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Tuesday, 24 September, 2024
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दक्षिण भारत की GDP में वृद्धि अचानक नहीं हुई, इसमें केंद्र सरकार का बहुत बड़ा हाथ रहा है

हाल ही में ईएसी-पीएम के वर्किंग पेपर से पता चला है कि देश के जीडीपी में योगदान के मामले में दक्षिणी राज्यों ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है. नई दिल्ली से रियायतों और नीतिगत समर्थन के इतिहास ने इसमें अहम भूमिका निभाई है.

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प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) के हाल ही में प्रकाशित वर्किंग पेपर में पिछले 65 वर्षों में भारत के राज्यों के आर्थिक प्रदर्शन पर प्रकाश डाला गया है. कई दक्षिणी राज्यों ने देश के जीडीपी में योगदान के मामले में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है और उनके प्रयासों की सराहना की जानी चाहिए. हालांकि, पंजाब और केरल जैसे पारंपरिक रूप से आगे रहने वाले राज्यों को आत्मनिरीक्षण करने और अपने इतिहास को फिर से टटोलने की ज़रूरत है जिससे वह भी 2047 तक विकसित भारत के विजन के लिए और अधिक योगदान देने की दिशा में आगे बढ़ सकें. यह भारत में नीतिगत फैसलों, बुनियादी ढांचे, संसाधन आवंटन और क्षेत्रीय विकास के बीच मेलजोल बनाए रखने की एक कोशिश  है.

उत्तर बनाम दक्षिण की आज की नई राजनीति की जड़ें ‘फूट डालो और राज करो’ की साम्राज्यवादी नीति से निकली हैं. कुछ राजनेता और उनके साथी ऐसी विभाजनकारी राजनीति में लिप्त रहते हैं, जो उनके निजी लाभ के लिए छल-कपट के अलावा और कुछ नहीं है. राजनीति में विश्वसनीयता उतनी ही ज़रूरी है जितनी कि व्यक्तिगत जीवन और समाज में, जबकि अन्य राज्यों को भी आगे बढ़ना चाहिए, दक्षिण अपने प्रदर्शन का उपयोग ‘दक्षिणी अपवादवाद’ तर्क को आगे बढ़ाने के लिए नहीं कर सकता और उसे राजनीति नहीं करनी चाहिए.

इस पर गौर करना ज़रूरी है कि दक्षिणी राज्यों को सफलता अचानक नहीं मिली है. दक्षिण के लिए नई दिल्ली की ओर से रियायतों और नीतिगत समर्थन के इतिहास ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. यह संसद के पिछले सत्रों के दौरान उभरे प्रश्नों और बहसों को देखने में और मदद करेगा, जहां यह स्पष्ट किया गया था कि दक्षिण के नागरिक उतने ही हमारे भाई और बहन हैं जितने उत्तर के हैं. अगर वह बेहतर करते हैं, तो भारत भी आगे बढ़ता है. ये निर्णय राष्ट्रीय हित में लिए गए हैं, किसी क्षेत्रीय हित से नहीं, भले ही कुछ लोग इसे संकीर्णता मानते हों.

नीतिगत समर्थन और सफलता की कहानियां

यह सभी को मालूम है कि भारत की आज़ादी से लेकर आज तक केंद्र सरकार द्वारा लिए गए नीतिगत फैसलों ने तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश (जिसमें अब तेलंगाना भी शामिल है) और केरल की सफलता में योगदान दिया है.

इन राज्यों को 1948 की फ्रेट इक्विलाइजेशन स्कीम (FES) और कोयला सब्सिडी योजना के माध्यम से प्रोत्साहन दिया गया था, जिसके तहत बिहार और ओडिशा जैसे पूर्वी राज्यों से कोयले और लोहे जैसे माल की ढुलाई के लिए भी सब्सिडी दी गई थी. इसका उद्देश्य दक्षिणी और पश्चिमी भारत में एक-समान औद्योगिक विकास को बढ़ावा देना था. हालांकि, कॉर्नेल यूनिवर्सिटी द्वारा 2018 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि केंद्र सरकार के FES के कारण बिहार जैसे संसाधन संपन्न राज्यों का पतन हुआ, जिसकी वर्तमान में जीडीपी में केवल 4.3 प्रतिशत हिस्सेदारी है, जबकि जनसंख्या का घनत्व सबसे अधिक है.

