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Thursday, 21 November, 2024
होममत-विमत2024 में दो अलग-अलग BJP चुनावी मुकाबले में थी, सत्ता को चुनौती देने वाली BJP की जीत और सत्ताधारी की हार हुई

2024 में दो अलग-अलग BJP चुनावी मुकाबले में थी, सत्ता को चुनौती देने वाली BJP की जीत और सत्ताधारी की हार हुई

कुछ राज्यों में बीजेपी को जो सत्ता-विरोधी वोट हासिल हुए हैं उनके सहारे यह बात थोड़ी-बहुत छिप जा रही है कि इस बार का जनादेश केंद्र में काबिज़ बीजेपी के खिलाफ आया है.

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क्या चुनाव के नतीजों को सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ आये जनादेश के रूप में देखा जा सकता है? इस लेख के हम तीन लेखकों में एक योगेन्द्र यादव का तर्क है कि हां, मामला बिल्कुल ऐसा ही है. बेशक एनडीए के पास इतनी सीटें हैं कि वो सरकार बना ले, लेकिन बीजेपी ने न सिर्फ बहुमत गंवाया बल्कि वह जनता-जनार्दन के दिल से भी उतर गई है. बीजेपी भले ही चुनावी मुकाबले के अपने प्रतिद्वन्द्वियों को पीछे छोड़ते हुए सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी हो, लेकिन बीजेपी को मिली सीटों की तादाद को ‘‘400 पार’’ या ‘‘50 प्रतिशत से ज्यादा’’ के वोटशेयर के पार्टी के घोषित लक्ष्य के आईने में देखना चाहिए. इससे भी बड़ी बात ये कि चुनाव के नतीजों को उनके राजनीतिक संदर्भ के भीतर परखना होगा कि कैसे धन-बल, मीडिया-बल और सरकारी मशीनरी ही नहीं बल्कि चुनाव आयोग तक का विपक्ष के खिलाफ दुरूपयोग किया गया.

ऊपर के तर्कों की एक संभावित काट बीजेपी को मिले वोटशेयर के सहारे की जा सकती है. बीजेपी के वोटशेयर में बड़ी हल्की सी कमी (37.4 प्रतिशत से घटकर 36.6 प्रतिशत) आयी है. ओडिशा में बीजेपी की नाटकीय ढंग से जीत हुई है, केरल में उसने अपना खाता खोला है और आंध्र प्रदेश तथा पंजाब में अपनी मौजूदगी को बेहतर किया है. अब इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि बीजेपी अखिल भारतीय विस्तार वाली पार्टी है और देश के तमाम राज्यों तथा संघशासित प्रदेशों में उसका वोटशेयर दहाई अंकों में है. बीजेपी के तरफदार इन्हीं तथ्यों के आधार पर अपनी पार्टी की जीत का दावा कर रहे हैं. लेकिन स्वतंत्र पर्यवेक्षक आगाह करते हैं कि हड़बड़ी में ढोल-नगाड़े बजाना ठीक नहीं क्योंकि बीजेपी की पकड़ कहीं ज्यादा मजबूत हुई है.

राज्यवार वोटशेयर पर गहरी नजर डालने से पता चलता है कि कुछ इलाकों में सत्तापक्ष के घटने और कुछ इलाकों में बढ़त बनाने की बात सही नहीं है. दरअसल इस चुनाव का जनादेश सत्तापक्ष के विरूद्ध हैं. हां, यह बात जरूर है कि बीजेपी हर जगह सत्ता में नहीं है. आइए, आगे के सोच-विचार के लिए क्षण भर को ये मान लें कि दो अलग-अलग बीजेपी चुनाव मुकाबले के मैदान में थी — एक बीजेपी वह जो सत्ता में थी और एक बीजेपी वह जो सत्ता-पक्ष के खिलाफ मुकाबले के मैदान में खड़ी थी. जो बीजेपी सत्ता में थी उसे चुनावी मुकाबले में जोर का झटका लगा है लेकिन जो बीजेपी सत्ता-पक्ष के खिलाफ लड़ रही थी उसे बेहतर चुनावी परिणाम हासिल हुए हैं. इस बार राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के खिलाफ जो सत्ता-विरोधी जनादेश आया है उसकी सच्चाई को कुछ राज्यों में बीजेपी के पक्ष में गये सत्ता-विरोधी वोट के सहारे आंशिक रूप ढंका जा सकता है. राज्यों में हुई बीजेपी की जीत को भले आप `अंधे के हाथ बटेर` लगने जैसा लकब ना दें लेकिन यह बात तय है कि वह ऐसी टिकाऊ जीत नहीं कि उसपर आगे के दिनों के लिए उम्मीदें पाली जा सकें.

आइए, तालिका संख्या-1 में दर्ज संख्याओं पर गौर करें. देश के दो तिहाई हिस्से (ठीक-ठीक कहें तो 356 सीटों ) पर राजनीतिक पार्टी के रूप में बीजेपी का दबदबा है भले ही वह इस हिस्से के किसी राज्य में सत्ता में हो या ना हो. यह इलाका महाराष्ट्र और गुजरात से शुरू होकर पूरब में बिहार और झारखंड तक विस्तृत है और इसमें कर्नाटक तथा हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य भी शामिल हैं जहां फिलहाल बीजेपी सत्ता में नहीं है. सत्ताधारी बीजेपी को इन राज्यों में चुनावों में उसके चले आ रहे राजनीतिक एकाधिकार को तेज झटका लगा है, पिछले लोकसभा चुनाव में इन राज्यों में पार्टी की 271 सीटों पर जीत हुई थी और इस बार पार्टी इन 271 सीटों में 75 सीटें हार गई है. कर्नाटक से बिहार तक विस्तृत इस इलाके में हर जगह बीजेपी के खिलाफ औसतन 5 प्रतिशत वोटों का घुमाव हुआ है.

Graphic: Shruti Naithani | ThePrint
ग्राफिक: श्रुति नैथानी/दिप्रिंट

लेकिन देश के शेष एक तिहाई हिस्से (187 सीट) में बीजेपी इस बार सत्ता-विरोधी ताकत के रूप में चुनावी मैदान में उतरी थी जहां उसका मुकाबला इलाके की सत्ताधारी पार्टी या फिर राजनीतिक दबदबे वाली पार्टी से था, जैसे– ओड़िशा में बीजेडी से, आंध्रप्रदेश में वायएसआरसीपी से और पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस से. चुनावी मुकाबले में सत्ता-पक्ष के खिलाफ उतरी इस बीजेपी ने केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के लिए लाज बचाने का काम किया है. बीजेपी ने इस इलाके में 2019 के लोकसभा चुनाव में हासिल अपनी सीटों की फेहरिश्त में 12 सीटों का इजाफा किया है. इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह कि इस इलाके में बीजेपी के पक्ष में औसतन छह प्रतिशत वोटों का घुमाव हुआ है और इसी कारण अखिल भारतीय स्तर पर देखने पर बीजेपी के वोटशेयर में महज एक प्रतिशत की कमी आई दिखायी पड़ रही है.


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तगड़ा झटका

बीजेपी का वोटशेयर उससे कहीं ज्यादा बदतर है जितना कि वह दिखायी दे रहा है. साल 2019 तथा 2024 में पार्टी जिन 399 सीटों पर चुनावी मैदान में थी उसमें 274 सीटों पर उसके वोटशेयर में कमी आयी है. इनमें महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार, झारखंड, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब तथा जम्मू-कश्मीर की सारी सीटें तथा उत्तर प्रदेश की केवल दो को छोड़कर सभी सीटें शामिल हैं.

बीजेपी की जीत के अन्तर में भी तेज गिरावट आयी है. जिन सीटों पर बीजेपी की जीत 20 प्रतिशत या उससे ज्यादा मतों के अन्तर से हुई है उनकी संख्या पिछली 151 सीटों के मुकाबले घटकर 77 रह गई है.

जिन 215 सीटों पर बीजेपी का मुकाबला सीधे कांग्रेस से था मतलब जहां बीजेपी और कांग्रेस शीर्ष के दो स्थानों पर हैं, वहां बीजेपी के वोटों में हुए घुमाव को देखना इस सिलसिले में सोच-विचार के लिए उपयोगी हो सकता है. पिछली बार बीजेपी ने ऐसे सीधे मुकाबले वाली 90 प्रतिशत से ज्यादा सीटें 21 प्रतिशत से ज्यादा मतों के अन्तर से जीती थी. इस बार बीजेपी 153 सीटों पर जीती, 62 सीटों पर कांग्रेस की जीत हुई और बीजेपी की जीत का अन्तर घटकर औसतन 10 प्रतिशत मतों तक सिमट आया है. साल 2019 से तुलना करें तो बीजेपी के खिलाफ इन सीटों पर 5.5 प्रतिशत मतों का ऋणात्मक घुमाव हुआ जो पार्टी के लिए तगड़ा झटका है.

अगर हम तालिका-2 में दिखाये गये, बीजेपी की सत्ता वाले राज्यों पर गौर करते हैं और पार्टी जिन सीटों पर इस बार चुनाव लड़ी उनमें हासिल वोटशेयर को नजर में रखते हैं तो पता चलता है कि वोटों का घुमाव बीजेपी के विरूद्ध हुआ है और ऐसा किसी एक राज्य तक सीमित नहीं बल्कि तालिका-2 में दर्ज तमाम राज्यों में हुआ है. राजस्थान (12 प्रतिशत), हरियाणा (12 प्रतिशत) तथा हिमाचल प्रदेश (13 प्रतिशत) जैसे राज्यों में बीजेपी के विरूद्ध वोटों का जोरदार घुमाव हुआ है— हर जगह दहाई अंकों में. चूंकि इन राज्यों में बीजेपी की प्रारंभिक बढ़त बहुत बड़ी थी, सो पार्टी के खिलाफ वोटों का घुमाव राजस्थान तथा हरियाणा (लेकिन हिमाचल नहीं) के कुछ इलाकों में संकेंद्रित रहा और पार्टी ने बड़ी संख्या में सीटें गंवायीं.

Graphic: Shruti Naithani | ThePrint
ग्राफिक: श्रुति नैथानी/दिप्रिंट

यूपी में हुई बीजेपी की भारी हार यों तो इस चुनाव की सबसे बड़ी कहानी बनकर उभरी है लेकिन अपने आप में ये बात बड़ी दिलचस्प है कि उत्तर प्रदेश (6.8 प्रतिशत) सहित पड़ोसी राज्य बिहार (6.9 प्रतिशत) और झारखंड (7 प्रतिशत) में बीजेपी के विरूध वोटों का घुमाव लगभग समान रहा है. उत्तर प्रदेश में बीजेपी के हाथ में वोटशेयर अपेक्षाकृत कम था और उसका मुकाबला इस बार बड़ी चतुराई से बनाये राजनीतिक-सामाजिक गठजोड़ से हो रहा था. लेकिन बिहार में बीजेपी अगर सीटों के मामले में होने वाला नुकसान कम कर सकी तो इसलिए कि वह एक बड़ी बढ़त (23 प्रतिशत वोट) के साथ मैदान में मुकाबले में उतरी थी और एक व्यापक गठजोड़ कायम करने में भी सफल रही थी.

बीजेपी के वोटों में सबसे कम गिरावट कर्नाटक, असम, दिल्ली तथा उत्तराखंड में हुई है. इन सभी राज्यों में सत्ताधारी पार्टी अपनी ज्यादातर सीटों को बचाने में कामयाब रही, सिवाय कर्नाटक के जहां बीजेपी के विरूद्ध हुआ वोटों का घुमाव कुछ क्षेत्र विशेष में केंद्रित रहा और पार्टी को कई सीटें गंवानी पड़ी. सत्ताधारी बीजेपी के खिलाफ हुए वोटों के घुमाव की इस कहानी का एकमात्र अपवाद गुजरात, मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ हैं जहां विपक्ष इतना कमजोर था कि बीजेपी से कोई सीट ना झटक सका.

