scorecardresearch
Thursday, 21 November, 2024
होमदेशअर्थजगतराज्य में ‘नौकरियों के अवसर के लिए संघर्ष’, कोविड के बाद हरियाणा में खेती की ओर लौटने की मची होड़

राज्य में ‘नौकरियों के अवसर के लिए संघर्ष’, कोविड के बाद हरियाणा में खेती की ओर लौटने की मची होड़

नाबार्ड की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि हरियाणा में कृषि परिवारों की संख्या 2021-22 तक 5 वर्षों में 34% से बढ़कर 58% हो गई है, जो अन्य कृषि प्रधान राज्यों की तुलना में अधिक वृद्धि है और यह आर्थिक तनाव का संकेत है.

Text Size:

गुरुग्राम: राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 महामारी की चपेट में आने के तुरंत बाद हरियाणा में तेज़ी से ‘रिवर्स माइग्रेशन’ देखा गया, जिसमें कई लोग काम के लिए कृषि क्षेत्र में लौट गए हैं, जो अन्य कृषि प्रधान राज्यों से कहीं ज्यादा है.

नाबार्ड के All India Rural Financial Inclusion Survey 2021-22 के अनुसार, हरियाणा में कृषि परिवारों का प्रतिशत 2021-22 तक के पांच वर्षों में 34 प्रतिशत से बढ़कर 58 प्रतिशत हो गया, जो कि कम से कम 24 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है.

अन्य राज्यों में वृद्धि इतनी तेज़ नहीं थी.

उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में कृषि परिवारों की संख्या 63 प्रतिशत से बढ़कर 66 प्रतिशत हो गई; छत्तीसगढ़ में 55 से 66 प्रतिशत; राजस्थान में 63 से 66 प्रतिशत; मध्य प्रदेश में 58 से 66 प्रतिशत; ओडिशा में 58 से 60 प्रतिशत; उत्तराखंड में 41 से 57 प्रतिशत; और तेलंगाना 47 से 55 प्रतिशत पर आ गया.

इसके विपरीत, गुजरात, कर्नाटक, बिहार और पंजाब जैसे राज्यों में 2016-17 की तुलना में 2021-22 में कृषि पर निर्भर परिवारों की संख्या में गिरावट देखी गई है.

उदाहरण के लिए गुजरात में कृषि परिवारों की हिस्सेदारी 58 प्रतिशत से 54 प्रतिशत पर 4 प्रतिशत की कमी देखी गई. कर्नाटक में यह 59 प्रतिशत से 55 प्रतिशत, बिहार में 47 प्रतिशत से 45 प्रतिशत और पंजाब में 42 प्रतिशत से 36 प्रतिशत पर आ गई है.

हालांकि, कुल मिलाकर, देश भर में कृषि परिवारों की हिस्सेदारी 48 प्रतिशत से बढ़कर 57 प्रतिशत हो गई.

विशेषज्ञों का कहना है कि यह असमानता कृषि क्षेत्र के बाहर रोज़गार के अवसर पैदा करने के हरियाणा के संघर्ष को रेखांकित करती है.

खाद्य और कृषि नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा ने कहा, “पांच साल में हरियाणा में कृषि परिवारों की संख्या में तेज़ वृद्धि से पता चलता है कि राज्य अन्य क्षेत्रों में रोज़गार के मौके प्रदान करने में सक्षम नहीं रहा है.”

उन्होंने कहा, “इन अन्य राज्यों ने शहरी क्षेत्रों और उद्योगों में रोज़गार पैदा करने में कामयाबी हासिल की है, जिससे आजीविका के लिए कृषि पर निर्भरता कम हुई है.”


यह भी पढ़ें: ‘राजकीय खजाने पर बोझ’ — हिमाचल प्रदेश में बंद होंगे 18 सरकारी होटल, HC ने आदेश में क्या कहा


हरियाणा में रोज़गार में विविधता का अभाव

जबकि हरियाणा ने औद्योगिक और बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान केंद्रित किया है, रोज़गार में विविधता का अभाव स्पष्ट है. कृषि क्षेत्र की ओर लौटने वाले ग्रामीण परिवारों की संख्या में वृद्धि अक्सर आर्थिक तनाव को दर्शाती है क्योंकि जब गैर-कृषि क्षेत्र विफल हो जाते हैं तो व्यक्ति पारंपरिक आजीविका का सहारा लेते हैं.

यह ट्रेंड एक आर्थिक विरोधाभास को भी इंगित करता है. जीडीपी वृद्धि और औद्योगिक उत्पादन में हरियाणा अग्रणी राज्यों में से एक होने के बावजूद, लाभ अभी तक गैर-कृषि क्षेत्रों में पर्याप्त रोज़गार सृजन में परिवर्तित नहीं हुआ है.

