इम्फाल: जून की एक रात 11.30 बजे के बाद, मणिपुर में मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार में ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री युमनाम खेमचंद सिंह के इम्फाल स्थित आवास के बाहर जीपों में सवार होकर दो दर्जन से अधिक लोग बंदूक लहराते हुए पहुंचे.
वहां पहुंचकर वह लोग अपने वाहनों से उतरकर खेमचंद सिंह के घर के गेट की ओर बढ़ने लगे. गेट पर लगे सीसीटीवी ने बाहर हो रहे हंगामे को कैद कर लिया. राज्य के दो भाजपा नेताओं और एक सुरक्षा अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि उनके आवास की सुरक्षा कर रहे सुरक्षाकर्मी गेट पर आ गए, पुलिस को सतर्क कर दिया गया और हथियारबंद लोगों को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा.
यह घटना उस समय हुई जब खेमचंद ने एक बैठक में बीरेन सिंह से मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने को कहा था. घटनाक्रम से वाकिफ भाजपा सूत्रों ने बताया कि खेमचंद ने मुख्यमंत्री से कहा कि मणिपुर की स्थिति को संभालने में उनकी सरकार की अक्षमता को लेकर जनता का गुस्सा बढ़ रहा है और निर्वाचित प्रतिनिधि शांति बहाल करने के लिए निर्वाचित नेतृत्व की ओर देख रहे हैं.
इसी तरह की एक घटना अक्टूबर में भी हुई, जब आधी रात होने से कुछ देर पहले थांगा से भाजपा विधायक टोंगब्रम रोबिन्द्रो सिंह के एक करीबी सहयोगी के घर पर बंदूकों से लैस करीब दो दर्जन लोग आ धमके. राज्य भाजपा के एक अन्य नेता ने बताया कि सहयोगी का घर रोबिन्द्रो के घर से कुछ ही दूरी पर था, जो उस समय दिल्ली में थे.
नेता ने कहा, “हंगामा सुनकर सहयोगी घर के पीछे से चुपके से बाहर निकल गए. हथियारबंद लोगों ने सहयोगी के परिवार को धमकाया और उन्हें सौंपने को कहा. सहयोगी ने मदद के लिए विधायक को फोन किया, जिन्होंने बदले में इम्फाल में सुरक्षा एजेंसियों को फोन किया और सुरक्षा मांगी. उनके हस्तक्षेप के बाद हथियारबंद लोग चले गए.”
उन्होंने आगे बताया कि यह घटना कुछ दिनों पहले 19 भाजपा विधायकों, जिनमें कुछ मंत्री भी शामिल थे, ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर सीएम बीरेन सिंह के इस्तीफे की मांग की थी.
उक्त भाजपा नेता ने बताया कि पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में से एक रोबिन्द्रो, पत्र के समन्वय और मसौदा तैयार करने में शामिल विधायकों में से एक थे.
ये कोई अलग-थलग घटनाएं नहीं हैं. पिछले कई महीनों से मणिपुर के भाजपा नेता, जिनमें ऊपर बताए गए विधायक भी शामिल हैं, राज्य में भय के माहौल में जी रहे हैं. पिछले साल जून में, भारी सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद भाजपा के पूर्व राज्य मंत्री राजकुमार रंजन सिंह के घर को आग के हवाले कर दिया गया.
दिप्रिंट ने राज्य के कई भाजपा नेताओं से बात की ताकि यह समझा जा सके कि मणिपुर में जो कुछ हो रहा है, उसके बारे में निर्वाचित प्रतिनिधि खुलकर बात क्यों नहीं कर रहे हैं और स्थिति को संबोधित करने में देरी क्यों हो रही है. सशस्त्र समूहों के डर से उनमें से कोई भी रिकॉर्ड पर बात नहीं करना चाहता था या किसी भी तरह से अपनी पहचान ज़ाहिर करने को तैयार नहीं था.
भाजपा के एक विधायक ने कहा, “कोई भी बोलना नहीं चाहता. यहां तक कि हम विधायक भी, जो इस तरह की धमकियों का सामना कर रहे हैं, अपनी सुरक्षा के डर से खुलकर सामने आने और कुछ भी कहने से डरते हैं.” डर के माहौल के बारे में बात करते हुए अन्य विधायक ने दिप्रिंट को बताया कि इम्फाल घाटी के सभी विधानसभा क्षेत्रों में अब आरामबाई टेंगोल (एटी) की एक इकाई है, जो एक मैतेई सामाजिक-सांस्कृतिक समूह है, जो पिछले मई में कुकी के साथ जातीय संघर्ष शुरू होने के बाद से मिलिशिया की तरह काम करने वाले एक कट्टरपंथी सशस्त्र संगठन में बदल गया है.
विधायक ने कहा, “एटी की सभी निर्वाचन क्षेत्रों में एक इकाई है. उनके सदस्य दिन के उजाले में खुलेआम घूमते हैं, हथियार लहराते हैं. यहां तक कि विधायकों से भी उम्मीद की जाती है कि वे उन्हें हथियार, राशन आदि खरीदने के लिए दान दें. यह खुलेआम हो रहा है, लेकिन कोई भी डर के मारे इसके बारे में बोलने की हिम्मत नहीं करता. क्या आपने किसी अन्य भारतीय राज्य में ऐसा कुछ सुना है?”
