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Saturday, 21 December, 2024
होमराजनीतिओपी चौटाला: ग्रामीण जाट जन नेता, हरियाणा के अंतिम दिग्गज, 5 बार के सीएम और और बहुत कुछ

ओपी चौटाला: ग्रामीण जाट जन नेता, हरियाणा के अंतिम दिग्गज, 5 बार के सीएम और और बहुत कुछ

वह अपने परिवार से पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अपने गांव चौटाला का नाम दूसरा नाम के रूप में लिखना शुरू किया था. उनके पिता देवी लाल का प्रभाव उनके राजनीतिक शैली और रणनीतियों में स्पष्ट रूप से दिखाई देता था.

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नई दिल्ली: 2013 में किसी समय, मीडिया ने ओम प्रकाश चौटाला से पूछा था कि अगर भारतीय राष्ट्रीय लोक दल (INLD) अगले साल हरियाणा में सत्ता में आई, तो क्या वह या उनके बेटे मुख्यमंत्री बनेंगे?

चौटाला, जो तब अपने सत्तर के दशक में थे, ने अपनी खास देहाती अंदाज में जवाब दिया. “राज और खाज करने का मजा तो तभी आता है जब खुद करो,” उन्होंने मीडिया से कहा.

यह बात, एक तरह से, पांच बार के मुख्यमंत्री चौटाला की एक खासियत को दिखाती थी: चौटाला को पूरी सत्ता चाहिए थी और वह दूसरों के साथ सत्ता बांटने के लिए तैयार नहीं थे. उनके मुख्यमंत्री बनने पर, मंत्री बस एक दिखावे के रूप में रह गए थे.

शुक्रवार को चौटाला का 89 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. वह कई बीमारियों, जैसे दिल की बीमारी और मधुमेह से जूझ रहे थे. INLD के इस वरिष्ठ नेता के दो बेटे और तीन बेटियां हैं.

उनका निधन एक ऐसे समय के खत्म होने का संकेत है, जिसमें बड़ा नेतृत्व, जनता से जुड़ाव और विवाद शामिल थे. अपनी मजबूत इच्छाशक्ति, देहाती आकर्षण और हरियाणा की कृषि प्रधान समाज में गहरी जड़ों के लिए मशहूर चौटाला ने ऐसी धरोहर छोड़ी है, जिसे आने वाले वर्षों तक याद किया जाएगा और उस पर चर्चा की जाएगी. 

एक रिटायर्ड सरकारी अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि चौटाला अधिकारियों के लिए एक डर बने हुए थे, क्योंकि वह कभी नहीं सुनते थे कि कोई उनकी बात न माने. “एक मजाक था कि अगर किसी अधिकारी को फोन आता और बताया जाता कि चौटाला से बात करनी है, तो वह अधिकारी तुरंत अपनी सीट से उठ जाता था,” अधिकारी ने याद करते हुए कहा.

हालांकि उनके बेटे अजय और अभय चौटाला भी प्रभावशाली थे, यह कहा जाता था कि उनकी ताकत वहीं खत्म होती थी जहां चौटाला की ताकत शुरू होती थी. यही था उनका काम करने का तरीका. 


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तेज़ याददाश्त और स्वास्थ्य

चौटाला की याददाश्त बहुत तेज थी, वह शायद ही कभी किसी व्यक्ति को भूलते थे और हमेशा उन्हें उनके नाम से ही पुकारते थे. जो लोग उन्हें जानते थे, वे उनकी याददाश्त की तारीफ करते थे, क्योंकि वह सालों बाद भी ऐसे ही मिलते जैसे अभी हाल ही में मिले हों.

यह गुण उन्हें एक लोकप्रिय और सम्मानित नेता बनाता था, जो सिर्फ उनके समर्थकों में ही नहीं, बल्कि मीडिया और उनके राजनीतिक विरोधियों में भी सम्मानित थे.

चौटाला का स्वास्थ्य के प्रति नजरिया भी मजबूत था. वह शराब से दूर रहते थे और शाकाहारी थे. पोलियो से प्रभावित होने के बावजूद, वह नियमित रूप से पैदल चलते और व्यायाम करते थे.

