लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने ट्वीट कर साफ कर दिया है कि बसपा अब कोई भी चुनाव सपा के साथ मिलकर नहीं लड़ेगी. इसी के साथ सपा-बसपा गठबंधन खत्म होने की औपचारिक घोषणा हो गई. मायावती की ओर से सपा पर लगातार वार जारी है लेकिन सपा नेताओं ने इस पर चुप्पी साध रखी है. न ही अखिलेश यादव की ओर से कोई बयान आया है और न ही पार्टी की ओर से कोई प्रेस रिलीज जारी हुई है.
परन्तु लोकसभा आमचुनाव के बाद सपा का व्यवहार बीएसपी को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या ऐसा करके बीजेपी को आगे हरा पाना संभव होगा? जो संभव नहीं है। अतः पार्टी व मूवमेन्ट के हित में अब बीएसपी आगे होने वाले सभी छोटे-बड़े चुनाव अकेले अपने बूते पर ही लड़ेगी।
— Mayawati (@Mayawati) June 24, 2019
फिलहाल यूपी में मौजूद नहीं अखिलेश
जब दिप्रिंट की ओर से सपा के नेताओं से इस मामले पर बयान लेने की कोशिश की गई तो हर नेता बोलने से बचता रहा. नाम न छापने की शर्त पर एक नेता ने बताया कि अभी अखिलेश यादव यूपी में मौजूद नहीं हैं. जब वह आएंगे तो इस पर चर्चा करने के बाद ही पार्टी की ओर से बयान जारी होगा. वहीं सपा से जुड़े कुछ सूत्रों का ये भी कहना है कि अखिलेश परिवार समेत लंदन गए हुए हैं. 1 जुलाई को उनका जन्मदिन है. इससे पहले भी कई बार उन्होंने अपना जन्मदिन बाहर मनाया है. हालांकि सपा का कोई नेता कुछ भी खुलकर बोलने से बचता दिखा. पिछले शुक्रवार को अखिलेश दिल्ली में लोकसभा में दिखे थे. 15 जून के बाद से उनके ट्वीटर अकाउंट से ट्वीट भी नहीं हुआ.
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अब सपा भी अकेले चुनाव लड़ेगी
अखिलेश यादव बीते दिनों इस बात की घोषणा कर चुके थे कि नवंबर में होने वाले उपचुनाव में सपा अकेले लड़ेगी. अब पार्टी सूत्रों का कहना है कि न कांग्रेस, न बसपा अब किसी से गठबंधन नहीं होगा. गठबंधन से पार्टी का बहुत नुकसान हुआ है. कई सीटों पर चुनाव न लड़ने के कारण संगठन कमजोर हुआ है. अब संगठन पर काम करने का समय है.
मुलायम-कांशीराम से कम चली दोस्ती
नब्बे के दशक में यूपी की राजनीति में एक स्लोगन मशहूर था- ‘ मिले मुलायम कांशीराम, हवा हो गए जय श्रीराम.’ दरअसल 1993 में मुलायम सिंह और कांशीराम जब सपा-बसपा गठबंधन के पहली बार सूत्रधार बने थे तो बीजेपी का रथ रुक गया था. इस दोस्ती की बदौलत यूपी में दलित-मुस्लिम और पिछड़ों का ऐसा मजबूत समीकरण बना कि अयोध्या में विवादित ढांचे को गिराने के बाद हुए विधानसभा चुनाव में सपा-बसपा ने बीजेपी को शिकस्त दे दी.
मुलायम और कांशीराम की दोस्ती तकरीबन डेढ़ साल चली. जून 1995 आते-आते इसमें खटास आ गई. 2 जून 1995 को मायावती ने मुलायम सरकार से समर्थन वापस ले लिया. लखनऊ में हुए गेस्ट हाउस
कांड ने यूपी की राजनीति में काला अध्याय जोड़ दिया. 24 साल बाद जनवरी 2019 में अखिलेश के प्रयासों के बाद सपा-बसपा गठबंधन हुआ जो जून आते-आते छह महीने में ही टूट गया.
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गठबंधन में अखिलेश ने खोया, माया ने पाया
यूपी की राजनीति के जानकार मानते हैं कि इस महागठबंधन में अखिलेश यादव का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है. बसपा 2014 लोकसभा चुनाव में शून्य पर सिमट गई थी लेकिन इस चुनाव में 10 सीटें पा गई. वहीं सपा पांच पर ही रह गई. लखनऊ यूनिवर्सिटी के पाॅलिटिकल साइंस के प्रोफेसर कविराज का कहना है कि सपा के कई अहम नेता चुनाव हार गए. ये अखिलेश के लिए बड़ा झटका है. उन्हें ऐसी उम्मीद बिलकुल नहीं रही होगी क्योंकि गठबंधन की पहल तो अखिलेश की ओर से की गई थी. इस झटके से उबरने में सपा को वक्त लगेगा.
मायावती ने जमकर लगाए अखिलेश पर आरोप
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक बीते रविवार हुई बैठक में मायावती ने सपा पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि सपा के लोग ये कह रहे हैं कि उनकी बदौलत बसपा 10 सीटें जीती है तो वो लोग अपने गिरेबां में झांके. सच्चाई ये है कि सपा अगर 5 सीटें भी जीत पाई तो सिर्फ इसलिए कि बसपा ने उसका साथ दिया. उपचुनाव में हमें ये दिखाना है कि ये जीत हमारी अकेले की जीत है जिसका क्रेडिट सपा के लोग ले रहे हैं. मायावती ने कहा कि सपा के लोगों ने चुनाव में धोखा दिया. कई जगहों पर बसपा को सपा के नेताओं ने हराने का काम किया. अखिलेश यादव ने ऐसे नेताओं पर कोई कार्रवाई नहीं की और चुनाव के नतीजों के बाद उन्हेॆ फोन तक करना जरूर नहीं समझा. मायावती के इन आरोपों में कितनी सच्चाई है ये अखिलेश यादव ही बता सकते हैं जो कहां हैं इस पर उनकी पार्टी मेॆ कोई आधिकारिक तौर पर बताने को तैयार नहीं.