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Saturday, 12 October, 2024
होमदेशRSS दशहरा कार्यक्रम में ISRO के पूर्व प्रमुख बोले- ‘यह पीढ़ी भारत को चांद पर ले जाएगी’

RSS दशहरा कार्यक्रम में ISRO के पूर्व प्रमुख बोले- ‘यह पीढ़ी भारत को चांद पर ले जाएगी’

डॉ. कोप्पिलिल राधाकृष्णन 2009 से 2014 तक इसरो के अध्यक्ष थे. आरएसएस का वार्षिक दशहरा समारोह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि संघ की स्थापना 1925 में विजयादशमी के दिन हुई थी.

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नई दिल्ली: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष पद्म भूषण डॉ. कोप्पिलिल राधाकृष्णन ने शनिवार को नागपुर में वार्षिक विजयादशमी समारोह में आरएसएस कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा, “वर्तमान पीढ़ी अंतरिक्ष के नए पीढ़ी के नेताओं का मार्गदर्शन कर रही है, जो भारत को भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की आकांक्षापूर्ण ऊंचाइयों पर ले जाएंगे और अंततः 2040 तक एक भारतीय को चंद्रमा पर पहुंचाएंगे.”

वे 2009 से 2014 तक इसरो के अध्यक्ष रहे और केरल के त्रिशूर से आते हैं, यह वह लोकसभा क्षेत्र है जहां से भारतीय जनता पार्टी ने जून में जीत हासिल की थी – केरल में पार्टी के लिए यह पहली जीत थी.

विजयादशमी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए राधाकृष्णन ने कहा कि उन्होंने पिछले दिन आरएसएस के संस्थापक केबी हेडगेवार के घर और जन्म स्थान का भी दौरा किया. उन्होंने कहा कि यह घर “सादगी और महानता का मिश्रण है”.

उन्होंने कहा, “स्मृति मंदिर में आत्म अनुशासन और निस्वार्थ सेवा के इस पुण्य वातावरण में एक दिन बिताना और संस्थापक परम पूज्य डॉ हेडगेवार को श्रद्धांजलि देना बहुत अच्छा था.”

हर साल विजयादशमी कार्यक्रम में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का संबोधन शामिल होता है. यह कार्यक्रम विशेष रूप से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि संगठन की स्थापना 1925 में विजयादशमी के दिन हुई थी. इस साल कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस और पूर्व इसरो प्रमुख के. सिवन भी मौजूद थे.

राधाकृष्णन ने कहा कि इस कार्यक्रम में इसरो के दो पूर्व अध्यक्षों की मौजूदगी ही “देश द्वारा अंतरिक्ष को दिए जा रहे महत्व को दर्शाती है”.

भारत की अंतरिक्ष यात्रा का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि “आत्मनिर्भरता अतीत से ही हमारा जुनून रही है, न कि केवल एक उद्देश्य”.

शिक्षा प्रणाली में बदलाव

उन्होंने यह भी कहा कि देश की उच्च शिक्षा प्रणाली “सकारात्मक दिशा में बदलाव की स्थिति में है”.

उन्होंने कहा, “यह खुशी की बात है कि भारत को एक जीवंत ज्ञान समाज में बदलने और वैश्विक नागरिकों को आलोचनात्मक सोच, वैचारिक समझ और मानवीय मूल्यों के साथ ढालने के लिए एक अद्भुत राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 है.”

डॉ. राधाकृष्णन ने नवंबर 2022 में शिक्षा मंत्रालय द्वारा गठित समिति का नेतृत्व किया, जिसने भारत में उच्च शिक्षा संस्थानों के मूल्यांकन और मान्यता को मजबूत करने के लिए परिवर्तनकारी सुधारों का प्रस्ताव रखा.

इस साल जून में, उन्हें परीक्षाओं के पारदर्शी और निष्पक्ष संचालन को सुनिश्चित करने और राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) में सुधार के लिए सात विशेषज्ञों की एक उच्च स्तरीय समिति का अध्यक्ष भी नियुक्त किया गया था. राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) परीक्षा 2024 में कथित अनियमितताओं को लेकर उठे विवाद के मद्देनजर यह कदम महत्वपूर्ण हो गया है.

इस कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि “उच्च शिक्षा संस्थानों के आवधिक मूल्यांकन और मान्यता को मजबूत करने में परिवर्तनकारी सुधार चल रहे हैं”.

केरल के इरिनजालाकुडा में जन्मे डॉ. राधाकृष्णन ने 1971 में विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में एवियोनिक्स इंजीनियर के रूप में अपना करियर शुरू किया था. वे आईआईटी खड़गपुर और आईआईएम बैंगलोर दोनों के पूर्व छात्र हैं. अंतरिक्ष प्रमुख के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान ही भारत ने सितंबर 2014 में मंगलयान को मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया था.

2014 के अंत में, वे प्रतिष्ठित पत्रिका नेचर द्वारा चुने गए 2014 के शीर्ष दस वैज्ञानिकों में से एक थे – देश में काम करने वाले किसी भारतीय के लिए यह पहला मौका था. अपने फेसबुक पेज पर, इसरो ने उन्हें “मैन ऑफ स्टील” के रूप में संदर्भित किया और उन्हें “एक कुशल इंजीनियर, शानदार प्रबंधक, एक त्रुटिहीन संस्थान निर्माता; और एक प्रेरक नेता” बताया.

