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Friday, 8 November, 2024
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झारखंड में भाजपा का प्रचार अभियान तेज़, सहयोगी कांग्रेस की नैया पार लगा रही है झामुमो

भाजपा ने झारखंड में अपने प्रमुख नेताओं मोदी और शाह को उतार दिया है, जबकि कांग्रेस की शुरुआत धीमी है, जिससे जेएमएम के हेमंत और कल्पना सोरेन को अपने कंधों पर चुनाव प्रचार का जिम्मा उठाना पड़ा है.

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रांची: झारखंड में चुनावी जंग की लकीरें खिंच गई हैं.

जैसे-जैसे मतदान का दिन नज़दीक आ रहा है, राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य में सत्ता हासिल करने के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है.

सत्तारूढ़ झामुमो-कांग्रेस गठबंधन से राज्य का नियंत्रण छीनने और हरियाणा में अपनी प्रभावशाली जीत की लय को बरकरार रखने की कोशिश के तहत भाजपा ने झारखंड में चुनाव प्रचार के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह समेत अपने शीर्ष नेताओं को शामिल किया है.

दूसरी ओर, झामुमो ने प्रचार की अधिकांश जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले रखी है क्योंकि उसकी सहयोगी पार्टी कांग्रेस ने आधे-अधूरे मन से काम किया है और उसके अधिकांश शीर्ष नेता अभी तक मैदान में नहीं दिखे हैं.

कांग्रेस के प्रमुख नेताओं के प्रचार अभियान से बड़े पैमाने पर अनुपस्थित रहने के कारण, झामुमो के शीर्ष नेता हेमंत सोरेन और स्टार प्रचारक कल्पना सोरेन ने राज्य भर में झामुमो और कांग्रेस दोनों उम्मीदवारों के लिए ताबड़तोड़ दौरे और लगातार बैठकें करके मोर्चा संभाल लिया है.

कांग्रेस पार्टी की ज़मीनी मौजूदगी सीमित होने के कारण सोरेन ने अब तक कम से कम 40 चुनावी सभाएं करके भाजपा को लगभग पूरी तरह से चुनौती दी है.

3 से 5 नवंबर के बीच सोरेन ने डाल्टनगंज, जमशेदपुर पूर्व, जमशेदपुर पश्चिम, बरही, हटिया, मनिका, जगन्नाथपुर और कोलेबिरा में कांग्रेस उम्मीदवारों के समर्थन में चुनावी सभाएं कीं.

दो नवंबर को कांग्रेस उम्मीदवार के साथ जमशेदपुर पूर्व में रोड शो के दौरान जेएमएम की कल्पना सोरेन | फोटो: नीरज सिन्हा/दिप्रिंट
दो नवंबर को कांग्रेस उम्मीदवार के साथ जमशेदपुर पूर्व में रोड शो के दौरान जेएमएम की कल्पना सोरेन | फोटो: नीरज सिन्हा/दिप्रिंट

जेएमएम प्रवक्ता तनुज खत्री ने दिप्रिंट से कहा, “हेमंत सोरेन इंडिया ब्लॉक में सीएम का चेहरा हैं और जनता के बीच एक स्थापित और लोकप्रिय नेता भी हैं. लोग कल्पना सोरेन को सुनने के लिए भी उत्सुक हैं. यही कारण है कि दोनों नेता जेएमएम के साथ घटक दलों के उम्मीदवारों के समर्थन में प्रचार कर रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, प्रचार का भार सोरेन पर इसलिए पड़ा है क्योंकि कांग्रेस के पास मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए कोई ज़मीनी नेता नहीं है.”

राजनीतिक विश्लेषक बैजनाथ मिश्रा ने दिप्रिंट से कहा, “कांग्रेस दूसरों के भरोसे चुनाव लड़ती है. अगर वह अपनी रणनीति पर लड़ेगी, तो कई गलतियां होंगी. ज़मीनी स्तर पर पार्टी का संगठनात्मक ढांचा भी कमज़ोर रहा है. पार्टी के पास अभियान को युद्ध में बदलने की रणनीति का अभाव है.”

