नई दिल्ली: उत्तर पश्चिमी दिल्ली की झुग्गी कॉलोनी में कच्चे-पक्के छोटे से मकान के अंदर, 42-वर्षीया राधा और उनके परिवार को मई की चिलचिलाती धूप से थोड़ी राहत मिल पाती है, लेकिन उन्हें अपनी चिंताओं से राहत बिल्कुल नए टीवी से मिली है, जिसमें हिंदी के धारावाहिकों के अलावा खबरों में परिवार के पांच सदस्यों की भारतीय नागरिकता की पुष्टि करने वाले चमकीले नीले दस्तावेज़ (डोजियर) दिखाई देते हैं.
आदर्श नगर में लगभग 200 झोपड़ियों के समूह में यह कुछ लोग काफी अलग है. पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के कई हिंदू शरणार्थी इस इलाके को अपना घर कहते हैं. कुछ लोगों को भारतीय नागरिकता के प्रमाणपत्र मिल गए हैं. वर्षों का इंतज़ार उनके ज़हन में आज भी ताज़ा हैं. कुछ लोग वेरिफिकेशन के लिए पास के मलकागंज डाकघर में लाइन में खड़े हैं, उनकी बारी करीब आ रही है.
राधा ने आंसूं पोछते हुए दिप्रिंट को बताया, “हम यहां आज़ाद नागरिक हैं. हमारी लड़कियां स्कूल जाने और भविष्य में कोई भी कोर्स करने के लिए स्वतंत्र हैं. हमें पाकिस्तान छोड़ने का कोई अफसोस नहीं है और हम अपने भविष्य को लेकर आशान्वित हैं.”
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के नए नागरिकता संशोधन नियम कॉलोनी में हलचल मचा रहे हैं. 11 मार्च को अधिसूचित, इन नियमों ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के कार्यान्वयन को गति दी, जिसे संसद ने 2019 में अधिनियमित किया. इसके तहत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से गैर-मुस्लिम शरणार्थियों के लिए नागरिकता तेज़ी से ट्रैक की जाती है.
कोई भी हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी या ईसाई जिसने 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले बिना दस्तावेज़ के भारत में प्रवेश किया है, वो आवेदन करने के लिए पात्र है.
15 मई को केंद्रीय गृह सचिव ने नई दिल्ली में 14 आवेदकों को नागरिकता प्रमाणपत्र का पहला सेट सौंपा.
प्राप्तकर्ताओं में राधा की बेटी बावना (18), बेटे हरजी (28) और अर्जुन (21), लक्ष्मी (26) और चंद्रकला (25) शामिल हैं. हालांकि, राधा की प्रक्रिया उसके पिता के पाकिस्तानी पासपोर्ट की अनुपलब्धता के कारण रुक गई. उनके पति माधो, जिन्होंने कॉलोनी में कई परिवारों के लिए नागरिकता प्रक्रिया को आगे बढ़ाया है, को भी “कागज़ातों” के कारण देरी का सामना करना पड़ा है. हालांकि, उन्हें उम्मीद है कि आखिरकार उनकी बारी भी आएगी.
आदर्श नगर परिवार के अलावा, इन नए भारतीय नागरिकों में 29-वर्षीया यशोदा और उनके छोटे भाई भरत कुमार शामिल हैं, जो उत्तरी दिल्ली के मजनू का टीला में पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थिों की एक झुग्गी कॉलोनी में रहते हैं. यह उनके लिए खुशी का मौका है क्योंकि उन्होंने भारतीय नागरिक माने जाने के लिए कई साल तक इंतज़ार किया है.
यशोदा ने कहा, “अब इस प्रमाणपत्र के साथ, मैं एक भारतीय नागरिक हूं. मैं कभी स्कूल नहीं जा पाई और खुद के लिए कुछ नहीं कर सकी. कम से कम मेरे बच्चे, खासकर मेरी लड़कियां, बेहतर ज़िंदगी जी पाएंगे. वो स्वतंत्र रूप से स्कूल और कॉलेज जा सकते हैं और नौकरियों के लिए आवेदन कर सकते हैं.”
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‘पाकिस्तान से बाहर जाना पड़ा’
पाकिस्तान से भारत में प्रवेश करने वाले परिवारों के लिए यह एक लंबी यात्रा और प्रतीक्षा रही है. जिन लोगों ने दिप्रिंट से बात की, उन सभी ने धार्मिक उत्पीड़न और “डर” को आज़ादी से बदलने की इच्छा की कहानियां सुनाईं.
