नई दिल्ली: एसएसआई मंत्रा, एक सर्जिकल रोबोटिक सिस्टम, को इस महीने केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) से टेली सर्जरी की मंजूरी मिली है. इसका मतलब है कि अब यह रोबोट और वायरलेस तकनीक का इस्तेमाल करके दूर से सर्जरी की जा सकती है. यह देश में अपनी तरह का पहला सिस्टम है.
यह सिस्टम, जिसे एसएस इनोवेशन्स (SSI) नामक भारतीय कंपनी ने विकसित किया है, जो स्वदेशी सर्जिकल रोबोट बनाती है, इस वर्ष क्लिनिकल ट्रायल के तहत छह टेली सर्जरी करने में इस्तेमाल किया गया.
इन परीक्षणों के दौरान, सर्जन गुड़गांव में एसएसआई कार्यालय में थे, रोबोटिक सहायक सर्जरी (RAS) कराने वाले मरीज ऑपरेशन थिएटरों में थे, जो केंद्र से कई किलोमीटर दूर अस्पतालों में थे.
RAS में एक प्रशिक्षित सर्जन के मार्गदर्शन में रोबोटिक डिवाइस का उपयोग किया जाता है और एक वीडियो गेम जैसे कंसोल का इस्तेमाल होता है, जिसमें सर्जन विशेष चश्मे पहनकर एक मॉनिटर पर ज़ूम किए गए 3D लेआउट्स देखते हैं, और अपनी हाथों और उंगलियों के माध्यम से सर्जिकल प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं.
ऑपरेशन टेबल पर स्थित रोबोटिक हाथ मरीज के शरीर में आवश्यक स्थानों पर छोटे चीरे करते हैं और पतले ट्यूब जैसे उपकरण, जिन्हें पोर्ट कहा जाता है, उन चीरे में डाले जाते हैं ताकि सर्जिकल उपकरणों को अंदर डाला जा सके.
टेली सर्जरी वायरलेस नेटवर्किंग और रोबोटिक तकनीक का उपयोग करके सर्जनों को दूरदराज के मरीजों पर ऑपरेशन करने की अनुमति देती है. सहायक सर्जन और टीम के अन्य सदस्य ऑपरेशन टेबल के पास रहकर प्रक्रिया की निगरानी करते हैं और यदि आवश्यकता हो, तो उपकरण बदल सकते हैं.
‘ऊंची छलांग’
रोबोटिक सर्जिकल सिस्टम के अलावा, RAS (रोबोटिक सहायक सर्जरी) को सही तरीके से करने के लिए मजबूत वायरलेस नेटवर्किंग की जरूरत होती है. टेली सर्जरी को हेल्थकेयर की चुनौतियों, जैसे सर्जनों की कमी और दूरदराज क्षेत्रों में उच्च गुणवत्ता वाली सर्जिकल देखभाल की कमी को दूर करने के लिए प्रस्तावित किया गया है.
दुनिया की पहली टेली सर्जरी 2001 में न्यूयॉर्क के एक सर्जिकल टीम द्वारा की गई थी, जिसमें ZEUS रोबोटिक सिस्टम का इस्तेमाल हुआ था. यह सर्जरी फ्रांस के स्ट्रासबर्ग में एक महिला मरीज पर दो घंटे तक चली थी, जिसमें पित्ताशय का ऑपरेशन किया गया था.
भारत में, इस साल जून में गुरुग्राम के वर्ल्ड लैप्रोस्कॉपी हॉस्पिटल में उसी प्रक्रिया को किया गया, जिसमें सर्जन डॉ. आर.के. मिश्रा ने SSI मुख्यालय से पांच किलोमीटर दूर रहकर रास की सर्जरी की.
इसके बाद, और पांच टेली सर्जरी की गईं, जिनमें रैडिकल नेफ्रेेक्टोमी (किडनी और आसपास के ऊतकों का हटाना) और हिस्टेरेक्टॉमी (गर्भाशय का हटाना) जैसी प्रक्रियाएं शामिल थीं. ये सभी SSI मंत्रा के जरिए की गईं.