राज्य के ग्रामीण रोज़गार पैटर्न उच्च बेरोज़गारी दर को संबोधित करने के लिए गैर-कृषि गतिविधियों, कौशल विकास और उद्योगों और सेवाओं में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए लक्षित नीतियों की तत्काल ज़रूरत को दर्शाते हैं.

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि कृषि पर निर्भर परिवारों की संख्या में वृद्धि से पता चलता है कि विनिर्माण, निर्माण और सेवाओं जैसे अन्य क्षेत्रों में रोज़गार, बढ़ते कार्यबल के साथ तालमेल नहीं रख पाया है.

दिसंबर 2022 में सेंटर फॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकोनॉमी (CMIE) ने हरियाणा की बेरोज़गारी दर 37.3 प्रतिशत बताई थी.

10 अगस्त 2023 को राज्यसभा में दिए गए जवाब में सरकार ने हरियाणा में 15 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के लिए बेरोज़गारी दर को निरक्षरों के लिए 2.8 प्रतिशत, प्राथमिक शिक्षा स्तर के लिए 2.9 प्रतिशत, मिडिल पास के लिए 9.9 प्रतिशत, माध्यमिक स्तर के लिए 6.5 प्रतिशत, वरिष्ठ माध्यमिक स्तर के लिए 13.7 प्रतिशत, डिप्लोमा धारकों के लिए 20.1 प्रतिशत और स्नातकों के लिए 18.4 प्रतिशत बताया.

शर्मा ने कहा कि हरियाणा का मामला “भयावह” है क्योंकि इतने बड़े प्रतिशत परिवार यह जानते हुए भी कृषि की ओर लौट आए हैं कि वहां बहुत अधिक अवसर उपलब्ध नहीं हैं. उन्होंने कहा कि कृषि पर निर्भरता अपने स्वयं के स्थायी रास्ते बना सकती है, बशर्ते सरकार इस क्षेत्र में पर्याप्त संसाधन निवेश करे.

शर्मा ने कहा कि इसे प्राप्त करने के लिए अर्थशास्त्रियों को कृषि बजटीय आवंटन में किसी भी प्रस्तावित वृद्धि को केवल राजकोषीय घाटे पर बोझ के रूप में देखने से दूर रहना चाहिए.

हालांकि, कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी के सेवानिवृत्त प्रोफेसर महाबीर जागलान ने कहा कि भारत और अधिकांश राज्यों में कृषि परिवारों की हिस्सेदारी में वृद्धि कई कारकों का परिणाम थी जो राज्य दर राज्य अलग-अलग थे.

जागलान ने कहा, “सबसे पहले, 2016 में नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था के अनौपचारिक क्षेत्रों को खत्म कर दिया, विशेष रूप से छोटे व्यवसाय जो बड़ी संख्या में लोगों को रोज़गार देते थे.”

उन्होंने आगे कहा, “दूसरा, कोविड-19 के कारण उद्योग और व्यवसाय बंद हो गए, लेकिन इसका कृषि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. इन दो कारकों के कारण, ग्रामीण श्रमिक वापस आ गए और कृषि क्षेत्र में काम करना शुरू कर दिया. इसलिए स्वाभाविक रूप से कृषि पर निर्भर परिवारों का प्रतिशत अचानक बढ़ गया.”

उन्होंने कहा कि महामारी के दौरान पंजाब से प्रवासी वापस नहीं आए क्योंकि उनमें से अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक हैं, मुख्य रूप से कनाडा, अमेरिका और यूरोप में. नतीजतन, राज्य की कृषि पर निर्भरता कम होती रही क्योंकि इसके प्रवासी श्रमिकों पर नोटबंदी और महामारी का कोई असर नहीं पड़ा.

जागलान ने आगे बताया कि नोटबंदी और कोविड-19 के बाद रोज़गार के अवसरों में भारी गिरावट के कारण हरियाणा के श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र और उद्योग में वापस नहीं लौटे. इसके अलावा, इन क्षेत्रों में मजदूरी दरों में भी कमी आई क्योंकि बेरोज़गार श्रमिकों ने कम मजदूरी स्वीकार कर ली.

नतीजतन, महामारी के दौरान कृषि में वापस लौटे कई श्रमिक वहीं रह गए क्योंकि उन्हें अन्य क्षेत्रों में कोई मौका नहीं मिला.

जागलान ने कहा, “दुर्भाग्य से, हरियाणा सरकार कृषि के बाहर रोज़गार के अवसर पैदा करने में विफल रही, जिससे राज्य में परिवारों की निर्भरता कृषि पर बढ़ गई.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: इंजीनियर, शिक्षक, स्कूल ड्रॉपआउट से लेकर मछुआरे तक कैसे बन रहे हैं भारत में पुरातात्विक खोज के अगुवा


 

share & View comments