नई दिल्ली: मोकामा के पूर्व विधायक और कुख्यात अपराधी अनंत कुमार सिंह पर अपहरण और हत्या से लेकर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के उल्लंघन तक के 52 मामले दर्ज हैं. इस हफ्ते की शुरुआत में 15 दिनों की पैरोल पर पटना जेल से बाहर आने में उन्होंने कोई समय बर्बाद नहीं किया और तुरंत बिहार की मुंगेर लोकसभा सीट से जनता दल (यूनाइटेड) के उम्मीदवार राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह के लिए प्रचार करना शुरू कर दिया.
सजायाफ्ता अपराधी होने के बावजूद, सिंह का मुंगेर में काफी दबदबा है, जिसके तहत मोकामा आता है. जबकि उन्हें “पैतृक संपत्ति मामले” को सुलझाने के लिए बिहार गृह विभाग द्वारा पैरोल दी गई थी, विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल ने इसे सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) द्वारा एक राजनीतिक पैंतरेबाज़ी के रूप में निंदा की है. बेउर जेल अधीक्षक जितेंद्र कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि सिंह को दो गारंटर और 10,000 रुपये के दो ज़मानत बांड प्रदान करने के बाद 5 मई से 19 मई शाम 7 बजे तक पैरोल मिली.
सिंह रविवार को बड़ी संख्या में समर्थकों के नारों और फूलमालाओं के बीच पटना के बाहरी इलाके में स्थित बेउर जेल से बाहर निकले. वे सीधे मुंगेर के मोकामा पहुंचे और बैठकों और मीडिया से बातचीत में घोषणा की कि ललन भारी अंतर से चुनाव जीतेंगे. मुंगेर में चौथे चरण में 13 मई को मतदान होना है.
भूमिहार वोट बैंक को ललन के पक्ष में करने के लिए सिंह की मजबूत छवि का कथित तौर पर इस्तेमाल करने को लेकर जद (यू) विपक्ष के निशाने पर है. राजद नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने राजनीतिक संबद्धता के आधार पर सिंह के साथ असंगत व्यवहार के लिए नीतीश कुमार सरकार की आलोचना की. यादव ने संवाददाताओं से कहा, “(अनंत कुमार सिंह) जब हमारे साथ थे तो अपराधी थे, अब जब वे जदयू के साथ हैं तो वे एक संत हैं.”
यह कोई अलग मामला नहीं है. पिछले साल अप्रैल में तत्कालीन जद (यू)-राजद सरकार ने जेल नियमों में संशोधन किया, जिससे गोपालगंज के पूर्व जिला मजिस्ट्रेट जी कृष्णैया की हत्या के दोषी राजपूत समुदाय के एक गैंगस्टर आनंद मोहन सिंह को 16 साल जेल में रहने के बाद रिहा कर दिया गया.
दिप्रिंट ने अनंत सिंह उर्फ “छोटे सरकार” के जीवन और यात्रा को एक साथ जोड़कर बताया है कि कैसे राज्य के दो शीर्ष नेताओं — वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव — के साथ उनके संबंधों ने उनके भाग्य का फैसला किया और परिणामस्वरूप, मोकामा में उम्मीदवारों का भी.
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आपराधिक इतिहास
अनंत कुमार सिंह का आपराधिक इतिहास चार दशकों से अधिक पुराना है. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले दायर हलफनामे से पता चलता है कि उनके खिलाफ पहला आपराधिक मामला मई 1979 का है, जब उन पर अन्य लोगों के साथ हत्या का मामला दर्ज किया गया था. हालांकि, आरोपपत्र कभी दायर नहीं किया गया.
उनके हलफनामे के अनुसार, सिंह पर 39 मामले दर्ज किए गए. हालांकि, पटना हाई कोर्ट के दस्तावेज़ के अनुसार यह संख्या अधिक है, जिसमें कहा गया है कि उनके खिलाफ 52 मामले थे. कुल मिलाकर, उन्हें केवल दो मामलों में दोषी ठहराया गया — एक 2015 में और दूसरा 2019 में.
2015 में पटना पुलिस ने अपहरण-हत्या के एक मामले के बाद उनके घर पर छापेमारी की थी, जिसमें चार युवक शामिल थे, जिनका उस साल 17 जून को अपहरण किया गया था. छापेमारी के दौरान पुलिस को इंसास राइफल की छह खाली मैगज़ीन, बुलेटप्रूफ जैकेट और खून से सने कुछ कपड़े बरामद हुए. अगले दिन, पीड़ितों में से एक, पुतुश यादव का शव सिंह के पैतृक गांव, नदावन में पाया गया.
सिंह के वकील सुनील कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि इस मामले में केवल दूसरी बार पूर्व विधायक को सलाखों के पीछे डाला गया और ज़मानत हासिल करने में उन्हें लगभग 22 महीने लग गए. वकील ने कहा कि सिंह को कुल तीन बार गिरफ्तार किया गया है — एक बार 2015 से पहले, फिर 2015 में और आखिरी बार 2019 में. आर्म्स एक्ट मामले में 2019 में गिरफ्तारी के बाद वे दोषी ठहराए जाने तक हिरासत में रहे.
2019 में पटना पुलिस ने 16 अगस्त की सुबह उनके घर छापा मारा और उनके घर से एक एके -47 और हथगोले बरामद किए, जो बाढ़ थाने के अधिकार क्षेत्र में आता था. हालांकि, वे शुरुआत में गिरफ्तारी से बचने में कामयाब रहे, और फिर एक हफ्ते बाद दिल्ली की एक स्थानीय अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया.
2022 में सिंह को इंसास राइफल और अन्य हथियारों की बरामदगी से जुड़े 2015 के मामले में 10 साल जेल की सज़ा सुनाई गई थी. उसी साल उन्हें 2019 एके-47 बरामदगी मामले में भी दोषी ठहराया गया, जिसमें यूएपीए के तहत आरोप भी शामिल थे. हालांकि, उनके वकील ने स्पष्ट किया कि आरोप पत्र में यूएपीए के आरोप हटा दिए गए थे और उन्हें केवल शस्त्र अधिनियम के तहत दोषी ठहराया गया था.
बुधवार को, पटना हाई कोर्ट ने 2015 के हथियार मामले में सिंह की जमानत याचिका खारिज कर दी.
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जदयू और राजद के बीच वार-पलटवार
अनंत कुमार सिंह चंद्रदीप सिंह के चार बेटों में सबसे छोटे हैं, जिनके पास पटना जिले के नदावां गांव में कई घोड़ा गाड़ियां थीं.
राजनीतिक विश्लेषक डी.एम. दिवाकर, जो ए.एन. सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज के पूर्व निदेशक हैं, ने दिप्रिंट को बताया कि सिंह के अपराध जगत की शुरुआत तब हुई जब उनके बड़े भाई दिलीप सिंह स्थानीय गैंगस्टर कामदेव सिंह के करीबी सहयोगी बन गए. कामदेव की हत्या के बाद दिलीप ने उसके आपराधिक साम्राज्य को संभाला.
इस बीच, सिंह के अन्य बड़े भाई — बिरंची और फाजो सिंह — जाति-आधारित हिंसा की एक घटना में मारे गए. ऐसा कहा जाता है कि वे अपने भाइयों के हत्यारों का पता लगाने और उन्हें खत्म करने के लिए अपने क्षेत्र में एक नदी के पूरे हिस्से को तैरकर पार कर गए, लेकिन इसकी पुष्टि करने के लिए कोई पुलिस रिकॉर्ड नहीं है.
प्रोफेसर दिवाकर ने दिप्रिंट को बताया कि जैसे ही दिलीप का प्रभाव बढ़ा, उन्हें तत्कालीन मोकामा विधायक ने राजनीतिक संरक्षण दिया. दिलीप तब तक विधायक के करीबी विश्वासपात्र हुआ करते थे, जब तक कि एक दिन उन्हें विधायक ने शर्मिंदगी से बचने के लिए दिन के दौरान अपने पटना स्थित घर पर नहीं आने के लिए कहा. दिलीप नाराज़ हो गए और उन्होंने मोकामा विधानसभा क्षेत्र में विधायक को चुनौती दी और 1990 में उन्हें भारी अंतर से हरा दिया.
राजनीतिक विश्लेषक और पटना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, राकेश रंजन ने दिप्रिंट को बताया कि दिलीप केवल पोस्टर बॉय थे, ये अनंत ही थे जो नियंत्रण रखते थे और उनकी राजनीतिक गतिविधि को आगे बढ़ाते थे. लोक जनशक्ति पार्टी के एक अन्य क्षेत्रीय मजबूत नेता सूरजभान सिंह से दिलीप की हार के बाद, वे राजनीतिक निर्वासन में चले गए, जिससे अनंत सिंह के लिए मुख्यधारा की राजनीति में आने का दरवाजा खुल गया.