जब वे पाकिस्तान के सिंध प्रांत के टांडो अल्लाहयार शहर में रहती थीं, माधो के पास केले का एक बाग और एक बड़ा घर था, लेकिन बावना ने कहा कि परिवार को कभी भी घर जैसा महसूस नहीं हुआ और वह “लगातार डर” के साये में रहते थे.
लड़कियों के लिए शिक्षा के अवसर भी सीमित थे. राधा की बड़ी बेटियां सीता और मीना, जो अब भारत में रहती हैं, प्राथमिक विद्यालय में बुर्के में पढ़ती थीं. उनका कोर्स इस्लामी ग्रंथों को पढ़ने पर केंद्रित था, जो राधा द्वारा अपने बच्चों के लिए देखे गए जीवन से बहुत दूर था.
उन्होंने अपनी बड़ी बेटी सीता के साथ हुई एक दर्दनाक घटना को भी याद किया.
राधा ने अपनी बेटी बावना के गुजराती शब्दों का अनुवाद करते हुए कहा, “हमारी बेटियां कभी घर से बाहर नहीं गईं, लेकिन एक दिन, सीता चिप्स खरीदने के लिए बाहर गई. उसके पिता (माधो) घबरा गए, उन्हें डर था कि उसका अपहरण कर लिया जाएगा और उसकी जबरन शादी करा दी जाएगी. उन्होंने उसे (राधा) पीटा और हममें से किसी को भी दोबारा बाहर जाने से मना किया.”
आखिरकार परिवार ने फैसला लिया कि वे अब इस तरह नहीं रह सकते.
उनके यहां आने की शुरुआत गुजरात में एक रिश्तेदार के जरिए हरिद्वार के तीर्थयात्री वीज़ा से हुई. परिवार ने 22 मार्च 2014 को राजस्थान के जोधपुर के मुनाबाव स्टेशन से थार एक्सप्रेस गाड़ी के जरिए भारत में प्रवेश किया. वहां से, वे अपने प्रायोजकों के निकटतम थाने को रिपोर्ट करने के मानदंडों का पालन करने के लिए गुजरात गए.
2018 में परिवार बेहतर संभावनाओं की तलाश में गुजरात से दिल्ली चला गया. हरजी और अर्जुन को आज़ादपुर में मोबाइल कवर बेचने का काम मिला और बावना ने मजलिस पार्क के एक सरकारी स्कूल से 10वीं कक्षा पास की. सीता और मीना, जो उनके साथ भारत आ गईं, अब शादीशुदा हैं और उन्होंने नागरिकता के लिए आवेदन किया है.
ऐसी और भी कई कहानियां हैं. दिल्ली की एक अन्य झुग्गी बस्ती मजनू का टीला में भी ऐसी ही कहानियां हैं. पाकिस्तान से भागकर आए हिंदुओं ने कहा कि वे भयमुक्त ज़िंदगी चाहते हैं. लगभग 150 शरणार्थी परिवार अब इस स्थान को अपना घर कहते हैं.
यशोदा ने कहा, जो किशोरावस्था में थीं जब उनके 14-सदस्यों वाले परिवार ने सिंध के हैदराबाद में अपना घर छोड़ दिया था, “हमारे पिता ने मन बना लिया था कि हमें पाकिस्तान से बाहर जाना होगा.”
उन्होंने कहा, “हम कभी स्कूल नहीं जा सके क्योंकि हमारे परिवारों को डर था कि हमारा धर्म परिवर्तन करा दिया जाएगा और हमारी मुस्लिम व्यक्ति से शादी करा दी जाएगी. सभी दस्तावेज़ को तैयार करने में दो साल लग गए. आखिरकार, हमने ट्रेन पकड़ी और टूरिस्ट वीज़ा पर भारत में प्रवेश करने के लिए वाघा बॉर्डर पार किया.”
यशोदा के नागरिकता प्रमाण पत्र के अनुसार, उनके प्रवेश की तारीख 9 मार्च 2013 है.
कुछ दरारें, लेकिन सहज प्रक्रिया
माधो के अनुसार, उनके परिवार के अधिकांश सदस्यों के लिए नागरिकता की प्रक्रिया काफी हद तक सुचारू और तुरंत थी.
नए नियमों की घोषणा के बाद अप्रैल की शुरुआत में उन्होंने एक साइबर कैफे से नागरिकता के लिए ऑनलाइन आवेदन किया और सभी ज़रूरी दस्तावेज़ डिजिटली जमा किए. 15-20 दिन के अंदर सरकार की ओर से ईमेल आया और उन्हें 10 मई को मलकागंज पोस्ट ऑफिस में वेरिफिकेशन के लिए बुलाया गया.
