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Friday, 22 November, 2024
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अनुच्छेद 35ए को निरस्त कर मोदी के मिशन कश्मीर को पूरा करने का वक्त आ गया है

अगर मोदी सरकार अब भी अनुच्छेद 35ए को खत्म नहीं करती तो उसकी भद्द पिटेगी और ये एक तरह से कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों को सौंपने जैसा होगा.

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कश्मीर की मौजूदा स्थिति के मद्देनज़र ये दलील दी जा सकती है कि हमेशा से नरेंद्र मोदी सरकार की रणनीति ऐसा परिदृश्य निर्मित कर देने की रही है कि अनुच्छेद 35ए को हटाना आवश्यक हो जाए. मोदी की कश्मीर नीति के इस अंतर्निहित और प्राथमिक उद्देश्य की प्राप्ति से न सिर्फ केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी की साख बचेगी, बल्कि ये भी कहा जा सकेगा कि सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा की व्यापक चिंताओं से निपटने का काम किया है.

ऐसा लगता है कि कश्मीर पर सख्त रवैया गहन मानसिक दबाव बनाने, थकान का अहसास करने और संघर्ष से एक हद तक मोहभंग का भाव पैदा करने के लिए था, ताकि अलगाववाद समर्थक अपने रवैये पर पुनर्विचार के लिए बाध्य हो जाएं. इन सबके पीछे बुनियादी सोच ये रही होगी कि मनोबल कमजोर करते हुए राज्य में प्रतिरोध की कमर तोड़ दी जाए, और इससे बने निष्क्रियता, थकान और हताशा के माहौल का लाभ उठाते हुए अनुच्छेद 35ए को निरस्त कर दिया जाए.


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एक ‘ऑल-आउट’ अभियान

सर्वप्रथम, आक्रामक रुख अपनाते हुए चौतरफा दबाव बनाया गया. इसे राज्यपाल, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, सेना प्रमुख तथा भाजपा के क्षेत्रीय और राष्ट्रीय नेताओं के बयानों में देखा जा सकता है. मुख्यधारा के राष्ट्रीय मीडिया ने नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और अन्य राजनीतिक पार्टियों और अलगाववादी संगठन हुर्रियत को दोषी पक्ष के रूप में प्रदर्शित किया कि जिन्होंने आम जनता को ‘आज़ादी’ का झूठा सपना दिखा कर कश्मीर में संघर्ष के हालात को और बिगाड़ने का काम किया है. इससे इस कथानक को बल मिला कि कश्मीर आंदोलन पर जिहादी और खिलाफत की विचारधारा हावी है, जिसमें कि गैर-मुसलमानों के लिए कोई जगह नहीं है.

अनौपचारिक सूत्रों के अनुसार घबराहट और भय का माहौल बनाने के लिए मनोवैज्ञानिक और खास तरह का सूचना अभियान चलाया गया. बालाकोट हवाई हमला आम कश्मीरियों के भीतर ये भाव पैदा करने में कामयाब रहा कि सीमा पार के तत्वों से भी सख्ती से निपटा जाएगा, और सरकार भारत की एकता और अखंडता पर खतरा बनने वाली आतंकी ताकतों को बर्दाश्त नहीं करेगी.

पिछले साल के रमज़ान संघर्षविराम के बाद, सुरक्षा बल कश्मीर में ‘ऑल-आउट’ हमले की मुद्रा में आ गए, और तमाम प्रमुख चरमपंथी कमांडरों का सफाया कर दिया गया. ऐसा उस माहौल के रहते किया गया जब चरमपंथियों को भारी जनसमर्थन मिल रहा था, सुरक्षा बलों को अपने हर तलाशी अभियान में चरमपंथियों को बचाने के लिए तत्पर पत्थरबाज़ों और आम नागरिकों के विरोध का सामना करना पड़ रहा था. आम लोगों के हताहत होने और अन्य गैर-इरादतन नुकसानों की घटनाएं भी सामने आईं, पर पाकिस्तान प्रायोजित उग्रवाद को कुचलने की मोदी सरकार की प्रतिबद्धता पर उनका असर नहीं दिखा. इसके विपरीत, सरकार ने उग्रवाद के खिलाफ सख्ती और बढ़ा दी.

