scorecardresearch
Thursday, 6 February, 2025
होमदेशअर्थजगतसिद्धारमैया सरकार का नया क़दम—कर्नाटक में शराब की बिक्री से रेवेन्यू बढ़ाने की कोशिश

सिद्धारमैया सरकार का नया क़दम—कर्नाटक में शराब की बिक्री से रेवेन्यू बढ़ाने की कोशिश

अपनी पांच गारंटियों के वित्तपोषण में लगभग 60,000 करोड़ रुपए लगे होने के कारण, कर्नाटक अति आवश्यक नकदी प्रवाह लाने के लिए हर संभव रास्ता तलाश रहा है.

Text Size:

बेंगलुरु: सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार शराब पसंद करने वालों के लिए खुशखबरी ला सकती है. कांग्रेस सरकार राज्यभर में अधिक शराब की दुकानें खोलने के लिए नए लाइसेंस जारी करने पर विचार कर रही है, यह जानकारी दिप्रिंट को मिली है.

कर्नाटक का आबकारी क्षेत्र सख्त नियमों के तहत काम करता है, लेकिन यह राज्य के लिए एक स्थिर राजस्व स्रोत भी है. शराब की कीमतों या नीति में कोई भी बदलाव राज्य को अच्छा आर्थिक लाभ पहुंचा सकता है.

अगर नया प्रस्ताव लागू होता है, तो इससे इस साल आबकारी विभाग से अनुमानित 38,525 करोड़ रुपए के अतिरिक्त 2,000 करोड़ रुपये की आय होगी.

“एक सिफारिश यह है कि नए लाइसेंस जारी किए जाएं और दूसरी यह कि लाइसेंस शुल्क में संशोधन किया जाए,” एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया.

अधिकारियों के अनुसार, संसाधन जुटाने के तरीकों की पहचान करने के लिए गठित एक समिति ने 1992 से बंद पड़े नए CL-2 (रिटेल शराब दुकान) और CL-9 (बार और रेस्तरां) लाइसेंस जारी करने की सिफारिश की है.

इस कदम से राज्य को अधिक राजस्व प्राप्त करने में मदद मिलेगी और आय के नए स्रोतों को बढ़ावा मिलेगा.

करीब 60,000 करोड़ रुपए पांच गारंटियों को लागू करने में लगे हुए हैं, जिससे कर्नाटक सरकार हर संभावित उपाय तलाश रही है ताकि राज्य में नकदी प्रवाह को बढ़ाया जा सके और 76 वर्षीय मुख्यमंत्री को मार्च के पहले हफ्ते में पेश किए जाने वाले अपने रिकॉर्ड 16वें बजट में कुछ वित्तीय राहत मिल सके.

शराब नीति या कीमतों में बदलाव करना सबसे आसान विकल्पों में से एक है, जिससे तुरंत राजस्व में बढ़ोतरी होती है. जीएसटी लागू होने के बाद कर्नाटक—अन्य राज्यों की तरह—केंद्र सरकार से मिलने वाले करों और अनुदानों में कमी का सामना कर रहा है. राज्य सरकार ने कई बार केंद्र पर “सौतेला व्यवहार” करने का आरोप लगाया है.

शनिवार को सिद्धारमैया ने कहा कि केंद्रीय बजट में कर्नाटक के साथ भेदभाव जारी है. उन्होंने कहा, “मोदी सरकार कर्नाटक से टैक्स वसूलती है लेकिन हमारे हक का पैसा वापस नहीं देती!”

“केंद्र को राज्यों को केवल राजस्व जुटाने वाली इकाइयों के रूप में देखने के बजाय, उनकी वित्तीय चुनौतियों को न्यायसंगत और सहानुभूतिपूर्ण तरीके से हल करना चाहिए. संसाधनों के आवंटन, विशेष रूप से कर वितरण में, वैज्ञानिक और समान मानदंडों का पालन करना चाहिए. विकास में अग्रणी राज्यों जैसे कर्नाटक को उचित समर्थन मिलना चाहिए. केंद्र को उनके योगदान को पहचानना चाहिए और उनकी जरूरतों को सकारात्मक रूप से पूरा करना चाहिए, जिससे संसाधनों का वितरण न्यायसंगत और संतुलित हो,” उन्होंने शुक्रवार को जारी एक बयान में कहा.

