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Tuesday, 22 October, 2024
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न जाट न सिख, हरियाणा में सैनी ने एक राजपूत के हाथ में क्यों दी कृषि मंत्रालय की कमान, क्या है रणनीति

पिछले पांच दशकों से, बड़े पैमाने पर कृषि प्रधान जाट या सिख समुदायों के नेताओं ने हरियाणा के कृषि मंत्रालय का नेतृत्व किया है, जिसे अब श्याम सिंह राणा को दिया गया है.

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गुरुग्राम: राजपूत नेता श्याम सिंह राणा ने हरियाणा के कृषि मंत्रालय का कार्यभार संभाला है. यह लंबे समय से चली आ रही परंपरा से अलग है, जिसमें कृषि से जुड़े दो प्रमुख समुदायों सिख या जाट में से किसी एक को ही इस महत्वपूर्ण विभाग का नेतृत्व सौंपा जाता था.

यह कदम हरियाणा और पंजाब में किसानों द्वारा लंबे समय से किए जा रहे आंदोलन की पृष्ठभूमि में उठाया गया है, जिसमें मुख्य रूप से जाट और सिख शामिल हैं.

हालांकि राजपूत समुदाय को आम तौर पर आंदोलन का समर्थन करते नहीं देखा गया, लेकिन 2014 से 2019 तक भाजपा के टिकट पर रादौर का प्रतिनिधित्व करने वाले राणा ने सितंबर 2020 में तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध के समर्थन में पार्टी छोड़ दी थी.

राणा इस जुलाई में हरियाणा विधानसभा चुनावों से पहले फिर से पार्टी में शामिल हो गए, और पार्टी के टिकट पर रादौर से चुनाव लड़कर जीत हासिल की. ​​रविवार को नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में नई सरकार में विभागों का आवंटन किया गया.

इस प्रकार माना जाता है कि राणा की हरियाणा के कृषक समुदाय के बीच अच्छी पैठ है.

कृषि मंत्री के रूप में राणा की नियुक्ति – राज्य की अर्थव्यवस्था और बड़े किसान मतदाता-आधार पर इसके प्रभाव को देखते हुए एक महत्वपूर्ण विभाग – राज्य के शासन में राजनीतिक रणनीति और जाति प्रतिनिधित्व दोनों में बदलाव का संकेत देता है. इस बदलाव को गैर-जाट समुदायों तक पहुंचने और अधिक समावेशी राजनीतिक ढांचा बनाने के भाजपा के व्यापक प्रयास के हिस्से के रूप में भी देखा जाता है.

राणा के हाथों में महत्वपूर्ण मंत्रालय की कमान देना दिखाता है कि जिस राज्य में पारंपरिक रूप से पद या पोर्टफोलियो दिए जाने में जाति एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता था वहां समीकरण बदल रहे हैं.

राजनीतिक विश्लेषक महाबीर जगलान के अनुसार, राणा को यह मंत्रालय दिया जाना काफी दिलचस्प है और उनकी नियुक्ति ने कई लोगों को चौंका दिया है. उन्होंने कहा कि राजपूत भी कृषि से जुड़ा एक महत्त्वपूर्ण समुदाय है, लेकिन हरियाणा में उनकी संख्या बहुत कम है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “लंबे समय से हरियाणा में कृषि मंत्रालय की कमान प्रमुख कृषक समुदायों से संबंध रखने वाले व्यक्तियों के हाथों में रही है, चाहे वह जाट हो या जाट सिख. निश्चित रूप से श्याम सिंह राणा भी एक कृषक समुदाय से संबंध रखते हैं, जो आजीविका के लिए काफी हद तक कृषि पर निर्भर है. लेकिन जाट/जाट सिख, अहीर, गुर्जर और मेव की तुलना में राजपूत राज्य में एक छोटा कृषि समुदाय है, जिसका छोटे-छोटे इलाकों में दबदबा है.”

जगलान ने आगे कहा कि यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि 2020 के अंत से 2021 तक साल भर चले किसान आंदोलन के दौरान राजपूत समुदाय बहुत मुखर नहीं था. उन्होंने कहा, “तो शायद, राजपूत को कृषि मंत्रालय सौंपने का मतलब जाट और जाट सिख किसानों को किसी तरह का सबक सिखाना है, जो उस आंदोलन में सबसे आगे थे, जिसने (भाजपा के नेतृत्व वाली) केंद्र सरकार को तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर किया.”

