scorecardresearch
Sunday, 24 November, 2024
होमएजुकेशनअब प्ले स्कूल भी होंगे अनिवार्य, ताकि कोई भी बच्चा 'छूट न जाए'

अब प्ले स्कूल भी होंगे अनिवार्य, ताकि कोई भी बच्चा ‘छूट न जाए’

यह प्रस्ताव मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा शून्य से छह वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों को शिक्षा देने के उद्देश्य से तैयार किए जा रहे हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: मोदी सरकार ने प्ले स्कूल को स्कूली शिक्षा के लिए अनिवार्य करने का मन बनाया है. जिससे बच्चों को बचपन से ही एक अच्छी शुरुआत मिल सके. यह प्रस्ताव मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) द्वारा प्रारंभिक बचपन यानी शून्य से छह साल के आयु वर्ग के लिए तैयार किया जा रहा हैं. प्ले स्कूल आमतौर पर स्कूल से पहले के वर्षों में शिक्षा की बात करते हैं. इसका मतलब है भारत में कक्षा एक से पहले की कक्षाएं. दोनों खेल और खेल के माध्यम से छात्रों को दी जाने वाली औपचारिक शिक्षा को आसान बनाते हैं.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि सरकार शिक्षा के अधिकार कानून जो वर्तमान में 6 से 14 साल के बच्चों के लिए लागू है. उसे तीन से छह के बच्चों के लिए अनिवार्य स्कूली शिक्षा को शामिल करने के लिए जोर देगी.

हालांकि, सूत्रों ने कहा शून्य से तीन साल की उम्र के बच्चों की इस कैटगरी में शामिल होने की संभावना नहीं है. सूत्रों ने आगे कहा कि प्रस्ताव का उद्देश्य उनकी शिक्षा को देश भर में स्कूल प्रणाली का हिस्सा बनाना है.

सरकार का लक्ष्य उन केंद्रों में आंगनवाड़ियों का विकास करना है, जो एक बच्चे के स्वास्थ्य और पोषण के साथ-साथ उनकी पढ़ाई का भी ध्यान रख सकें और वैकल्पिक रूप से उन क्षेत्रों में प्री-स्कूल खोलें, जिनमें कोई भी स्कूल नहीं है.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘शहरी केंद्रों में लोगों के पास प्ले स्कूलों तक पहुंच होती है, लेकिन ग्रामीण केंद्रों और जगहों पर ऐसी सुविधाएं नहीं होती हैं. हम आंगनवाड़ियों को विकसित करने की योजना बनाते हैं.’

मंत्रालय चाहता है कि केंद्र और राज्य सरकारों को स्कूली शिक्षा के विषय में सहायता प्रदान करने वाली नेशनल काउंसिल फॉर एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीआरटी) भी शून्य से तीन साल के बच्चों के लिए उनके अनुरुप एक उपयुक्त पाठ्यक्रम विकसित करे. मंत्रालय द्वारा महिला और बाल विकास मंत्रालय और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण के संयोजन के तहत इस वर्ष के अंत तक योजना को अंतिम रूप दिए जाने की संभावना है.


यह भी पढ़ें: डीएमके कर रही हिंदी का विरोध, जबकि पार्टी के स्कूलों में पढ़ाई जाती है ये भाषा


नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सुझाव

2011 की जनगणना के अनुसार भारत में शून्य से छह वर्ष आयु वर्ग में 15.87 करोड़ बच्चे थे, जो उस समय भारत की जनसंख्या का 13.1 प्रतिशत था.

बचपन की शिक्षा में सुधार पर सरकार का ध्यान कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली उस समिति के बाद आया है. जिसने नई शिक्षा नीति (एनईपी) को अपने सुझावों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया था.

प्रारंभिक शिक्षा के लिए एक मजबूत ढांचे की आवश्यकता पर जोर देते हुए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति मसौदा उन अध्ययनों का हवाला देता है, जो दावा करते हैं कि बच्चे की सीखने की प्रक्रिया जन्म से शुरू होती है और यह भी कि उनके मस्तिष्क का 85 प्रतिशत छह वर्ष की आयु से पहले होता है.

राज्यों के मंत्रालय के एक नीति प्रस्ताव में कहा गया है ‘बच्चों में जिज्ञासा पैदा करने वाले विज्ञान का प्रमाण बच्चों के शुरुआती परिणामों में कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अध्ययनों से पूरी तरह से पैदा हुए हैं.’

‘अध्ययन के परिणाम स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि जो बच्चे देर से शुरू करते हैं, वे अपने स्कूल के वर्षों में पीछे रह जाते हैं.’

दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की अवनी कपूर ने इस प्रस्ताव की सराहना की.

उन्होंने कहा, ‘स्कूल प्रणाली में प्ले स्कूलों को एकीकृत करना स्कूली शिक्षा के लिए समग्र शिक्षा अभियान के तहत हाल ही में एमएचआरडी का प्रयास इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण कदम है.’

हालांकि, यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाना चाहिए कि इस प्रस्ताव का पालन करते समय छह वर्ष से कम आयु के बच्चों की विशिष्ट आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाए.’


यह भी पढ़ें: पढ़ाई के दबाव में हर दिन चार स्कूली छात्र कर लेते हैं आत्महत्या


सुझाव को लागू करने के तरीके

मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, प्रारंभिक शिक्षा को बढ़ावा देने के प्रस्ताव को चार तरीकों से लागू किए जाने की संभावना है.

पहला, एनसीईआरटी द्वारा प्रदान की गई शिक्षा सामग्री से शिशुओं और खेल-आधारित और बहुस्तरीय शिक्षा के लिए तीन से छह वर्षीय बच्चों की तकनीक विकसित करने के लिए प्रशिक्षित आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का एक राष्ट्रव्यापी नेटवर्क बनाना.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘आंगनवाडियों का लक्ष्य होगा कि वे ऐसे उत्कृष्ट शैक्षणिक केंद्र हों. जिनमें स्वास्थ्य और पोषण के पुख्ता इंतजाम हों.’

दूसरा विकल्प मौजूदा प्राथमिक विद्यालयों के साथ आंगनवाड़ी कर्मियों को सम्‍मिलित करना, वहीं तीसरा है प्राथमिक विद्यालयों को जहां संभव हो सह-विद्यालय के साथ जोड़ा जाए.

वैकल्पिक रूप से प्राथमिक स्कूल प्री-स्कूल सुविधाओं से लैस होंगे या नए सेट होंगे. जो दोनों की ज़रूरतों को पूरा करते होंगे. इस तरह के स्कूलों को स्वास्थ्य, पोषण और विकास-निगरानी सेवाओं के पैकेज द्वारा भी समर्थन किया जाएगा, खासकर प्री-स्कूलर्स के लिए.

इस बीच क्षेत्र में तीन से छह साल के बच्चों की देखभाल और शैक्षिक आवश्यकताओं की देखरेख के लिए आंगनवाड़ी जारी रहेंगी.

चौथा तरीका, उन क्षेत्रों में स्टैंडअलोन प्री-स्कूल स्थापित करने की योजना पर काम करना, जहां मौजूदा आंगनवाड़ियों और प्राथमिक स्कूलों में तीन से छह वर्ष की आयु के बच्चों की शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा नहीं किया जा सकता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments