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Friday, 10 January, 2025
होमदेश‘सच सामने लाने की कीमत चुकाई’, बीजापुर के पत्रकार मुकेश चंद्राकर को कैसे कर रहे हैं याद

‘सच सामने लाने की कीमत चुकाई’, बीजापुर के पत्रकार मुकेश चंद्राकर को कैसे कर रहे हैं याद

छत्तीसगढ़ के बीजापुर में मुकेश एक जाना-पहचाना नाम थे, जो माओवादी हिंसा, आम नागरिकों के मुद्दों पर अपनी रिपोर्टिंग के लिए जाने जाते थे और एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जिन्होंने कभी किसी चीज़ को अपनी स्टोरी के आड़े नहीं आने दिया.

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बीजापुर: मुकेश चंद्राकर का सपना था: अपना खुद का घर हो.

छत्तीसगढ़ के बीजापुर के 34-वर्षीय पत्रकार ने अपने यूट्यूब चैनल की कमाई से एक प्लॉट भी खरीदा था और जल्द ही अपने सपनों का घर बनाने की उम्मीद कर रहे थे.

मुकेश को अच्छी तरह से जानने वाले एक साथी पत्रकार रंजन दास ने दिप्रिंट को बताया, “उनके बैंक खाते में 3 लाख रुपये जमा थे जिन्हें उन्होंने अपना घर बनाने के लिए रखा हुआ था क्योंकि उनके पास कभी घर नहीं था.”

अब प्लॉट खाली पड़ा है, जिस पर लोहे के खंभे लगे हैं, जिनमें से एक पर मुकेश की अस्थियों से भरा एक पैकेट है, जिसे उनके परिवार ने बांधा है.

अपने सपनों का घर बनाने के लिए मुकेश चंद्राकर द्वारा खरीदा गया प्लॉट | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट
अपने सपनों का घर बनाने के लिए मुकेश चंद्राकर द्वारा खरीदा गया प्लॉट | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट

पिछले हफ्ते, पुलिस को बीजापुर में एक सेप्टिक टैंक में मुकेश का शव मिला था.

पुलिस ने कहा कि छत्तीसगढ़ के युवा पत्रकार की 1 जनवरी को एक ठेकेदार सुरेश चंद्राकर, उसके भाइयों और एक सहयोगी ने कथित तौर पर पीट-पीटकर हत्या कर दी थी. मुकेश का शव दो दिन बाद 3 जनवरी को सुरेश की एक प्रॉपर्टी के सेप्टिक टैंक से बरामद किया गया.

मुकेश ने हाल ही में 120 करोड़ रुपये की सड़क निर्माण परियोजना में कथित भ्रष्टाचार को उजागर किया था. परियोजना के लिए मूल निविदा 50 करोड़ रुपये की थी, लेकिन कार्य के दायरे में कोई बदलाव किए बिना लागत बढ़कर 120 करोड़ रुपये हो गई थी. उनकी जांच के बाद राज्य सरकार ने मामले की जांच शुरू की.

पुलिस ने मुकेश की कथित हत्या के लिए सुरेश के साथ उसके भाइयों रितेश और दिनेश और उसके सुपरवाइजर महेंद्र रामटेके को गिरफ्तार किया है. उन्हें संदेह है कि मुकेश की हत्या एनडीटीवी के रायपुर ब्यूरो के लिए सुरेश की कंपनी द्वारा बनाई गई सड़कों की घटिया गुणवत्ता को उजागर करने वाली स्टोरी के कारण की गई.

वह टैंक जिससे मुकेश चंद्राकर का शव बरामद किया गया | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट
वह टैंक जिससे मुकेश चंद्राकर का शव बरामद किया गया | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट

मुकेश चंद्राकर बीजापुर में एक जाना-माना नाम थे, जो अपने यूट्यूब चैनल ‘बस्तर जंक्शन’ पर अपनी निडर रिपोर्टिंग के लिए जाने जाते थे.

स्थानीय लोग प्रमुख घटनाओं की कवरेज के लिए उन पर निर्भर थे, चाहे वह आस-पास के जंगलों में माओवादियों के खिलाफ अभियान हो या फिर रोज़मर्रा के नागरिक मुद्दे. मुकेश अपनी स्ट्रॉन्ग रिपोर्टिंग के लिए जाने जाते थे, जो बस्तर के दूरदराज के गांवों में लोगों के संघर्ष, माओवादी विद्रोहियों और सुरक्षा बलों के बीच गोलीबारी में फंसे ग्रामीणों की दुर्दशा और क्षेत्र में सड़कों सहित बुनियादी ढांचे की खराब गुणवत्ता को उजागर करती थीं.

बीजापुर की 26-वर्षीय निवासी सुषमा हलदर ने मुकेश को उनकी यूट्यूब रिपोर्ट्स के लिए याद किया, खासकर जंगलों के भीतर से नक्सल मुद्दे की उनकी कवरेज के लिए.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “मुझे यूट्यूब पर उनके वीडियो देखने के बाद उनका चेहरा याद है. वे बीजापुर के सभी मुद्दों पर रिपोर्टिंग करने वाले सबसे प्रसिद्ध रिपोर्टर थे.”


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जोशीला पत्रकार

मुकेश की पत्रकारिता की यात्रा छोटी, लेकिन असाधारण रही.

बीजापुर जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर बासागुड़ा में जन्मे मुकेश को पड़ोसी दंतेवाड़ा के एक बोर्डिंग स्कूल में भेजा गया. मुकेश और उनके बड़े भाई युकेश का पालन-पोषण उनकी मां ने किया, जो एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता थीं और उन्हें बहुत कम सैलरी मिलती थी.

उनके पत्रकार दोस्तों को याद है कि बचपन में वह मकई और आटे पर गुज़ारा करते थे.

मुकेश को पत्रकारिता में आने की प्रेरणा उनके भाई युकेश से मिली, जो मुकेश के ग्रेजुएट होने के दौरान मीडिया में शामिल हो गए थे.

स्थानीय सहकर्मी मुकेश को एक जोशीले पत्रकार के रूप में याद करते हैं, जिन्होंने कभी भी किसी भी चीज़ को स्टोरी को आगे बढ़ाने के रास्ते में नहीं आने दिया.

वह उन्हें उनकी उदारता और लोगों की मदद करने के लिए हर संभव प्रयास करने की इच्छा के लिए भी याद करते हैं.

रंजन दास 2016 से ही मुकेश से करीबी रहे हैं, जब वे एक स्थानीय अखबार के संवाददाता बनकर पड़ोसी दंतेवाड़ा से बीजापुर आए थे.

रंजन दास ने दिप्रिंट को बताया, “मुझे एक अच्छी नौकरी का मौका मिला था, लेकिन मेरे पास रहने के लिए कोई घर या कुछ नहीं था और इसलिए मैं बीजापुर आने के बारे में अनिश्चित था. हालांकि, जब मैंने मुकेश से संपर्क किया, तो उन्होंने मुझे आने के लिए कहा और यह भी आश्वासन दिया कि वे व्यवस्था करेंगे.”

उन्होंने आगे बताया, “मेरे पास कुछ भी नहीं था. मेरी जेब में सिर्फ 4,000-5,000 रुपये थे और मैं बाइक से बीजापुर आ गया. मुकेश ने मुझे उसी झोपड़ी में रहने की जगह दी, जिसमें वे रहते थे. मैं पहले तीन महीनों का किराया भी नहीं दे पाया, लेकिन मुकेश ने कभी कोई शिकायत नहीं की.”

रंजन दास और गणेश मिश्रा बीजापुर में अपने कार्यालय में जहां से मुकेश चंद्राकर काम किया करते थे | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट
रंजन दास और गणेश मिश्रा बीजापुर में अपने कार्यालय में जहां से मुकेश चंद्राकर काम किया करते थे | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट

रायपुर स्थित एक राष्ट्रीय दैनिक के संवाददाता ने कहा कि मुकेश बीजापुर में हर समय हर काम के लिए जाने वाले व्यक्ति थे.

उन्होंने कहा, “वे हमेशा उन लोगों की मदद करने के लिए तैयार रहते थे जो उन्हें जानते थे और दूसरों की मदद करने के लिए उनके पास कभी भी विचारों की कमी नहीं होती थी. उनकी हत्या बीजापुर और बस्तर क्षेत्र के अन्य पत्रकारों पर गहरा असर डालेगी, क्योंकि यह उनके काम के प्रत्यक्ष नतीजों की लगातार याद दिलाती रहेगी.”