उन्होंने कहा, “दूसरी बात, झारखंड में कांग्रेस के पास कोई ज़मीनी नेता या जननेता नहीं है जो भीड़ को बांध सके या चुनावी हवा का रुख बदल सके. यही वजह है कि हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन कांग्रेस की नैया पार लगाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.”


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भाजपा के प्रयास तेज़, कांग्रेस के नहीं

13 और 20 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र भाजपा और झामुमो मतदाताओं को लुभाने के लिए प्रयास तेज़ कर रहे हैं.

पिछले डेढ़ महीने में प्रधानमंत्री मोदी तीन बार झारखंड का दौरा कर चुके हैं.

अमित शाह द्वारा भाजपा का चुनावी घोषणापत्र जारी करने के एक दिन बाद 4 नवंबर को पार्टी ने गढ़वा और चाईबासा में मोदी के साथ दो रैलियां कीं, जहां प्रधानमंत्री ने कथित भ्रष्टाचार और अधूरे वादों के लिए झामुमो-कांग्रेस गठबंधन की आलोचना की.

पार्टी ने सितंबर में ही चुनावी बिगुल बजा दिया था, जब अमित शाह ने 11 दिवसीय परिवर्तन यात्रा शुरू की थी, जिसका समापन 2 अक्टूबर को हुआ.

इस दौरान शाह, नड्डा, कई केंद्रीय मंत्रियों और अन्य राज्यों के आधा दर्जन मुख्यमंत्रियों ने झारखंड में रैलियां और सभाएं कीं, जिससे संकेत मिलता है कि पार्टी राज्य में महत्वपूर्ण पैठ बनाने के लिए गंभीर इरादे रखती है.

दूसरी ओर, कांग्रेस के केवल दो केंद्रीय नेताओं ने राज्य में चुनावी सभाएं की हैं.

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने 5 नवंबर को पहली बार मांडू और कांके में पार्टी उम्मीदवारों के समर्थन में दो रैलियां कीं.

कांके, झारखंड में 5 नवंबर को एक चुनावी सभा में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे | फोटो: नीरज सिन्हा/दिप्रिंट
कांके, झारखंड में 5 नवंबर को एक चुनावी सभा में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे | फोटो: नीरज सिन्हा/दिप्रिंट

इन रैलियों में खरगे ने आरोप लगाया कि 4 नवंबर की जनसभाओं में मोदी के सभी वादे झूठे थे. कांग्रेस अध्यक्ष ने घुसपैठियों के मुद्दे से निपटने के लिए केंद्र सरकार पर भी सवाल उठाए, जिसे पीएम मोदी और भाजपा नेता अक्सर उठाते रहते हैं.

उसी दिन, एआईसीसी महासचिव सचिन पायलट ने जमशेदपुर पूर्व में एक चुनावी रैली को संबोधित किया, यह एक करीबी सीट है जहां पूर्व सांसद और कांग्रेस उम्मीदवार अजय कुमार ओडिशा के राज्यपाल रघुबर दास की बहू पूर्णिमा दास साहू के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं.

पायलट ने कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत के साथ जमशेदपुर में एक रोड शो भी किया.

कांग्रेस 81-सदस्यीय झारखंड विधानसभा में जेएमएम, आरजेडी और सीपीआई-एमएल गठबंधन के साथ गठबंधन में 30 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. पहले चरण में 13 नवंबर को जिन 43 सीटों पर मतदान होना है, उनमें से 16 सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार मैदान में हैं.

कांग्रेस ने इससे पहले 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की थी, जिसमें पूर्व पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और पार्टी नेता प्रियंका गांधी शामिल हैं. सूत्रों के मुताबिक, राहुल गांधी 8 नवंबर को झारखंड का दौरा कर सकते हैं.

काफी कुछ दांव पर लगे होने के बावजूद पार्टी के प्रचार प्रयासों में अब तक प्रतिद्वंद्वी भाजपा जैसी ऊर्जा और आक्रामकता का अभाव है.

इससे पहले झारखंड कांग्रेस प्रभारी गुलाम अहमद मीर, प्रदेश अध्यक्ष केशव महतो कमलेश, पूर्व अध्यक्ष राजेश ठाकुर, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय जैसे नेताओं ने पार्टी उम्मीदवारों के नामांकन में हिस्सा लिया और कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की.

झारखंड कांग्रेस प्रभारी गुलाम अहमद मीर ने मांडू में पार्टी उम्मीदवार जेपी भाई पटेल के लिए प्रचार किया | फोटो: नीरज सिन्हा/दिप्रिंट
झारखंड कांग्रेस प्रभारी गुलाम अहमद मीर ने मांडू में पार्टी उम्मीदवार जेपी भाई पटेल के लिए प्रचार किया | फोटो: नीरज सिन्हा/दिप्रिंट

कांग्रेस के एक पदाधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, “इस बार मुकाबला कड़ा है और चुनौती भी कठिन है, लेकिन कांग्रेस की रणनीति और प्रचार अभियान भाजपा और झामुमो के मुकाबले आक्रामक नहीं है.”

उन्होंने कहा, “प्रत्याशियों को खुद ही काफी संघर्ष करना पड़ रहा है. प्रत्याशियों की निगाहें राहुल गांधी और प्रियंका गांधी पर टिकी हैं.”


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झामुमो-कांग्रेस गठबंधन पर दबाव

प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भाजपा के सघन अभियान ने झामुमो-कांग्रेस गठबंधन पर दबाव बढ़ा दिया है.

पार्टी ने प्रमुख विधानसभा क्षेत्रों में वोट समीकरणों के आधार पर रणनीतिक रूप से वरिष्ठ नेताओं को तैनात किया है.

मोदी की 4 नवंबर की रैली से ठीक एक दिन पहले अमित शाह ने भाजपा का चुनावी घोषणापत्र, संकल्प पत्र जारी किया और राज्य में तीन रैलियां कीं.

भाजपा ने पार्टी के प्रचार के लिए राजनाथ सिंह, योगी आदित्यनाथ और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव, केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा जैसे वरिष्ठ नेताओं को भी तैनात किया है.

चौहान झारखंड में भाजपा के चुनाव प्रभारी हैं और हिमंत बिस्वा सरमा सह-चुनाव प्रभारी हैं. दोनों नेता चार महीने से लगातार झारखंड में डेरा डाले हुए हैं.

पूर्व सांसद और झारखंड में भाजपा के हाल ही में नियुक्त कार्यकारी अध्यक्ष रवींद्र कुमार रे ने कहा, “4 नवंबर को गढ़वा और चाईबासा में प्रधानमंत्री मोदी की रैलियों ने पलामू और कोल्हान क्षेत्रों की 23 सीटों पर कार्यकर्ताओं में जोश भर दिया है.”

उन्होंने कहा, “इसके अलावा, जनता ने मोदी के अभियान को बड़ी उम्मीदों के साथ देखा है. झारखंड में एनडीए निश्चित रूप से सत्ता में आ रही है. कांग्रेस की हालत सबसे खराब होने वाली है.”

सबकी निगाहें राहुल गांधी पर टिकी

कांग्रेस के अभियान में अब तक काफी सुस्ती के बाद अब सबकी निगाहें राहुल गांधी पर टिकी हैं.

राहुल ने 19 अक्टूबर को ‘संविधान सम्मान सम्मेलन’ में आदिवासी पहचान, जाति जनगणना, आरक्षण और संवैधानिक संरक्षण पर एक दमदार भाषण दिया.

हालांकि, यह कोई चुनावी कार्यक्रम नहीं था, लेकिन विधानसभा चुनाव से कुछ सप्ताह पहले इस कार्यक्रम में उनकी भागीदारी ने झारखंड के प्रति कांग्रेस पार्टी की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया.

कांग्रेस महासचिव के.सी. वेणुगोपाल और सांसद गौरव गोगोई ने कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए 1 नवंबर को रांची में कांग्रेस सदस्यों के साथ चर्चा की, लेकिन पार्टी ने इस दिशा में धीमी गति से काम किया.

