लखनऊ/प्रयागराज: जजों की नियुक्तियों को लेकर न्यायपालिका में व्याप्त विसंगतियों पर हाईकोर्ट के जस्टिस ने ही आवाज उठाई है. इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस रंगनाथ पांडेय ने पीएम नरेंद्र मोदी को खत लिखकर कहा है कि जजों की नियुक्ति में कोई निश्चित मापदंड नहीं है और प्रचलित कसौटी सिर्फ परिवारवाद और जातिवाद है. जस्टिस रंगनाथ पांडेय ने लिखा है कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों का चयन बंद कमरों में चाय की दावत पर किया जाता है.
‘दावतों में तय होते हैं नाम’
जस्टिस रंगनाथ पांडेय ने लिखा है कि इन दावतों में जो डिस्कशन होता है. उसमें मुख्य आधार जजों की पैरवी और उनका पसंदीदा होना ही है. जस्टिस पांडेय ने पीएम मोदी को लिखे पत्र में न्यायपालिका की गरिमा फिर से बहाल करने की मांग की है. जस्टिस रंगनाथ पांडेय ने चिट्ठी में लिखा है, ‘पिछले दिनों माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीशों का विवाद बंद कमरों से सार्वजनिक होने का प्रकरण हो, हितों के टकराव का विषय हो, अथवा सुनने की बजाय चुनने के अधिकार का विषय हो, न्यायपालिका की गुणवत्ता और अक्षुण्णता लगातार संकट में पड़ने की स्थिति रहती है. आपके स्वयं के प्रकरण में री-ट्रायल का आदेश सभी के लिए अचंभित करने जैसा रहा.’
जस्टिस रंगनाथ पांडेय ने आगे लिखा, ‘महोदय क्योंकि मैं स्वयं बेहद साधारण पृष्ठभूमि से अपने परिश्रम और निष्ठा के आधार पर प्रतियोगी परीक्षा में चयनित होकर न्यायाधीश और अब उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त हुआ हूं. अतः आपसे अनुरोध करता हूं कि उपरोक्त विषय को विचार करते हुए आवश्यकता अनुसार न्याय संगत तथा कठोर निर्णय लेकर न्यायपालिका की गरिमा पुनर्स्थापित करने का प्रयास करेंगे. जिससे किसी दिन हम यह सुनकर संतुष्ट होंगे कि एक साधारण पृष्ठभूमि से आया हुआ व्यक्ति अपनी योग्यता परिश्रम और निष्ठा के कारण भारत का मुख्य न्यायाधीश बन पाया.’
‘नियुक्ति में भी छाया परिवारवाद’
इस चिट्ठी में वह आगे लिखते हैं- हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति में जातिवाद और वंशवाद को वरीयता दी जाती है. चिट्ठी में लिखा है कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में किसी जज के परिवार से होना ही अगला न्यायधीश बनना सुनिश्चित करता. जस्टिस पांडेय ने प्रधानमंत्री से कहा है, ‘जब आपकी सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक चयन आयोग स्थापित करने का प्रयास किया था. तब पूरे देश को न्यायपालिका में पारदर्शिता की आशा जगी थी. परंतु दुर्भाग्यवश माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप मानते हुए असंवैधानिक घोषित कर दिया था. न्यायिक चयन आयोग के गठन से न्यायाधीशों में अपने पारिवारिक सदस्यों की नियुक्ति में बाधा आने की संभावना बलवती होती जा रही थी.’