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Tuesday, 19 November, 2024
होमहेल्थस्टडी में खुलासा, रीइम्बर्समेंट के बाद भी 84% ब्रेस्ट कैंसर रोगियों को उठाना पड़ता है भारी-भरकम खर्च

स्टडी में खुलासा, रीइम्बर्समेंट के बाद भी 84% ब्रेस्ट कैंसर रोगियों को उठाना पड़ता है भारी-भरकम खर्च

टाटा मेमोरियल सेंटर और इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज के शोधकर्ताओं ने पाया कि औसत और औसत आउट-ऑफ-पॉकेट खर्च क्रमशः 1,26,988 रुपये और 1,86,461 रुपये है.

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नई दिल्ली: भारत में 84 प्रतिशत से अधिक स्तन कैंसर रोगियों को स्वास्थ्य देखभाल पर बहुत अधिक खर्च करना पड़ता है और कैंसर का यह रूप – जो अब भारत में सबसे अधिक घातक है – 72 प्रतिशत से अधिक रोगियों को दोस्तों या रिश्तेदारों से उधार लेकर या प्रॉपर्टी बेचकर स्वास्थ्य खर्चों का भार उठाना पड़ता है.

सरकारी थिंक-टैंक नीति आयोग द्वारा स्वास्थ्य देखभाल पर घरेलू उपभोग व्यय के 10 प्रतिशत से ज्यादा होने वाले खर्च को विनाशकारी व्यय (Catastrophic Expenditure) के रूप में परिभाषित किया गया है.

शीर्ष कैंसर संस्थान टाटा मेमोरियल सेंटर (टीएमसी) और इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज (आईआईपीएस) द्वारा टीएमसी में उपचार कराने वाले कुल 500 स्तन कैंसर रोगियों के खर्च के डेटा की जांच के बाद एक महत्वपूर्ण विश्लेषण में ये निष्कर्ष सामने आए हैं.

महत्वपूर्ण बात यह है कि 23 जुलाई को इंटरनेशनल जर्नल फॉर इक्विटी इन हेल्थ के नवीनतम अंक में प्रकाशित विश्लेषण रिपोर्ट में कहा गया है कि अध्ययन किए गए लगभग 75 प्रतिशत रोगियों के पास किसी न किसी रूप में रीइम्बर्समेंट या इंश्योरेंस था, लेकिन इससे विनाशकारी स्वास्थ्य व्यय की संख्या में मात्र 14 प्रतिशत की कमी आई.

भारत में स्तन कैंसर उपचार की फाइनेंसिंग पर यह अब तक का सबसे बड़ा अध्ययन है.

इस वर्ष जारी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट से पता चला है कि 2022 में भारत में कैंसर का सबसे प्रमुख रूप स्तन कैंसर था, इसके बाद होंठ और मुंह के कैंसर थे.

2022 में, देश में स्तन कैंसर के 1,92,020 नए मामले दर्ज किए गए थे, जबकि 98,337 रोगियों की इससे मृत्यु हो गई थी.

परियोजना से जुड़े आईआईपीएस के एक शोधकर्ता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “हमारे विश्लेषण से पता चला है कि स्तन कैंसर के उपचार के दौरान जेब से किया जाने वाला खर्च अधिकांश रोगियों और उनके परिवारों के लिए बहुत ज़्यादा है, जबकि टीएमसी एक शीर्ष सरकारी संस्थान है, जहां उनमें से अधिकांश के उपचार पर अत्यधिक सब्सिडी दी जाती है.”

उन्होंने कहा कि विश्लेषण में शामिल कई मरीज़ सरकार की प्रमुख स्वास्थ्य बीमा योजना – प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना – के लाभार्थी भी थे, जो गरीबों को 5 लाख रुपये तक का अस्पताल में भर्ती होने का लाभ प्रदान करती है.

शोधकर्ता ने कहा, “फिर भी, उनका स्वास्थ्य देखभाल का खर्च काफी ज्यादा था, क्योंकि कैंसर के उपचार में बड़े पैमाने पर बाह्य रोगी विभाग (ओपीडी) देखभाल शामिल है और बीमा के तहत कवर नहीं की गई दवाओं की लागत बहुत अधिक है.”

कुछ स्वतंत्र विशेषज्ञ भी इस बात पर सहमत थे कि निष्कर्ष बहुत ही गंभीर हैं और ऐसी नीतियां बनाने की आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं, जिससे कैंसर का जल्द पता लग सके और साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जा सके कि पैसे भी कम खर्च हों.

ब्रिटेन में रहने वाले मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट और कैंसर शोधकर्ता डॉ. कमल सैनी ने दिप्रिंट को बताया, “यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण और विश्वसनीय अध्ययन है – यह भारत के सबसे व्यस्त और सबसे प्रतिष्ठित कैंसर अस्पतालों में से एक से आया है. यह एक दुर्भाग्यपूर्ण वास्तविकता है कि अधिकांश भारतीयों का इंश्योरेंस नहीं है या कम इंश्योरेंस है. इसलिए, एक भी मेडिकल इमरजेंसी जीवन भर की पारिवारिक बचत को खत्म कर सकती है और पैसे की भारी कठिनाई का कारण बन सकती है.”

स्तन कैंसर के उपचार में सर्जरी, रेडिएशन, कीमोथेरेपी और हार्मोनल थेरेपी शामिल हैं, जिसमें काफी पैसे और समय दोनों खर्च होते हैं.

सैनी ने बताया, “लक्षित मोनोक्लोनल एंटीबॉडी, सीडीके4/6 अवरोधक, एंटीबॉडी ड्रग कॉन्जुगेट और इम्यूनोथेरेपी जैसे आधुनिक उपचार अक्सर महंगे होते हैं और ज़्यादातर भारतीयों की पहुंच से बाहर होते हैं.”

शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि कैंसर के प्रकार की परवाह किए बिना सभी के लिए कैंसर का इलाज मुफ़्त करने से भारतीय परिवारों पर स्वास्थ्य सेवा पर होने वाले भारी खर्च को कम करने में मदद मिलेगी.

विश्लेषण में क्या पाया गया

स्टडी के हिस्से के रूप में, जून 2019 से मार्च 2022 के बीच 34 महीनों की अवधि में कुल 500 स्तन कैंसर रोगियों के बारे में स्टडी किया गया.

रजिस्ट्रेशन, प्रवेश, जांच, दवा, सर्जरी, सिस्टेमेटिक थेरेपी और रेडियो थेरेपी की लागत को प्रत्यक्ष चिकित्सा लागत के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया था. इसी तरह, भोजन, आवास और यात्रा पर होने वाले खर्च को प्रत्यक्ष गैर-चिकित्सा लागत के रूप में वर्गीकृत किया गया था.

आय, बचत, संपत्ति की बिक्री, उधार, ऋण और बीमा जैसे कई स्रोतों से कैंसर के इलाज के लिए मुकाबला करने के तंत्र के बारे में विस्तृत जानकारी एकत्र की गई और डिस्ट्रेस फाइनेंसिंग का अनुमान लगाने में इसका इस्तेमाल किया गया.

यदि किसी मरीज ने संपत्ति या आभूषण बेचकर, या ऋण लेकर कैंसर का इलाज करवाया है तो उसे डिस्ट्रेस फाइनेंसिंग का सामना करना पड़ सकता है.

परिणामों से पता चलता है कि मीडियन और मीन आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय भुगतान क्रमशः 1,26,988 रुपये और 1,86,461 रुपये था.

उपचार के तरीकों में सर्जरी, सिस्टेमेटिक थेरेपी और रेडियो थेरेपी शामिल थी, और लगभग 83 प्रतिशत रोगियों ने तीनों प्रकार के उपचार प्राप्त किए थे.

हालांकि स्तन कैंसर के अधिकांश रोगियों को किसी न किसी प्रकार का री-इम्बर्समेंट मिला था, लेकिन यह कुल उपचार व्यय का केवल 30.2 प्रतिशत ही कवर करती थी, और री-इम्बर्स की गई औसत राशि 78,016 रुपये थी. री-इम्बर्समेंट से पहले विनाशकारी स्वास्थ्य सेवा व्यय की घटना 98.1 प्रतिशत थी और री-इम्बर्समेंट के बाद 84.6 प्रतिशत थी.

शोधकर्ताओं ने कहा, “इस प्रकार, प्रतिपूर्ति से विनाशकारी स्वास्थ्य सेवा व्यय में केवल 13.8 प्रतिशत की कमी आई.” साथ ही, ग्रामीण, गरीब, कृषि-निर्भर परिवारों और महाराष्ट्र के बाहर के रोगियों के बीच विनाशकारी स्वास्थ्य व्यय और डिस्ट्रेस फाइनेंसिंग का उच्च प्रचलन पाया गया, जहां टीएमसी स्थित है.

सभी स्तन कैंसर रोगियों में से 44 प्रतिशत ने अपने उपचार के खर्च के लिए दो स्रोतों का उपयोग किया था, जबकि 32.2 प्रतिशत ने तीन या अधिक स्रोतों का उपयोग किया था. अधिकांश रोगियों – 78 प्रतिशत – ने कई स्रोतों का उपयोग करके अपने उपचार की लागत को पूरा किया.

केवल 5.8 प्रतिशत रोगियों ने उपचार लागत को कवर करने के लिए आय को स्रोतों में से एक के रूप में इस्तेमाल किया, 48.6 प्रतिशत ने बचत का उपयोग किया, 66.6 प्रतिशत ने ऋण और उधार का सहारा लिया और 72.4 प्रतिशत ने उपचार की लागत के खर्च को पूरा करने के लिए या तो संपत्ति बेची या उधार लिया.

विश्लेषण के अनुसार, विनाशकारी व्यय का बढ़ा हुआ वित्तीय बोझ संभवतः अप्रत्यक्ष लागतों जैसे कि साथ आने वाले व्यक्तियों के आवास, यात्रा और भोजन की प्रतिपूर्ति न किए जाने के कारण भी है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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