यह बताने की जरूरत भी नहीं है कि विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक भारत की राजधानी दिल्ली है और विश्व के 10 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों की सूची में 7 भारत में है. हमारे देश में हर वर्ष 12 लाख लोग वायु प्रदूषण की वजह से मरते हैं. यह कोई गर्व की बात नहीं है. हम अक्सर न्यूयॉर्क, लंदन या टोक्यो का उदाहरण लेकर अपने परेशानियों को सुलझाने का प्रयास करते हैं. लेकिन सफल नहीं हो पाते क्योंकि ना ही हमारे पास उतने संसाधन है और ना ही उच्चतम टेक्नोलॉजी.
मेक्सिको भारत की तरह ही एक विकाशील देश है. मेक्सिको मेट्रोपोलिटन क्षेत्र के वायु प्रदूषण के स्रोत लगभग वही थे, जो आज दिल्ली के हैं और इसने सीमित संसाधनों के साथ वायु प्रदूषण से लड़ने में सफलता हासिल की है. आज जरूरत है हमें मेक्सिको से प्रेरणा लेने की.
1990 में मेक्सिको मेट्रोपोलिटन क्षेत्र दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर माना जाता था. लेकिन तबसे मेक्सिको शहर में लगातार प्रदूषण का स्तर घटा है और हम सब लोगों के लिए आश्चर्य की बात यह है कि मेक्सिको में प्रदूषण राजनीति का एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है. जनता वहां पर सजग है और सरकार को पर्यावरण सुरक्षा को लेकर जवाबदेही लेनी पड़ती है. मई में भी यही हुआ. वहां की सिविल सोसायटी, साइंटिस्ट, टेक्नोलॉजिकल एक्सपर्ट्स और आदि सब ने मिलकर सरकार को ठोस कदम उठाने पर मजबूर किया.
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हाल के दिनों में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, दिल्ली में वर्ल्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा आयोजित एक वर्कशॉप में आई मेक्सिको की पर्यावरण विशेषज्ञ डॉक्टर बीट्रिज़ कार्देनाज से जब यह पूछा गया कि मेक्सिको के राजनेताओं को पर्यावरण सुरक्षा को लेकर इतना सजग क्यों होना पड़ा, तो उनका जवाब था कि पर्यावरण के मुद्दे पर लोग उनको वोट करते हैं, पर्यावरण सुरक्षा से लोग इतने जुड़ाव रखते हैं कि राजनेताओं को इस समस्या से लड़ने के लिए तत्पर होना ही पड़ता है.
पहले बात करते हैं मेक्सिको ने ऐसा क्या किया जो हम कर सकते हैं :
1. आधुनिक तकनीकी का उपयोग कर एक उच्चतम स्तर का डाटा सेंटर स्थापित करना चाहिए. जिससे जन-जन तक प्रदूषण को लेकर जागरूकता फैलायी जा सके एवं रियल टाइम पर आधारित प्रदूषण की जानकारी मिले. किसी समस्या को सुलझाने का सबसे पहली सीढ़ी है उसके बारे में सही समय पर सही जानकारी होना.
2. वायु प्रदूषण स्तर जैसे ही खतरे के सीमा से ऊपर बढ़े, एक ऐसा सिस्टम हो कि लोगों को तुरंत ही उसकी जानकारी दी जाये. जिससे स्वास्थ्य सम्बंधित खतरे से बचा जा सके. जरुरी हो तो पर्यावरण आपातकाल घोषित करना चाहिए.
3. एक उच्चतम दर्जे का पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम धीरे-धीरे विकसित किया जाना चाहिए. लोगों को एक जगह से दूसरे जगह कैसे ले जाना है, यह मुख्य बिंदु रख कर कोई भी सुधार करना चाहिए ना कि यह सोचकर कि गाड़ियों को एक जगह से दूसरे जगह कैसे ले जाया सकता है.
4. उद्योग जगत को साथ लेकर औद्योगिक उत्सर्जन को कम से कम किया जा सकता है. यह जरुरी है कि आर्थिक उन्नति के साथ सस्टेनेबिलिटी के मुख्य बिंदुओं को भी ध्यान दिया जाय और मेक्सिको का उदाहरण हमें सिखाता है कि अगर सबको साथ लेकर चला जाये तो विज्ञान के नए आयाम और आधुनिक टेक्नोलॉजी का उपयोग कर उत्सर्जन को कम से कम किया जा सकता है.
5. मेक्सिको शहर के जैसे हम भी बायो मास बर्निंग को लेकर कड़े कानून बना सकते हैं और सरकार के इनोवेटिव कदमों से इसको कम से कम किया जा सकता है.