जगलान ने रेखांकित किया कि यह कदम कृषक समुदाय के भीतर तथा प्रमुख कृषक जातियों और अन्य जातियों के बीच जातिगत विभाजन को बनाए रखने के भाजपा के उद्देश्य को भी पूरा करता है.

दिल्ली में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) की शोधकर्ता ज्योति मिश्रा ने भी कहा कि हरियाणा में एक राजपूत को कृषि मंत्री नियुक्त किए जाने से यह महत्वपूर्ण विभाग जाट को सौंपे जाने की पारंपरिक प्रथा टूट गई है, जो लंबे समय से कृषि से जुड़ा समुदाय है.

उन्होंने आश्चर्य जताया कि क्या यह कदम सरकार और किसानों के बीच की खाई को पाटने के लिए उठाया गया है. “जाटों को ऐतिहासिक रूप से एक कृषि समुदाय के रूप में जाना जाता है, जो खेती से संबंधित नीतियों और मंत्रालयों पर प्रभाव रखते हैं. हालांकि, राणा राजपूत होने के बावजूद भी खेती की पृष्ठभूमि से आते हैं. विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ 2020 के विरोध प्रदर्शन के दौरान किसानों के आंदोलन में उनकी पिछली भागीदारी को देखते हुए उनकी नियुक्ति रणनीतिक है.”

मिश्रा ने आगे कहा: “विरोध प्रदर्शन जब अपने चरम पर था उस समय राणा ने बीजेपी छोड़ दी थी, और खुद को किसानों के मुद्दे से जोड़ लिया था. राणा को इस मंत्रालय में नियुक्त करने का निर्णय सरकार और किसानों के बीच की खाई को पाटने का एक प्रयास हो सकता है.”

मिश्रा के अनुसार, राणा का कृषक समुदाय से सीधा संबंध और उनके आंदोलन को उनका समर्थन यह दर्शाता है कि वे उनकी शिकायतों और हितों को समझते हैं.

उन्होंने कहा, “उन्हें इस भूमिका में रखकर सरकार को उम्मीद है कि किसानों के साथ उनका अनुभव और तालमेल तनाव को कम करने और राज्य और कृषि क्षेत्र के बीच बेहतर संचार सुनिश्चित करने में मदद करेगा, खासकर विरोध के बाद के राजनीतिक माहौल में.”

हरियाणा के कृषि मंत्री

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और जाट नेता देवी लाल ने 1977 में अपने पहले मंत्रिमंडल में एक अन्य जाट रण सिंह को कृषि मंत्री नियुक्त किया था. 1987 में लाल के दूसरे कार्यकाल में यह पद उनके बेटे रणजीत सिंह को दिया गया.

जब ओम प्रकाश चौटाला 1999 से 2005 तक सीएम थे, तब जाट सिख जसविंदर सिंह संधू कृषि मंत्री थे.

2005 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सीएम पद संभाला और एक अन्य जाट सुरेंद्र सिंह को इस पद पर नियुक्त किया. हालांकि, एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई. हुड्डा के दूसरे कार्यकाल में, सिख समुदाय से सरदार परमवीर सिंह को कृषि मंत्री के रूप में चुना गया.

2014 में जब हरियाणा में पहली बार भाजपा सत्ता में आई, तो सीएम मनोहर लाल खट्टर के अधीन जाट नेता ओपी धनखड़ के पास कृषि विभाग था. खट्टर के दूसरे कार्यकाल में, एक अन्य जाट नेता जेपी दलाल को यह पद मिला.

भाजपा के राष्ट्रीय सचिव धनखड़ ने दिप्रिंट को बताया कि राणा भी कृषि समुदाय से आते हैं और कहा कि वे इस पद के लिए एक अच्छा विकल्प हैं.

उन्होंने कहा, “ऐसा नहीं है कि केवल जाट या जाट सिख ही कृषि पृष्ठभूमि वाले हैं. यादव, गुज्जर, राजपूत और सैनी भी कृषक हैं. इसलिए, कृषि से जुड़ी किसी भी जाति का कोई भी नेता किसानों की जरूरतों और आकांक्षाओं को समान रूप से समझता है.”

उन्होंने सामान्यतः कृषि प्रधान मानी जाने वाली जातियों के बारे में अपनी बात स्पष्ट करने के लिए अजगर (अहीर, जाट, गुज्जर और राजपूत) शब्द का प्रयोग किया.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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