लालू यादव के लिए एक चुनौती के रूप में नीतीश कुमार के उदय के साथ एक अवसर को भांपते हुए सिंह ने 2005 में विधानसभा चुनाव के दूसरे दौर में कदम रखा और जद (यू) के टिकट पर जीत हासिल की.
उन्होंने 2010 में सीट बरकरार रखी, जब तक कि 2015 के अपहरण और हत्या मामले में गिरफ्तारी और नीतीश कुमार के राजद के साथ गठबंधन के बाद उन्होंने जद (यू) नहीं छोड़ दिया. हालांकि, उन्होंने मोकामा निर्वाचन क्षेत्र से वे निर्दलीय लड़े और अपनी पूर्व पार्टी के नीरज कुमार को हराया.
2020 के पिछले विधानसभा चुनावों में सिंह ने लालू यादव की राजद से हाथ मिला लिया क्योंकि वे उस समय जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन से नाराज थे, जिनके लिए वे अब प्रचार कर रहे हैं. सिंह ने अपने गढ़ मोकामा से चुनाव लड़ा और राजद के ‘लालटेन’ चुनाव चिह्न के साथ जीत हासिल की.
प्रोफेसर दियावाकर ने याद करते हुए कहा कि पटना क्षेत्र में अनंत सिंह का इतना प्रभाव था कि एक बार राज्य के एक मंत्री उनके एक व्यावसायिक परिसर का उद्घाटन करने गए थे, संपत्ति जिसे स्थानीय अदालत ने अवैध घोषित किया था.
हालांकि, जब उन्हें दोषी ठहराया गया और बाद में विधानसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया, तो उन्होंने अपनी पत्नी नीलम देवी को राजद के टिकट पर मैदान में उतारा. मौजूदा विधायक नीलम विश्वास मत के दौरान इस साल की शुरुआत में राजद को छोड़कर नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल हो गईं.
विडंबना यह है कि सिंह ने स्वयं अपने घर पर बंदूकें “रखने” के लिए ललन को दोषी ठहराया था जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया. पिछले आम चुनाव में उनकी पत्नी ने ललन के खिलाफ चुनाव लड़ा था.
बंदूकें, मर्सिडीज और घोड़े
पटना के राजनीतिक नेता सिंह को एक ऐसे नेता की तरह याद करते हैं जिन्हें अपनी संपत्ति का दिखावा करने में कोई झिझक नहीं थी.
सिंह के राजनीतिक विकास को करीब से देखने वाले एक राजनीतिक नेता ने दिप्रिंट को बताया, “आप टीवी पर जो देखते हैं वे बिल्कुल वही मानसिकता है जो अनंत सिंह को प्रेरित करती है. वे उतने सुलझे हुए राजनेता नहीं हैं, जो अपनी संपत्ति और रसूख को लेकर माफी मांगते हों. वे अपनी रॉबिनहुड वाली छवि और उसके निहितार्थों को कम आंकने के बजाय, उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना पसंद करेंगे.”
कथित तौर पर सिंह पहली बार 2000 के दशक के मध्य में सार्वजनिक रूप से सुर्खियों में आए थे, जब टीवी चैनलों पर एके-47 लहराते और नाचते हुए उनके फुटेज वायरल हुए थे. उनके बड़े भाई को क्षेत्र में लोकप्रिय रूप से “बड़े सरकार” और सिंह “छोटे सरकार” कहा जाता है.
सिंह के करीबी सहयोगी संजीत कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि वह 2012 में दिल्ली से भव्य घोड़ा गाड़ी लेकर आए थे और उन दिनों मौज-मस्ती के लिए इससे आते-जाते थे. उन्होंने कहा, “उन्हें स्टाइल और अपनी संपत्ति का प्रदर्शन करना थोड़ा पसंद था.”
2013 में बिहार विधानसभा के एक सत्र के दौरान घोड़ा गाड़ी की सवारी करके सुर्खियां बटोरने से पहले, सिंह को विधानसभा में एकमात्र विधायक जाना जाता था, जिनके पास मर्सिडीज कार थी.
पटना में एक अन्य राजनीतिक नेता ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि अनंत सिंह ने 2007 में सोनपुर पशु मेले में लालू यादव से भी एक घोड़ा खरीदा था, अपने नेता के नाम का इस्तेमाल करते हुए, यह जानते हुए कि अगर उन्होंने अपना घोड़ा बता दिया तो यादव उन्हें घोड़ा बेचने को तैयार नहीं होंगे.
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