पहली खबर और प्रसिद्धि

मुकेश पत्रकारों की एक ऐसी टीम का हिस्सा थे, जो बीजापुर में प्रशासन और माओवादियों दोनों की दुश्मनी के कारण मिलकर काम करते थे. इस टीम में गणेश मिश्रा, रंजन दास और चेतन शामिल थे.

मुकेश चंद्राकर, गणेश मिश्रा, चेतन और रंजन दास बीजापुर के अंदरूनी इलाके में असाइनमेंट पर | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट
मुकेश चंद्राकर, गणेश मिश्रा, चेतन और रंजन दास बीजापुर के अंदरूनी इलाके में असाइनमेंट पर | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

मुकेश की पत्रकारिता की शुरुआत 2010 में लोकप्रिय रहे सहारा समय चैनल से हुई थी, जहां वे बस्तर के उन दूरदराज के इलाकों से रिपोर्टिंग करते थे, जिन्हें क्षेत्र के बाहर के लोग शायद ही कभी देखते या खोजते हों.

अपने पत्रकार मित्रों के अनुसार जिसे वह “छिपा हुआ” बस्तर कहते हैं, उसकी खोज में मुकेश एक बार अपने गृह जिले बीजापुर के अंदरूनी हिस्से में एक झरने पर ठोकर खा गए. उन्होंने झरने पर रिपोर्ट की और इसकी तुलना पर्यटकों के बीच लोकप्रिय कई अन्य प्रसिद्ध झरनों से की.

उनके पत्रकार मित्र गणेश मिश्रा ने कहा, “झरने पर उनकी रिपोर्टिंग ने नम्बी झरने को छत्तीसगढ़ के पर्यटन मानचित्र पर ला खड़ा किया.”

सहारा समय के लिए रिपोर्टिंग करते मुकेश चंद्राकर | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट
सहारा समय के लिए रिपोर्टिंग करते मुकेश चंद्राकर | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

सहारा समय के बाद, मुकेश ईटीवी नेटवर्क में शामिल हो गए, जिसे बाद में नेटवर्क 18 ने अधिग्रहित कर लिया.

माओवादियों द्वारा अप्रैल 2021 में गोलीबारी के दौरान अपहृत सीआरपीएफ कमांडो राकेश्वर सिंह मन्हास की रिहाई सुनिश्चित करने वाली वार्ता में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए मुकेश को अपने दोस्तों के साथ पहचान मिली.

घटना को याद करते हुए मिश्रा ने कहा कि उन्हें एक वरिष्ठ माओवादी कमांडर का फोन आया था, जिसमें उन्होंने सीआरपीएफ कमांडो के उनके हिरासत में होने और सरकार के साथ बातचीत में मध्यस्थता करने में उनकी मदद मांगी थी.

मिश्रा ने कहा कि माओवादी कमांडर ने उनसे बातचीत को सुगम बनाने के लिए भरोसेमंद लोगों का एक समूह इकट्ठा करने के लिए कहा और यह मुकेश ही थे जो वार्ता के वास्तुकार बने, जिसके कारण मन्हास की रिहाई हुई.

अपने एक्स टाइमलाइन पर पिन किए गए ट्वीट में, मुकेश को सीआरपीएफ कमांडो राकेश मन्हास के साथ बाइक चलाते हुए देखा जा सकता है, जबकि उनके पत्रकार मित्र तीन अन्य बाइकों पर सवार हैं.

हालांकि, जैसे-जैसे वे प्रसिद्धि पाने लगे और बीजापुर में टीवी चैनल उनके और उनके दोस्तों के इंटरव्यू के लिए उमड़ने लगे, उन्होंने अपनी कंपनी को फीड भेजने में देरी कर दी.

इसके कारण रायपुर में उनका मालिकों के साथ झगड़ा हुआ. एक राष्ट्रीय दैनिक में काम करने वाले एक पत्रकार, जिसने मुकेश की हत्या से महीनों पहले उनसे बात की थी, उन्होंने बताया कि यही वह दिन था जब उन्होंने अपनी कंपनी से बात करना बंद कर दिया और खुद काम करने का फैसला किया.


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बड़े सपने

सीआरपीएफ कमांडो की घटना और अपने पूर्व बॉस के साथ झड़प के करीब एक महीने बाद, मुकेश ने यूट्यूब पत्रकारिता की दुनिया में कदम रखा.

