नई दिल्ली: केंद्रीय स्वास्थ मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, यह साल अब तक का सबसे गर्म साल रहा है. 20 जून तक लू के कारण कम से कम 143 लोगों की मौत हो गई. केवल दिल्ली में लू से अब तक कुल 50 से अधिक लोगों की जान चली गई. यह वो साल भी रहा है जब दिल्ली के मुंगेशपुर इलाके में तापमान को रिकॉर्ड तोड़ 52.3 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ते देखा गया जिससे आम लोगों के जीवन और आजीविका को बड़ा खतरा पैदा हो गया.
वैश्विक जलवायु परिवर्तन की एक स्पष्ट अभिव्यक्ति के रूप में हीटवेव संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के साथ जुड़ती है. हीटवेव का प्रभाव सीधे एसडीजी 1, 2, 3, 6, 8, 11, 13, 15 और 17 के साथ जुड़ता है, जो बढ़ते तापमान के प्रभावों को संबोधित करने की जटिलता और तत्कालीनता को दर्शाता है. लैंगिक गतिशीलता, सामाजिक मानदंडों और जलवायु परिवर्तन की जटिल परस्पर क्रिया, विशेष रूप से भारत में हीटवेव के प्रति महिलाओं की संवेदशीलता को बढ़ती है.
पर्यावरण के मुद्दों पर काम करने वाले पलकिया फाउंडेशन का मानना है कि सामाजिक मुद्दों से अलग हटकर हीटवेव से निपटना अपर्याप्त और अप्रभावी है. इसलिए फाउंडेशन की शोध टीम ने पूरे उत्तर भारत में घूमकर मानवीय इच्छाशक्ति और हिम्मत की कहानियां एकत्र कीं. इन कहानियों को “इन्फर्नो-द ह्यूमन कंसीक्वेंसेज ऑफ राइजिंग टेम्परेचर्स” शीर्षक से एक रिपोर्ट में संकलित किया गया है, जो लू और मानव जीवन पर इसके प्रभावों की एक झलक देती है.
यह रिपोर्ट बाहरी क्षेत्रों में काम करने वाले वर्ग को समर्पित है, जैसे सब्ज़ी विक्रेता, ऑटो चालक, सुरक्षा गार्ड, निर्माण श्रमिक, घरेलू सहायक, अनौपचारिक बस्तियों में रहने वाले लोग, तथा अन्य सभी वंचित वर्ग, जिनके पास एयर कंडिशन में रहने का विशेषाधिकार नहीं है और जिनके पास चिलचिलाती गर्मी में रहने और कमाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.
फाउंडेशन की निदेशक महिमा बंसल का मानना है, ‘‘धरती के बढ़ते तापमान और मौसमी घटनाओं के कारण होने वाली मौतें सिर्फ संख्या मात्र नहीं हैं बल्कि वे इंसानी जीवन हैं.’’
रिपोर्ट दुनिया को यह बताने की कोशिश है कि अत्यधिक गर्मी और मौसमी परिस्थितियों की चपेट में आकर जान गंवाने वाले लोगों के पास वर्क फ्रॉम होम करने का विशेषाधिकार नहीं है, उन्हें धूप और लू में काम करना ही पड़ता है.
उन्होंने कहा, ‘‘जब तपती गर्मी उनके रोज़गार पर असर डालती हैं और वह अपनी और अपने परिवारों की बुनियादी ज़रूरतें भी पूरी नहीं कर पाते. न केवल स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव बल्कि अत्यधिक गर्मी से होने वाले आर्थिक नुकसान को भी दर्ज करना ज़रूरी है.’’
इसमें मांग की गई है कि हीटवेव से निपटने के लिए तैयारियों को आगे बढ़ाने, गर्मी से निपटने के उपायों में सुधार करने और बेध्यता और जोखिम प्रबंधन आकलन में निवेश पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए. हीट एक्शन प्लान (HAP) में कमज़ोर आबादी की सुरक्षा के लिए लक्षित हस्तक्षेप होने चाहिए और बाहरी श्रमिकों के लिए प्रोत्साहन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए क्योंकि वे अधिकतम तापमान के दौरान उत्पादकता खो देते हैं.
रिपोर्ट में भारतीय मौसम विभाग (IMD) से जलवायु परिवर्तन और विभिन्न इलाकों की ज़रूरतों के अनुरूप स्थानीय पूर्वानुमान प्रणाली विकसित करने का भी आग्रह किया गया है. इसमें हरित स्थानों, ठंडी छतों को बढ़ाने की मांग की गई है. गर्मी से संबंधित बीमारियों का प्रबंधन करने के लिए अच्छी तरह से सुसज्जित स्वास्थ्य सुविधाओं को उन्नत करने और पारंपरिक और स्थानीय खाद्य पदार्थों सहित स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों को पुनर्जीवित करने जैसे सामुदायिक हस्तक्षेपों को बढ़ावा देने की बात की गई है जिनमें समृद्ध इलेक्ट्रोलाइट संतुलन होता है.
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