागरिक समाज संगठनों ने राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद अपना रुख कड़ा कर लिया है.
शुक्रवार को जारी एक बयान में, COCOMI ने कहा कि मणिपुर में भाजपा के पूर्ण बहुमत होने के बावजूद भारत सरकार द्वारा “अचानक और अनुचित तरीके से राष्ट्रपति शासन लागू करना” केंद्र की वास्तविक मंशा पर गंभीर सवाल उठाता है.
इसमें कहा गया है, “सत्ता का यह खुला प्रयोग मणिपुर, विशेष रूप से मैतेई समुदाय को सीधे सैन्य नियंत्रण में रखने के भयावह एजेंडे की ओर इशारा करता है. यह फैसला सुविधाजनक रूप से कुकी उग्रवादियों और अलगाववादी समूहों की लंबे समय से चली आ रही मांगों के साथ मेल खाता है, जो मणिपुर में AFSPA (सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम) और राष्ट्रपति शासन लागू करने की वकालत करते रहे हैं.”
COCOMI ने राज्य के भाजपा नेताओं पर बहुमत होने के बावजूद सीएम के लिए वैकल्पिक नाम सामने लाने का आरोप लगाया और कहा कि इससे उनकी असली मंशा उजागर हो गई है.
इसमें आगे कहा गया, “विधायकों के बीच आंतरिक चुनाव कराकर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को चलने देने के बजाय, उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों को छोड़ दिया है और एक बड़े राजनीतिक खेल में महज़ मोहरे बन गए हैं…लोगों को इस अन्याय के खिलाफ उठ खड़ा होना चाहिए और एक वैध सरकार की तत्काल बहाली की मांग करनी चाहिए.”
शनिवार को, निवासियों ने राष्ट्रपति शासन हटाने और एक नए मुख्यमंत्री की नियुक्ति की मांग करते हुए इम्फाल ईस्ट में एक सामूहिक रैली में भाग लिया.
दूसरी ओर, पहाड़ी क्षेत्रों में विभिन्न जनजातियों का प्रतिनिधित्व करने वाले सीएसओ ने राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने का स्वागत करते हुए अलग प्रशासन की अपनी मांग पर अड़े रहे.
कुकी-जो परिषद के अध्यक्ष हेनलियांगथांग थांगलेट ने दिप्रिंट से कहा कि मांग से पीछे हटने का कोई सवाल ही नहीं है. उन्होंने कहा, “राष्ट्रपति शासन लागू करना ठीक है, लेकिन सामान्य स्थिति तभी बहाल होगी जब हमें अलग स्वायत्तता मिलेगी. इस पर हमारी स्थिति बहुत स्पष्ट है. केंद्र को जल्द से जल्द इस पर फैसला लेना होगा.”
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ज़ोमी और हमार सहित जनजातियों का प्रतिनिधित्व करने वाली ज़ोमी परिषद ने भी एक बयान जारी कर कहा कि “सांप्रदायिक मणिपुर सरकार की अनुपस्थिति में अंतराल का फायदा मणिपुर में ज़ो जातीय समुदायों की वैध राजनीतिक आकांक्षाओं को देखने के लिए उठाया जाना चाहिए ताकि स्थापित राजनीतिक संस्थाओं के साथ राजनीतिक बातचीत के माध्यम से एक सम्मानजनक राजनीतिक समाधान निकाला जा सके.”
चूड़ाचांदपुर जिले के सैकोट से भाजपा विधायक पाओलियनलाल हाओकिप ने दिप्रिंट से कहा कि उनकी मांगें स्पष्ट हैं.
उन्होंने कहा, “हमने बातचीत के जरिए शांति और न्याय के लिए एक व्यापक राजनीतिक रोडमैप मांगा है. रोडमैप से मांग पूरी होने की उम्मीद है.” उन्होंने इस बात से इनकार किया कि विधायकों का बयान उनके रुख में नरमी है, क्योंकि इसमें “अलग प्रशासन” शब्द का उल्लेख नहीं है.
मणिपुर विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर चौधरी प्रियरंजन सिंह ने कहा कि राज्य “जटिल स्थिति” में फंस गया है, जहां केंद्र वह नहीं कर पाया है जो उसे करना चाहिए था.
उन्होंने कहा, “अगर घाटी और पहाड़ियों दोनों जगहों पर सशस्त्र उग्रवादियों पर लगाम लगाई जाए तो राष्ट्रपति शासन से मदद मिलेगी. इसके बिना कुछ भी अच्छा नहीं होगा.”
सिंह ने कहा कि मणिपुर संकट का समाधान मोदी सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है.
सिंह ने कहा, “मुझे लगता है कि मणिपुर मुद्दे को एक निश्चित समय सीमा में हल करने की उनकी (केंद्र की) राजनीतिक इच्छाशक्ति बहुत कमज़ोर है, क्योंकि (पड़ोसी) म्यांमार में उनके भू-राजनीतिक हित हैं, पहाड़ियों में विद्रोही समूहों के साथ ऑपरेशन के निलंबन समझौते को लेकर उनकी मजबूरियां हैं. ये हित भारत के हित में होने के बावजूद राज्य के हितों के खिलाफ हैं.”
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