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Wednesday, 6 November, 2024
होमदेशबीड: 4605 से कहीं ज्यादा हो सकती हैं गर्भाशय खोने वाली गन्ना कटाई मजदूर की संख्या

बीड: 4605 से कहीं ज्यादा हो सकती हैं गर्भाशय खोने वाली गन्ना कटाई मजदूर की संख्या

ज़्यादातर पीड़ित महिलाएं महाराष्ट्र के मराठवाड़ा के बीड़ जनपद और उसके आस-पास की हैं. इनकी उम्र 20 से 35 साल तक है.

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नई दिल्ली: महाराष्ट्र के बीड से ताल्लुक रखने वाली सुशीला (बदला हुआ नाम) को पीरियड्स में दिक्क़त हो रही थी. पीरियड में ख़ून के साथ पानी भी आ रहा था जिसके बाद वो सिविल हॉस्पिटल गईं. यहां इलाज करने के बाद जो दवा मिली वो लंबे समय तक चलनी थी. गन्ना कटाई का काम करने वाली सुशीला को तुरंत राहत चाहिए थी, क्योंकि उनका काम उन्हें इतनी मोहलत नहीं देता कि वो आराम कर लें. इसी वजह से वो इलाके के एक निजी अस्पताल पहुंचीं. उन्हें शायद ही इसका अंदाज़ा रहा होगा कि ये फैसला उनकी ज़िंदगी तबाह कर देगा. निजी अस्पतालों ने उन्हें कैंसर का डर दिखाकर तुरंत ऑपरेशन की सलाह दी और उनका गर्भाशय निकाल दिया.

गर्भाशय निकाले जाने के बाद उनका पीरियड तो रुक गया लेकिन कमर दर्द, सिर दर्द, घबराहट और थकान की दिक्कत लगातार बनी रही. ऑपरेशन के बाद की इन समस्याओं के बारे में निजी अस्पताल ने उन्हें कुछ नहीं बताया था. पहले गन्ना कटाई के बाद वो जितना वज़न उठा लेती थीं उसमें भारी कमी आ गई है और उन्हें अपने काम से हाथ धोना पड़ा. ऑपरेशन का पैसा उन्होंने अपने ठेकेदार से लिया था. पैसे लौटाने के लिए अब उन्हें दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही है. ये कहानी किसी एक सुशीला की नहीं बल्कि महाराष्ट्र के बीड़ और उसके आस-पास की कई महिलाओं की है.

बिना रुकावट के गन्ना कटाई के लिए हटाए गए गर्भाशय

विचलित कर देने वाले मामले में जानकारी सामने आई कि महाराष्ट्र में गन्ना कटाई करने वाली 4605 महिला मज़दूरों का गर्भाशय कथित तौर पर निकाल दिया गया. ऐसा इसलिए किया गया ताकि वो बिना रुकावट काम करती रहें. पीड़ितों के मामले को उठाने वाली शिवसेना एमएलसी मनीषा कायंदे ने दिप्रिंट को बताया, ‘ये तो सिर्फ सरकारी आंकड़ा है. ये संख्या इससे कहीं बड़ी हो सकती है.’ मामले के तूल पकड़ने के बाद जांच के आदेश दिए गए हैं.

राज्य के स्वास्थ्य मंत्री एकनाथ शिंदे ने सरकारी रिपोर्ट का हवाला देते हुए 4605 महिलाओं का गर्भाशय निकाल जाने की जानकारी विधान परिषद को दी. मंगलवार को सामने आई इस जानकारी के बाद मामले के जांच के लिए एक पैनल का गठन किया गया है. इसके प्रमुख स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव होंगे. पैनल में स्त्री रोग विशेषज्ञ और महिला विधायक भी शामिल होंगी. इन्हें दो महीने में अपनी रिपोर्ट सौंपनी हैं.

101 में से 99 निजी अस्पतालों पर लगे गंभीर आरोप

ऐसा करने का आरोप इलाके के उन 101 में से 99 निजी अस्पतालों पर लगा है जिनके पास ऐसे ऑपरेशन करने की अनुमति है. बीड के सिविल सर्जन अशोक थोराट ने अपने बयान में कहा, ‘मामला प्रकाश में आने के बाद ज़िला अधिकारी ने एक कमिटी बनाई है. अगर बीड में अब गर्भाशय संबंधित कोई ऑपरेशन होता है तो उसकी अनुमति पहले से सरकारी अस्पताल से लेनी होगी.’ यानी अब सिविल सर्जन की अध्यक्षता वाली इस कमिटी की अनुमति के बिना ऐसा कोई ऑपरेशन नहीं होगा. पीड़ित महिलाओं के बारे में मनीषा कायंदे कहती हैं, ‘इनके गर्भाश्य निकाले जाने के कोई ठोस कारण नहीं थे.’