14 मई 2019 को मेक्सिको शहर ने पर्यावरण आपातकाल घोषित किया, कारण था पर्यावरण में हवा का इस तरह दूषित हो जाना. जिससे सांस लेने में भी समस्या हो. हवा में पर्टिकुलेट मैटर(PM) 2.5 के रूप में जाना जाने वाला फाइन पार्टिकुलेट मैटर की मात्रा सुबह 5 बजे एक लोकल स्टेशन पर 158 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर हो गया.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश के हिसाब से प्रतिदिन PM 2.5 की मात्रा 25 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से नीचे होना चाहिए. ऐसा निर्देश दिया गया कि अपनी खिड़की दरवाजे बंद करके सभी लोग अपने घरों में ही रहे. मेक्सिको में ऐसा कई सालों बाद हुआ था, क्योंकि मेक्सिको के पास प्रदूषण से लड़ने का और लोगों को अलर्ट का एक मजबूत सिस्टम था. इसलिए आपातकाल से स्थिति होने के बावजूद भी यह जानलेवा साबित नहीं हो सका.
यह भी समझना जरूरी है की क्या यह समस्या हमारे यहां हमेशा से थी. जवाब है, नहीं. फिर कभी सोचा है आपने कि ऐसा क्यों हुआ ? हमारे तो वैदिक काल से पर्यावरण सुरक्षा की प्रथा रही है. चाहे वह फिर ऋग्वेद हो या मनुस्मृति हो या फिर अर्थशास्त्र हो, सब में पर्यावरण सुरक्षा को काफी महत्व दिया गया है.
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तो फिर हम ऐसी स्थिति पर क्यों पहुंचे? मुझे लगता है कि हम ने अपने आप को पीछे छोड़ दिया है. हमने अपनी परंपराओं को पीछे छोड़ दिया है. हमें आदत हो गई है. अपनी जिम्मेदारियों से पीछे भागने की. अगर हमने जिम्मेदारी ली होती, तो आज देश में 12 लाख से ज्यादा लोग वायु प्रदूषण से हर वर्ष मर नहीं रहे होते.
हमारे देश की लोकतांत्रित व्यवस्था में हर पांच साल में चुनाव होता है और हर सरकार की यह कोशिश होती है की वह उन मुद्दों पर काम करे जिसपर लोग उन्हें वोट दें और जिससे उसे वापिस से सत्ता हासिल करने में मदद मिले. इस चाहत को हम गलत भी नहीं कह सकते. ऐसी एक बात बिठा दी गयी है की प्रदूषण की समस्या पांच साल में हल नहीं हो सकती है और इसलिए राजनेताओं को इसके लिए प्रेरणा नहीं मिलती.
लेकिन दुनिया के कई भागों में हुए सफल प्रयासों से यह लगता है कि पांच वर्षो में भी बहुत हद तक इस समस्या से निपटा जा सकता है. अगर टार्गेटेड एप्रोच के साथ रिजल्ट ओरिएंटेड टीम काम करे तो ऐसा रिजल्ट निकाला जा सकता है, जिससे लोगों के आम जीवन में बदलाव देखने को मिलेगा. लेकिन क्या हम इतने सजग हैं कि इन मुद्दों के ऊपर वोट करेंगे? तो क्या यह सही समय नहीं है कि समाज और हम अपना पसंद नापसंद तय करें! अगर पर्यावरण सुरक्षा हमारी पसंद बन जाए तो आपको नहीं लगता कि शासन व्यवस्था उसको सुरक्षित करने में लग जाएगा और अगर मेक्सिको में ऐसा हुआ है, तो हमारा देश भी ऐसा कर सकता है.
अगर मेक्सिको पिछले 25 सालों में 22500 लोगों की जान बचा सकता है और शहर में रहने वालों लोगों की औसत आयु 3 साल से बढ़ा सकता है तो हम भी कर सकते हैं. हम भी लोगों की जान बचा सकते हैं और अपने बच्चों को एक लम्बी आयु दे सकते हैं. आज हम सबको मिल के एक संकल्प करना होगा कि आने वाली पीढ़ी को एक नीला आसमान दिखे और उनके फेफड़ों को अच्छी हवा नसीब हो.
(मणि भूषण झा एमिटी लॉ स्कूल दिल्ली से लॉ ग्रेजुएट हैं और वह इंटर्न के तौर पर वायु प्रदूषण पर शोध कर रहे हैं यह लेख उनका निजी विचार है.)