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Friday, 22 November, 2024
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Subscriber Writes: नेपाल में चीन की उपस्थिति, वैचारिक एवं सामाजिक प्रभाव का विस्तार

2015 की नाकेबंदी के लिए नेपाली सरकार एवं मीडिया ने चीन के प्रभाव के कारण ही भारत के ऊपर दोषारोपण किया. इसने आम नेपालियों के बीच भी इस धारणा को मजबूत किया कि उन्हें भारत के विकल्प के रूप में चीन के प्रभाव का उपयोग अपने हित संवर्धन में करना चाहिए.

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भारत एवं नेपाल शताब्दियों से सांस्कृतिक एवं सामाजिक सरोकार में एक दूसरे से संलग्न रहे हैं. परस्पर विश्वास एवं सह-अस्तित्व की चली आ रही प्राचीनतम परंपरा वर्तमान में भी दोनों देशों के नागरिक समाज के मध्य जीवंत रूप में विद्यमान है.

विगत वर्षों में नेपाल में हुए राजनीतिक परिवर्तन से भारत नेपाल संबंध प्रभावित हुआ है. नेपाल भारतीय कूटनीतिक प्रभाव से बाहर निकलते हुए चीन के साथ अपने संबंधों को प्रगाढ़ता प्रदान करने का कार्य कर रहा है.

वर्तमान समय में चीन का बढ़ता आर्थिक एवं सामरिक प्रभाव एक निर्विवाद तथ्य है. चीन का आर्थिक निवेश एवं उसकी सैन्य उपस्थिति पूरे दक्षिण एशिया में भारतीय हितों के समक्ष एक चुनौती उत्पन्न कर रही है.

नेपाल में चीन के हित, दक्षिण एशिया में बाकी देशों की तुलना में प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देते क्योंकि नेपाल न ही चीन के लिए एक बड़ा बाज़ार है और न ही नेपाल में चीन को अपने उत्पादन कार्यों के लिए अत्यधिक मात्रा में कच्चा माल मिल सकता है, फिर भी चीन नेपाल में निरंतर अपनी सामरिक उपस्थिति का दायरा बढ़ाने में लगा हुआ है.

इसके पीछे चीन की एक मंशा जगज़ाहिर है कि वह भारत के प्रभाव को उसके पड़ोसी देशों में संतुलित करने का प्रयास कर रहा है. चीन नेपाल में भारत की वैचारिक एवं सांस्कृतिक विस्तार को भी सीमित करने की दिशा में कार्य कर रहा है.

नेपाल में चीन की भाषा मंदारिन पढ़ाई जाती है, वहां के स्कूलों में इसे अनिवार्य करने के विषय में भी कार्य हो रहे हैं. चीन नेपाल के छात्रों को अपने यहां के विश्विद्यालयों में पढ़ने के लिए स्कॉलरशिप दे रहा है. नागरिकों को चीन में आने के लिए आमंत्रित कर रहा है.

चीन नेपाल में बौद्ध धर्म के प्रति भी अपने भाव व्यक्त करने में भी पीछे नहीं है, लुंबिनी का चीन अपने धार्मिक दूतावास के तौर पर उपयोग कर रहा है. चीन ने वहां विभिन्न प्रकार के विकास कार्यों में निवेश किया है.

चीन, नेपाल के आम नागरिकों की भारत को लेकर मनोस्थिति से भलीभांति परिचित है क्योंकि भारत एवं नेपाल के आम नागरिक आज भी अपनी उसी परंपरा में यकीन करते हैं, जिसमें नेपालियों के लिए भारत एक तीर्थ स्थल के समान है, जहां उनके सनातन परंपरा के आधार स्तंभ राम एवं शिव के निवास स्थान हैं. भारतीयों के लिए उनके प्रभु शिव का एक स्थाई वास काठमांडू में है, मां सीता की जन्मस्थली जनकपुर में है. इसी को ध्यान में रखते हुए चीन नेपाल के राजनीतिक सत्ता के प्रभाव का अपने हित में उपयोग करते हुए आम नेपाली जनों के मध्य भारत विरोध के विचार को संबल प्रदान कर रहा है. इसके लिए चीन अपनी वैचारिकी प्रभावित मीडिया समूहों, बौद्धिक विचारकों एवं भारत विरोधी राजनीतिक दलों की सहायता ले रहा है.

2015 की नाकेबंदी के लिए नेपाली सरकार एवं मीडिया ने चीन के प्रभाव के कारण ही भारत के ऊपर दोषारोपण किया. इसने आम नेपालियों के बीच भी इस धारणा को मजबूत किया कि उन्हें भारत के विकल्प के रूप में चीन के प्रभाव का उपयोग अपने हित संवर्धन में करना चाहिए.

चीन के राष्ट्रपति ने अपनी नेपाल की पहली यात्रा के दौरान नेपाल को अपने प्राकृतिक मित्र को संज्ञा दी. उन्होंने नेपाल के लोगों को भरोसा दिलाया कि नेपाल अब लैंडलॉक्ड कंट्री नहीं बल्कि वह लैंडलॉक्ड है क्योंकि चीन नेपाल को अपने यहां से रेललाइन एवं सड़क नेटवर्क के माध्यम जोड़ रहा है.

आम नेपाली जनों से बात करने पर यह पता चलता है कि चीन की तुलना में भारत उनके लिए अधिक फायदेमंद एवं भरोसेमंद दोस्त है, लेकिन फिर भी वह भारत पर आरोप लगाते हैं कि यदि भारत चीन के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को आगे बढ़ा रहा है तो वह नेपाल पर ऐसा नहीं करने का दबाव कैसे डाल सकता है क्योंकि चीन के साथ संबंधों का विस्तार उनके बुनियादी जरूरतों की पूर्ति में सहायक है.

आम नेपाली जनों की यही परिवर्तित मनोवृति चीन के नेपाल में बढ़ते वैचारिक एवं सांस्कृतिक प्रभाव को प्रमाणित करती है.

विगत दिनों नेपाल ने अपने नोटों की छपाई का कार्य चीनी कंपनी को सौंप दिया है, तथा उन नोटों पर एक बार पुनः 2020 की तरह भारतीय क्षेत्रों को अपने हिस्से के रूप में दिखाया है. नेपाल चीन की सत्ता के प्रभाव के कारण बार बार ऐसे कार्य कर रहा है.

अगर, हम भारत के परिदृश्य में देखें तो नेपाल भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि नेपाल तक चीन की सीधी पहुंच भारत के उत्तरी राज्यों तक उसकी पहुंच को सुनिश्चित करती है.

भारत को नेपाल की राजनीतिक सत्ता के साथ आम नेपाली की भावना को समझने की ज़रूरत है, जिसमें सह-अस्तित्व, समानता एवं परस्पर लाभांश के भाव समाहित हैं.

वास्तव में नेपाल के आम नागरिकों का भारत के प्रति मनोभाव ही है, जो आज भी भारत एवं नेपाल को परस्पर एक दूसरे के संवर्धन एवं समानोत्कर्ष का पर्याय बनाए हुए हैं.

(इस लेख को ज्यों का त्यों प्रकाशित किया गया है. इसे दिप्रिंट द्वारा संपादित/फैक्ट-चैक नहीं किया गया है.)

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