शमिम शर्मा, जो एक सेवानिवृत्त कॉलेज प्रिंसिपल हैं, याद करती हैं कि उन्होंने चौटाला को दिल्ली के LNJP अस्पताल में देखा था, जहां वह अस्पताल के आंगन में तेजी से चलते थे. चौटाला ने उन्हें कहा था, “अगर सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहना है, तो शरीर को फिट रखना बहुत जरूरी है.”

चौटाला को अपनी इच्छाशक्ति और संकल्प के लिए भी जाना जाता था. उन्होंने राजनीति और व्यक्तिगत मुश्किलों के बावजूद हमेशा अपनी पार्टी को मजबूत बनाए रखने की कोशिश की. उनका संघर्ष और ताकत उनके समर्थकों के बीच गहरे रिश्ते को दर्शाता था.

अपनी मृत्यु से कुछ महीने पहले, चौटाला ने अक्टूबर में विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए प्रचार किया था. इस चुनाव में उनकी पार्टी को 2 सीटें मिलीं. INLD 2005 से हरियाणा में सत्ता से बाहर है.

शुरुआत और समेकन

1 जनवरी 1935 को हरियाणा के सिरसा जिले के चौटाला गांव में जन्मे चौटाला, चौधरी देवी लाल के चार बेटों में सबसे बड़े थे, जो भारतीय राजनीति के प्रसिद्ध जाट नेता थे और जो दो बार भारत के उपप्रधानमंत्री बने.

वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अपने गांव चौटाला का नाम अपना दूसरा नाम रखने की शुरुआत की, हालांकि उनके परिवार का ‘गोत्र’ सिहाग है. राजनीतिक चर्चा के बीच पले-बढ़े चौटाला ने जल्दी ही नेतृत्व के गुण सीखे. उनके पिता का प्रभाव उनकी राजनीतिक शैली और रणनीतियों में दिखाई देता था, जिसमें जमीनी स्तर से जुड़ाव, देहाती शैली और किसान कल्याण के लिए काम करना शामिल था.

चौटाला ने 1968 में अपनी राजनीतिक करियर की शुरुआत की, जब उन्होंने अपने पिता के गढ़ एलेनाबाद से पहला चुनाव लड़ा. वह विशाल हरियाणा पार्टी के लालचंद खोद से हार गए. चुनावी धांधली का आरोप लगाते हुए चौटाला ने परिणाम को अदालत में चुनौती दी, जिसके परिणामस्वरूप लालचंद की सदस्यता रद्द कर दी गई. 1970 में उन्होंने जनता दल के टिकट पर उपचुनाव जीत लिया.

1987 में लोक दल ने 60 सीटें जीतीं और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और वामपंथी दलों के साथ मिलकर हरियाणा में 78 सीटें जीतीं. देवी लाल मुख्यमंत्री बने, लेकिन दो साल बाद वह उपप्रधानमंत्री बने.

चौटाला को 2 दिसंबर 1989 को मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया. हालांकि, उनके छोटे भाई रंजीत सिंह, जो देवी लाल के मंत्रिमंडल के सदस्य थे, के साथ सत्ता का संघर्ष शुरू हुआ.

सत्ता संघर्ष 1989 में मेहम उपचुनाव के दौरान बढ़ गया, जब रंजीत सिंह के करीबी सहयोगी आनंद सिंह डांगी ने चौटाला के खिलाफ नामांकन किया.

चौटाला, जो अपने विरोधियों के प्रति कठोर थे, ने कहा था, “अगर चौटाला का नाम सुनकर विरोधी रात को करवटें ना बदलने लगे तो ऐसे जीवन का क्या फायदा?”

मेहम उपचुनाव में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई, जिससे चौटाला को पांच महीने से भी कम समय बाद इस्तीफा देना पड़ा. 1991 में, चौटाला मुख्यमंत्री के रूप में वापस लौटे, लेकिन आंतरिक असंतोष के कारण उनकी सरकार केवल 15 दिनों में गिर गई.

1999 में बंसी लाल की सरकार गिरने के बाद, चौटाला ने लाल की हरियाणा विकास पार्टी से बगावत करने वाले विधायकों के साथ सरकार बनाई.