‘नए लाइसेंस देने का कोई मतलब नहीं’

अब तक, कर्नाटक में लगभग 12,666 सक्रिय शराब लाइसेंस हैं, जो 2010-11 में करीब 8,379 थे. शराब बिक्री से होने वाला राजस्व भी बढ़ा है, जो 2010-11 में लगभग 7,500 करोड़ रुपए था और 2024-25 में यह बढ़कर 38,525 करोड़ रुपए हो गया है, जैसा कि दिप्रिंट द्वारा प्राप्त किए गए बजट दस्तावेजों में दिखाया गया है.

लेकिन सीएल-2 और सीएल-9 लाइसेंसों की संख्या इस दौरान लगभग अपरिवर्तित रही है.

2010-11 में कर्नाटक में 3,795 सीएल-2 लाइसेंस और 3,447 सीएल-9 लाइसेंस थे. 2023-24 तक, इन संख्याओं में थोड़ा सा वृद्धि हुई, क्रमशः 3,979 और 3,628, जैसा कि आधिकारिक आंकड़ों से पता चला.

जीएसटी लागू होने के बाद केंद्र से कम राजस्व मिलने के कारण, कर्नाटक जैसे अन्य राज्यों के पास राज्य-जनित करों पर निर्भर रहने की सीमित संभावना है.

आर्थिक रूप से परेशान कर्नाटक सरकार ने संसाधन जुटाने के रास्ते तलाशने के लिए बास्टन कंसल्टिंग ग्रुप (BCG) और सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी केपी कृष्णन की अध्यक्षता में एक समिति बनाई है.

हाल के महीनों में, सरकार ने निवेश ट्रस्ट (InvIT) स्थापित करने, पूंजी जुटाने के लिए बांड जारी करने, और उच्च ब्याज दरों पर संस्थागत निवेशकों से कर्ज लेने का बोझ कम करने का विचार किया है, जैसा कि दिप्रिंट ने पहले रिपोर्ट किया था.

हालांकि, मौजूदा खुदरा विक्रेताओं ने नए लाइसेंस जारी करने के प्रस्ताव का विरोध किया है, उनका कहना है कि आउटलेट्स की संख्या बढ़ने से बिक्री में जरूरी तौर पर वृद्धि नहीं होती.

“मौजूदा लाइसेंस धारक तो अपना गुजारा भी नहीं चला पा रहे हैं… तो नए लाइसेंस जारी करने का क्या फायदा? मैं पानी, जूस या कोई अन्य वस्तु नहीं बेच सकता। यह सिर्फ शराब ही हो सकती है. साथ ही, नए लाइसेंसों की संख्या बढ़ने का मतलब अधिक बिक्री नहीं है,” कर्नाटक राज्य वाइन मर्चेंट्स एसोसिएशन के गोविंदराज हेगड़े ने दिप्रिंट से कहा.

एसोसिएशन द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, भारतीय निर्मित शराब (IML) की बिक्री 2013-14 और 2022-23 के बीच केवल 32 प्रतिशत बढ़ी है, जो 5,26,24,715 बक्सों से बढ़कर 6,98,46,152 बक्से हो गई.

बीयर की बिक्री इसी समय अवधि में 60.20 प्रतिशत बढ़ी है, जो 2,43,84,486 बक्सों से बढ़कर 3,90,66,381 बक्से हो गई.

हेगड़े का कहना है कि 2013-14 से 2022-23 तक के 10 सालों में सीएल-7 (होटल और बोर्डिंग हाउस लाइसेंस) में लगभग 200 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और सीएल-11(सी) रिटेल शॉप्स लाइसेंस में सरकार की कंपनियों और अन्य श्रेणियों को दिए गए लाइसेंस में लगभग 160 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट से बात करते हुए एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि मौजूदा खुदरा विक्रेता नए लाइसेंस जारी करने का विरोध कर रहे हैं क्योंकि इससे उनका व्यवसाय प्रभावित होगा.

“हमारे पास यह सिफारिश नहीं है कि हमें कितने लाइसेंस जारी करने चाहिए और न ही हम बाजार को ओवरफ्लोड करना चाहते हैं। आवश्यकता के अनुसार, हम इस मामले को उठाएंगे,” अधिकारी ने कहा.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: मैंने अमेरिका के लिए सब कुछ दांव पर लगाया- कर्ज़, कारावास, यातना: हरियाणा लौटे रॉबिन हांडा की कहानी


 

share & View comments