गुरुग्राम: हरियाणा के मूक-बधिर पहलवान वीरेंद्र सिंह ने पहले ही पांच डेफलंपिक पदक जीत लिए हैं और अब छठे पदक की तैयारी कर रहे हैं.
अगले साल होने वाले टोक्यो डेफलंपिक्स की तैयारी कर रहे इस पुरस्कार विजेता पहलवान ने मंगलवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आशीर्वाद मांगा.
पहलवान ने एक्स पर अपनी पोस्ट में लिखा, “मैं माननीय प्रधानमंत्री जी का तहे दिल से धन्यवाद करता हूं, आपने हम दिव्यांग खिलाड़ियों और दिव्यांगजनों को समृद्ध और सशक्त बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, इसी सम्मान के कारण, मैं अपने छठें डेफ ओलंपिक की तैयारी कर रहा हूं. मेहनत मेरी आशीर्वाद आपका! जयहिंद”.
मैं माननीय प्रधानमंत्री जी का तहे दिल से धन्यवाद करता हूँ,
आपने हम दिव्यांग खिलाड़ियों और दिव्यांगजनों को समृद्ध और सशक्त बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी,
इसी सम्मान के कारण, मैं अपने छठें डेफ ओलंपिक की तैयारी कर रहा हूँ.,
मेहनत मेरी आशीर्वाद आपका! जयहिंद🇮🇳#9YearsOfSugamyaBharat pic.twitter.com/bAyCULDGu7— Virender Singh (@GoongaPahalwan) December 3, 2024
पिछले कुछ साल में वीरेंद्र सिंह — जिन्हें ‘गूंगा पहलवान’ या मूक पहलवान के नाम से भी जाना जाता है — ने कुश्ती की दुनिया में अपने लिए एक असाधारण विरासत बनाई है.
भले ही कई लोग इस नाम को अपमानजनक और राजनीतिक रूप से गलत मानते हों, लेकिन उन्होंने इसे अपना एक्स हैंडल @GoongaPehalwan बनाया है.
38-वर्षीय पहलवान ने 2005 में ऑस्ट्रेलिया, 2013 में बुल्गारिया और 2017 में तुर्की में डेफलिंपिक में तीन स्वर्ण पदक जीते, साथ ही 2009 में ताइपे और 2022 में ब्राजील में कांस्य पदक जीता.
पांच डेफलिंपिक पदकों के अलावा, सिंह के नाम दो प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार भी हैं: अर्जुन पुरस्कार और पद्म श्री.
और अब उनकी नज़र एक नई उपलब्धि पर है.
डेफलंपिक्स की तैयारी करना बहुत मुश्किल है, लेकिन सिंह का दृढ़ संकल्प कभी कम नहीं होता.
हरियाणा, जो अपनी मुक्केबाजी परंपराओं के लिए जाना जाता है, में पैदा हुए पहलवान अक्सर सोशल मीडिया पर अपनी सख्त ट्रेनिंग की वीडियो पोस्ट करते हैं, जिसमें उन्हें अखाड़े में मिट्टी खोदते, हाथ में वजन पकड़कर बड़े-बड़े सीमेंट के पत्थरों को मिट्टी में घसीटते हुए देखा जा सकता है.
उन्होंने मई में एक्स पर एक मैसेज में टोक्यो डेफलंपिक्स की अपनी तैयारी के वीडियो के साथ लिखा था, “सपने देखना कभी न छोड़े, जिस दिन आप सपने, देखना छोड़ देंगे, उस दिन समझ ले की आप हार गए.”
उन्होंने आगे कहा, “2005 मे पहला डेफ ओलंपिक जीता, और अब 2025 मे छठे ओलंपिक की तैयारी कर रहा हूं…आप सभी देशवासियों का प्यार ओर आशीर्वाद मुझे हारने नही देता…! जयहिंद”.
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8 साल की उम्र से शुरू किया अखाड़ा
वीरेंद्र सिंह का अब तक का सफर असाधारण रहा है.
1 अप्रैल, 1986 को झज्जर जिले के सासरोली गांव में जन्मे इस पहलवान ने असाधारण शक्ति और दृढ़ संकल्प के शुरुआती लक्षण दिखाए. उनके पिता, अजीत सिंह, जो खुद एक कुश्ती ट्रेनर थे, ने उन्हें आठ साल की छोटी उम्र में कुश्ती से परिचित कराया.