2000 में, चौटाला ने किसानों के लिए मुफ्त बिजली और ऋण माफी का वादा किया, जिससे INLD को 47 सीटें मिलीं. उस समय चौटाला अक्सर कहते थे, “पाहड़ों पर बर्फ पड़ती है. बर्फ पिघलती है तो उसके पानी से बिजली पैदा होती है. ऐसी बिजली का बिल किस बात का लेती है सरकार?”

विडंबना यह है कि बढ़ते बिजली बिलों के खिलाफ कंधला में हुए विरोध में पुलिस गोलीबारी में 1 जून 2002 को नौ प्रदर्शनकारी मारे गए.

विवादों से नाता

1977 में, चौटाला दिल्ली हवाई अड्डे पर एक लाख रुपये की कीमत वाली कलाई घड़ियों के साथ विदेश से लौटते समय पकड़े गए थे. जब उनके पिता देवी लाल को इस घटना के बारे में पता चला, तो उन्होंने चौटाला को नकार दिया.

कई साल बाद, चौटाला पर विवादास्पद आईपीएस अधिकारी एसपीएस राठौड़ को संरक्षण और प्रश्रय देने का आरोप लगा, जो रचिका गिरहोत्रा के यौन उत्पीड़न मामले में फंसे थे, जिसने राज्य को झकझोर दिया था. रचिका, जो एक उभरती हुई टेनिस खिलाड़ी थी, ने 1993 में यौन उत्पीड़न के तीन साल बाद आत्महत्या कर ली थी. राठौड़ ने उनके अधीन हरियाणा पुलिस प्रमुख के रूप में पदोन्नति पाई थी.

INLD और चौटाला के लिए सबसे बड़ा झटका 2013 में आया, जब अनुभवी नेता और उनके बेटे अजय चौटाला को हरियाणा जूनियर बेसिक टीचर्स भर्ती घोटाले में उनकी भूमिका के लिए 10 साल की सजा सुनाई गई थी.

यह वह समय था जब चौटाला तिहाड़ जेल में थे, और उन्होंने 82 साल की उम्र में 10वीं और 12वीं कक्षा की परीक्षा पास की. अपनी सजा का आधा समय पूरा करने के बाद, जाट नेता को जुलाई 2021 में वरिष्ठ कैदियों के लिए विशेष छूट योजना के तहत रिहा कर दिया गया.

चौटाला एक अनुपातहीन संपत्ति मामले में फंसे और मई 2022 में सीबीआई अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया. उन्हें चार साल की जेल की सजा और 50 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया. हालांकि, दिल्ली हाई कोर्ट ने उनकी सजा को अपील की लंबित रहने के दौरान स्थगित कर दिया. 

उमड़ती संवेदनाएं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी उन लोगों में शामिल थे जिन्होंने अपनी शोक संवेदनाएं व्यक्त कीं.

“वह (चौटाला) कई वर्षों तक राज्य की राजनीति में सक्रिय रहे और उन्होंने देवी लाल के काम को आगे बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास किए,” मोदी ने ‘X’ पर पोस्ट किया और दिवंगत नेता के साथ अपनी एक तस्वीर साझा की.

जबकि खड़गे ने कहा कि चौटाला ने हरियाणा और देश के लिए अहम योगदान दिया, सैनी ने टिप्पणी की कि इस वरिष्ठ नेता का जीवन राज्य और समाज की सेवा के लिए समर्पित था, और उनके निधन को राष्ट्र और राज्य की राजनीति के लिए अपूरणीय क्षति बताया.

केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि चौटाला के हरियाणा के विकास में योगदान को हमेशा याद किया जाएगा. हरियाणा के परिवहन मंत्री अनिल विज ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि चौटाला एक उत्कृष्ट प्रशासक थे और उनकी याददाश्त अद्वितीय थी.

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा ने अपने कार्यकाल के दौरान राज्य के विकास में चौटाला की भूमिका को उजागर किया. उनके बेटे और कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि चौटाला का निधन राज्य और देश के लिए एक बड़ी क्षति है. 

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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