जैसा कि अपेक्षित था, पीएम मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद ने पूर्व सीईए अरविंद सुब्रमणियन के इस दावे को खारिज कर दिया कि भारत की विकास दर को ज्यादा आंका गया था. यह किसी को जानकार नहीं बनाता या बहस को खत्म नहीं करता. भारत के आधिकारिक आंकड़े से बादल छट चुके हैं और वैधानिक शक्तियों के साथ एक स्वायत्त सांख्यिकी निकाय की तत्काल आवश्यकता है.
भारत को चुनाव सुधार की जरूरत है न कि एक साथ चुनाव कराने की
चुनाव में सुधार से ज्यादा एक साथ चुनाव पर जोर देना एक बड़ी तस्वीर को नजरंदाज करने जैसा है. यह जीवंत भारत और मुश्किल से हासिल संघवाद को समाप्त कर सकता है. तत्काल में ज्यादा जरूरी सुधार काले धन पर अंकुश लगाना है, चुनावी बांड को अधिक पारदर्शी बनाना और चुनाव आयोग को अधिक संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करना है.
कर्नाटक कांग्रेस को भंग करना राहुल गांधी की घुड़सवार राजनीति को सामने लाता है
राहुल गांधी द्वारा कर्नाटक राज्य कांग्रेस कमेटी का विघटन राजनीति में उनके घुड़सवार (बेतुके) दृष्टिकोण का एक और उदाहरण है. वह अपने इस्तीफे के बारे में पूरी पार्टी को परेशानी में टांग कर रखते है, लेकिन जब इच्छा होती है तब अपनी पावर दिखाते हैं. रैंकों के बीच बड़े पैमाने पर भ्रम से पता चलता है कि भारत की प्रमुख विपक्षी पार्टी पहले की तरह जोखिम में आ रही है.