इसका इच्छित मनोवैज्ञानिक प्रभाव देखने को मिला. बेचैन युवाओं और चरमपंथी संगठनों ने इसे दिल पर लिया, और आतंकी संगठनों में भर्ती होने वालों की संख्या में वृद्धि देखने को मिली. पर, चरमपंथियों को बिना किसी मुरव्वत के ठिकाने लगाने का सिलसिला जारी रहा, भले ही उग्रवाद को जनसमर्थन बढ़ा हो और चरमपंथियों के जनाज़े में भारी भीड़ जमा होने लगी हो. सुरक्षा बलों के अभियान को और तेज कर दिया गया, जिससे मुठभेड़ों और उनमें मारे जाने वाले चरमपंथियों की संख्या में भारी इजाफा देखने को मिला. साथ ही, राजमार्गों को बंद करने, कड़ी सुरक्षा पड़ताल करने और जांच चौकियों की संख्या बढ़ाने जैसे अन्य सख्त उपाय भी किए गए, और इनसे जनता को होने वाली असुविधा आखिरी हद तक पहुंच गई.

इसी के साथ, जमात-ए-इस्लामी के खिलाफ व्यापक कार्रवाई की गई, और आतंकियों के आर्थिक तंत्र के खिलाफ राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के अभियान ने उग्रवाद को भारी चोट पहुंचाई. सरकार के सख्त रुख के कारण अपनी गतिविधियां चलाने में नाकाम अलगाववादियों और पाकिस्तान समर्थक तत्वों ने अब 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की हार की उम्मीद की. पर, भाजपा की पहले से भी बड़े बहुमत के साथ सत्ता में वापसी के बाद उनकी बची-खुची उम्मीदें भी ध्वस्त हो गईं. चुनाव परिणाम घोषित होने के दिन ही चरमपंथियों का पोस्ट ब्वॉय ज़ाकिर मूसा मारा गया, जिसकी घोषणा सेना ने अगले दिन की.

थकान और मोहभंग

24 मई 2019 से ही अलगाववादी भारी अवसाद, थकान, अलगाव और भय की स्थिति में हैं. दक्षिणी कश्मीर के जानकार मध्यस्थों ने मुझे बताया कि अमित शाह के गृहमंत्री बनने पर लोग भयाक्रांत हो गए थे. इलाके में अफवाहें चल रही थीं कि पत्थरबाज़ों को अब ड्रोनों और हेलिकॉप्टरों से निशाना बनाया जाएगा. वैसे तो युवा अब भी उग्रवाद से जुड़ रहे हैं, पर आमतौर पर लोगों में लड़ाई जारी रखने की इच्छा नहीं रह गई है. मुख्यधारा के नेताओं, हुर्रियत और यहां तक कि पाकिस्तान से भी मोहभंग होने के भाव को महसूस किया जा सकता है.

जानकार सूत्रों ने मुझे बताया है कि लोग अनुच्छेद 35ए निरस्त किए जाने को लेकर मानसिक रूप से तैयार हैं. मुख्यधारा के कई नेताओं ने कहा है कि उनमें सरकार से मुकाबले की ताकत नहीं रह गई है, वहीं कइयों को भ्रष्टाचार के मामलों में कड़ी कार्रवाई किए जाने का भय है. उनका ये भी कहना है कि यदि कश्मीर का विशेष दर्जा छिनता है तो लोगों के मन में कोई भ्रम नहीं रह जाएगा, और भारत एवं पाकिस्तान के साथ ‘दोहरी निष्ठाओं’ का दौर समाप्त हो जाएगा. नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर एक प्रमुख महिला अलगाववादी नेता ने कहा, ‘इसका हमेशा के लिए समाधान हो जाना चाहिए, भले ही इस वजह से हिंसा होती हो.’