और फिर, कई अन्य सशस्त्र समूह भी हैं जो पिछले मई में हुए जातीय संघर्षों के बाद मणिपुर में सक्रिय हो गए हैं, जिन पर जबरन वसूली और धमकी देने के अलावा अन्य आरोप हैं.
यह भी पढ़ें: मणिपुर में ‘भाजपा के भीतर पड़ी फूट’ — CM बीरेन सिंह का घटता जनाधार पार्टी के लिए सिरदर्द
मंत्रियों के घरों को भी नहीं बख्शा गया
विधायक ने कहा कि 16 और 17 नवंबर को इम्फाल में जो कुछ हुआ, जब कई विधायकों और मंत्रियों के घरों में भीड़ ने तोड़फोड़ की, जिनमें से कई हथियारबंद थे, वह आंखें खोलने जैसा है. जिन घरों में तोड़फोड़ की गई, उनमें वे मंत्री और विधायक भी शामिल थे जिन्होंने प्रधानमंत्री को भेजे गए पत्र पर हस्ताक्षर किए थे.
मणिपुर पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि हालांकि, भीड़ की अग्रिम पंक्ति में गुस्साए नागरिक शामिल थे जो जिरीबाम हिंसा के अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे थे, लेकिन उन्होंने हमले में भूमिगत समूहों की संलिप्तता से इनकार नहीं किया.
पुलिस अधिकारियों में से एक ने कहा, “गोलियां चलाई गई…लोग हथियार लिए हुए थे.”
यहां तक कि इम्फाल शहर से करीब 15 किलोमीटर दूर हराऔरू में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रखंड कार्यालय को भी नहीं बख्शा गया. 17 नवंबर की सुबह करीब 150 लोगों की भीड़ ने कार्यालय परिसर पर हमला किया और जो कुछ भी उनके सामने आया उसे नुकसान पहुंचाया — अंदर खड़ी एम्बुलेंस, खिड़कियों के शीशे, दरवाजे, कंप्यूटर, टेलीविजन सेट, फर्नीचर और छत पर लगे सोलर पैनल और भी बहुत कुछ.
बीएसएफ के जवान अब चौबीसों घंटे कार्यालय की सुरक्षा करते हैं. हराऔरू में स्थित कार्यालय के एक आरएसएस कार्यकर्ता ने दिप्रिंट को बताया, “हमें नहीं पता कि वो कौन लोग थे या उन्होंने हमें क्यों निशाना बनाया. यह एकदम गलत था. हमारे कार्यालय के अंदर तीन-चार कर्मचारी थे, जो भीड़ को देखकर भाग गए.”
22 नवंबर को अपने कार्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मणिपुर के सुरक्षा सलाहकार कुलदीप सिंह ने कहा कि 16-17 नवंबर के हमलों के सिलसिले में अब तक 32 लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
तीसरे बीजेपी विधायक ने दिप्रिंट को बताया, “यहां तक कि भाजपा शासित राज्य में आरएसएस कार्यालय को भी नहीं बख्शा गया. आप यहां की स्थिति की कल्पना कर सकते हैं? हमें नहीं पता कि हमला करने आए सभी लोग स्थानीय थे या फिर हथियारबंद समूहों के बदमाश शामिल थे.”
पिछले हफ्ते संघ की मणिपुर इकाई ने एक बयान जारी कर केंद्र और राज्य सरकारों से आग्रह किया कि वह जल्द से जल्द चल रहे संघर्ष को “ईमानदारी से” हल करें. बयान में कहा गया है, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मणिपुर में 3 मई, 2023 से शुरू हुई 19 महीने पुरानी हिंसा अभी तक अनसुलझी है.”
आरएसएस के मणिपुर प्रांत प्रचारक मृत्युंजय ने इस घटना या पूर्वोत्तर राज्य की स्थिति के बारे में बात करने से इनकार कर दिया.
दिप्रिंट को हराऔरू में संघ कार्यालय से लगभग 2 किमी दूर संचालित होने वाले आरामबाई टेंगोल कार्यालय (यूनिट 16) का पता चला.
तीसरे विधायक ने जनवरी की घटना का हवाला दिया, जब अरम्बाई टेंगोल ने मणिपुर के 37 भाजपा विधायकों और 2 सांसदों को इम्फाल के कांगला किले में बैठक के लिए बुलाया था. ऐसा लगता है कि निर्वाचित विधायकों के पास बैठक में शामिल होने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.
तीसरे विधायक ने कहा कि बैठक में एटी सदस्यों ने कुछ विधायकों की पिटाई भी की. उन्होंने कहा, “यह चौंकाने वाला था कि यह सब खुलेआम हो रहा था, जहां हथियारबंद लोग निर्वाचित प्रतिनिधियों को हुक्म दे रहे थे और विरोध करने वालों की पिटाई भी कर रहे थे.”