संचार बाधाओं को पार करते हुए, वीरेंद्र सिंह ने फ्रीस्टाइल कुश्ती की बारीकियों में महारत हासिल की, ऐसे ट्रेनर्स से ट्रेनिंग ली जो दृश्य संकेतों और हाथ के इशारों के इस्तेमाल से उन्हें दांव सिखाते थे.
कम से कम फंडिंग और अपर्याप्त ट्रेनिंग सुविधाओं के बावजूद, उनके परिवार ने हमेशा सुनिश्चित किया कि उन्हें दूध, घी और ताज़ी सब्जियां देकर सर्वोत्तम पोषण मिले.
जल्द ही, वीरेंद्र सिंह उत्तर भारत में पारंपरिक दंगलों में लड़ रहे थे और अन्य पहलवानों को पछाड़ रहे थे.
चूंकि, फंडिंग हमेशा मुश्किल रही, इसलिए उन्होंने इन मुकाबलों में जीत का इस्तेमाल खुद का खर्च चलाने के लिए किया. एक जीत से उन्हें 5,000 रुपये से 20,000 रुपये के बीच मिलते थे.
पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर सक्षम पहलवानों को हराकर बार-बार अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है, जिससे उन्हें व्यापक प्रशंसा मिली है और उन्हें ‘गूंगा पहलवान’ निकनेम दिया गया है.
भारत में ट्रेनिंग और लड़ाई के अपने शुरुआती वर्षों के बाद, वे ग्लोबल चेहरा बन गए और खुद को दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित मूक-बधिर पहलवानों में से एक के रूप में स्थापित किया.
डेफलिंपिक्स के अलावा, उन्होंने 2016 में ईरान और 2018 में रूस में दो विश्व बधिर कुश्ती चैम्पियनशिप खिताब भी जीते हैं.
लेकिन शीर्ष पर पहुंचने का रास्ता वीरेंद्र सिंह के लिए आसान नहीं रहा है.
2001 में उन्हें ओलंपिक के लिए नेशनल टीम ने सिलेक्ट नहीं किया था क्योंकि भारतीय कुश्ती महासंघ (WFI) ने कहा था कि वह रेफरी के निर्देशों का ठीक से पालन नहीं कर पाएंगे. अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के नियम मूक-बधिर एथलीटों को ओलंपिक में भाग लेने की अनुमति देते हैं.
लेकिन उनके पिता निश्चयी थे और वीरेंद्र सिंह भारत में गांव के दंगलों में कुश्ती करते रहे — जबकि वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने का तरीका तलाश रहे थे.
उसके बाद उनके परिवार को पता चला कि ऐसे विशेष खेल हैं, जिनमें उनके जैसे एथलीट भाग ले सकते हैं. 2005 में वीरेंद्र सिंह ने मेलबर्न में अपने पहले डेफलंपिक्स में हिस्सा लिया और अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय पदक जीता.
तब से वे लगातार बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे हैं.
एक्स पर एक अन्य मैसेज में उन्होंने लिखा, “मेरे प्यारे देशवासियों, मैं न तो सुन सकता हूं और न ही बोल सकता हूं…लेकिन आप मेरे सोशल मीडिया पर जो मैसेज भेजते हैं, वह मेरे लिए किसी आशीर्वाद से कम नहीं है. आप हमेशा मुझे हिम्मत और ताकत देते हैं…जब तक मैं देश के लिए खेलता रहूंगा, मैं समर्पण और ईमानदारी के साथ खेलूंगा! जय हिंद!”
‘बोलने’ से नहीं डरते
वीरेंद्र सिंह अखाड़े के अंदर और बाहर दोनों जगह एक योद्धा हैं.
हो सकता है कि वे बोल या सुन नहीं सकते, लेकिन उनका सोशल मीडिया कभी चुप नहीं रहता. सिंह सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते हैं और खेल जगत में अन्याय के खिलाफ एक्स पर “बोलने” वालों में हमेशा सबसे पहले शामिल होते हैं, चाहे वह महिला पहलवानों द्वारा न्याय की लड़ाई हो या किसी अन्य खिलाड़ी द्वारा.
उदाहरण के लिए जब ओलंपिक विजेता साक्षी मलिक ने पिछले साल दिसंबर में कुश्ती से संन्यास की घोषणा की, जब दिल्ली के जंतर मंतर पर विरोध करने वाले पहलवानों को जबरन उनके धरना स्थल से उठा दिया गया, तो वीरेंद्र सिंह उनके समर्थन में आगे आए.
उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में अपना पद्म पुरस्कार वापस करने की घोषणा की और भाला फेंक खिलाड़ी नीरज चोपड़ा और क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को टैग किया.
उन्होंने लिखा, “मैं भी अपनी बहन और देश की बेटी के लिए पदम् श्री लौटा दूंगा, माननीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी को, मुझे गर्व है आपकी बेटी और अपनी बहन @SakshiMalik पर… जी क्यों…? पर देश के सबसे उच्च खिलाड़ियों से भी अनुरोध करूंगा वो भी अपना निर्णय दे…@sachin_rt @Neeraj_chopra1.”
खेल मंत्रालय द्वारा पूर्व WFI प्रमुख बृज भूषण शरण सिंह के शिष्य संजय सिंह की अध्यक्षता वाली WFI को निलंबित करने के बाद भी वे साक्षी मलिक के साथ खड़े रहे.
वीरेंद्र सिंह ने पद्म श्री पुरस्कार के साथ अपनी तस्वीर पोस्ट करते हुए संदेश दिया, “मैं भारत सरकार के फ़ैसलें का सम्मान करता हूं, लेकिन पद्म श्री सीने पर तभीं लगाऊंगा, जब तक हमारे देश की गौरव बहन @SakshiMalik ओर देश की महिला कुश्ती पहलवानो को पूरा सम्मान नहीं मिलेगा… आगे बढ़ो बहनों, हम तुम्हारे पीछे खड़े है! #जयहिंद”.
मैं भारत सरकार के फ़ैसलें का सम्मान करता हूँ लेकिन पद्म श्री सीने पर तभीं लगाऊँगा, जब तक हमारे देश की गौरव बहन @SakshiMalik ओर देश की महिला कुश्ती पहलवानो को पूरा सम्मान नहीं मिलेगा…
आगे बढ़ो बहनों, हम तुम्हारे पीछे खड़े है! #जयहिंद 🇮🇳 pic.twitter.com/Z22rSZE1Xa
— Virender Singh (@GoongaPahalwan) December 24, 2023
पिछले कुछ साल में वीरेंद्र सिंह विकलांग एथलीटों की आवाज़ बनकर भी उभरे हैं।
2014 में रिलीज़ हुई डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘गूंगा पहलवान’ ने सरकार और समाज से विकलांग एथलीटों के साथ होने वाले असमान व्यवहार और सीमित अवसरों को उजागर किया. इसका उद्देश्य अधिक मदद और नकद पुरस्कारों के माध्यम से विकलांग एथलीटों को लाभ पहुंचाने के लिए नीतिगत बदलावों की वकालत करना भी था.
तीन साल पहले, उन्होंने तत्कालीन मनोहर लाल खट्टर सरकार से मूक-बधिर एथलीटों के लिए पैरा-एथलीट (विकलांग एथलीट) का दर्जा देने की मांग को लेकर नई दिल्ली में हरियाणा भवन के बाहर अनिश्चितकालीन धरना दिया था.
अन्य एथलीट्स से अलग, वीरेंद्र सिंह खुद के लिए लड़ने से शायद ही कभी डरते हैं.
इस साल जनवरी में, जब सरकार ने खेल रत्न पुरस्कार के लिए उनके नाम पर विचार नहीं किया, तो उन्होंने अपनी निराशा ज़ाहिर की. उन्होंने हरियाणा सरकार पर अपनी नीति के तहत 8 करोड़ रुपये के इनाम के वादे को पूरा नहीं करने का भी आरोप लगाया.
वीरेंद्र सिंह ने एक्स पर पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने अपने पदक ज़मीन पर रखते हुए एक वीडियो पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन खेल मंत्री अनुराग ठाकुर को टैग किया.
उन्होंने लिखा, “माननीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी, व माननीय खेलमंत्री श्री @ianuragthakur जी, मुझे पांच डेफ ओलंपिक मेडल जीतने के बाद भी खेल रत्न नही मिला, और न ही हरियाणा सरकार ने पॉलिसी के तहत आठ करोड़ रुपये दिए, मेरा गुनाह इतना है मैं मूक-बधिर दिव्यांग खिलाडी हूं..! #जयहिंद”.
माननीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी, व माननीय खेलमंत्री श्री @ianuragthakur जी, मुझे पांच डेफ ओलंपिक मेडल जीतने के बाद भी खेल रत्न नही मिला, और न ही हरियाणा सरकार ने पॉलिसी के तहत आठ करोड़ रुपये दिए, मेरा गुनाह इतना है मैं मूक-बधिर दिव्यांग खिलाडी हूँ..! #जयहिंद🇮🇳 pic.twitter.com/n9KJGQGJUY
— Virender Singh (@GoongaPahalwan) January 9, 2024
पहलवान विनेश फोगाट उनके समर्थन में सामने आईं.
उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, “देश के इतने महान पहलवान को इस स्थिति में धकेला जाना शर्मनाक है. सरकार को वीरेंद्र पहलवान की अनदेखी नहीं करनी चाहिए. हम हर परिस्थिति में वीरेंद्र पहलवान जी के साथ खड़े हैं.”
इस साल जनवरी में वीरेंद्र सिंह ने एक्स पर एक और मैसेज लिखा, जिसमें उन्होंने दावा किया कि उन्हें मिलने वाली राशि नहीं दी गई.
उन्होंने लिखा, “हरियाणा सरकार द्वारा…वर्ष 2016 मे वर्ल्ड डेफ चैंपियनशिप गोल्ड जीतने पर कुल राशि = 0. वर्ष 2017 मे डेफ ओलंपिक गोल्ड जीतने पर 1 करोड़ 20 लाख दिए, घोषणा 6 करोड़? वर्ष 2022 मे डेफ ओलंपिक ब्रांज़ मेडल, मिलने थे ढाई करोड़ दिए 40 लाख? केंद्र सरकार खेल रत्न के लिए वर्ष 2017 से 2024?”
हरियाणा सरकार द्वारा..
वर्ष 2016 मे वर्ल्ड डेफ चैंपियनशिप गोल्ड जीतने पर कुल राशि = 0
वर्ष 2017 मे डेफ ओलंपिक गोल्ड जीतने पर 1 करोड़ 20 लाख दिए, घोषणा 6 करोड़?
वर्ष 2022 मे डेफ ओलंपिक ब्रांज़ मेडल, मिलने थे ढाई करोड़ दिए 40 लाख?
केंद्र सरकार खेल रत्न के लिए वर्ष 2017 से 2024? https://t.co/KF7uv4vfc3— Virender Singh (@GoongaPahalwan) January 23, 2024
हालांकि, हरियाणा सरकार की 2018 में बनाई गई खेल नीति से पता चलता है कि सरकार ने अपनी खेल नीति में डेफलिंपिक को शामिल नहीं किया है. 2022 में ही राज्य सरकार ने उन्हें 2017 में स्वर्ण पदक जीतने के लिए 1.2 करोड़ रुपये और 2017 में कांस्य पदक जीतने के लिए 40 लाख रुपये दिए.
वीरेंद्र सिंह सिर्फ खेल से जुड़े मुद्दों पर ही पोस्ट नहीं करते. पिछले साल दिसंबर में उन्होंने अपनी नन्ही बेटी खुशी और बेटे मंदीप के साथ एक वीडियो पोस्ट किया था.
मैं ओर मेरी पत्नी बोल-सुन नहीं सकते, लेकिन हमारे दोनों बच्चे बोल-सुन सकते है, मंदीप के बाद ख़ुशी ने भी अपने बोलने की मोहर लगा दी है…
मैं तो सुन नहीं सकता, लेकिन आप बताना कैसा बोलती है ख़ुशी…
ईश्वर व आप देशवासियों का आशीर्वाद है, हम नहीं पर हमारे बच्चे तो बोल-सुन सकते है.! 🙏 pic.twitter.com/whhumvq4Xr
— Virender Singh (@GoongaPahalwan) December 2, 2023
उन्होंने लिखा, “मैं ओर मेरी पत्नी बोल-सुन नहीं सकते, लेकिन हमारे दोनों बच्चे बोल-सुन सकते है, मंदीप के बाद ख़ुशी ने भी अपने बोलने की मोहर लगा दी है…मैं तो सुन नहीं सकता, लेकिन आप बताना कैसा बोलती है ख़ुशी… ईश्वर व आप देशवासियों का आशीर्वाद है, हम नहीं पर हमारे बच्चे तो बोल-सुन सकते है!”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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