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Wednesday, 12 February, 2025
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एकेडमिक स्वतंत्रता के नाम पर UGC ने CARE जर्नल लिस्ट को किया बंद, शिक्षा जगत पर क्या होगा असर

2018 में शुरू की गई UGC-CARE सूची का मकसद यह था कि फैकल्टी चयन, पदोन्नति और शोध के लिए केवल भरोसेमंद और प्रतिष्ठित पत्रिकाओं को मान्यता दी जाए.

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नई दिल्ली: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने मंगलवार को अपने “कंसोर्टियम फॉर एकेडमिक एंड रिसर्च एथिक्स” (UGC-CARE) सूची को बंद करने की घोषणा की और उच्च शिक्षण संस्थानों (HEIs) को प्रकाशनों और पत्रिकाओं की गुणवत्ता का मूल्यांकन करने के लिए अपने स्वयं के तंत्र विकसित करने की सिफारिश की.

UGC-CARE सूची को 2018 में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य सिर्फ प्रतिष्ठित पत्रिकाओं को मान्यता देना था ताकि संकाय चयन, पदोन्नति और शोध निधि में गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके और शोध गुणवत्ता तथा शोषणकारी (प्रिडेटरी) पत्रिकाओं से संबंधित चिंताओं का समाधान किया जा सके. आयोग ने इस सूची में शामिल पत्रिकाओं का शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए उपयोग करने की सिफारिश की थी, जिसका अर्थ यह था कि सूचीबद्ध नहीं की गई पत्रिकाओं में प्रकाशित शोध को एकेडमिक मूल्यांकन के लिए मान्य नहीं माना जाता था.

मंगलवार को जारी एक अधिसूचना में, UGC ने घोषणा की कि 3 अक्टूबर, 2024 को आयोजित अपनी 584वीं बैठक में, एक विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के आधार पर इस सूची को बंद करने का निर्णय लिया गया. यह फैसला राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अनुरूप लिया गया है.

इसके अलावा, UGC ने संकाय सदस्यों और छात्रों द्वारा सहकर्मी-समीक्षित (पीयर-रिव्यूड) पत्रिकाओं के चयन के लिए सुझाए गए मापदंड तैयार किए हैं. इन मापदंडों को विशेषज्ञों और शिक्षाविदों के एक समूह द्वारा तैयार किया गया है और अब 25 फरवरी, 2025 तक सार्वजनिक प्रतिक्रिया के लिए खुले हैं.


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यूजीसी-केयर लिस्ट से संबंधित समस्या

UGC-CARE सूची को लेकर कई तरह की आलोचनाएं हुईं. इसमें मुख्य रूप से यह शिकायत थी कि अच्छे शोध और पत्रिकाओं को तय करने का पूरा नियंत्रण केवल UGC के पास था. इसके अलावा, सूची में नई पत्रिकाएं जोड़ने या हटाने में भी बहुत समय लगता था, जिससे अनावश्यक देरी होती थी.

शोधकर्ताओं को भी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा। उन्हें करियर में आगे बढ़ने के लिए सिर्फ UGC-CARE सूचीबद्ध पत्रिकाओं में ही शोध प्रकाशित करने का दबाव था. कई बार पत्रिकाओं को अचानक सूची से हटा दिया जाता था, जिससे पहले से वहां शोध प्रकाशित करने वालों की स्थिति मुश्किल हो जाती थी. साथ ही, कई प्रतिष्ठित पत्रिकाएं, जो इस सूची में शामिल नहीं थीं, शोधकर्ताओं के लिए विकल्प कम कर देती थीं.

भारतीय भाषाओं में प्रकाशित कई प्रतिष्ठित पत्रिकाएं भी इस सूची में नहीं थीं, क्योंकि UGC-CARE के फैसले लेने की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं थी. इससे उन शोधकर्ताओं को नुकसान हुआ, जो इन भाषाओं में अपने शोध प्रकाशित करते थे.

UGC के अध्यक्ष एम. जगदीश कुमार के अनुसार, नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत “विकेंद्रीकरण” को बढ़ावा दिया गया है. इसी को ध्यान में रखते हुए, दिसंबर 2023 में UGC ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया, जिसने UGC-CARE योजना की समीक्षा की.

इस समिति की सिफारिशों के आधार पर, आयोग ने सर्वसम्मति से यह तय किया कि UGC-CARE सूची को बंद कर दिया जाए. अब उच्च शिक्षण संस्थानों (HEIs) को खुद यह तय करने के लिए विश्वसनीय तंत्र विकसित करना होगा कि कौन-सी पत्रिकाएं और प्रकाशन गुणवत्तापूर्ण हैं.

विशेषज्ञ समिति ने पाया कि UGC-CARE मॉडल में शोध पत्रिकाओं के मूल्यांकन के दौरान कुछ हद तक पक्षपात किया गया. खासतौर पर, गैर-तकनीकी (Non-STEM) विषयों की पत्रिकाओं को लेकर कई गलतियां हुईं, जिससे सूचीबद्ध शोध पत्रों की प्रामाणिकता पर सवाल उठे.

गुणवत्तापूर्ण पत्रिकाओं की पहचान के लिए मापदंड

UGC ने उच्च शिक्षण संस्थानों (HEIs) को प्रकाशनों और पत्रिकाओं की गुणवत्ता का मूल्यांकन करने के लिए अपना खुद का तंत्र विकसित करने की सिफारिश की है, जो स्थापित शैक्षणिक मानकों और आयोग द्वारा सुझाए गए दिशानिर्देशों के अनुरूप हों.