विधायक ने कहा, “अरम्बाई टेंगोल ने 2020 में एक हिंदू पुनरुत्थानवादी समूह के रूप में शुरुआत की, लेकिन राजनीतिक संरक्षण ने उन्हें सशक्त बना दिया है. वह एक खूंखार बंदूकधारी समूह में बदल गए हैं जो निर्वाचित प्रतिनिधियों सहित लोगों को खुलेआम धमका रहे हैं.”
विधायक ने कहा कि संघर्ष के शुरुआती दिनों में अरम्बाई टेंगोल और अन्य समूहों को जनता का समर्थन प्राप्त था, जो उन्हें ऐसे व्यक्ति के रूप में देखते थे जो सशस्त्र कुकी समूहों के हमलों से लोगों की रक्षा करेंगे.
मणिपुर के लोगों के मन में बैठे डर का मुकाबला करने के लिए क्या किया जा रहा है, यह जानने के लिए दिप्रिंट ने सीएम एन. बीरेन सिंह से कॉल के ज़रिए संपर्क किया. उनकी ओर से जवाब मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
भाजपा मणिपुर इकाई के भीतर असंतोष की आवाज़ें उठ रही हैं, जिसमें इम्फाल घाटी के मैतेई विधायकों सहित कई विधायकों ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर सीएम बीरेन सिंह को बदलने की मांग की है.
उक्त बीजेपी विधायक ने कहा, “विधायकों को पता है कि पिछले 19 महीनों से हालात को नियंत्रण में लाने में निष्क्रियता के कारण उनके निर्वाचन क्षेत्र के लोग नाराज़ हो रहे हैं. उन्हें कई बार जनता के गुस्से का सामना करना पड़ा है. उनके कई घरों में तोड़फोड़ की गई है, लेकिन फिर भी वह खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं और इस बारे में बात नहीं कर रहे हैं.”
चूड़ाचांदपुर जिले के सैकोट से भाजपा विधायक पाओलीनलाल हाओकिप ने दिप्रिंट से कहा, “जिन लोगों ने भय का ऐसा माहौल बनाया, सीएम और पार्टी के राज्यसभा सांसद, वह अब इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं. यह केंद्र सरकार है जिसने भय के ऐसे माहौल को लंबे समय तक जारी रहने दिया.”
आदिवासी कुकी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले हाओकिप ने आगे कहा, “चुप रहने वाले विधायक या तो गलती से या फिर जानबूझकर जिम्मेदार लोगों के सहयोगी ही हो सकते हैं.”
पिछले मई में हुए जातीय संघर्ष के बाद से सभी 10 कुकी विधायक इम्फाल घाटी से चले गए हैं और या तो पहाड़ियों में या मणिपुर के बाहर रह रहे हैं.
ऐसा नहीं है कि मणिपुर में सुरक्षा एजेंसियां इस बात से अनजान हैं कि क्या हो रहा है. राज्य की सुरक्षा एजेंसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “हां, हमें अरम्बाई टेंगोल के सदस्यों या अन्य सशस्त्र समूहों के बारे में पता है जो अत्याधुनिक हथियारों के साथ खुलेआम घूम रहे हैं. यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) सहित अंडरग्राउंड समूह खुलेआम पैसे वसूल रहे हैं और लोगों को धमका रहे हैं, जहां भी हमें शिकायतें मिलीं, हमने कार्रवाई की है.”
अधिकारी ने कहा कि अरम्बाई टेंगोल जैसे सशस्त्र समूहों को जनता का समर्थन है, जो उन्हें कुकी सशस्त्र समूहों से अपने रक्षक के रूप में देखते हैं. “इसलिए, हमें उनके खिलाफ कार्रवाई करते समय बहुत सतर्क रहना होगा.”
अधिकारी ने कहा कि पिछले साल मई में मणिपुर में जातीय संघर्ष शुरू होने के बाद से, अकेले इम्फाल में लगभग 23 अंडरग्राउंड समूह सक्रिय हो गए हैं. “हमारे पास मणिपुर में लगभग 72 अंडरग्राउंड समूहों की जानकारी है, जिनमें से 23 समूह घाटी में सक्रिय हैं.”
मणिपुर पुलिस के एक अधिकारी ने कहा, “कई बार ऐसा होता है कि अत्याधुनिक हथियारों के साथ घूमने वाले सशस्त्र समूह के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए जाते हैं, लेकिन ऐसा इसलिए नहीं किया जाता क्योंकि स्थानीय पुलिस अनिच्छुक होती है, या विपरीत निर्देश होते हैं.”
अधिकारी ने कहा कि 14 नवंबर को छह पुलिस थाना क्षेत्रों में सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम (AFSPA) को फिर से लागू किए जाने के बाद से, बंदूकों के साथ खुलेआम घूमने वाले सशस्त्र समूहों की घटनाओं में कमी आई है.
दिप्रिंट ने मणिपुर पुलिस के महानिदेशक राजीव सिंह से फोन पर संपर्क किया था. जवाब मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: दबी आवाज़ें, बंद शटर, मणिपुर संघर्ष ने चहल-पहल भरे मोरेह को भूतहा शहर में तब्दील कर दिया