नई दिल्लीः 2019 के आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार ने कर चोरी कम करने और इसे ज्यादा मात्रा में जुटाने के लिए धर्म का खौफ दिखाया है. हिंदू, इस्लाम और बाइबिल में इस संबंध में कही गई बातों का जिक्र करते हुए कर चुकाने को जरूरी बताने की कोशिश की गई है.
सोशल मीडिया पर वायरल एक स्क्रीनशॉट के अनुसार धर्म में कर्ज न चुकाने को पाप बताया गया है. शास्त्रों में इसे स्वर्ग प्राप्ति के बाधा के रूप में देखा गया है. हिंदू धर्म में मृतक व्यक्ति के उसके बच्चों द्वारा कर्ज चुकाने को पवित्र दायित्व के सिद्धांत के रूप में पेश किया गया है तो इस्लाम में कोई व्यक्ति तब तक जन्नत नहीं पहुंच सकता जब तक कि उस पर कर्ज हो. वहीं बाइबिल प्यार में कर्ज को छोड़कर बाकि किसी कर्ज के बकाया न रहने की बात कहता है.
हिंदू धर्म में कहा गया है कि कर्ज न लौटाना पाप है और अपराध भी. शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति कर्ज नहीं चुकाता वह राज्य में कर्जदार होकर मरता है. उसकी आत्मा को शैतानी परिणाम झेलने पड़ सकते हैं. लिहाजा यह उनके बच्चों की जिम्मेदारी या दायित्व है कि वह इस तरह के शैतानी परिणामों से उनकी (अभिभावक) आत्मा को बचाएं. बच्चों की जिम्मेदारी या दायित्व है कि वह एक विशेष सिद्धांत के आधार पर अपने मृत अभिभावक के ऋण चुकाएं. इसे ‘पवित्र दायित्व के सिद्धांत’ के नाम से जाना जाता है.
वहीं इस्लाम धर्म में नबी मुहम्मद ने सलाह दी है, ‘अल्लाहहूमैनिया उधीबिका मिन अल-मा ‘थामवा’ ल-मघरम (ओ अल्लाह मैं आपको पाप और बड़े कर्ज से मना करता हूं)’ एक व्यक्ति जन्नत में तब तक नहीं पहुंच सकता जब तक कि उसके कर्ज माफ न हुए हों. उसका सारी सम्पत्ति कर्ज चुकाने के रूप में इस्तेमाल हो सकती है. अगर यह कम पड़े तो उनके एक या दो वारिस स्वेच्छा से इसे चुका सकते हैं.
बाइबिल कहता है, ‘एक-दूसरे से प्यार में चल रहे कर्ज को छोड़कर कोई ऋण बकाया न रहने दें-(Romans 13.8) और ‘दुष्ट उधार लेता है और चुकाता नहीं है, लेकिन धर्मी दया दिखाता है और चुकाता है- (Psalm 37.21).’
इस प्रकार, किसी के जीवन में ऋण का पुनर्भुगतान धर्मग्रंथों के अनुसार आवश्यक है. भारतीय संस्कृति में धर्म को काफी महत्व दिया गया है. देश में कर चोरी और जान-बूझकर किये गये घपले कम करने के लिए व्यवहार अर्थशास्त्र के सिद्धांत को इन धर्मग्रंथों या धार्मिक प्रावाधानों से जोड़े जाने की जरूरत है.