नई दिल्ली: राज्यों को पंचायती राज संस्थानों के लिए मिले केंद्रीय अनुदानों का बड़ा हिस्सा इस्तेमाल नहीं हो पाया है. इसे लेकर एक संसदीय समिति ने अनुदानों के प्रबंधन, धन के उपयोग, वित्तीय रिकॉर्ड रखने और पारदर्शिता में “गंभीर खामियां” बताई हैं.
ग्रामीण विकास और पंचायती राज पर स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि धन को गैर-जरूरी कामों में लगाया गया और खर्च करने में पारदर्शिता की कमी रही. यह रिपोर्ट इस महीने संसद में पेश की गई.
15वें वित्त आयोग (2021-26) की सिफारिशों के तहत पंचायती राज संस्थानों को केंद्र सरकार से अनुदान मिलता है, जिसे राज्य सरकारें आगे बांटती हैं। यह अनुदान 31 मार्च 2026 तक खर्च किया जाना है.
बंधे हुए अनुदान का उपयोग साफ-सफाई, ‘खुले में शौच मुक्त’ स्थिति बनाए रखने, पीने के पानी की व्यवस्था और वर्षा जल संग्रहण जैसे कार्यों के लिए किया जा सकता है. वहीं, खुले अनुदान का उपयोग गांवों की विशेष जरूरतों जैसे मत्स्य पालन, ग्रामीण आवास और गरीबी उन्मूलन के लिए किया जाता है.
समिति, जिसकी अध्यक्षता कांग्रेस सांसद सप्तगिरी शंकर उलका कर रहे हैं, ने पाया कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, गुजरात, राजस्थान और तमिलनाडु जैसे राज्यों में बंधे हुए अनुदान का बड़ा हिस्सा बचा हुआ है.
उत्तर प्रदेश, जहां देश में सबसे ज्यादा (59,889) पंचायती राज संस्थान हैं, वहां 21 नवंबर 2024 तक मिले बंधे अनुदान का लगभग 45% हिस्सा खर्च नहीं किया गया.
“उत्तर प्रदेश को 3,607.82 करोड़ रुपये की शुरुआती राशि मिली थी और 3,705.35 करोड़ रुपये का अतिरिक्त अनुदान मिला. इस तरह कुल 7,313.17 करोड़ रुपये उपलब्ध थे. लेकिन केवल 4,030.53 करोड़ रुपये खर्च हुए, जिससे 3,282.65 करोड़ रुपये (लगभग 45%) बचा रह गए,” मंत्रालय ने समिति को बताया.
महाराष्ट्र में भी 7,276.28 करोड़ रुपये में से 5,023.68 करोड़ रुपये अब तक खर्च नहीं हुए हैं.
स्थानीय जरूरतों के लिए दिए गए खुले अनुदान (यूनाइटेड ग्रांड) में भी कई राज्यों जैसे महाराष्ट्र, तमिलनाडु, राजस्थान, बिहार और उत्तर प्रदेश ने 1,900 करोड़ रुपये से 3,643 करोड़ रुपये तक की रकम अपने पास बचाए रखी है.
समिति ने कहा, “फंड का इस्तेमाल न होना विकास कार्यों में रुकावट पैदा करता है. कमजोर योजना वाले राज्यों में फंड का उपयोग सही से नहीं हो पाता, जिससे बड़ी रकम बिना खर्च के पड़ी रहती है.”
रिपोर्ट में 2023-24 के खुले अनुदान के उपयोग में कई समस्याएं बताई गईं. इसमें फंड देने में देरी, पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी और फंड को गैर-जरूरी कामों पर खर्च करने जैसी बातें शामिल हैं.
उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश ने अपने खुले अनुदान का बड़ा हिस्सा प्रशासनिक खर्चों में लगा दिया.
इसके अलावा, केंद्र सरकार ने बिहार और राजस्थान जैसे राज्यों को फंड देने में काफी देरी की.
“राजस्थान को 1,573.04 करोड़ रुपये की रकम देरी से मिली, जिससे 51 महत्वपूर्ण विकास योजनाएं समय पर पूरी नहीं हो पाईं,” रिपोर्ट में कहा गया.
समिति ने सुझाव दिया कि मंत्रालय फंड समय पर बांटने की प्रक्रिया आसान बनाए और खर्च की सख्त निगरानी के लिए एक तंत्र विकसित करे.
यह भी सिफारिश की गई कि फंड का सही उपयोग करने वाले राज्यों को अतिरिक्त अनुदान या भविष्य में अधिक छूट देकर प्रोत्साहित किया जाए, जबकि फंड का दुरुपयोग करने वाले राज्यों पर जुर्माना लगाया जाए.
खर्च में पारदर्शिता की कमी
मंत्रालय के आंकड़ों से पता चला है कि फंड के इस्तेमाल में पारदर्शिता की कमी है. मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और गुजरात जैसे राज्यों में वित्तीय रिकॉर्ड रखने और रिपोर्टिंग में कई खामियां पाई गई हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, “ग्रांट के प्रबंधन, फंड का सही उपयोग न करने और रिकॉर्ड रखने में बड़ी गड़बड़ियां हैं. गुजरात (10,127 मामले), मध्य प्रदेश (4,215 मामले), उत्तर प्रदेश (4,995 मामले) और ओडिशा (3,097 मामले) में फंड का इस्तेमाल न होने के बहुत सारे मामले सामने आए हैं, जो साफ तौर पर दिखाता है कि फंड का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं हो रहा है.”
समिति ने यह भी कहा कि छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्यों में बंधित और खुले अनुदानों का गलत इस्तेमाल एक गंभीर समस्या है.
समिति ने चिंता जताई कि “पानी और स्वच्छता जैसी जरूरी सेवाओं के लिए दिए गए फंड को अन्य कम जरूरी कामों में खर्च किया जा रहा है.”
“फंड वितरण में देरी, पारदर्शिता की कमी, और खराब योजना जैसी समस्याएं स्थानीय जरूरतों को पूरा करने में बाधा बन रही हैं,” समिति ने कहा.
ऑडिट के दौरान रिकॉर्ड न देने के मामले भी सामने आए हैं, जैसे मध्य प्रदेश (41,281 मामले), उत्तर प्रदेश (19,732 मामले) और तेलंगाना (12,129 मामले). यह पारदर्शिता में कमी दिखाते हैं और ऑडिट को मुश्किल बना देते हैं.
समिति ने मंत्रालय से कहा है कि फंड का सही उपयोग सुनिश्चित करने और जवाबदेही बढ़ाने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएं.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
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