उन्होंने मई 2021 में बस्तर जंक्शन नाम से अपना खुद का चैनल शुरू किया, जहां उन्होंने बीजापुर जिले के अंदरूनी इलाकों से ग्राउंड रिपोर्टिंग की.

रंजन दास ने याद किया कि एक पत्रकार के तौर पर उन्हें कभी भी अपनी बात को कमज़ोर तरीके से रखने के लिए नहीं जाना जाता था और वे क्षेत्र में आदिवासियों और गरीबों जैसे हाशिए पर पड़े लोगों से जुड़े मुद्दों पर मुखर थे.

रंजन दास ने याद करते हुए कहा, “उन्होंने कभी किसी की बात नहीं मानी. उन्होंने सत्ता प्रतिष्ठान और माओवादियों दोनों के खिलाफ आवाज़ उठाई, जहां भी उन्हें कुछ गलत लगा.”

आदिवासियों से जुड़े मुद्दों और उनकी ज़िंदगी को बेहतर बनाने के लिए सरकारी पहल की कमी पर उनके साहसिक रुख के कारण, मुकेश को उनके पत्रकार मित्रों ने “जेएनयू” निकनेम दिया था.

रंजन ने कहा, “वे इन मुद्दों पर बहुत मुखर रहते थे और वामपंथी विचारधारा की ओर झुकाव रखते थे.”

चैनल पर सैकड़ों वीडियो रिपोर्ट में से एक में मुकेश को माओवादियों द्वारा लगाए गए एक इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) के प्रभाव से मारे गए 10-वर्षीय बच्चे की मौत की रिपोर्टिंग करते हुए देखा जा सकता है.

उन्होंने बीजापुर के गंगालूर गांव में माओवादियों और सुरक्षा बलों के बीच गोलीबारी में फंसे 6 महीने के शिशु की मौत की भी रिपोर्टिंग की.

इनमें से कई वीडियो में मुकेश को नक्सलियों के गढ़ों से ग्राउंड रिपोर्टिंग करते हुए देखा जा सकता है, जहां वे माओवादियों के अभियानों और उनके नियंत्रण वाले क्षेत्रों में अदालतों सहित उनके द्वारा चलाई जा रही समानांतर सरकार के बारे में जानकारी देते हैं.

दास ने कहा, “वे माओवादियों को बुलाने से भी कभी नहीं डरते थे. एक बार अपनी रिपोर्टिंग के दौरान उन्होंने सार्वजनिक संपत्ति में आगजनी पर सवाल उठाया. उन्होंने पूछा कि क्या माओवादियों को वास्तव में संसाधनों की परवाह है और वह उन्हें क्यों जला रहे हैं. इसके बाद, माओवादियों ने अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें अपनी नाराज़गी दिखाते हुए एक संदेश भी भेजा था.”

दास ने बस्तर और खासतौर पर बीजापुर में पत्रकारों की दुर्दशा की ओर भी ध्यान आकर्षित किया, जहां उन्हें सच बोलने के लिए शक्तिशाली नागरिकों और माओवादियों दोनों से धमकियों का सामना करना पड़ता है.

मुकेश के पत्रकार मित्रों ने यह भी याद किया कि कैसे वह अंतर्राष्ट्रीय समाचार चैनलों द्वारा संघर्ष क्षेत्रों की कवरेज का जुनूनी ढंग से अनुसरण करते थे और अपने YouTube चैनल को उन्हीं के आधार पर बनाना चाहता था.

उन्होंने बताया कि मुकेश का सपना था कि बस्तर जंक्शन रायपुर और नई दिल्ली के कुछ शीर्ष समाचार चैनलों जितना बड़ा हो, जिसमें एक बड़ा कार्यालय हो और कई रिपोर्टर हों जो दूरदराज के इलाकों से रिपोर्टिंग करें.

उनके पत्रकार मित्रों को याद है कि 1,77,000 प्रभावशाली सब्सक्राइबर के साथ, बस्तर जंक्शन से मुकेश को एक स्थिर आय आने लगी थी.

मिश्रा ने बताया, “औसतन, YouTube से उन्हें हर महीने 20,000-22,000 रुपये की कमाई होती थी, जो बहुत अधिक गरीबी से उभरे लोगों के लिए एक सपने जैसी आय थी.”