माधो ने कहा, “उन्होंने हमारे सभी डिजिटल दस्तावेज़ को मूल दस्तावेज़ से क्रॉस-चेक करके वेरिफाई किया. उन्होंने पाकिस्तान में हम कहां रहते थे, भारत में रिश्तेदार और हमारे प्रवेश की तारीख के बारे में भी सवाल पूछे.”
अगले दिन, अधिकारी आधार और पैन कार्ड जैसे भारतीय दस्तावेज़ को वेरिफाई करने के लिए उनके घर गए. इसके तुरंत बाद, परिवार के पांच सदस्यों ने 15 मई को मंत्रालय आने के लिए कहा गया.
माधो और उनकी पत्नी राधा कुछ कागज़ी कार्रवाई के कारण अभी भी अपनी भारतीय नागरिकता का इंतज़ार कर रहे हैं, लेकिन वे ज्यादा चिंतित नहीं हैं.
माधो ने दिप्रिंट को बताया, “अधिकारियों ने पाकिस्तान में राधा के पिता का पासपोर्ट मांगा है और इसे प्राप्त करने की कोशिश जारी है. हमारे पास यह है और हम इसे जल्द से जल्द यहां लाने की कोशिश कर रहे हैं.”
उन्होंने कहा कि राधा ने पाकिस्तान में अपने भाइयों से दस्तावेज़ भेजने का अनुरोध किया है और उन्हें उम्मीद है कि यह 10 जून को अगले सत्यापन से पहले आ जाएगा. अपनी नागरिकता के लिए, माधो ने दावा किया कि उन्हें बताया गया है कि प्रक्रिया जारी है और कुछ आवेदनों को संसाधित होने में थोड़ा अधिक समय लगता है.
लेकिन परिवार की खुशियों पर अभी भी गंभीर बादल मंडरा रहे हैं.
माधो का बेटा किशन और उसकी पत्नी गर्भावस्था के कारण 2014 में उनके साथ यात्रा नहीं कर सके. वे बाद में 2016 में भारत आए और आदर्श नगर में भी रहते हैं, लेकिन नागरिकता के लिए पात्र नहीं हैं क्योंकि वे 31 दिसंबर 2014 की नियमों की समय सीमा के बाद आए थे.
राधा ने दिप्रिंट को बताया, “हम सरकार से अनुरोध करेंगे कि हमारे जैसे मामलों पर विचार करें जहां परिवार के कुछ सदस्य अपरिहार्य कारणों से पीछे रह जाते हैं.”
यशोदा ने मजनू का टीला स्थित अपने घर पर भी इसी तरह की चिंता जताई. वह अपने पति और अपने माता-पिता के बारे में चिंतित है, जो अभी भी अपनी नागरिकता का इंतज़ार कर रहे हैं. उनके अधिकांश रिश्तेदार और ससुराल वाले अभी भी सिंध के हैदराबाद में हैं और वे अक्सर उनकी भलाई के बारे में चिंतित रहती हैं.
‘आज़ादी की हवा’
राधा और यशोदा के परिवारों के लिए भारत में जीवन आसान नहीं रहा है, जो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अनुमानित 30,000 शरणार्थियों में से हैं जो भारत में अपने जीवन का पुनर्निर्माण करने की कोशिश कर रहे हैं.
राधा को आदर्श नगर में लगभग तीन साल तक बिना बिजली के रहना याद है जब सभी निवासियों को अस्थायी झोपड़ियों में चिलचिलाती गर्मी, गंदे वातावरण और तंग परिस्थितियों का सामना करना पड़ा.
लेकिन उनकी कहानी में रोशनी की आस है. राहत और संतुष्टि की सांस के साथ, राधा ने हाल के सुधारों की ओर इशारा किया. उनके बेटों ने एक बेहतर घर बनाया है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बिजली आखिरकार 18 महीने पहले उनके दरवाजे तक पहुंच गई.
उन्होंने कहा, ‘‘उन्होंने जिस चीज़ के साथ अपना जीवन शुरू किया था, हम उससे काफी आगे आ चुके हैं. हमने इस साल की शुरुआत में राम मंदिर के उद्घाटन से पहले यह एलईडी टीवी खरीदा था.’’
तमाम कठिनाइयों के बावजूद, राधा ने कहा कि उन्हें पाकिस्तान में पारिवारिक व्यवसाय और घर छोड़ने का कोई अफसोस नहीं है. उनके लिए, ‘‘आज़ादी की हवा’’ और शांति समृद्धि से पहले आती है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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