SSI का कहना है कि हाल ही में CDSCO द्वारा मिली स्वीकृति सर्जिकल प्रैक्टिस को बदलने, पहुंच बढ़ाने और देश में रोबोटिक सर्जरी को बढ़ावा देने में मदद कर सकती है.
SSI के संस्थापक, चेयरमैन और मुख्य कार्यकारी डॉ. सुधीर श्रीवास्तव ने कहा, “अब उपलब्ध तकनीक और बैंडविड्थ की मदद से, हम सर्जिकल विशेषज्ञता को वास्तविक रूप से विकेन्द्रीकृत और लोकतांत्रित कर सकते हैं, जिससे भारत और दुनिया के सबसे दूरदराज क्षेत्रों में भी मरीजों और सर्जनों को वर्ल्ड क्लास देखभाल मिल सकेगी.”
दिप्रिंट ने पहले रिपोर्ट किया था कि RAS की स्वीकृति और मांग भारत में बढ़ रही है, यहां तक कि गैर-मेट्रो शहरों में भी, और हर साल देश में लगभग 60,000 ऐसी सर्जरी की जा रही हैं.
अवसर और सीमाएं
विशेषज्ञों का कहना है कि टेली सर्जरी दूरदराज या उपेक्षित क्षेत्रों में मरीजों को विशेषज्ञ सर्जिकल देखभाल करने के नए अवसर खोलती है, जिससे यात्रा और संबंधित खर्चों की आवश्यकता कम हो जाती है.
यह प्रगति मेडिकल समुदाय में अधिक सहयोगात्मक प्रयासों का मार्ग प्रशस्त करती है, जिससे सर्जन अपनी विशेषज्ञता साझा कर सकते हैं और भौगोलिक सीमाओं को पार करके जटिल प्रक्रियाएं कर सकते हैं.
“टेली सर्जरी भौगोलिक सीमाओं को पार करती है, जिससे दिल्ली में स्थित एक सर्जन देश के किसी भी हिस्से में ऑपरेशन कर सकता है, बिना शारीरिक यात्रा की आवश्यकता के,” डॉ. सुधीर रावल, मेडिकल डायरेक्टर और दिल्ली के राजीव गांधी कैंसर संस्थान और अनुसंधान केंद्र (RGCIRC) के यूरो-जेनेटो ऑन्कोलॉजी प्रमुख ने दिप्रिंट से कहा.
रावल ने SSI के क्लिनिकल ट्रायल्स में से पांच टेली सर्जरी की थीं.
इस क्रांतिकारी तकनीक के बारे में उन्होंने कहा, यह मेडिकल विशेषज्ञता को दूर से प्रदान करने की अनुमति देती है, जो दूरी को पार करती है और यहां तक कि सबसे दूरदराज क्षेत्रों में उच्च गुणवत्ता वाली देखभाल तक पहुंच सुनिश्चित करती है.
लेकिन कुछ अन्य विशेषज्ञों ने यह भी रेखांकित किया कि प्रक्रिया को सफलतापूर्वक अंजाम देने के लिए टेली कम्युनिकेशन इंफ्रास्ट्रक्चर की विश्वसनीयता और सुरक्षा सुनिश्चित करना बहुत महत्वपूर्ण है.
“किसी भी प्रकार की देरी या संचार में विघ्न मरीज की सुरक्षा के लिहाज से चिंताजनक हो सकता है. साथ ही, उन्नत रोबोटिक सिस्टम और आवश्यक संचार प्रौद्योगिकी की लागत अत्यधिक हो सकती है, विशेषकर भारत जैसे देश में सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों के लिए,” दिल्ली के ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (AIIMS) के एक हार्ट सर्जन ने नाम न छापने की शर्त पर कहा.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
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