जम्मू कश्मीर में तमाम परंपरागत संस्थाएं तेज़ी से ध्वस्त हो रही हैं. एक रिक्तता साफ देखी जा सकती है, जिसे भरे जाने की ज़रूरत है. इसलिए, मोदी सरकार के पास कोई और विकल्प नहीं रह जाता है. यदि वह अनुच्छेद 35ए को निरस्त कर जम्मू कश्मीर के भारत में पूर्ण एकीकरण के ज़रिए इस शून्य की भरपाई करती है, तो फिर राज्य में विकास और सुशासन की उम्मीद बंध सकेगी. यदि सरकार 35ए का खात्मा नहीं कर पाती है, तो फिर अराजकता और अव्यवस्था उस रिक्तता को भरेंगी.


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अब पीछे हटना मुनासिब नहीं

पिछले पांच वर्षों के दौरान कश्मीर को जिहादी कट्टरवाद का सामना करना पड़ा है, और ये अल-क़ायदा और आइसिस जैसे आतंकी संगठनों की सक्रियता के लिए आदर्श स्थिति है. अल-क़ायदा प्रमुख अयमन अल-ज़वाहिरी का कश्मीर में ‘संयुक्त जिहाद’ का आह्वान राज्य की मौजूदा स्थिति का लाभ उठाने की उसकी लालसा को दर्शाता है. पाकिस्तान का अवसरवादी रवैया ज़ाहिर होने, अलगाव और अवसाद के व्यापक भाव, और युवाओं के ड्रग्स की चपेट में पड़े होने की मौजूदा स्थिति अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों के भर्ती अभियानों के अनुकूल है. चरमपंथी हमलों में आत्मघाती बमों और आईईडी का उपयोग होने से साफ हो जाता है कि कश्मीर का उग्रवाद पश्चिमी एशिया की हिंसक राह पर है.

साथ ही, यदि मोदी सरकार अनुच्छेद 35ए को खत्म करने में नाकाम रहती है तो अलग-थलग पड़े और बदनाम मुख्यधारा के नेताओं का हौसला बढ़ेगा. बिना पाकिस्तानी समर्थन के ये उनकी जीत होगी. उन्हें अपने डूबते राजनीतिक करियर को बचाने और अपनी भ्रष्ट छवि से ध्यान बंटा कर दोबारा वैधता हासिल करने का अवसर मिल जाएगा. समाज में व्याप्त जिहादी और भारत विरोधी भावनाओं का फायदा उठाते हुए, भविष्य में, उनकी राजनीति अलगाववाद और इस्लामी चरमपंथ की ओर तेजी से बढ़ेगी.

मैं ये नहीं कह रहा कि अनुच्छेद 35ए और अनुच्छेद 370 को हटाने से कश्मीर की सारी समस्याओं का हल हो जाएगा. उनके खात्मे से नई चुनौतियां पैदा होंगी. पर, ये मेरे इस लेख का केंद्र बिंदु नहीं है. मेरा ये कहना है कि कश्मीर के हालात को अनुच्छेद 35ए के खात्मे को अपरिहार्य बनाने लायक स्थिति में लाना सरकार की सुविचारित नीति थी. अब जबकि वैसी स्थिति बन चुकी है, मोदी सरकार को ये कदम उठाना चाहिए. यदि सरकार ऐसा नहीं करती है, तो इससे न सिर्फ उसकी भद्द पिटेगी, बल्कि यह वास्तव में कश्मीर को खिलाफत शैली का जिहाद चलाने वाले अंतरराष्ट्रीय तत्वों के हाथों में सौंपने जैसा होगा.

(लेखक सामरिक और विदेश मामलों के विशेषज्ञ, और कॉर्नेल विश्वविद्यालय से सार्वजनिक नीति में स्नातक हैं. कट्टरता के विषय पर शीघ्र ही उनकी किताब प्रकाशित होने वाली है. यहां प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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1 टिप्पणी

  1. यह लेख तथ्यों से परे झूठ पर आधारित एकपक्षीय दुर्भावनापूर्ण तथा मात्र आरोप लगाने तक सीमित है जिसमें कोई सचाई नहीं है। लिक का एकमात्र उद्देश्य भाजपा को बदनाम करना तथा कांग्रेस तृणमूल कांग्रेस समाजवादी पार्टी जनता दल यूनाइटेड जैसी घोर सांप्रदायिक पार्टियों का समर्थन करना मात्र प्रतीत होता है।

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