HEIs अब अपने मूल्यांकन मॉडल तैयार कर सकते हैं, जो विभिन्न विषयों की विशिष्टताओं और तेजी से विकसित हो रहे नए क्षेत्रों को ध्यान में रखेंगे और साथ ही साहित्यिक चोरी (प्लेगरिज्म) की जांच भी सुनिश्चित करेंगे. इससे उन पत्रिकाओं को मान्यता मिलेगी, जो पुराने और पारंपरिक इंडेक्सिंग मॉडल में शामिल नहीं हो पाई थीं.

UGC अध्यक्ष एम. जगदीश कुमार ने कहा, “यह विकेंद्रीकृत (डिसेंट्रलाइज्ड) तरीका HEIs को अपनी जरूरतों के अनुसार मूल्यांकन प्रणाली तैयार करने की सुविधा देता है. अब रिसर्चर्स को किसी केंद्रीय सूची तक सीमित रहने की जरूरत नहीं होगी. संस्थान अपने विषयों की विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए अधिक स्वतंत्रता और लचीलापन प्राप्त कर सकेंगे.”

UGC ने अनुभवी प्रोफेसरों से अपील की है कि वे युवा शोधकर्ताओं को सही पत्रिकाएं चुनने में मार्गदर्शन दें और उन्हें भ्रामक व संदेहास्पद प्रकाशकों (predatory publishers) से बचने के लिए सतर्क करें.

नई गाइडलाइंस में विश्वविद्यालयों से यह भी कहा गया है कि वे पत्रिकाओं के मूल्यांकन के लिए मजबूत प्रणाली विकसित करें और उच्च प्रकाशन मानकों को बढ़ावा दें. इसका उद्देश्य पुराने जटिल सिस्टम से हटकर अधिक पारदर्शी और समायोज्य प्रक्रिया अपनाना है, जो आधुनिक शोध की विविधता को बेहतर ढंग से दर्शा सकें.

लचीलेपन का क्या मतलब है?

UGC के अनुसार, UGC-CARE सूची को बंद करके, उसने पत्रिकाओं के चयन की प्रक्रिया को उच्च शिक्षण संस्थानों (HEIs) को लौटा दिया है. अब शोधकर्ता अपने विषय और पाठकों के मुताबिक सर्वश्रेष्ठ पत्रिकाओं में स्वतंत्र रूप से प्रकाशित कर सकते हैं, बिना किसी केंद्रीकृत सूची की बाधा के.

UGC अध्यक्ष ने कहा, “यह HEIs को अकादमिक स्वतंत्रता और स्वायत्तता वापस देता है. यदि HEIs विश्वसनीय पत्रिकाओं की पहचान के लिए प्रभावी तंत्र स्थापित करने में विफल रहते हैं, तो उन्हें संदेहास्पद पत्रिकाओं में प्रकाशित संकाय सदस्यों को मान्यता देने का जोखिम उठाना पड़ेगा.”

शिक्षाविदों ने ‘यू-टर्न’ पर सवाल उठाए

इस फैसले ने अकादमिक प्रकाशनों के स्तर को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं, और रिसर्च समुदाय यह भी सवाल उठा रहा है कि 2018 में इसे लागू करने की जरूरत ही क्यों पड़ी थी.

मंगलवार को जारी एक बयान में, दिल्ली विश्वविद्यालय के संकाय समूह “एकेडमिक्स फॉर एक्शन एंड डेवलपमेंट” (AAD) ने कहा कि UGC-CARE प्रणाली को शुरू में अनिवार्य किया गया था, जिससे हजारों शिक्षकों और शोधकर्ताओं को एक सख्त ढांचे का पालन करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

“अब इसे बिना किसी स्पष्ट विकल्प के अचानक समाप्त कर दिया गया है. यह सवाल उठता है कि क्या यह वास्तव में अकादमिक गुणवत्ता में सुधार लाने का कदम है, या फिर यह शिक्षकों को लगातार अनिश्चितता में रखने की एक और रणनीति मात्र है?” समूह ने कहा.

“यह कुछ अहम सवाल खड़े करता है—अगर UGC-CARE को अप्रभावी माना गया, तो इसे 2018 में अनिवार्य क्यों किया गया? अगर अब इसकी जरूरत नहीं रही, तो क्या इसका मतलब यह है कि शोधकर्ताओं को सालों तक गलत तरीके से इस प्रणाली का पालन करने के लिए मजबूर किया गया? क्या सरकार और UGC केवल अल्पकालिक लाभ और चुनावी फायदे के लिए नीतियों में बदलाव कर रहे हैं?”

दिल्ली विश्वविद्यालय के संकाय सदस्य और पूर्व कार्यकारी परिषद सदस्य राजेश झा ने पूछा कि उन शिक्षकों की क्षति की भरपाई कौन करेगा, जिनकी पदोन्नति UGC-CARE सूची की अनिवार्यता के कारण रुकी रही?

“हम शुरुआत से ही UGC-CARE सूची की अनिवार्यता पर सवाल उठा रहे थे. अब, जब इतना नुकसान हो चुका है, तो इसे स्वीकार करने का क्या अर्थ है?” उन्होंने कहा.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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