इसके अलावा, केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई विभिन्न योजनाओं के जरिए स्वतंत्रता के बाद दक्षिणी राज्यों केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में साक्षरता और कौशल प्रशिक्षण को बढ़ावा मिला है. यहां निरंतर आर्थिक विकास हुआ, जिससे प्रौद्योगिकी, दवाओं और ऑटोमोटिव उद्योगों के लिए स्किल्ड वर्कफोर्स आसानी से मिल पाया. इस तरह उद्योग, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा में निवेश आकर्षित करने में मानव पूंजी विकास एक प्रमुख कारक रहा है.

रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र के सक्रिय समर्थन से कई इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट (आईटीआई) खोले गए, जो बिजली और प्लंबिंग जैसे क्षेत्रों में युवाओं को ट्रेनिंग देते हैं. भारत सरकार ने सितंबर 2022 की नई आईटी नीति के जरिए मानव पूंजी संसाधनों का लाभ उठाने के लिए और 1.94 बिलियन फंड दिया, जिससे आंध्र, तेलंगाना और तमिलनाडु के आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला — ये वो राज्य हैं जो 2023-24 में भारत के जीडीपी का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा हैं.

एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) सिस्टम का लागू होना उल्लेखनीय उपाय है. उत्तरी राज्यों में उनके दक्षिणी समकक्षों की तुलना में अधिक जीएसटी कलेक्शन है. यह दर्शाता है कि दक्षिणी राज्य उत्तरी राज्यों को अधिक उत्पाद और सेवाएं दे (बेच) (विक्रय) रहे हैं — जिसमें ऑटोमोबाइल, आईटी, स्वास्थ्य सेवाएं आदि शामिल हैं.

सड़कों और बंदरगाहों के विकसित नेटवर्क तक पहुंच सहित बेहतर भौतिक बुनियादी ढांचा भी उद्योगों के लिए निवेश आकर्षित करने का एक कारक रहा है. बिजली आपूर्ति, जो पहले अनियमित थी, अब केंद्र सरकार और उसकी नीतियों के प्रयासों से स्थिर हो गई है — खासकर बीते दस साल में. केंद्र सरकार ने दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों को उद्योगों और निवेशों के लिए और भी अधिक आकर्षक बना दिया है. उदाहरण के लिए आंध्र प्रदेश में राज्य सरकार ने त्वरित विद्युत विकास कार्यक्रम के तहत इलेक्ट्रिक प्लांट्स की बहाली और आधुनिकीकरण के लिए भारत सरकार से फंड हासिल किया.

बुनियादी ढांचे पर ध्यान केंद्रित करने से माल और लोगों की आवाजाही आसान हुई है, लेन-देन की लागत घटी है और आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा मिला है. पूरे देश में बेहतर कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा 2019 में शुरू की गई राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (एनआईपी) कच्चे माल की बेहतर पहुंच प्रदान करके कम विकसित राज्यों को आगे बढ़ने में मदद कर रही है.

गुजरात के सराहनीय विकास को देखना भी उत्साहजनक है. यह राज्य 1960 के दशक में ही अस्तित्व में आया था, लेकिन इसने काफी तेज़ी से प्रगति की है. गुजरात प्रति व्यक्ति आय में महाराष्ट्र से भी आगे निकल गया, 2023-24 में इसने राष्ट्रीय औसत का 160.7 प्रतिशत हासिल किया है. गुजरात की सफलता की कहानी का श्रेय पिछले 30 वर्षों में उसके नेताओं की प्रगतिशील दृष्टि को दिया जा सकता है.