एक बड़े कार्यालय के अलावा, मुकेश को अपने YouTube से होने वाली कमाई का इस्तेमाल अपने सपनों का घर बनाने में मदद करने की भी उम्मीद थी.

40 वर्षीय व्यवसायी प्रमोद चौहान, जो मुकेश के पड़ोसी थे, याद करते हैं कि कैसे मुकेश ने उनसे मदद मांगने से इनकार कर दिया, भले ही उनका कंस्ट्रक्शन का बिजनेस था.

चौहान ने दिप्रिंट से कहा, “उन्होंने हमेशा व्यक्तिगत संबंधों को महत्व दिया. इस क्षेत्र में होने के बावजूद उन्होंने मुझसे निर्माण में मदद नहीं मांगी, क्योंकि वे हमारे व्यक्तिगत संबंधों में बाधा नहीं डालना चाहते थे.”

उन्होंने आगे कहा, “यह उनके परिवार और यहां के पूरे समाज के लिए बहुत बड़ा झटका है. वे इस ज़मीन पर निर्माण शुरू करवाना चाहते थे और छुट्टियां मनाने स्विट्जरलैंड भी जाना चाहते थे, लेकिन ऐसा नहीं कर सके क्योंकि कभी पैसे नहीं जुटा पाए.”

आखिरी स्टोरी

अपनी मृत्यु से बमुश्किल एक हफ्ते पहले, मुकेश ने 2024 के अंत में बीजापुर के नक्सल प्रभावित इलाकों से दो हार्ड स्टोरी लिखीं.

एक सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की स्थिति पर थी और दूसरी बीजापुर के पूर्व नक्सल गढ़ों में सुरेश चंद्राकर द्वारा बनाई गई सड़कों पर.

24 दिसंबर को छपी इन दोनों स्टोरी में स्थानीय शिक्षा दूतों के सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया, जो जंगलों के अंदर अस्थायी स्कूलों में आदिवासी छात्रों को पढ़ाते हैं और बीजापुर में नेलसनार और गंगालूर गांवों के बीच सड़कों की खराब स्थिति पर प्रकाश डाला.

शिक्षा दूतों वाली स्टोरी में उन्हें कवर किया गया था जिन्हें तीन महीने से सैलरी नहीं मिली थी. इस स्टोरी ने छत्तीसगढ़ सरकार को कदम उठाने और यह घोषणा करने के लिए प्रेरित किया कि 332 शिक्षा दूतों को आखिरकार उनकी सैलरी मिल जाएगी.

स्टोरी के प्रभाव ने अनसुनी आवाज़ों को बुलंद करने और संस्थानों को जवाबदेह बनाने में मुकेश की पत्रकारिता की परिवर्तनकारी भूमिका को रेखांकित किया.

मुकेश की मौत ने पत्रकारों के बीच आक्रोश पैदा कर दिया है, जिसने छत्तीसगढ़ जैसे अशांत क्षेत्रों से रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों के सामने आने वाले जोखिमों को उजागर किया है.

मुकेश के भाई पुरुषोत्तम ने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार को पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कानून लागू करने चाहिए ताकि कोई अन्य पत्रकार अपने काम के लिए अपने भाई जैसा हश्र न भुगते — वह भी केवल इसलिए क्योंकि वह लोगों के सामने सच्चाई लाना चाहता था.

एनडीटीवी के रीजनल रेजीडेंट एडिटर अनुराग द्वारी ने कहा कि मुकेश ने सच को सामने लाने की कीमत चुकाई है.

द्वारी ने दिप्रिंट को दिए एक बयान में कहा, “बतौर पत्रकार मेरे सहकर्मी ने सच सामने लाने की कीमत चुकाई है. यह उन जोखिमों की एक कड़ी याद दिलाता है जो पत्रकार जवाबदेही की तलाश में प्रतिदिन उठाते हैं.”

उन्होंने कहा, “हम उनके परिवार के साथ एकजुटता से खड़े हैं और हम जिम्मेदार लोगों को न्याय के कटघरे में लाने के लिए त्वरित और निष्पक्ष जांच की मांग करते हैं. उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा और हम पारदर्शिता और न्याय के लिए उनकी लड़ाई जारी रखेंगे.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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