काफी बड़ी हो सकती है पीड़ित महिलाओं की संख्या

ज़्यादातर पीड़ित महिलाएं महाराष्ट्र के मराठवाड़ा के बीड़ और उसके आस-पास की हैं. इनकी उम्र 20 से 35 साल तक है. करीब दो हफ्ते पहले इसी मामले से जुड़े एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में 20 पीड़ित महिलाएं मुंबई आई थीं और इनमें से सबसे युवा पीड़िता की उम्र 20 साल थी. दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक 4605 तो वो संख्या है जो कलेक्टर द्वारा जांच का आदेश दिए जाने के बाद सामने आया और ये मामले मामले रिकॉर्डेड हैं. यानी ये संख्या काफी बड़ी भी हो सकती है.

कटाई के मौसम में ये महिलाएं अपना घर छोड़कर टेंटों में रहती हैं. इन टेंटों में इन्हें कोई मूलभूत सुविधा नहीं मिलती. यहां तक की शौचालय और पीने का पानी तक नहीं होता. असंगठित क्षेत्र के तहत आने वाली इन महिलाओं को इस क्षेत्र से जुड़े कोई फायदे नहीं मिलते. इस घटना के बाद इस सबके लिए भी आवाज़ उठाई जा रही है. महिलाओं के लिए आवाज़ बुलंद करने वालों में शिवसेना की महिला एमएलसी मनीषा कायंदे और नीलम घोरे के अलावा महिला विकास अधिकार मंच, एकल महिला संगठन, जन आरोग्य अभियान और भारतीय महिला फेडरेशन जैसे संगठन शामिल हैं.

‘अगर यही आख़िरी विकल्प हो तो ही निकाले जाएं गर्भाशय’

इन महिलाओं के मामले में आगे आए एक एनजीओ, भारतीय महिला फेडरेशन ने कहा कि मामला तो कई दिनों से चल रहा था. लेकिन कोई इसे गंभीरता से नहीं ले रहा था. सरकारी अस्पताल में स्त्री रोग विशेषज्ञ की कमी की वजह से भी ये महिलाएं निजी अस्पतालों में चली जाती हैं. बीड से ‘समता प्रतिष्ठान’ की शुभांगी कहती हैं, ‘पीरियड के दौरान महिलाओं को जो डिस्चार्ज जुड़ी समस्याएं होती हैं उन्हें लेकर ये डॉक्टर के पास जाती हैं. हमारी मांग ये है कि ऐसे मामले में गर्भाशय निकाला जाना जब तक आख़िरी विकल्प ना हो, ऐसा न किया जाए.’

कमाई पर असर ना पड़े इसलिए गर्भाशय निकलवाने जैसे कदम उठाती हैं महिलाएं

इसके पहले मामले के तूल पकड़ने के बाद बीड ज़िले के सिविल सर्जन थोराट की अध्यक्ष्ता में एक समिति गठित की गई थी जिसकी जांच में ये 4605 महिलाओं संग ऐसा होने की बात सामने आई. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक गन्ना कटाई करने वाली महिलाएं जब अपने पीरियड्स के दौरान काम पर नहीं जाती तो उनके 500 रुपए काट लिए जाते हैं. ऐसे में पीरियड्स की वजह से काम और कमाई पर पड़ने वाले असर की वजह से महिलाएं गर्भाश्य निकलवाने जैसे कदम उठा लेती हैं ताकि कमाई पर असर न पड़े.

कौन है ज़िम्मेदार?

इस कांड का ठीकरा उन ठेकेदारों पर फोड़ा जा रहा है जिनके लिए ये महिलाएं काम करती हैं. इसमें निजी अस्पतालों की भी उतनी ही ग़लती बताई जा रही है. कायंदे कहती हैं, ‘कई वजहों से गर्भाश्य निकलवा रही महिलाओं के पास ऐसा कराने के पैसे तक नहीं होते. इसमें 40,000 तक का ख़र्च आता है. ऐसे में वो ये पैसे अपने ठेकेदारों से लेती हैं और बाद में चुकाती हैं.’ ये ठेकेदार गन्ने की कटाई के मौसम में इन महिलाओं के दो-दो टन तक गन्ने कटवाने का काम करते हैं. ये भी बताया गया कि गन्ना किसानों से लेकर उद्योगपतियों तक को इन महिलाओं की परवाह नहीं है.

सिविल सर्जन की रिपोर्ट के मुताबिक 2016 से 2019 के बीच 25 से 30 साल की महिलाओं की अज्ञानता का फायदा उठाकर भी ये काम किया गया. ऐसा करने के पीछे की वजह ये बताई जा रही है कि अगर महिलाएं गर्भ धारण नहीं करेंगी तो गन्ना कटाई का काम अनवरत चलता रहेगा. मीडिया में आई इससे जुड़ी ख़बरों के बाद अप्रैल महीने में राष्ट्रीय महिला आयोग ने राज्य के मुख्य सचिव को नोटिस जारी किया था, जिसके बाद मामले ने तूल पकड़ा था. अब सरकारी पैनल की रिपोर्ट का इंतज़ार है.

अपने आर्थिक फायदे के लिए हज़ारों युवतियों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करना और कईयों को मां बनने से वंचित करने की ये घटना इतनी भयावह है कि इसके बारे में सुन कर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं. अब अपेक्षा है कि पीड़िताओं को न्याय मिलेगा और आगे ऐसा करने की किसी को हिम्मत न होगी.

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