जहां बीजेपी को हम सत्तापक्ष को चुनौती देने वाली ताकत के रूप में लड़ते देखते हैं वहां जाहिर हो जाता है कि भीतर ही भीतर धारा बीजेपी के पक्ष में बह रही थी. मिसाल के लिए, तेलंगाना में बीआरएस का अकस्मात ढह जाना और उससे मिली अप्रत्यक्ष सहायता के बूते बीजेपी ने अपने वोटशेयर में 15.7 फीसद की भारी-भरकम बढ़ोत्तरी की है और ओड़िशा में पार्टी को मिले 7 प्रतिशत अतिरिक्त वोटों ने सूबे में लोकसभा की सीटें एकमुश्त बटोर ले जाने में मदद की. केरल में 3 प्रतिशत वोटशेयर की अपेक्षाकृत कम मगर लगातार बढ़त ने पार्टी को लोकसभा की पहली सीट जीतने में कामयाबी दिलायी.

तमिलनाडु और पंजाब में चूंकि बीजेपी मुख्य साझीदार को अपने साथ नहीं रख पायी सो उसे अपने पूर्व साझीदार के सामाजिक आधार को भी खोना पड़ा. चूंकि पार्टी इस बार ज्यादा सीटों पर लड़ी तो ऐसे में पार्टी का वोटशेयर भले बढ़ गया हो लेकिन जिन सीटों पर बीजेपी मुकाबले में उतरी वहां उसके वोटशेयर में किंचित कमी आयी.

पश्चिम बंगाल इस रूझान का अपवाद प्रतीत होता है क्योंकि यहां बीजेपी सत्तापक्ष को चुनौती देने वाले रूप में थी लेकिन सूबे में उसके वोटशेयर में 1.3 प्रतिशत की कमी आयी है और इस तरह पार्टी विधानसभा के चुनावों में हुए नुकसान से उबरने में नाकाम रही.

इस लोकसभा चुनाव का असल सवाल था : क्या सियासी सत्ता-तंत्र पर इस बार जनता-जनार्दन अपनी सहमति की मुहर लगायेगा ? ऐसे में अजरज नहीं कि पूरा चुनाव बीजेपी के स्वघोषित लक्ष्य— चार सौ ज्यादा सीटें और 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट के इर्द-गिर्द घूमता रहा. यह एक ऐसा चुनाव था जिसमें चुनावों की घोषणा से पहले ही एक व्यापक दायरे में मान लिया गया था कि जीतना तो बीजेपी को ही है. कोई भी यह नहीं पूछ रहा था कि बीजेपी के खिलाफ खड़ी किसी सियासी ताकत को कितनी सीटें मिलेंगी या फिर बीजेपी के विरूद्ध लड़े रहे गठबंधन को ही कितनी सीटें हासिल होने जा रही हैं. ये सारे सवाल दोयम दर्जे के मान लिये गये थे, असल कहानी बन गया था — मोदी और उनकी पार्टी का बनाया सत्ता का चक्रव्यूह.

भविष्य के लिए असल सवाल है : बीजेपी का जो सत्ता-विरोधी रूप है वह सत्ताधारी बीजेपी को कितने दिनों तक बचाये रखता है ? चाहे समय के लिहाज से देखें या फिर देश के किसी हिस्से में विस्तार के हिसाब से— बीजेपी को हासिल निजात की यह राह ज्यादा देर और दूर तक टिकाये रख सकेगी, ऐसा नहीं जान पड़ता. ऐसे राज्यों की तादाद ज्यादा नहीं जहां बीजेपी को बढ़त बनाने की जगह हो और अभी जिस सत्ता-विरोधी रूप का बीजेपी को फायदा है वह ज्यादा देर तक कायम भी नहीं रह सकता. जल्दी ही सत्ताधारी बीजेपी को कोई राह खोजनी होगी कि वह उस दशा में ना पहुंचे जिस दशा में सत्ताधारी कांग्रेस को पहुंचना पड़ा और बीजेपी को ऐसी राह उस घड़ी तलाशनी है जब मोदी का जादू फीका पड़ रहा है. इस मामले में इस बार का चुनाव बीजेपी के लिए खास उम्मीदें नहीं जगाता.

(योगेन्द्र यादव भारत जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक हैं. उनका ट्विटर हैंडल @_YogendraYadav है. श्रेयस सरदेसाई भारत जोड़ो अभियान से जुड़े एक सर्वेक्षण शोधकर्ता हैं. राहुल शास्त्री एक शोधकर्ता हैं. ये मेरे निजी विचार हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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