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Thursday, 19 December, 2024
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हथियारों की ट्रेनिंग ली, ‘खालिस्तान का संविधान’ लिखा — बादल पर हमला करने वाले चौरा के पिछले इंटरव्यू

पूर्व कट्टरपंथी नारायण सिंह चौरा ने कई इंटरव्यू दिए हैं, जिनमें उन्होंने सिख समुदाय, अपने ‘अकाल संघ’ और ‘खालिस्तान के संविधान’ के अलावा अन्य बातों के बारे में बात की है.

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चंडीगढ़: अगस्त 2018 में ज़मानत पर रिहा होने के बाद से अलग-अलग यूट्यूब चैनलों को दिए गए इंटरव्यू की एक सीरीज़ में 68-वर्षीय पूर्व उग्रवादी नारायण सिंह चौरा ने स्वीकार किया था कि उसे “आग्नेयस्त्र चलाने की ट्रेनिंग” दी गई थी और वह पाकिस्तान भी गया था. उसने यह भी दावा किया कि उसने 1997 में पंजाब पुलिस को रिश्वत देकर छूटने का दावा किया था.

चौरा को बुधवार को अमृतसर पुलिस ने पंजाब के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल (62) पर गोली चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया था, जब वह स्वर्ण मंदिर परिसर के द्वार पर अपनी सज़ा के तौर पर सेवादार बने हुए थे.

1980 और 1990 के दशक में पंजाब के उग्रवाद के दौरान सक्रिय, चौरा कट्टरपंथी समूह खालिस्तान लिबरेशन आर्मी का संस्थापक और अब बंद हो चुके कट्टरपंथी थिंक टैंक अकाल फेडरेशन का संयोजक है. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) के पूर्व प्रचारक जून 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के समय पठानकोट में ड्यूटी पर था.

अमृतसर की एक अदालत ने गुरुवार को चौरा को तीन दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया.

2022 में दिए गए एक इंटरव्यू में चौरा ने कहा कि वह उन 20 लोगों में शामिल था, जिन्होंने 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद अंडरग्राउंड होने के दौरान एक साथ ट्रेनिंग ली थी.

उसने कहा था, “यह एक रिकॉर्ड था कि पहली बार 20 लोग, जिनमें से सभी युवा शिक्षित छात्र थे, ट्रेनिंग लेने गए…हमें ट्रेनिंग के साथ-साथ हथियार भी दिए गए.”

2021 में करतारपुर साहिब कॉरिडोर के उद्घाटन के दौरान प्रेस के साथ एक अन्य बातचीत में चौरा ने कहा कि उसके पास पासपोर्ट नहीं है और वह कॉरिडोर से नहीं जा पाएगा, लेकिन उसे पाकिस्तान में करतारपुर साहिब गुरुद्वारा में कई बार सेवा करने का “सौभाग्य” मिला है.

करतारपुर कॉरिडोर पंजाब के डेरा बाबा नानक गुरुद्वारे से पाकिस्तान के करतारपुर साहिब तक एक वीज़ा-फ्री धार्मिक कॉरिडोर है, जो भारत से तीर्थयात्रियों को करतारपुर साहिब में दरबार साहिब गुरुद्वारे में जाने की अनुमति देता है.

सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष करतारपुर साहिब में बिताए थे और वहां बने गुरुद्वारे का सिखों के लिए बहुत बड़ा धार्मिक महत्व है.

इस साल सितंबर में एक अन्य इंटरव्यू में चौरा ने दावा किया कि 1997 में जब पुलिस उसे अदालत से जेल भेज रही थी, तब उसने “रिश्वत” देकर खुद को पुलिस हिरासत से छुड़ाया था.

उसने यह भी कहा कि पुलिस को (मामले में) विभागीय जांच का सामना करना पड़ा और पुलिस ने उससे मदद भी मांगी, लेकिन उसने इनकार कर दिया.

उसने कहा, “मैं एक उग्रवादी हूं और वह पुलिस हैं. हम कभी एक साथ कैसे आ सकते हैं? उन्होंने रिश्वत के पैसे अपने लालच के लिए लिए.” उसने आगे कहा कि जिस अधिकारी को उसने रिश्वत दी थी, वे बाद में उसके बेटे की शादी के ज़रिए उसके रिश्तेदार बन गए.

पंजाब पुलिस के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि चौरा कट्टर उग्रवादियों में से एक था और उसे 1980 के दशक की शुरुआत से कई अलगाववादी गतिविधियों का मास्टर प्लानर माना जाता था.

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, “पाकिस्तान में रहने के दौरान, हमें जानकारी मिली थी कि वह फर्ज़ी नामों का इस्तेमाल कर रहा था और पंजाब में (पाकिस्तानी जासूसी एजेंसी) आईएसआई द्वारा संचालित एक रेडियो कार्यक्रम पंजाबी दरबार में बोल रहा था.”