राज्य जिन्हें विचार करने की दरकार

पश्चिम बंगाल की निरंतर गिरावट, प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों, समुद्र से निकटता और पर्याप्त शिक्षित मैनपावर के बावजूद, लगातार सरकारों की कल्याण के प्रति राजनीतिक उदासीनता का चौंकाने वाला प्रमाण है. कभी भारत के जीडीपी में अग्रणी योगदानकर्ता — 1960-61 में 10.5 प्रतिशत — राज्य का हिस्सा घटकर 5.6 प्रतिशत रह गया है.

पश्चिम बंगाल के नीति निर्माताओं की अदूरदर्शी दृष्टि और गैर-ज़रूरी प्राथमिकताएं इस कभी शक्तिशाली राज्य के पतन के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार हैं. सभी हितधारकों के लिए आत्मनिरीक्षण करने और ओडिशा जैसे राज्यों से सीखने का वक्त है, जो पारंपरिक रूप से पिछड़े होने के बावजूद प्रति व्यक्ति आय में बंगाल से आगे निकल गए हैं.

इसी तरह मध्य प्रदेश जैसे सुशासित राज्य कई अन्य राज्यों के लिए एक मॉडल पेश करते हैं कि कैसे एक बीमारू राज्य को मध्यम आय, विकास-उन्मुख राज्य बनाया जा सकता है.

कुछ उत्तरी राज्यों की सरकारों ने मुफ्त बिजली और पानी जैसी राजनीति करके अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाने के लिए सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल किया, जबकि ये मुफ्त वितरण न्यायपूर्ण और समतापूर्ण समाज को बढ़ावा देने के बैनर तले किए जाते हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत इसके बिल्कुल उलट है. दोषपूर्ण कार्यान्वयन से विकसित भारत के लिए कोई रोडमैप नहीं मिलता, जिसमें उद्यमिता, विकास या स्टार्टअप कल्चर के लिए स्थान नहीं है. पंजाब हरित क्रांति का लाभ उठाने में असमर्थ रहा है और पारंपरिक रूप से पिछड़े हरियाणा ने उसे पीछे छोड़ दिया, जबकि हरियाणा की सापेक्ष प्रति व्यक्ति आय 176.89 प्रतिशत तक बढ़ गई है, पंजाब की घटकर 106 प्रतिशत रह गई है.

केरल एक और राज्य है जिसे यह तय करने की ज़रूरत है कि वह अपनी सरकार की नीतियों को अपनी उच्च साक्षरता दर के लाभों को कम करने की अनुमति न दे.

उत्तर-दक्षिण विभाजन पैदा करने के बजाय, विकास और आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों को अपने संसाधनों का बेहतर प्रबंधन करना चाहिए.

2014 में योजना आयोग की जगह लेने वाले नीति आयोग का लक्ष्य 2047 तक भारत को विकास के चरम तक पहुंचाना है. दोनों पक्षों को इससे सबक लेना होगा. नीति निर्माताओं को पूरे देश के संतुलित विकास के लिए अधिक समग्र नीतियों की आवश्यकता है.

उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्य — जो कम साक्षरता दर, अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवा और खराब बुनियादी ढांचे जैसे मुद्दों के कारण पिछड़ गए हैं — ने उच्च मूल्य वाले क्षेत्रों में निवेश आकर्षित करने और विकास को बढ़ावा देने की उनकी क्षमता को बाधित किया है. उन्हें अपनी कमर कसनी चाहिए और संसाधन प्रबंधन और आर्थिक विकास के बीच प्रभावी ढंग से संतुलन बनाना चाहिए.

इस पर एक गृहिणी की डायरी से सबक लिया जा सकता है, जो सीमित बजट के बावजूद, परिवार के खर्च, भोजन, मनोरंजन और उपहारों का प्रबंधन करती हैं, साथ ही साथ मुश्किल दिनों के लिए बचत भी करती हैं. आर्थिक गौरव वापस पाने के लिए हम सभी को इस बात पर गर्व होना चाहिए कि हम कौन हैं. आइए 2047 तक विकसित राष्ट्र के सपने को साकार करने के लिए वंचित वर्गों और क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करें, जिसका मंत्र है: “कोई पीछे न रह जाए.”

मीनाक्षी लेखी भाजपा की नेत्री, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उनका एक्स हैंडल @M_Lekhi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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