शुरू में इसके उम्मीदवारों की सूची में देरी हुई, जिससे उन्हें अभियान की तैयारी के लिए बहुत कम समय मिला. इसने 28 अक्टूबर को देर से बोकारो और धनबाद के उम्मीदवारों की घोषणा की, जबकि नामांकन की अंतिम तिथि 29 अक्टूबर थी.

इंडिया ब्लॉक ने 5 नवंबर को अपना घोषणापत्र जारी किया. खरगे ने जेएमएम के हेमंत सोरेन, वरिष्ठ आरजेडी नेता जय प्रकाश नारायण यादव और सीपीआई-एमएल नेता शुभेंदु सेन की मौजूदगी में सात सूत्री घोषणापत्र जारी किया, जिसमें राज्य के लिए गठबंधन के एकीकृत रुख को रेखांकित किया गया.

4 नवंबर को कांग्रेस उम्मीदवार के समर्थन में डाल्टनगंज में एक चुनावी सभा में जेएमएम नेता हेमंत सोरेन | फोटो: नीरज सिन्हा/दिप्रिंट
4 नवंबर को कांग्रेस उम्मीदवार के समर्थन में डाल्टनगंज में एक चुनावी सभा में जेएमएम नेता हेमंत सोरेन | फोटो: नीरज सिन्हा/दिप्रिंट

झारखंड प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता किशोर नाथ शाहदेव ने कहा, “पार्टी रणनीतिक और मजबूती से चुनाव लड़ रही है. भाजपा चुनाव प्रचार कम करती है और भ्रम ज्यादा फैलाती है. हेमंत सोरेन हमारे गठबंधन के बड़े नेताओं में से एक हैं. इसलिए समन्वय में वे कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए भी प्रचार कर रहे हैं.”


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सीटों पर कब्ज़ा

झामुमो और कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक अपनी मौजूदा सीटों पर कब्ज़ा बनाए रखना और अपना वोट शेयर को बरकरार रखना है.

2019 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने झामुमो और राजद के साथ गठबंधन में 31 सीटों पर चुनाव लड़ा और 16 सीटें जीतीं, जो 2014 की तुलना में नौ सीटों का फायदा था. झामुमो ने 43 सीटों पर चुनाव लड़ा और 30 सीटें जीतीं.

कांग्रेस का वोट शेयर 13.87 प्रतिशत और झामुमो का वोट शेयर 18.73 प्रतिशत रहा.

2020 में कांग्रेस को फायदा तब हुआ जब बाबूलाल मरांडी की झारखंड विकास मोर्चा (JVM) के दो विधायक — प्रदीप यादव और प्रमुख आदिवासी नेता बंधु तिर्की — मरांडी द्वारा JVM का भाजपा में विलय करने के बाद पार्टी में शामिल हो गए. तिर्की अब कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हैं.

इन चुनावों में कांग्रेस झारखंड की 28 आरक्षित आदिवासी सीटों में से सात पर चुनाव लड़ रही है. पार्टी के सामने आदिवासी क्षेत्रों और सामान्य सीटों दोनों पर अपनी साख बचाने की दोहरी चुनौती है.

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने आदिवासियों के लिए आरक्षित दो सीटें-लोहरदगा और खूंटी — जीतीं, लेकिन पांच अनारक्षित या सामान्य सीटें हार गईं.

विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस ढिलाई नहीं बरत सकती, क्योंकि लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद भाजपा ने झारखंड के आदिवासी इलाकों में अपना प्रभाव फिर से हासिल करने की कोशिशें फिर से शुरू कर दी हैं.

मिश्रा ने दिप्रिंट से कहा, “लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद भाजपा ने यहां अपने हथियार तेज़ करने शुरू कर दिए हैं. इसके साथ ही भाजपा ने आदिवासी इलाकों में अपनी खोई पकड़ फिर से हासिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. जिस आक्रामकता और रणनीति के साथ वह चुनाव लड़ रही है, उससे पता चलता है कि उसका ध्यान सत्ताधारी दलों की कमजोर कड़ी को तोड़ने पर है. कांग्रेस के लिए यह सबसे मुश्किल काम हो सकता है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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