इसमें कहा गया है कि डॉ. राधाकृष्णन ने पिछले पांच वर्षों में इसरो के शीर्ष पद पर रहते हुए कई ऐतिहासिक उपलब्धियां हासिल कीं. हालांकि, 2015 में, उनकी सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद, उन्हें बेंगलुरु में सीबीआई की एक टीम ने बुलाया और सरकारी स्वामित्व वाली इसरो की वाणिज्यिक शाखा एंट्रिक्स कॉरपोरेशन लिमिटेड, और बेंगलुरु स्थित फर्म देवास मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड के बीच उपग्रह सौदे की विवादास्पद समाप्ति के संबंध में पूछताछ की.

‘आरएसएस का मूल तत्व’

जबकि कोविड प्रोटोकॉल के कारण 2020 और 2021 में विजयादशमी के लिए कोई मुख्य अतिथि नहीं थे, पिछले मुख्य अतिथियों में गायक-संगीतकार शंकर महादेवन (2023), नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी (2018) और उद्योगपति शिव नादर (2019) शामिल हैं.

2022 में, इसने पर्वतारोही संतोष यादव को आमंत्रित किया, जो पहली बार था जब इस कार्यक्रम में एक महिला मुख्य अतिथि थी. यह कार्यक्रम पारंपरिक रूप से दशहरा के दिन नागपुर मुख्यालय में आयोजित किया जाता है. 2017 में, दलित धार्मिक नेता बाबा निर्मल दास मुख्य अतिथि थे.

इन आमंत्रणों के पीछे के विचार को समझाते हुए, आरएसएस पर दो किताबें लिखने वाले अरुण आनंद ने आरएसएस की प्रार्थना की एक पंक्ति का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया है कि इसका प्राथमिक उद्देश्य राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाना है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “यह आरएसएस का मूल तत्व है. और उनका मानना ​​है कि यह सिर्फ़ आरएसएस ही नहीं है जो देश को गौरव पर ले जा सकता है… उनका मानना ​​है कि वे इसे हासिल करने में सहायक भी हैं.”

आनंद कहते हैं कि यही कारण है कि देश के लिए योगदान देने वाले विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को उनके काम को पहचानने और उन्हें रोल मॉडल के रूप में पेश करने के लिए आमंत्रित किया जाता है. उन्होंने आरएसएस के ‘गुरु दक्षिणा’ कार्यक्रम का भी उल्लेख किया, जहां ऐसे लोगों को आमंत्रित करने की एक समान प्रथा है जो अपने कार्य क्षेत्र में अग्रणी हैं, लेकिन सीधे संघ से जुड़े नहीं हैं.

आनंद इसे “दो-तरफ़ा रास्ता” कहते हैं क्योंकि इन आमंत्रणों ने पारंपरिक रूप से इन नेताओं को आरएसएस के काम की झलक पाने का मौका दिया है.

‘भारतीय संस्कृति’

यह पहली बार नहीं है कि पूर्व इसरो प्रमुख ने आरएसएस के किसी कार्यक्रम में शिरकत की हो. 2016 में, वह बेंगलुरु में आयोजित आरएसएस अखिल भारतीय श्रृंग वाद्य शिविर ‘स्वरांजलि-2016’ के समापन समारोह में मुख्य अतिथि थे.

2016 के कार्यक्रम में, डॉ. राधाकृष्णन ने युवा पीढ़ी को संदेश देते हुए अपने संबोधन का समापन किया. “यह सही कहा गया है कि हमारी मानव पूंजी, विशेष रूप से जनसांख्यिकीय लाभांश, आगे बढ़ने या यहां तक ​​कि तेजी से आगे बढ़ने या असंभव को संभव बनाने की कुंजी रखती है.

उन्होंने कहा, “‘जानना’ और ‘करना’ महत्वपूर्ण है. लेकिन आप जो हैं, वही ‘होना’ जीवन में महत्त्वपूर्ण होता है,”

उन्होंने कहा, “हमारे जीवन और उसके उद्देश्य और हमारे मूल्य प्रणाली के बारे में हमारा दृढ़ विश्वास, हमें इस मातृभूमि और मानवता के प्रति अपने कर्तव्य को निष्काम कर्म के रूप में निभाने में मदद करेगा. हम में से हर कोई देश के लिए कुछ बदलाव ला सकता है और हममें से हर किसी को इस दुनिया से जाने के बाद एक विरासत छोड़ने का प्रयास करना चाहिए,”

इसी कार्यक्रम में भागवत ने कहा कि हिंदू संस्कृति या भारतीय संस्कृति हमारी “पहचान” है.

उन्होंने कहा, “भारत केवल किसी हिस्से या भूमि के टुकड़े का नाम नहीं है. भूमि का आकार बढ़ता (या) घटता रहता है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि उसके साथ कैसा व्यवहार किया जा रहा है. समाज की प्रकृति संस्कृति है. यही संस्कृति है जो हम सभी को एक साथ बांधती है, यही हमारी पहचान है और यही कारण है कि इसे हिंदू राष्ट्र के रूप में जाना जाता है,”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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