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‘खालिस्तान का संविधान लिखा’

दिलचस्प बात यह है कि चौरा के कुछ इंटरव्यू कट्टरपंथी सिख उपदेशक पपलप्रीत सिंह को दिए गए थे, जो सिख अलगाववादी अमृतपाल सिंह का करीबी सहयोगी है.

पपलप्रीत और अमृतपाल को पंजाब पुलिस ने 2023 में सात अन्य सहयोगियों के साथ गिरफ्तार किया और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया, वो दोनों वर्तमान में असम के डिब्रूगढ़ की एक जेल में बंद हैं.

2022 में अमृतपाल के साथ जुड़ने से पहले, पपलप्रीत एक यूट्यूब चैनल चला रहा था, जिसके लिए उसने कई पूर्व उग्रवादियों और कट्टरपंथी नेताओं का इंटरव्यू लिया था.

सिख इतिहास पर एक दर्जन से अधिक किताबें लिखने का दावा करते हुए, चौरा ने पपलप्रीत को दिए एक अन्य इंटरव्यू में कहा कि ‘अकाल फेडरेशन’ के संस्थापक के रूप में उसका सबसे पहला काम “खालिस्तान का संविधान” था.

चौरा ने कहा, “उस समय केवल तीन संगठन थे जो खालिस्तान के मुद्दे को सक्रिय रूप से आगे बढ़ा रहे थे: दल खालसा, बब्बर खालसा और अकाल फेडरेशन.”

उक्त पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि “उसने (चौरा) जो किताबें लिखी हैं, उनमें गुरिल्ला युद्ध पर एक किताब, ‘ललकार’, ‘खालिस्तान दे संघर्ष की समीक्षा’ और एक अन्य किताब ‘सिख गूंज’ शामिल है.”

कई इंटरव्यू में चौरा ने सिख आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले का करीबी होने का दावा किया है. उसने कहा, “1982 में हम अकाल फेडरेशन का नाम अकाल स्टूडेंट्स एंड यूथ फेडरेशन रखना चाहते थे, लेकिन संतजी (भिंडरावाले) का मानना ​​था कि इसका नाम अकाल फेडरेशन होना चाहिए.”

चौरा ने बताया कि कैसे 1999 में उसके गांव (गुरदासपुर में चौरा बाजवा) को सीमा सुरक्षा बल और पंजाब पुलिस की संयुक्त टीमों ने घेर लिया था, जिसके बाद पुलिस ने उसे लगभग गिरफ्तार कर लिया था.

उसने आरोप लगाया, “मेरे तीन चचेरे भाई मेरे साथ थे और हम एसएचओ के खिलाफ एक ऑपरेशन करने की योजना बना रहे थे. मेरा चचेरा भाई भागने में कामयाब रहा, लेकिन मैं भाग नहीं सका क्योंकि मेरी तबीयत ठीक नहीं थी. मैं किसी तरह गांव से बाहर निकल आया, जिसके बाद पुलिस दल ने मेरे गांव के लगभग हर व्यक्ति को प्रताड़ित किया.”

अगस्त 2018 में जेल से बाहर आने के कुछ महीनों के भीतर ही चौरा ने पंजाब में पूर्व उग्रवादियों की शहादत सभाओं में भाग लेना शुरू कर दिया, जहां वो सिखों के संघर्ष के बारे में लेक्चर देते थे.

जब अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने 2022 में शिरोमणि अकाली दल के नेता सुच्चा सिंह लंगाह को क्षमा करते हुए धर्म से उनका बहिष्कार वापस ले लिया, तो चौरा ने एक इंटरव्यू में इस कदम की आलोचना की.

सोशल मीडिया पर लंगाह का एक अश्लील वीडियो सामने आने के बाद अकाल तख्त ने उसे बहिष्कृत कर दिया था.

चौरा ने एक अन्य इंटरव्यू में कहा था, “अकाल महासंघ का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि अकाल तख्त को मजबूत किया जाए और इसकी परंपराओं को मजबूत किया जाए तथा अकाल तख्त से जारी आदेशों को परिभाषित करने वाला कोई न हो.”

इस साल जुलाई में एक फेसबुक पोस्ट में चौरा ने कहा था कि सिख समुदाय ने अकाली दल और बादल को अमान्य कर दिया है, जो चुनावों में लगातार उन्हें खारिज कर रहा है.

उसने सिख समुदाय को आगाह करते हुए कहा कि अकाली दल के भीतर विद्रोही समूह बादलों की तरह ही कुख्यात है. उसने आरोप लगाया कि विद्रोही समूह द्वारा अकाल तख्त से बादल के खिलाफ शिकायत करने का कदम उन्हें राजनीतिक रूप से पुनर्जीवित करने के अलावा और कुछ नहीं है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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